कोविड-19 बीमारी ने अब तक विश्व भर के लाखों लोगों को संक्रमित किया है। कोरोना का प्रभाव ऐसा है कि इस वायरस के कारण हजारों लोगों की मृत्यु हो चुकी है। भारत सहित दुनिया के कई देशों में कोरोना का प्रभाव देखकर लोग घबराए हुए हैं। बचाव के लिए घरों में बैठे हुए हैं और सुरक्षा के लिए हर तरह के उपाय कर रहे हैं। भारत में भी कोरोना का भयानक प्रभाव पड़ा है कि अब तक हजारों लोग संक्रमित हो चुके हैं और दर्जनों लोगों की मौत हो चुकी है।
विश्व भर के लोग डरे और सहमे हुए हैं और अपने आपको बचाने की हर संभव कोशिश कर रहे हैं। कोविड-19 बीमारी से जुड़ी नई-नई जानकारी पाना चाहते हैं ताकि अपने आपको सुरक्षित रख सकें। क्या आपको पता है कि जब कोई व्यक्ति कोविड-19 बीमारी से संक्रमित होता है, तो कोरोना वायरस व्यक्ति के शरीर में पहुंचकर क्या-क्या प्रभाव दुष्प्रभाव डालता है और कैसे शरीर के विभिन्न अंगों को हानि पहुंचाने लगता है।
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इम्यूनिटी कमजोर होने से होता है कोरोना का प्रभाव
डब्ल्यूएचओ के अनुसार, कोरोना वायरस से संक्रमित अधिकांश लोगों को श्वसनतंत्र से जुड़ी साधारण से लेकर गंभीर बीमारियां हो सकती हैं। हालांकि डब्ल्यूएचओ का यह भी कहना है कि जिन लोगों की इम्यूनिटी मजबूत होती है, वे बिना कोई विशेष इलाज के भी ठीक हो जाते हैं, लेकिन बुजुर्गों के लिए कोविड-19 बीमारी जानलेवा साबित होती है।
खासकर कार्डियोवैस्कुलर रोग, डायबिटीज, श्वसन तंत्र से जुड़ी बीमारियां, कैंसर और अन्य किसी तरह की गंभीर बीमारी से ग्रस्त लोगों के लिए कोरोना का प्रभाव जानलेवा साबित हो सकता है। कोरोना वायरस अलग-अलग तरह के वायरस का ग्रुप है जो स्तनधारियों और पक्षियों में पाया जाता है। इसे आरएनए वायरस कहा जाता है। अभी तक इसके लिए कोई टीका उपलब्ध नहीं है।
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कोरोना का प्रभावःफेफड़ों को बनाता है बीमार
कोविड-19 संक्रमण से जुड़ी डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट यह बताती है कि इस वायरस से संक्रमण के बाद अधिकांश मरीज अपने आप ही ठीक हो जाते हैं या उन्हें फ्लू जैसी समस्याओं का थोड़ा-बहुत सामना करना पड़ता है, लेकिन वैसे लोग जिनकी रोग प्रतिरक्षा शक्ति कमजोरी होती है, उनको कोविड-19 बीमारी के कारण गंभीर नकसान हो सकता है। इसी तरह बुजुर्ग या बच्चों को भी कोरोना का प्रभाव गंभीर रूप से बीमारी बना सकता है।
संक्रमण के बाद फेफड़ों में पहुंचता है वायरस
कोविड-19 से संक्रमित अनेक मरीजों की जांच रिपोर्ट में यह बात सामने आई है कि जब कोई मरीज कोविड-19 से संक्रमित होता है तो कोरोना का प्रभाव सीधा व्यक्ति के फेफड़ों में पहुंच जाता है और उसे नुकसान पहुंचाने लगता है।
छींकने और खांसने पर मुंह के रास्ते बाहर निकलता है वायरस
यह बीमारी संक्रमण से फैलती है। जब कोई संक्रमित व्यक्ति खांसता या छींकता है, तो खांसने-छींकने के समय ड्रॉपलेट बाहर निकलता है। इसी ड्रॉपलेट में हजारों की संख्या में वायरस होते हैं। जब दूसरे लोग वायरस के संपर्क में आते हैं तो वे इससे संक्रमित हो जाते हैं। इसी तरह अगर कोई स्वस्थ व्यक्ति किसी संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आता है, तो उस पर कोरोना का प्रभाव पड़ता है। स्वस्थ व्यक्ति संक्रमित हो जाता है।
जैसे ही कोई व्यक्ति इस वायरस से संक्रमित होता है,तो सबसे पहले उसे खांसी और बुखार जैसी परेशानियां होने लगती हैं।
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कोरोना वायरस के कारण निमोनिया के लक्षण
ये परेशानियां शुरुआत में निमोनिया जैसे दिखते हैं और बाद में बहुत गंभीर हो जाते हैं। कोरोना का प्रभाव होने पर रोगी को शुरू में निमोनिया में जैसे-जैसे लक्षण महसूस होते हैं ठीक वैसा ही कोरोना वायरस के संक्रमण मरीजों को महसूस होने लगता है। डब्ल्यूएचओ के अनुसार, संक्रमण के बाद कोरोना वायरस फेफड़ों को तीन तरह से प्रभावित करता है। वायरस अपनी संख्या बढ़ाता है, दूसरा इम्यूनिटी को हाइपरएक्टिव करता है और फेफड़ों को नुकसान पहुंचाता है।
रोग प्रतिरक्षा शक्ति को कमजोर बनाता है वायरस
डब्ल्यूएचओ का यह भी कहना है कि सभी मरीज को ऐसी समस्याओं से नहीं गुजरना पड़ता, बल्कि कोरोना का प्रभाव केवल 25 प्रतिशत लोगों को ही नुकसान पहुंचाता है और इससे श्वसनतंत्र संबंधी गंभीर बीमारी होती है। डब्ल्यूएचओ के अनुसार, नोवल कोरोना वायरस से संक्रमण के बाद वायरस व्यक्ति के फेफड़े की कोशिकाओं में जाता है। वायरस के फेफड़ों पर पहुंचने पर फेफड़ों में बलगम अधिक बनने लगता है और रोग प्रतिरक्षा शक्ति कमजोर होने लगती हैं।
हालांकि ऐसा नहीं है कि बगलम शरीर के लिए नुकसानदायक ही होता है। बलगम जब शरीर से बाहर निकलता है तो इससे श्वासनली सूखती नहीं है और फेफड़े के टिश्यू सुरक्षित रहते हैं। सिलिया कोशिका बगलम के चारों तरफ मौजूद होता है, जो पराग या वायरस को साफ करने का काम करता है।
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कोरोना वायरस के कारण श्वास नली बंद हो जाती है
शोधकर्ताओं के अनुसार, वैसी बीमारियां जो संक्रमण से फैलती हैं और गंभीर रूप से लोगों को नुकसान पहुंचाती है या जानलेवा साबित होती हैं, ऐसी बीमारियां SARS और MERS कहलाती हैं। ये वायरस संक्रमण के बाद रोगी की सिलिया कोशिकाओं को संक्रमित करके खत्म करने लगता है। इससे व्यक्ति की श्वासनली जाम होने लगती है। कुछ ऐसा ही कोरोना वायरस का प्रभाव पड़ने पर भी होता है। कोविड-19 बीमारी को लेकर किए गए शुरुआती अध्ययन में यह पता चला कि इससे रोगियों के दोनों फेफड़ों में निमोनिया हो जाता है और उसे सांस लेने में परेशानी होने लगती है।
कोरोना वायरस के कारण फेफड़ों में सूजन
दूसरे चरण में कोरोना का प्रभाव रोगी के फेफड़ों पर पड़ता है। वायरस के शरीर में पहुंचने पर फेफड़ों में सूजन हो जाती है। ऐसा होने पर रोग प्रतिरक्षा शक्ति वायरस से लड़ने लगती है और शरीर की सुरक्षा करना शुरू करती है। वह नुकसान को दूर करने के लिए फेफड़ों के खराब टिश्यू को ठीक करने का काम करती है, ताकि फेफड़ों की सूजन कम हो। ऐसा करने के क्रम में कई बार यह होता है कि रोगी की इम्यूनिटी सिस्टम अतिसक्रिय (हाइपरएक्टिव) हो जाती है। इसका रोगी के शरीर पर उल्टा असर होता है।
हाइपरएक्टिव इम्यूनिटी सिस्टम सेहत को पहुंचाता है नुकसान
हाइपरएक्टिव इम्यूनिटी सिस्टम खराब टिश्यू को तो हटाता ही है, साथ ही स्वस्थ टिश्यू को भी खत्म कर देता है। इससे फेफड़े बीमारी खत्म होने की बजाय बढ़ने लगती है। फेफड़े में खराब टिश्यू होने के कारण श्वांस नली बंद हो जाती है और इससे निमोनिया जैसे गंभीर लक्षण दिखाई देने लगते हैं।
कोरोना वायरस के कारण फेफड़ों में बन जाता है घाव
तीसरे चरण में फेफड़ों की बीमारी बढ़ती चली जाती है और अंत में फेफड़ा काम करना बंद कर देता है। हालांकि इससे हमेशा रोगी की मृत्यु नहीं होती, लेकिन फेफड़ा पूरी तरह से खराब हो जाता है। डब्लूएचओ के अनुसार, SARS और MERS जैसी संक्रमण कारक रोग से फेफड़ों में घाव बन जाता है और ऐसा ही घाव नोवल कोरोना वायरस के रोगी के शरीर में मिल रहे हैं।
कोरोना वायरस के कारण उखड़ने लगती हैं मरीज की सांसें
फेफड़ों के काम बंद करने से मरीज की सांसें उखड़ने लगती हैं, जिसके कारण रोगी को जीवित रखने के लिए वेंटिलेटर पर रखना पड़ता है। फेफड़ों में सूजन होने से तरल पदार्थ जमा होने लगता है। कोरोना का प्रभाव रक्त वाहिकाएं का काम बंद कर देता है और शरीर में आक्सीजन बनना मुश्किल हो जाता है। इससे मरीज की मौत हो जाती है।
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कोरोना का प्रभाव : पेट को बनाता है बीमार
शोध के अनुसार, कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों में से करीब एक चौथाई लोगों को दस्त की शिकायत होती है। हालांकि कई वैज्ञानिकों का मत है कि यह बात सिद्ध नहीं हुई है कि कोरोना वायरस के कारण पाचनतंत्र संबंधी बीमारियां भी हो सकती हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि कोशिकाओं के बार रहने वाले प्रोटीन्स को रेसीपेटर कहते हैं।
डब्ल्यूएचओ ने यह भी कहा है कि कुछ वायरस खास रास्ते से ही शरीर में प्रवेश कर सकते हैं, जो किसी भी रास्ते या कोशिकाओं से शरीर में घुस सकते हैं। इससे ही शरीर को नुकसान पहुंचने लगता है और तरल पदार्थ जमा होने लगता है। यही कारण है कि कोरोना का प्रभाव दस्त का कारण बनता है।
मल में भी कोरोना वायरस के होने की पुष्टि
वैज्ञानिकों का कहना है कि कोरोना वायरस भी ऐसा कर सकता है, क्योंकि यह भी शरीर में इसी रास्ते से घुसता है। दो अन्य शोधों में वायरस को मल में मिलने की भी पुष्टि हुई है। इससे यह बात साबित होती है कि वायरस मल के माध्यम से भी फैल सकता है।
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कोरोना का प्रभाव : रक्त वाहिकाओं को बनाता है बीमार
इम्यूनिटी के हाइपरएक्टिव होने के कारण फेफड़ों के अलावा शरीर के अन्य अंग भी रोगग्रस्त हो सकते हैं। एक अध्ययन से पता चला कि किसी अन्य गंभीर संक्रामक रोग से रोगी के शरीर में जिस तरह की परेशानियां होने लगती हैं, वैसा ही कोरोना वायरस के कारण भी होता है।
कोविड-19 बीमारी के कारण प्लेटलेट में कमी
इसके कारण रोगी में लीवर एंजाइम की मात्रा बढ़ी गई, सफेद रक्त कोशिकाओं और प्लेटलेट में कमी देखी गई। इसके साथ ही रोगी का ब्लड प्रेशर कम भी पाया गया। गंभीर रूप से संक्रमण होने के कारण रोगी को किडनी और हृदय रोग होने के भी संकेत मिले।
रक्त-वाहिकाओं से फैलता है कोरोना वायरस
शोधकर्ताओं का कहना है कि ऐसा नहीं है कि वायरस अपने आप शरीर में एक जगह से दूसरी जगह पर नहीं फैलता है, बल्कि यह रक्तवाहिकाओं द्वारा फैलता है। वैज्ञानिकों के अनुसार, साइकोटाइन एक तरह का प्रोटीन है, जिसका इस्तेमाल इम्यूनी सिस्टम अलार्म बीकन के रूप में होता है। ये संक्रमण वाले स्थान पर इम्यूनी सेल को इकट्ठा करता है और ये सेल संक्रामणग्रस्त टिश्यू को खत्म करके शरीर के बाकी हिस्सों की रक्षा करती है। यह इम्यूनिटी सिस्टम भी ठीक रखता है, लेकिन जब कोरोना वायरस का संक्रमण होता है, तो वह इम्यूनिटी सिस्टम को कमजोर करके सीधे फेफड़ों तक पहुंच जाता है।
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कोरोना का प्रभाव करता है रक्त-वाहिकाएं को कमजोर
इसके बाद होता यह है कि कई बार इम्यूनिटी सिस्टम सही काम करता है, तो रोगी बीमारी से निजात पा लेता है, लेकिन इम्यूनिटी सिस्टम के हाइपरएक्टिव होने से उल्टा नुकसान होने लगता है। इससे फेफड़ों के बाहर परत पर साइकोटाइन स्ट्रोम से सूजन होने लगती है और इस वजह से रक्त-वाहिकाएं कमजोर होने लगती हैं। फेफड़ों में तरल पदार्थ जमा होने लगता है और आपके शरीर के अन्य अंगों में भी समस्याएं होने लगती हैं।
कोरोना का प्रभाव करता है अंगों को खराब
कोरोना वायरस से ग्रस्त कुछ मरीजों का अध्ययन करने पर पता चला है कि साइकोटाइन शरीर में ऑक्सीजन बनाने की क्षमता को कमजोर कर देता है। धीरे-धीरे अंगों को खराब करने लगता है। हालांकि कुछ वैज्ञानिकों का यह भी कहना है कि जरूरी नहीं है कि हर मरीज के साथ ऐसा ही हो। इनका कहना है कि ह्रदय रोग या डायबिटीज वाले रोगियों में ऐसा हो सकता है। इनका यह भी कहना है कि भले ही वायरस किडनी, लिवर या तिल्ली आदि में नहीं पहुंचता हो, लेकिन इससे संबंधित गंभीर रोग को पैदा जरूर कर सकता है।
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कोरोना का प्रभाव : लिवर को बनाता है बीमार
जब कोरोना वायरस संक्रमित मरीज रोगी के श्वसन तंत्र में घुसता है, तो लिवर की कार्यक्षमता को कमजोर बना देता है। डॉक्टरों ने पाया है कि COVID-19 के कारण भी लिवर को भी कभी हल्का तो कभी अधिक नुकसान पहुंचा है। इससे लिवर फेल भी हो सकता है।
रिपोर्ट के अनुसार, रक्तवाहिकाओं में घुस जाने के बाद वायरस शरीर के किसी भी अंग में पहुंच सकता है। लिवर भी इसी तरह का अंग है, जहां वायरस आसानी से पहुंच सकता है। लिवर शरीर में पोषक तत्वों को जमा करता है और हानिकारक तत्वों को बाहर निकालता है। यह पित्त भी बनाता है, जिससे आपकी छोटी आंत को फैट कम करने में मदद मिलता है। लिवर में एंजाइम भी होता है, जो शरीर में केमिकल रिएक्शन को ठीक रखता है।
कोरोना के प्रभाव के कारण लिवर हो सकता है फेल
लिवर से एंजाइम रक्तवाहिकाओं में पहुंचता है। इससे ऐसा संभव है कि वायरस भी लिवर में पहुंच जाए। अगर ऐसा होता है तो इससे गंभीर बीमारी हो सकती है। लिवर को कई तरह के नुकसान पहुंच सकता है या लिवर फेलियर की स्थिति भी हो सकती है। हालांकि वैज्ञानिक श्वसन तंत्र के वायरस के लिवर में पहुंचने और लिवर को नुकसान पहुंचाने की पुष्टि नहीं कर पाए हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि, चूकि हाइपरएक्टिव इम्यूनिटी सिस्टम अपनी ही कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाने लगती हैं, तो ऐसा संभव है कि इससे लिवर में सूजन के साथ-साथ अन्य बीमारियां हो सकती हैं।
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शोधकर्ताओं ने यह भी कहा कि SARS के मरीजों में लिवर फेल होने का केवल यही कारण नहीं होता है। लिवर फेल होने के अधिकांश मामलों में लिवर के साथ-साथ किडनी और फेफड़े भी रोगग्रस्त देखे गए हैं।
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कोरोना का प्रभाव : किडनी को बनाता है बीमार
आप सोच रहे होंगे कि जब कोरोना वायरस फेफड़ों, रक्तवाहिकाओं या लिवर को नुकसान पहुंचा सकता है, तो क्या यह किडनी के लिए भी जोखिम पैदा कर सकता है, तो आपका सोचना गलत नहीं है।
इससे किडनी में कई तरह की बीमारी भी हो सकती है। लिवर की तरह किडनी भी आपके खून को साफ करने का काम करती है। किडनी में माइक्रोस्कोपिक डिस्टिलिंग यूनिट होता है, जिसे नेफ्रोन्स कहते हैं। ये नेफ्रोन्स दो तरह से काम करते हैं, एक खून को साफ करने का काम करते हैं, जबकि दूसरा ट्यूब पेशाब के रास्ते शरीर से बेकार चीजों को बाहर निकालने का काम करते हैं। किडनी शरीर को स्वस्थ रखने के लिए पोषक तत्वों को भी बचाने का काम करती है।
कोविड-19 बीमारी के कारण किडनी फेलियर
डब्ल्यूएचओ के अनुसार, वायरस का ट्यूब में होना असामान्य बात नहीं है, क्योंकि किडनी का काम लगातार खून को साफ करना है। इससे कभी-कभी ट्यूब की कोशिकाएं वायरस को किडनी में पहुंचा सकती हैं। इससे साधारण से लेकर गंभीर बीमारी भी हो सकती हैं। इनमें रक्तचाप कम होना, सेप्सिस, दवा या मेटाबॉलिज्म में गड़बड़ी आदि चीजें शामिल हैं। बहुत गंभीर हो जाने पर किडनी फेलियर के लक्षण भी दिख सकते हैं या किडनी फेल भी हो सकती है।
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कोरोना का प्रभाव : गर्भवती महिलाओं पर असर
कोरोना वायरस के दुनिया भर में फैलने की खबर के बाद पूरी दुनिया में चिंंताएं होने लगी कि अगर गर्भवती महिलाओं से जन्म लेने वाले या गर्भस्थ शिशु को संक्रमण होता है तो क्या होगा। क्या सचमुच कोरोना का प्रभाव माताओं से बच्चों पर होता है। यह विचार किया जाने लगा कि क्या यह वायरस स्तनपान के जरिए भी बच्चों को हो सकता है।
गर्भ में शिशु पर नहीं पड़ता है कोरोना का प्रभाव
रिपोर्ट यह बताती है कि दूसरी बीमारियों में नवजात शिशु कोरोना वायरस से संक्रमित हो सकते हैं, यह तभी संभव है कि किसी शिशु का जन्म ऐसे स्थान पर हुआ हो, जहां कोरोना मरीज का इलाज चल रहा हो, तो शिशु को कोविड-19 होने की संभावना हो सकती है। इसी तरह किसी संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने पर या माता के संक्रमित होने से शिशु पर कोरोना का प्रभाव हो सकता है। शोधकर्ताओं ने वूहान के 9 महिलाओं पर शोध किया, जो कोविड-19 से ग्रस्त थी। इनमें से कुछ महिलाएं गर्भवती थीं। माताओं ने जब शिशु को जन्म दिया, तो किसी भी शिशु को वायरस का संक्रमण नहीं हुआ।
इतनी अधिक जानकारी से आपने जाना कि कोरोना का प्रभाव कैसा होता है। जब कोई व्यक्ति कोविड-19 (कोरोना वायरस) से संक्रमित होता है, तो उसके शरीर में किस तरह के बदलाव देखने को मिलते हैं। कैसे कोरोना वायरस आपके फेफड़ों को नुकसान पहुंचाने लगता है, कैसे रक्तवाहिकाओं के माध्यम से शरीर के भिन्न-भिन्न अंगों में पहुंच सकता है और कैसे लिवर और किडनी फैल्योर का कारण भी बन सकता है। यही कारण है कि दुनिया भर में लोग लगातार इस वायरस से संक्रमित होकर काल के गाल में समा रहे हैं।
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कोविड-19 बीमारी से सुरक्षा के लिए रखें साफ-सफाई का ध्यान
आपके लिए यही सलाह है कि कोरोना एक ऐसा वायरस है, जिससे साधारण से लेकर गंभीर बीमारियां हो सकती हैं। इसलिए आपको कोरोना का प्रभाव समझना चाहिए। अपने परिवार को सुरक्षित रखने के लिए कोरोना से हर तरह का बचाव करना चाहिए। जीवन को ऐसे ही सुरक्षित किया जा सकता है। सरकार या डॉक्टर द्वारा बताए गए निर्देशों का पालन करें और साफ-सफाई का पूरा ध्यान रखें।
हमें उम्मीद है कि कोरोना के प्रभाव पर आधारित यह लेख आपके लिए उपयोगी साबित होगा। अधिक जानकारी के लिए डॉक्टर से संपर्क करें। हैलो हेल्थ ग्रुप किसी प्रकार की चिकित्सा सलाह, निदान और उपचार प्रदान नहीं करता।