प्रीमैच्योर बर्थ (Premature Birth) उसे कहा जाता है जब बेबी का बर्थ ड्यू डेट (Due Date) से 3 हफ्ते या इससे पहले हो जाता है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो प्रीमैच्योर बर्थ यानी प्रेग्नेंसी के 37वें वीक के शुरू होने से पहले बेबी का जन्म हो जाना। प्री मैच्योर बेबीज (Premature Babies) जो बहुत जल्दी पैदा हो जाते हैं उनमें कई प्रकार के कॉम्प्लिकेशन्स होते हैं। हालांकि, बच्चों में कॉम्प्लिकेशन्स का प्रकार अलग हो सकता है। यह इस पर निर्भर करता है कि बेबी का बर्थ कब हुआ है। जो निम्न प्रकार है।
- लेट प्रीटर्म (Late Preterm)- प्रेग्नेंसी के 34-36वें वीक में बच्चे का जन्म होना
- मोडेरेटली प्रीटर्म (Moderately Preterm)- 32-36वें वीक में बच्चे का जन्म होना
- वेरी प्रीटर्म (Very Preterm)- 32वें वीक में बच्चे का जन्म होना
- एक्सट्रिमिली प्रीटर्म (Extremely Preterm)- 25वें वीक में बच्चे का जन्म होना
ज्यादातर प्रीटर्म बर्थ लेट प्रीटर्म स्टेज में होते हैं।
प्रीमैच्योर बेबीज में कई कॉम्प्लिकेशन्स के साथ ही दिमाग से जुड़ी समस्याएं (Brain Problems in Premature Babies) देखने को मिलती हैं। आइए जानते हैं प्रीमैच्योर बेबीज में ब्रेन प्रॉब्लम्स क्यों होती हैं। साथ ही इनके बारे में विस्तार से जानते हैं।
प्रीमैच्योर बेबीज में ब्रेन प्रॉब्लम्स (Brain Problems in Premature babies)
प्रीमैच्याेर बेबीज में होने वाली चार प्रकार की ब्रेन प्रॉब्लम्स की जानकारी यहां दी जा रही है।
प्रीमैच्योर बेबीज में ब्रेन प्रॉब्लम्स में से एक इंट्रावेंट्रिकुलर हेमरेज (Intraventricular Hemorrhage)
प्रीमैच्योर बेबीज में ब्रेन प्रॉब्लम्स में सबसे पहले बात करते हैं सबसे कॉमन कंडिशन इंट्रावेंट्रिकुलर हेमरेज की। स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी के अनुसार इंटावेंट्रिकुलर हेमरेज की समस्या उन प्री मैच्योर बेबीज में ज्यादा देखने को मिलती है, जिनका वजन डेढ किलो से कम होता है। यह कंडिशन तब देखने को मिलती है जब बेबी की डेलिकेट वेन्स (Veins) ब्रेन में रप्चर (Rupture) हो जाती हैं। जिससे ब्रेन में ब्लीडिंग होने लगती है। ज्यादातर हेमरेज माइल्ड होते हैं, जिनका असर थोड़े समय के लिए होता है, लेकिन कुछ बच्चों में ज्यादा ब्रेन ब्लीडिंग हो सकती है जो परमानेंट ब्रेन इंजरी (Brain Injury) का कारण बन सकती है। इंट्रावेंट्रिकुलर हेमरेज के लक्षण निम्न हैं।
- रेड ब्लड सेल का लेवल कम होना या एनीमिया (Anemia) की शिकायत होना
- बच्चे का बहुत तेज रोना
- हार्ट रेट का कम होना
- सीजर्स (Seizures)
- एप्निया (Apnea)
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इंट्रावेंट्रिकुलर हेमरेज के बारे में पता कैसे लगाया जाता है? (Diagnosis for Intraventricular Hemorrhage)
डॉक्टर आईवीएच (IVH) के बारे में पता लगाने के लिए बेबी की मेडिकल हिस्टी पता करते हैं। इसके साथ ही फिजिकल एग्जाम और इमेजिंग स्टडी (Imaging Study) की मदद ली जाती है। सिर का अल्ट्रासाउंड करके बेबी के ब्रेन में होने वाली ब्लीडिंग के बारे में पता लगाया जाता है। डॉक्टर अल्ट्रासाउंड के बाद इस स्थिति का ग्रेड र्निधारित करते हैं। जिसमें बीमारी के हायर ग्रेड से लेकर लोअर ग्रेड के बारे में जानकारी होती है। दुर्भाग्य से बच्चों में होने वाली इस ब्रेन प्रॉब्लम का कोई स्पेसिफिक ट्रीटमेंट नहीं है। वहीं इसे होने से भी नहीं रोका जा सकता।
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पेरिवेंट्रिकुलर ल्यूकोमाल्सिया (Periventricular Leukomalacia) भी है प्रीमैच्योर बेबीज में ब्रेन प्रॉब्लम्स में शामिल
प्रीमैच्योर बेबीज में ब्रेन प्रॉब्लम्स होना रेयर है, लेकिन ऐसा होने पर स्थिति गंभीर हो सकती है। पेरिवेंट्रिकुलर ल्यूकोमाल्सिया (Periventricular Leukomalacia) को पीवीएल के नाम से भी जाना जाता है। यह एक ब्रेन रिलेटेड कंडिशन है जिसका संबंध भी प्रीमैच्योर बेबीज से है। यह दूसरी सामान्य कॉम्प्लिकेशन है जो प्रीमैच्योर बेबीज के नर्वस सिस्टम से जुड़ी है। इस कंडिशन में ब्रेन की नर्व्स जो कि मूवमेंट को कंट्रोल करती हैं वे डैमेज हो जाती हैं। इस कंडिशन के लक्षणों में निम्न शामिल हैं।
- मांसपेशियों में खिंचाव
- टाइट मसल्स
- कमजोर मसल्स
जो बच्चे इस कंडिशन के साथ पैदा होते हैं उनमें सेरेब्रल पाल्सी (Cerebral Pasly) और डेवलपमेंट डिले (Development Delay) जैसी स्थितियां ज्यादा देखने को मिलती हैं। पीवीएल आईवीएच के साथ भी हो सकती है। इस बारे में जानकारी नहीं है कि पेरिवेंट्रिकुलर ल्यूकोमाल्सिया (Periventricular Leukomalacia) की स्थिति क्यों उत्तपन्न होती है। यह स्थिति ब्रेन के हिस्से को जिसे वाइट मैटर (White Matter) कहा जाता है डैमेज कर सकती है। यह हिस्सा आसानी से डैमेज हो जाता है। यह कंडिशन उन बच्चों में ज्यादा देखने को मिलती है जो 30 हफ्ते से पहले पैदा हो जाते हैं। इसके साथ ही अगर मां के यूटेरस (Uterus) में कोई इंफेक्शन होता या वह मेम्ब्रेन का अर्ली रप्चर (Early Rupture of Membrane) का अनुभव करती है, इसका कारण बनता है।
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पेरिवेंट्रिकुलर ल्यूकोमाल्सिया के बारे में पता कैसे किया जाता है? (Diagnosis for Periventricular Leukomalacia)
हेमरेज की तरह ही डॉक्टर मेडिकल हिस्ट्री, फिजिकल एग्जामिन और इमेजिंग स्टडीज के जरिए प्रीमैच्योर बच्चों में होने वाली इस ब्रेन प्रॉब्लम का पता लगाते हैं। इसके लिए भी अल्ट्रासाउंड और एमआरआई (MRI) स्टडी की जाती है। इस बीमारी के लिए कोई ट्रीटमेंट उपलब्ध नहीं है। ऐसा कोई उपाय नहीं है जिससे प्रीमैच्योर बेबीज में ब्रेन प्रॉब्लम्स ना हो।
प्रीमैच्योर बेबीज में ब्रेन प्रॉब्लम्स: सेरेब्रेल पाल्सी (Cerebral Palsy)
प्रीमैच्योर और लो बर्थवेट बेबीज (Low Birth Weight babies) में सेरेब्रल पाल्सी (Cerebral Palsy) विकसित होने का रिस्क होता है। यह कंडिशन एब्नोर्मल मूवमेंट्स (Abnormal Movements), मसल्स और पॉश्चर का कारण बनती है। सेरेब्रल पाल्सी के लक्षण गंभीर से हल्के हो सकते हैं। डॉक्टर्स को सेरेब्रल पाल्सी के कारण के बारे में बता नहीं पाते। इसके लक्षण निम्न हैं। एब्नॉर्मल पॉश्चर (Abnormal Posture)
- निगलने में कठिनाई
- मसल्स इम्बैलेंस (Muscles Imbalance)
- चलने में कठिनाई
- झटके लगना
सेलेब्रल पाल्सी का पता कैसा लगाया जाता है? (Diagnosis of Cerebral Palsy)
डॉक्टर इसके बारे में पता लगाने के लिए फिजिकल एग्जाम, बच्चे के लक्षणों को मॉनिटर करते हैं। साथ ही मेडिकल हिस्ट्री को कंसीडर किया जाता है। इमेजिंग टेस्ट्स से ब्रेन एब्नॉर्मलिटीज (Brain Abnormalities) के बारे में पता लगाया जा सकता है। इसके लिए एमआरआई, क्रानियल अल्ट्रासाउंड (Cranial ultrasound) और सीटी स्कैन शामिल हैं। इसके लिए इलेक्ट्रोएन्सेफलोग्राम (electroencephalogram) ईईजी टेस्ट भी किया जाता है।
सेरेब्रल पाल्सी का ट्रीटमेंट मेडिकेशन, फिजिकल थेरिपी (Physical Therapy), स्पीच लैंग्वेज थेरिपी (Speech Language Therapy) से किया जा सकता है। कुछ केसेज में बच्चों को ऑर्थोपेडिक सर्जरी (Orthopedic surgery) की जरूरत भी पड़ सकती है ताकि रेंज ऑफ मोशन (Range of Motion) को सुधारा जा सके।
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प्रीमैच्योर बेबीज में ब्रेन प्रॉब्लम्स और हायड्रोसेफलस (Hydrocephalus)
हायड्रोसेफलस एक ऐसी कंडिशन है जिसमें ब्रेन में फ्लूइड जमा हो जाता है। जिसकी वजह से ब्रेन टिशूज पर प्रेशर पड़ता है। हायड्रोसेफलस (Hydrocephalus) आईवीएच का एक कॉम्प्लिकेशन हो सकता है। यह प्रीमैच्योर और फुल टर्म बेबीज दोनो में हो सकता है, अगर आईवीएच (IVH) का इलाज ना किया जाए। हालांकि इसके प्रमुख कारण स्पष्ट नहीं है। इस कंडिशन के लक्षण कंडिशन की गंभीरता पर निर्भर करते हैं। इसके आम लक्षण निम्न हैं।
- पुतलियों का नीचे होना
- चिड़चिड़ापन होना
- नॉर्मल साइज से बड़ा सिर होना
- सिर का साइज बहुत तेजी से बढ़ा होना
- नींद ना आना
- उल्टी होना
हायड्रोसेफलस का पता कैसे लगाएं? Diagnosis for Hydrocephalus
इसका पता भी इमेजिंग टेक्निक्स के जरिए लगाया जाता है। जिसमें एमआरआई, सीटी और क्रेनिकल अल्टासाउंड आदि शामिल है। कुछ लोगों में इस स्थिति का इलाज करने के लिए सर्जरी प्रॉसीजर का उपयोग किया जाता है।
प्रीमैच्योर बेबीज में होने वाले अन्य कॉम्प्लिकेशन्स (Other Complications)
प्रीमैच्यारे बेबीज में ब्रेन प्रॉब्लम्स के साथ ही निम्न प्रॉब्लम्स हो सकती हैं।
- प्रीमैच्योर बेबीज में लर्निंग डिसेबिलिटी (Learning disability) पाई जाती है।
- प्रीमैच्योर इंफेंट में विजन प्रॉब्लम्स (Vision Problems) भी होती हैं। इस स्थिति में ब्लड वैसल्स सूज जाती हैं और वे ओवरग्रो हो जाती हैं।
- प्री मैच्योर बेबीज में हियरिंग लॉस (Hearing Loss) भी हो सकता है। बच्चे को घर ले जाने के पहले इसकी जांच की जानी चाहिए।
- प्री मैच्योर बच्चे जो कि बहुत ज्यादा बीमार होते हैं, उनमें डेंटल प्रॉब्लम के विकसित होने का रिस्क रहता है। जिसमें दांत देर से आना, दांतों का डिसलोकेशन होना (Dental dislocation) शामिल हैं।
- प्रीमैच्योर बेबीज को नॉर्मल बेबीज से ज्यादा हॉस्पिटल केयर की जरूरत होती है। इनमें इंफेक्शन, अस्थमा (Asthma) और फीडिंग प्रॉब्लम्स जैसी समस्याएं भी देखने को मिलती है।
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प्रीमैच्योर बर्थ को जोखिम कब होता है? (Premature Birth Risk Factors)
प्रीमैच्योर बेबीज में ब्रेन प्रॉब्लम्स के बाद इसके रिस्क फैक्टर्स को भी जान लेना सही होगा। प्रीमैच्योर बर्थ का कारण स्पष्ट नहीं है। हालांकि कुछ रिस्क फैक्टर्स हैं जो प्रीमैच्योर डिलिवरी का कारण बनते हैं।
- प्रीमैच्योर बर्थ की हिस्ट्री होना
- ट्विन्स (Twins), ट्रिप्लेट्स का होना
- दो प्रेग्नेंसीज के बीच में 6 महीने से कम का अंतर होना
- विट्रो फर्टिलाइजेशन (Vitro Fertilization) के द्वारा कंसीव करना
- यूटेरस, सर्विक्स और प्लासेंटा (Placenta) में किसी प्रकार की परेशानी होना
- प्रेग्नेंसी के दौरान सिगरेट का अत्यधिक सेवन करना
- एम्नियोटिक फ्लूइड (Amniotic fluid) और लोअर जेनिटल ट्रेक्ट (Lower Genital Tract) में किसी प्रकार का इंफेक्शन होना
- कुछ क्रोनिक कंडिशन जैसे कि ब्लड प्रेशर और डायबिटीज होना
- प्रेग्नेंसी के पहले वजन बहुत ज्यादा या कम होना
- मल्टिपल मिसकैरिज या एबॉर्शन होना
- फिजिकल इंजरी या ट्रॉमा होना
उम्मीद करते हैं कि आपको यह आर्टिकल पसंद आया होगा और प्रीमैच्योर बेबीज में ब्रेन प्रॉब्लम्स से संबंधित जरूरी जानकारियां मिल गई होंगी। अधिक जानकारी के लिए एक्सपर्ट से सलाह जरूर लें। अगर आपके मन में अन्य कोई सवाल हैं तो आप हमारे फेसबुक पेज पर पूछ सकते हैं। हम आपके सभी सवालों के जवाब आपको कमेंट बॉक्स में देने की पूरी कोशिश करेंगे। अपने करीबियों को इस जानकारी से अवगत कराने के लिए आप ये आर्टिकल जरूर शेयर करें।
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