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Pareidolia : क्या आपको भी बादलों में दिखता है कोई चेहरा? आपको हो सकता है ‘पेरेडोलिया’

Pareidolia : क्या आपको भी बादलों में दिखता है कोई चेहरा? आपको हो सकता है ‘पेरेडोलिया’

क्या आपको कभी बादलों में कोई आकृति दिखाई दी है? क्या आपको कभी किसी लकड़ी के पटरे में कोई चेहरा दिखाई दिया है? क्या कभी कॉफी के ऊपर बने झाग में दो आंखे और एक मुंह दिखा है? या कभी सुना है कि आलू या पत्थर में किसी भगवान की आकृति दिखाई दी हो?

अगर हां तो हो सकता है कि आपको पेरेडोलिया हो। यह एक ऐसी मानसिक स्थिति है, जो ज्यादातर लोगों में पाई जाती है। ये एक प्रकार का ऑप्टिकल भ्रम होता है जिसमें किसी भी निर्जीव चीज में कोई आकृति या चेहरा दिखता है, लेकिन वास्तव में वहां पर कोई होता नहीं है।

आइए इस आर्टिकल में जानते हैं कि पेरेडोलिया क्या है, इसके पीछे की साइकोलॉजी क्या है? इस आर्टिकल के अंत में आपको ऐसी कई फोटोज भी दिखाएंगे, जिससे आपको अपने दिमाग का खेल समझ में आएगा। 

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पेरेडोलिया क्या है?

पेरेडोलिया एक साइकोलॉजिकल घटना है, जिसमें हमारा मस्तिष्क अस्पष्ट और रैंडम तरीके से कुछ भी देखकर पहले देखी गई आकृति की कल्पना कर लेता है। उदाहरण के तौर पर बादलों में घोड़ा, किसी जाने पहचाने जानवर या इंसान का चेहरा दिखना, चांद में बरगद के पेड़ सी आकृति दिखना आदि। 

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हमें किसी चीज में चेहरा या कोई आकृति क्यों दिखाई देती है?

साइकोलॉजी का मानना है कि अगर हम कुछ भी अपनी कल्पना से देख पाते हैं तो उसके लिए हमारे पूर्वज जिम्मेदार हैं। उन्होंने जो भी देखा और हमें दिखाया है, हमारे मस्तिष्क में वो चीजें एक डाटा की तरह सेव हो जाती हैं। फिर जब हम कोई चीज देखते हैं तो हम उन पहले देखी हुई आकृतियों की कल्पना कर लेते हैं।

पेरेडोलिया एक न्यूरोलॉजिकल कंडीशन है, जो हमारे मस्तिष्क के टेम्पोरल लोब के क्षेत्र में होती है। टेम्पोरल लोब के इस हिस्से को फुसीफॉर्म गाइरस (fusiform gyrus) कहते हैं।

फुसीफॉर्म गाइरस में ऐसे न्यूरॉन्स पाए जाते हैं जो किसी भी चेहरे या अन्य वस्तुओं की पहचान कर सकते हैं। ऑन्टोजेनेटिकली तौर पर देखा जाए तो यह प्रक्रिया व्यक्ति के पैदा होने के बाद ही शुरू जाती है। इसमें शिशु के दिमाग के टेम्पोरल लोब के फुसीफॉर्म गाइरस में तरह-तरह के चेहरे सेव होते चले जाते हैं।

खगोलशास्त्री कार्ल सैगन ने 1996 में अपनी किताब दि डेमन-हॉन्टेड वर्ल्ड (The Demon-Haunted World) में पेरेडोलिया का जिक्र किया है। जिसमें उन्होंने इस बात पर जोर दिया है कि कोई भी शिशु सबसे पहले अपनी मां और पिता को ही पहचानना शुरू करता है।

इसके लिए उसके मस्तिष्क का टेम्पोरल लोब का फुसीफॉर्म गाइरस जिम्मेदार होता है। जबकि पेरेंट्स सोचते हैं कि ये बच्चे और पेरेंट्स के बीच के दिल का रिश्ता है। जाहिर सी बात है कि इस स्थिति में बच्चा चेहरे को पहचानेगा, लेकिन चेहरे में अंतर करना भी साथ में ही सीखेगा। 

सैगन ने अनौपचारिक रूप से “इनएडवर्टेंट साइड इफेक्ट’ को “पैटर्न-रिकॉग्निशन मशीनरी’ कहा, जिसका आपस में संबंध था। इसके अनुसार हम कभी-कभी ऐसे चेहरे देखते हैं, जो असल में होते ही नहीं हैं।

सैगन ने उदाहरण के लिए चट्टानों, सब्जियों, लकड़ी और निश्चित रूप से ईश्वर के चेहरे दिखने का जिक्र किया है। चट्टानों और गुफाओं की संरचनाएं जो चेहरे या किसी अन्य वस्तुओं से मिलती जुलती होती हैं, उन्हें मीमटोलिथ्स (mimetoliths) कहा जाता है।

अब तक के सबसे प्रसिद्ध मीमटोलिथ्स में से एक बेरेखात रैम फिगरिन (berekhat ram figurine) हैं, जो लगभग 2,33,000 साल पहले पाया गया था और स्पेन के म्यूजियम में रखा है।

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हमेशा हमें किसी भी ऑबजेक्ट में चेहरा ही क्यों दिखता है?

अक्सर हम किसी भी वस्तु में चेहरे को ही देखते हैं, ये एक ऑप्टिकल भ्रम होता है जिसमें हमें कोई चेहरा दिखाई तो देता है, लेकिन वास्तव में वहां पर कोई होता नहीं है।

हम अपने रोजाना के रूटीन में जाने अनजाने ऐसे बहुत सारे चेहरे देखते हैं, जिन्हें हम नोटिस करते भी हैं और नहीं भी। आइए इस सवाल का जवाब हम आसान भाषा में समझते हैं।

हम किसी भी व्यक्ति या वस्तु को देखते समय सबसे पहले क्या देखते हैं? चेहरा, हाथ, पैर या कपड़े? आपका जवाब होगा कि चेहरा, जी हां! आपका जवाब बिल्कुल सही है।

हम सबसे पहले किसी भी व्यक्ति या वस्तु का चेहरा ही देखते हैं। हमारे ब्रेन के टेम्पोरल लोब के फुसीफॉर्म गाइरस एरिया में उस चेहरे को पहचानने के लिए आंखें और लिप्स पर पहले नजर जाती है। इसी के आधार पर हम चेहरों में भिन्नता का पता कर पाते हैं।

वहीं, आंखें और लिप्स चेहरे के इमोशन्स को भी जाहिर करते हैं। अगर आपको भरोसा नहीं है तो फोन उठाइए और अपने फोन के मैसेंजर में मौजूद इमोजी को देखिए, किसी एकाध इमोजी में ही नाक का उपयोग होगा। बाकी सभी में आंखें और लिप्स की मदद से इमोशंस को जाहिर किया गया होगा।

इसके अलावा हमें कभी बादलों में घोड़ा, चेहरा, कुर्सी, कार, टोपी आदि आकृतियां जो दिखाई देती हैं, ये भी पेरेडोलिया यानी कि ऑप्टिकल भ्रम है। वहीं, अगर बात करें किसी निर्जीव ऑब्जेक्ट की,जैसे- मेज, कार, बेड, शूज आदि की तो ये थैचर इफेक्ट के कारण हमारे ब्रेन में सेव हो जाती हैं। 

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पेरेडोलिया का फायदा क्या है?

  • अब आपके मन में यह सवाल आया होगा कि पेरेडोलिया का क्या फायदा हो सकता है? तो आपको बता दें कि पेरेडोलिया कोई अभिशाप नहीं है, बल्कि आपके ब्रेन को क्रिएटिव बनाने के लिए एक वरदान है। हमारे ब्रेन के द्वारा क्रिएट किए जाने वाला ऑप्टिकल भ्रम हमें रात में आसमान में होने वाले बदलावों को नोटिस करवाता है।

    इसी के आधार पर हमारे पूर्वजों ने बिना किसी यंत्र के तारों (stars) को जोड़ कर समय और कैलेंडर आदि का निर्माण किया है जिन्हें आज के वक्त में विज्ञान ने माना भी है।

  • पेरेडोलिया हमारे लिए एक प्रकार का मेमोरी डिवाइस है जो हमें किसी चीज को आसानी से याद रखने में मदद करती है, चाहे वो कितना भी रैंडम तरीके से क्यों ना देखा गया हो। 
  • मोनालिसा की एक प्रसिद्ध पेंटिंग बनाने वाले इटली के महान पेंटर लियोनार्डो डा विंची ने कहा है कि पेरेडोलिया ही हमें किसी फोटो को कैद करने या पेंटिग को बनाने के लिए प्रेरित करता है।

    अगर आप किसी की पेंटिंग बनाते हैं तो चेहरा हुबहू बनाने के लिए आंखें और मुंह या लिप्स सबसे महत्वपूर्ण होते हैं। इसी तरह से पेरेडोलिया के कारण ही हमें पहाड़, बादल, लकड़ियां आदि किसी के चेहरे से मिलती जुलती दिखाई देती हैं।

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पेरेडोलिया को समझने के लिए देखें ये फोटो

यहां पर नीचे हम आपको कुछ फोटो दिखा रहे हैं, अगर आपको उनमें कोई चेहरा या आकार नजर आता है, तो आपके मस्तिष्क में भी ऑप्टिकल भ्रम हो रहा है :

पेरेडोलिया

क्या आपको ऊपर की फोटो में कोई उदास चेहरा दिख रहा है?

पेरेडोलिया

सरप्राइज के कारण किसी व्यक्ति का मुंह खुला का खुला रह गया है ना!

पेरेडोलिया

श्श्श्श्श… कोई बुजुर्ग व्यक्ति सो रहे हैं। क्या आपको उनका चेहरा नजर आया?

पेरेडोलिया

हाहाहाहाहा! कैसे हैं मेरे नुकीले दांत?

पेरेडोलिया

हमारी स्माइल कैसी लगी आपको?

पेरेडोलिया

क्या मैं एक हाथी हूं? ये एक आइसलैंड का एलिफैंट रॉक है, जो पेरेडोलिया का एक बेहतरीन उदाहरण है।

अंत में आपसे सिर्फ इतना ही कहना चाहेंगे कि पेरेडोलिया खुद में एक अच्छी चीज है, जो आपके ब्रेन को किसी भी वस्तु को कई अलग-अलग आयामों से देखने के लिए प्रेरित करता है। इसलिए अगर आपने अब तक ऐसा नहीं किया है तो अब कर सकते हैं। खुद के अंदर ऑप्टिकल भ्रम पैदा कर के बहुत सारी नई चीजों की कल्पना कर सकते हैं। इस विषय में अधिक जानकारी के लिए आप मनोवैज्ञानिक से संपर्क कर सकते हैं।

डिस्क्लेमर

हैलो हेल्थ ग्रुप हेल्थ सलाह, निदान और इलाज इत्यादि सेवाएं नहीं देता।

The fusiform face area: a cortical region specialized for the perception of faces https://www.ncbi.nlm.nih.gov/pmc/articles/PMC1857737/ Accessed on 8/7/2020

Super-recognizers: People with extraordinary face recognition ability https://www.ncbi.nlm.nih.gov/pmc/articles/PMC3904192/ Accessed on 8/7/2020

Do You See What I See? I See Jesus in Toast! https://web.colby.edu/cogblog/2018/04/25/do-you-see-what-i-see/ Accessed on 8/7/2020

Paranormal and Religious Believers Are More Prone to Illusory Face Perception than Skeptics and Non‐believers https://doi.org/10.1002/acp.2874 Accessed on 8/7/2020

Pareidolia and clinical reasoning: the pattern awakens https://www.ncbi.nlm.nih.gov/pmc/articles/PMC4674405/ Accessed on 8/7/2020

Neural mechanisms underlying visual pareidolia processing: An fMRI study https://www.ncbi.nlm.nih.gov/pmc/articles/PMC6290235/ Accessed on 8/7/2020

The Earwig’s Tail: A Modern Bestiary of Multi-legged Legends By May Berenbaum https://books.google.co.in/books?id=SPxvx0X22XEC&pg=PA70&lpg=PA70&dq=carl+saga+pareidolia&source=bl&ots=GLAB9SfJgA&sig=fJBg1aABNRFJF31FGvWXQdbuXY0&hl=en&sa=X&ei=bg8gUJHBG4LN6QH0loCwBg&redir_esc=y#v=onepage&q=carl%20saga%20pareidolia&f=false Accessed on 8/7/2020

Current Version

11/11/2020

Shayali Rekha द्वारा लिखित

के द्वारा मेडिकली रिव्यूड डॉ. प्रणाली पाटील

Updated by: Shivam Rohatgi


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Shayali Rekha द्वारा लिखित · अपडेटेड 11/11/2020

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