परिचय
ऑटिज्म कई कारणों से हो सकता है जैसे अनुवांशिक और परिवार का मेडिकल इतिहास लेकिन क्या आपको पता है कि महिला हार्मोन में ऑटिज्म जैसी बीमारी को जन्म देने में अहम भूमिका निभाते हैं? निष्कर्ष बताते हैं कि अगर महिला हॉर्मोन में टेस्टोस्टेरोन (Testosterone) अधिक होता है, जैसा कि पीसीओडी वाली महिलाओं के मामले में देखा जाता है, तो कुछ हॉर्मोन प्रेग्नेंसी के दौरान प्लेसेंटा के माध्यम से भ्रूण का इस हार्मोन से संपर्क हो जाता है और शिशु के दिमाग का विकास प्रभावित हो जाता है। हैलो स्वास्थ्य के इस आर्टिकल में आप जानेंगे महिला हार्मोन और ऑटिज्म के बीच क्या है रिश्ता।
ऑटिज्म और एस्ट्रोजन (Autism and estrogen)
एस्ट्रोजन एक ऐसा हार्मोन ग्रुप है जिसमें कई और केमिकल और इसी तरह के हार्मोन जैसे एस्ट्राडियोल, एस्ट्रियोल और एस्ट्रोन (estradiol, estriol, and estrone) का समावेश होता है। ये सभी हार्मोन्स महिलाओं के विकास और सेक्स संबंधी कार्यो में प्रमुख भूमिका निभाते हैं। इन्हें महिला हॉर्मोन कह सकते हैं। महिलाओं में यह हार्मोन ओवरी (Ovary) यानी अंडाशय, फैट सेल्स और एंड्रेनल ग्रंथि में बनता है। इसमें एस्ट्रियोल का निर्माण गर्भधारण के दौरान गर्भनाल में बनता है। प्रमुख सेक्स हार्मोन एस्ट्राडियोल अंडाशयों के निर्माण के दौरान और एस्ट्रोन का निर्माण रजोनिवृत्ति (Menopause) के बाद होता है।
ऐसे होता है खतरा महिला हार्मोन (Female Hormone) से
कई अध्ययन में पाया गया कि जिन महिलाओं में प्रेग्नेंसी के दौरान एस्ट्रोजन का स्तर अत्यधिक होता है और महिला हार्मोन में यह बदलाव बच्चों को ऑटिज्म होता है। इसके अलावा जो माएं डिलीवरी के तीन महीने के अंदर दोबारा प्रेग्नेंट हो जाती है, तो जन्म लेने वाले बच्चे के ऑटिस्टिक होने की संभावना रहती है। विशेषज्ञ मानते हैं कि जिन लड़कियों में पीरियड्स समय से पहले हो जाते हैं, तो भविष्य में उनके बच्चे में भी ऑटिज्म का खतरा बन जाता है।
ऑटिज्म और प्रोजेस्टेरॉन (Autism and progesterone)
प्रोजेस्टेरॉन हार्मोन खासतौर पर अंडाशयों में बनता है। हालांकि, प्रेग्नेंसी के दौरान गर्भनाल में भी इसका निर्माण होता है। पुरुषों में भी इस तरह का हार्मोन बेहद कम मात्रा में होता है जो एड्रेनल ग्रंथि द्वारा छोड़ा जाता है। कई गर्भनिरोधक दवाईयों और हार्मोन थेरेपी से भी प्रोजेस्टेरॉन शरीर में आ जाता है। महिलाओं में प्रोजेस्टेरॉन पीरियड्स की नियमितता को प्रभावित करता है। गर्भधारण के दौरान यही हार्मोन फर्टिलाइजेशन के बाद अंडों को सुरक्षित रखने में मदद करता है। जब महिलाएं रजोनिवृत्ति के करीब जाती हैं तब इस हार्मोन का बनना कम हो जाता है।
अतिरिक्त काम के दबाव और कम केलोरी वाली डाइट की वजह से भी महिला हार्मोन में कमी आ जाती है। प्रेग्नेंसी के दौरान इस महिला हार्मोन की कमी से बच्चे में ऑटिज्म होने का खतरा बढ़ जाता है।
ऑटिज्म क्या है? (Autism)
ऑटिज्म एक तरह का मस्तिष्क-विकार है। इस मेंटल डिसऑर्डर (mental disorder) से ग्रस्त व्यक्ति को दूसरे इंसान के साथ कनेक्ट होने में बहुत कठिनाई होती है। ऑटिज्म में, मस्तिष्क के विभिन्न हिस्से एक साथ काम करने में विफल हो जाते हैं। इसको ऑटिज्म स्पेक्ट्रम विकार भी कहते हैं। ऑटिज्म से ग्रस्त व्यक्ति अन्य लोगों की तुलना में अलग ही सुनते, देखते और महसूस करते हैं। यदि आप ऑटिस्टिक हैं, तो आपको पूरे जीवन ऑटिज्म रहेगा। यह कोई बीमारी नहीं है और इसे ठीक नहीं किया जा सकता है।
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ऑटिज्म के प्रकार (Autism Types)
ऑटिज्म स्पेक्ट्रम विकार तीन तरह का होता है-
- ऑटिस्टिक डिसऑर्डर (क्लासिक ऑटिज्म) (Autistic Disorder) इस तरह के ऑटिस्टिक डिसऑर्डर से पीड़ित लोग सामान्यतः देर से बोलते हैं और सामाजिक और संचार की चुनौतियों का सामना करते हैं और असामान्य व्यवहार और इंटरेस्ट भी रखते हैं।
- एस्पर्जर सिंड्रोम से ग्रस्त लोगों में ऑटिस्टिक विकार के कुछ लक्षण होते हैं। उन्हें सामाजिक चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है और उनकी असामान्य व्यवहार और रुचियां भी हो सकती हैं। हालांकि, इन्हें आमतौर पर भाषा सम्बंधित या बौद्धिक समस्याएं नहीं होती हैं।
- जिन लोगों में ऑटिस्टिक डिसऑर्डर या एस्पर्जर सिंड्रोम के कुछ लक्षण होते हैं उन्हें परवेसिव डेवलपमेंटल विकार हो सकता है। इन लोगों में सामाजिक और संचार की चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
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ऑटिज्म के लक्षण क्या हैं? (Autism Symptoms)
ऑटिज्म के लक्षण निम्लिखित हो सकते हैं जैसे-
- नाम लेने पर प्रतिक्रिया न देना
- गले मिलने पर विरोध करना
- असहयोगी व्यवहार करना
- समन्वय (coordination) की समस्याएं
- लगातार हिलते रहना
- थोड़े ही बदलाव में परेशान हो जाना
- कुछ गतिविधियों को दोहराना
- अकेले खेलना पसंद करना
- नजरे मिलाने से बचना
- बोलने में देरी करना
- वार्तालाप को शुरू नहीं कर पाना
- असामान्य लय से बोलना
- शब्दों या वाक्यांशों को दोहराना
- भावनाओं को व्यक्त न करना
- खाने के बारे में अजीब पसंद (कुछ विशेष तरह के खाद्य पदार्थों का ही सेवन)
ऑटिज्म का निदान कैसे किया जाता है? (Autism Diagnosis)
ऑटिज्म का निदान करना मुश्किल हो सकता है क्योंकि अन्य विकारों का निदान करने के लिए मौजूद परीक्षणों के जैसे इसके लिए कोई खास टेस्ट नहीं है। डॉक्टर ऑटिज्म को डायग्नोस करने के लिए बच्चे के विकास और व्यवहार को देखते हैं। इसके लिए डॉक्टर विकास संबंधी जांच और विस्तृत नैदानिक मूल्यांकन करते हैं।
ऑटिज्म का इलाज कैसे किया जाता है? (Autism Treatment)
वैसे तो ऑटिज्म का कोई इलाज नहीं है। लेकिन, कई तरीकों से सीखने की क्षमता और मेंटल ग्रोथ को बढ़ाना दिया जा सकता है। व्यवहारिक प्रशिक्षण और प्रबंधन व्यवहार और संचार को बेहतर बनाने के लिए आत्म-सहायता, सकारात्मक तरीकों और सामाजिक कौशल प्रशिक्षण जैसे एप्लाइड व्यवहार विश्लेषण (applied behavior analysis) का इस्तेमाल किया जा सकता है।
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ऑटिज्म और टेस्टोस्टेरॉन (Autism and testosterone)
टेस्टोस्टेरॉन पुरुष श्रेणी का हार्मोन है लेकिन ये कम मात्रा में महिलाओं में भी पाया जाता है। इसका निर्माण भी अंडाशय में होता है, जो खून में जाकर मिलता है। नई रिसर्च में पाया गया है कि जिन मांओं में टेस्टोस्टेरॉन की अधिकता होती है उनके बच्चों में ऑटिज्म होने का खतरा ज्यादा होता है।
महिला हार्मोन और ऑटिज्म पर कई अध्ययन हो चुके हैं। इसमें साफ तौर पर सिद्ध हो चुका है कि प्रेग्नेंसी के दौरान महिला हार्मोन में असंतुलन बच्चे को ऑटिज्म की ओर धकेल देता है। हालांकि, इस मुद्दे पर और भी शोध जारी है। अगर आपको अपनी समस्या को लेकर कोई सवाल है, तो कृपया अपने डॉक्टर से परामर्श लेना ना भूलें।
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