हर बच्चा अलग होता है । इसलिए डॉक्टर हर बच्चे का इलाज अलग तरह से करते हैं । वो इलाज से पहले बच्चे को कुछ थेरेपी देते हैं । जो इस प्रकार हैः
सामाजिक कौशल प्रशिक्षण- कुछ समय के लिए डॉक्टर बच्चों को ये ट्रेनिंग देते हैं कि दूसरों से कैसे बात करनी चाहिए । दूसरों से बात करने में बच्चे की दिलचस्पी पैदा करते हैं । इससे बच्चे के व्यवहार में बदलाव दिखना शुरू होता है ।
भाषण देना या बात करना- इससे आपके बच्चे के दोस्त बनने में मदद मिलती है । इसमें बच्चे को सिखाया जाता है कि कब धीरे बोलना है, कब तेज बोलना है या फिर किस तरह सामान्य बात करनी है । उसको कुछ इशारे करना भी सिखाया जाता है । जैसे हाथ से, आंखों से अपनी बात को कैसे कहें । साथ ही इन सब पर नियंत्रण करना भी सिखाया जाता है ।
यह भी पढ़ें: दिमाग को क्षति पहुंचाता है स्ट्रोक, जानें कैसे जानलेवा हो सकती है ये स्थिति
व्यवहार बदलने की थेरेपी- यह आपके बच्चे के सोचने के तरीके को बदलने में मदद करती है । इस सिंड्रोम में बच्चे बार-बार एक चीज को ही दोहराते रहते हैं । डॉक्टर उन्हें सिखाते हैं कि कैसे इस पर कंट्रोल करना है । बहुत ज्यादा भावुक होना, बहुत ज्यादा गुस्सा होने पर भी डॉक्टर नियंत्रण करना सिखाते हैं ।
पैरेंट्स को ट्रेनिंग- डॉक्टर तो कुछ समय के लिए ये सारी ट्रेनिंग देते हैं । ऐसे में माता-पिता को भी कुछ तकनीकें सिखाई जाती हैं । जिससे वो अपने बच्चे के साथ उसी तरह व्यवहार करें। कुछ पैरेंट्स घर पर काउंसलर भी रख सकते हैं जो बच्चे से हर दिन ये थेरेपी कराते हैं। एसपरजर्स सिंड्रोम में बच्चों को दवाओं की जरूरत नहीं होती है । वो इन थेरेपी से ही ठीक हो जाते हैं ।