बच्चों में आंखों की देखभाल के बारे में मिथक: अधिक चश्मा पहनने से आंखों को उसकी आदत हो जाती है?
बच्चों में आंखों की देखभाल के बारे में मिथक में यह भी एक है। निकट-दृष्टि, दूर-दृष्टि आदि दोष बच्चों की उम्र के बढ़ने से दूर हो जाते हैं। इसके साथ ही अन्य कई कारक भी हैं जिनके कारण नजरें कमजोर होती हैं। जिनमें से आनुवांशिक (Hereditary), अधिक या कम चश्मा पहनना भी शामिल है। चश्मा पहनने से आंखें खराब नहीं होती हैं।
और पढ़ें : Diabetic Eye Disease: मधुमेह संबंधी नेत्र रोग क्या है? जानें कारण, लक्षण और उपाय
अगर आपको कोई समस्या है तभी आंखों की जांच करानी चाहिए?
बच्चों में आंखों की देखभाल के बारे में मिथक में अगला है कि आपको अपने बच्चे की आंखों की जांच तभी करानी चाहिए जब उनमें कोई समस्या हो। हर व्यक्ति को सही से आपकी आंखों की नियमित जांच करानी चाहिए, फिर चाहे उनमें कोई समस्या हो या नहीं। बच्चों में मामले में यह और भी जरूरी है। जन्म से लेकर स्कूल जाना शुरू करने तक और उसके बाद भी नियमित रूप से उनकी आंखों की जांच कराएं। वयस्कों के लिए भी यह बेहद जरूरी है। अगर आपको डायबिटीज (Diabetes) है या आंख सम्बन्धी समस्या है तो यह और भी जरूरी हो जाता है।
और पढ़ें: Eye stye: आई स्टाइ (गुहेरी) क्या है? जानें इसके लक्षण व कारण
दृष्टि खोने की स्थिति को रोकने के लिए आप कुछ नहीं कर सकते?
ऐसा माना जाता है कि दृष्टि खोने की स्थिति को रोकने के लिए आप कुछ नहीं कर सकते। यह बच्चों में आंखों की देखभाल के बारे में मिथक है। लेकिन सच यह है कि 90% दृष्टि को खोने के मामलों में आप सफल हो सकते हैं। वो भी सामान्य और सावधानियों का पालन करने से, जैसे बच्चे जब टीवी या कंप्यूटर आदि देख रहे हैं तो सही सेफ्टी ग्लास का प्रयोग करें। नियमित रूप से उनकी आंखों का चेकअप कराएं।
बच्चों में आंखों की देखभाल के बारे में मिथक: क्या केवल लड़कों में ही रंग-बोध की अक्षमता (Color-blind) होती है?
ऐसा नहीं है, लेकिन हां, लड़कियों की तुलना में लड़कों में कलर ब्लाइंडनेस की समस्या अधिक होती है। ऐसा माना जाता है कि लगभग 8 प्रतिशत लड़कों में कुछ कलर ब्लाइंडनेस होती है, हालांकि लड़कियों में यह 1 प्रतिशत से भी कम है।
बीमारियों के उपचार के रूप में योगा के महत्व को जाने इस वीडियो के माध्यम से