क्या आपको अपना बचपन याद है? यह भी याद है कि बचपन के वे दिन कितने सुहाने थे? जब मोबाइल, स्मार्टफोन, टैब और कंप्यूटर जैसी गैजेट का हमारे दिनचर्या पर नियंत्रण नहीं था। मोबाइल का बच्चों पर प्रभाव (Mobile phone effects on kids) दूर-दूर तक नहीं था। स्कूल के बाद दोस्तों के साथ मिलकर खेलना, छुट्टियों में नाना-नानी के घर जा कर मौज लूटना, यह सब कितना वास्तविक था। बाल कहानियों की किताबें पढ़ना यह सब कुछ एक सुखद एहसास था। लेकिन जरा सोचिए, कि क्या यही बात आप अपने बच्चों से राजी करवा सकते हैं? यकीनन नहीं ; आज के बच्चों को इन सब के बदले एक मोबाइल और टैब दे दीजिए, अपनी जिंदगी वह इन्हीं में बना लेते हैं।