डायजेस्टिव हेल्थ का नाम सुनते ही आपके मन में ऐसे ऐसे सिस्टम का ख्याल आता है, जो आपके खाने को पचाने में मदद करता है। जी हां! जो ऑर्गन्स एक साथ मिलकर खाने को एनर्जी के रूप में तब्दील करते हैं, उसे डायजेस्टिव हेल्थ के नाम से जाना जाता है। जब आप भोजन ग्रहण करते हैं, तो पाचन तंत्र उन्हें कार्बोहाइड्रेड, प्रोटीन, फैट, विटामिन में तोड़ने का काम करता है। इस तरह से शरीर को न्यूट्रीशन मिलता है, जो सेल्स की ग्रोथ और रिपेयर के लिए जरूरी होता है। आज इस आर्टिकल के माध्यम से हम आपको डायजेस्टिव हेल्थ के ऑर्गन और उससे संबंधित बीमारियों के बारे में जानकारी देंगे। जानिए डायजेस्टिव हेल्थ से कौन-कौन से ऑर्गन्स जुड़े हैं।
डायजेस्टिव सिस्टम (Digestive System) कैसे काम करता है?
जब हम खाना खाते हैं, तो माउथ से ट्रेवल करके ईसोफेगस (esophagus) से स्टमक में ट्रेवल करता है। इसके बाद से स्मॉल इंटेस्टाइन से लार्ज इंटेस्टाइन तक पहुंचता है। जब शरीर को खाने में पोषक तत्व प्राप्त हो जाते हैं, तो वेस्ट प्रोडक्ट एनस के माध्यम से शरीर से बाहर निकल जाता है। लिवर, पैन्क्रियाज, गॉलब्लैडर भी डायजेस्टिव सिस्टम का हिस्सा है। इस ऑर्गन्स में कैमिकल्स होते हैं, जो पाचन में सहायता करते हैं। मसल्स कॉन्सट्रक्शन मूव्स के कारण खाना हॉलो ऑर्गन (hollow organs) से सॉलिड ऑर्गन तक पहुंचता है। जानिए कौन-से ऑर्गन्स डायजेस्टिव हेल्थ को सुचारू रूप से चलाने में में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
इस बारे में हीरानंदानी अस्पताल के सलाहकार सर्जिकल ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ राहुलकुमार चौहान का कहना है कि जैसे-जैसे भोजन पाचन तंत्र से होकर गुजरता है, उसमें मौजूद पोषक तत्व अवशोषित हो जाते हैं। जिसे बड़ी आंत भी कहा जाता है, जो भोजन के तरल रूप को अवशोषित करके ठोस में बदल देता है, जो मल के रूप में बाद में शरीर से बहार निकल जाता है। लेकिन कुछ लोगों में सीआरसी की समस्या देखी जाती है। यह एक ऐसी बीमारी है, जिसमें कोलन या मलाशय के ऊतकों में कैंसर कोशिकाएं बनती हैं। हमारे शरीर में लगभग 30 ट्रिलियन कोशिकाएं होती हैं। सरल शब्दों में, कैंसर कोशिकाएं तेजी से गुणा हाेने लगते हैं, तो नियंत्रण से बाहर हो जाते हैं। पेट की समस्या को कभी अनदेखा नहीं करनी चाहिए। लक्षणों के महसूस होने पर तुरंत डॉक्टर से मिलें।
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मुंह (Mouth)
पाचन की शुरुआत मुंह से होती है। जब खाने को मुंह में चबाया जाता है, तो स्टार्ची फूड कार्बोहाइड्रेट में चेंज हो जाता है। सलाइवा में उपस्थित एंजाइम के कारण स्टार्ची फूड टूट जाते हैं।
इसोफेगस (Esophagus)
इसोफेगस की हेल्प से खाना मुंह से डायजेस्टिव पार्ट के अगले पार्ट में जाता है। मुंह से खाना ईसोफेगस में और फिर स्टमक में जाता है।
स्टमक (Stomach)
जब खाना ईसोफेगस से स्टमक में पहुंचता है, तो स्टमक मसल्स में मूवमेंट चालू हो जाता है। स्टमक ग्लैंड्स से अम्लीय पाचन रस (acidic digestive juices) रिलीज होता है। जिन फूड्स में प्रोटीन होता है, एसिड उन्हें तोड़ने का काम करता है। फिर खाना छोटी आंत में जाता है।
छोटी आंत (Small intestine)
छोटी आंत में डायजेस्टिव जूस होते हैं, जो कि पैक्रियाज और लिवर से रिलीज होते हैं। छोटी आंत से खाना बड़ी आंत में जाता है। छोटी आंत में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और फैट में खाने का ब्रेकडाउन होता है। डायजेस्टिव फूड्स से स्मॉल इंटेस्टाइन पोषक तत्वों को अवशोषित कर लेती है और फिर पोषक तत्वों को खून में भेज देती है। फिर सेल्स के माध्यम से ये पूरे शरीर में जाता है।
बड़ी आंत (Large intestine)
डायजेस्टिव सिस्टम में खाना पूरी तरह से नहीं टूट पाता है। वेस्ट या फिर अपच खाना बड़ी आंत में पहुंचता है। यहां पर पानी और बाकी बचे हुए पोषक तत्व अवशोषित होते हैं। फिर ये स्टूल में चेंज हो जाता है और रेक्टम के माध्यम से शरीर से बाहर निकल जाता है। ऐसा बाउल मूवमेंट के दौरान होता है। सॉलिड ऑर्गन्स में कैमिकल या एंजाइम के माध्यम से खाने को पचाने में मदद मिलती है। जानिए डायजेस्टिव सिस्टम के सॉलिड ऑर्गन्स के बारे में।
पेंक्रियाज (Pancreas)
पेंक्रियाज एब्डॉमन के ऊपरी हिस्से और स्टमक के पीछे की ओर स्थित होता है। इससे डायजेस्टिव जूस प्रोड्यूस होता है, जो छोटी आंत में खाने को पचाने में हेल्प करता है। पेंक्रियाज में ऐसे कैमिकल का निर्माण होता है, जो ब्लड शुगल लेवल ( Blood sugar levels) को रेग्युलेट करने का काम करते हैं।
लिवर (Liver)
लिवर डायजेशन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। ये बाइल का निर्माण करता है। छोटी आंत में बाइल फूड्स से फैट को ब्रेकडाउन करने का काम करती है। लिवर शरीर से विषैले पदार्थों को भी बाहर करता है।
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गॉलब्लैडर (Gallbladder)
गॉलब्लैडर स्मॉल पाउट होता है, जो बाइल को स्टोर करने का काम करता है। डायजेशन के दौरान स्मॉल इंटेस्टाइन में जिन फूड्स में फैट्स होता है, उनका ब्रेकडाउन होता है। अब जानिए कि डायजेस्टिव सिस्टम से जुड़े विकार या समस्याएं क्या होती हैं।
डायजेस्टिव हेल्थ से जुड़ी समस्याएं (Digestive System Problems) क्या हैं?
डायजेस्टिव हेल्थ जब तक सही से काम करता है, खाने के पाचन में किसी भी तरह की समस्या का सामना नहीं करना पड़ता है। जब किसी कारणवश किसी ऑर्गन में समस्या हो जाती है, तो ऑर्गन प्रॉपर वर्क नहीं कर पाता है और पाचन तंत्र संबंधी समस्याएं शुरू हो जाती हैं। जानिए डायजेस्टिव सिस्टम से जुड़ी समस्याओं के बारे में।
गैस्ट्रोइसोफेगल रिफ्लक्स डिजीज (GERD)
गर्ड के लक्षण (Symptoms of GERD)
- सीने में जलन का एहसास
- खाने में समस्या
- खट्टी डकार आना
- गले में खराश
- सूखी खांसी आना
- आवाज बैठना
- सांसों से बदबू आना
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गॉलस्टोन्स (Gallstones)
गॉलब्लैडर में बनने वाले स्टोन को गॉलस्टोंस कहते हैं। ये किसी अनाज के टुकड़े की तरह छोटे हो सकते हैं। गॉलस्टोन्स एक या एक से ज्यादा भी हो सकते हैं। कुछ लोगों को गॉलस्टोन्स होने पर ट्रीटमेंट की जरूरत नहीं पड़ती है, वहीं कुछ लोगों को सर्जरी के माध्यम से गॉलब्लैडर हटवाने की जरूरत पड़ती है। जानिए गॉलस्टोन्स होने पर क्या लक्षण दिखते हैं।
- पेट के ऊपरी हिस्से में दर्द
- बुखार
- जी मिचलाना
- उल्टी
- त्वचा का रंग पीला होना
इरिटेबल बॉवेल सिंड्रोम (Irritable bowel syndrome)
इरिटेबल बॉवेल सिंड्रोम (Irritable bowel syndrome) की समस्या इंटेस्टाइन से जुड़ी हुई है। इरिटेबल बॉवेल सिंड्रोम तीन प्रकार के होते हैं। आईबीएस डी (IBS D) की समस्या के कारण व्यक्ति को डायरिया (Diarrhea) की बीमारी से जूझना पड़ सकता है। आईबीएस सी (IBS C) के कारण कॉन्सटिपेशन (Constipation) की समस्या हो जाती है।आईबीएस एम (IBS M) के कारण व्यक्ति को डायरिया या कब्ज की समस्या से गुजरना पड़ सकता है। इस समस्या का मुख्य कारण स्ट्रेस या तनाव अधिक लेना हो सकता है। अगर लाइफस्टाइल में सुधार किया जाए, तो इस बीमारी से बचा जा सकता है। जानिए क्या होते हैं इस बीमारी के लक्षण।
- तनाव (Stress)
- नींद की कमी
- पेट में ऐंठन
- पेट दर्द
- कब्ज की समस्या
- दस्त
- जी मिचलाना
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इंफ्लेमेटरी बाउल डिजीज (Inflammatory bowel disease)
इंफ्लेमेटरी बाउल डिजीज (Inflammatory bowel disease) के कारण सूजन की समस्या का सामना करना पड़ता है। डायजेस्टिव सिस्टम में आई इस समस्या का अगर समय पर ट्रीटमेंट नहीं कराया जाए, तो क्रोहन डिजीज (crohn disease) और अल्सरेटिव कोलाइटिस (ulcerative colitis) की समस्या का सामना भी करना पड़ सकता है। जानिए इंफ्लेमेटरी बाउल डिजीज होने पर किन लक्षणों का सामना करना पड़ सकता है।
- स्टूल पास करते समय खून आना
- भूख न लगना
- कब्ज की समस्या
- थकान का एहसास
- वजन में कमी आना
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बवासीर (Hemorrhoids)
बवासीर के कारण स्टूल पास करने के दौरान दर्द के साथ ही ब्लीडिंग होती है। इसे मलाशय से संबंधित समस्या भी कहते हैं। बवासीर के कारण मलाशय के आसपास दर्द के साथ ही सूजन की समस्या भी हो जाती है। अगर समय पर ट्रीटमेंट न कराया जाए, तो पेशेंट को कई समस्याओं का सामना भी करना पड़ सकता है। पाइल्स की बीमारी खानपान में गड़बड़ी के कारण हो सकती है। जानिए क्या होते हैं इस बीमारी के लक्षण।
- स्टूल पास करते समय दर्द होना
- मलाशय के आसपास सूजन
- शौच में खून आना
- एनस के चारों ओर एक गांठ बनना
- एनस के आसपास खुजली का एहसास
लिवर डिजीज (Liver diseases)
लिवर डिजीज कई प्रकार की होती हैं जैसे कि हेपेटाइटिस ए (hepatitis A), हेपेटाइटिस बी (hepatitis B) और हेपेटाइटिस सी ( hepatitis C) आदि। हेपेटाइटिस की बीमारी वायरस के संक्रमण के कारण होती है। लिवर डिजीज जैसे कि फैटी लिवर और सिरोसिस (cirrhosis) के मुख्य कारण ड्रग्स, विषैले पदार्थों का सेवन या फिर अधिक मात्रा में एल्कोहॉल का सेवन करना है। लिवर डिजीज में लिवर कैंसर और इनहैरिड डिजीजेज जैसे कि हेमोक्रोमैटोसिस और विल्सन रोग (Hemochromatosis and Wilson disease) आदि शामिल है। डॉक्टर इमेजिंग टेस्ट और लिवर फंक्शन टेस्ट के माध्यम से लिवर डिजीज की जांच करते हैं।
लिवर डिजीज होने पर निम्नलिखित लक्षण नजर आ सकते हैं।
- पेट और पैरों में सूजन
- स्टूल और यूरिन में रंग में परिवर्तन
- आंखों और त्वचा का पीला होना
गैस्ट्रोएंटेराइटिस (Gastroenteritis)
जब आंत की ऊपरी परम में सूजन की समस्या हो जाती है, तो उसे गैस्ट्रोएंटेराइटिस (Gastroenteritis) की समस्या कहते हैं। वायरल इंफेक्शन (Viral Infection), बैक्टीरियल इंफेक्शन (Bacterial Infection) या पैरासाइट इंफेक्शन (Parasite Infection) दूषित खाने, पानी के कारण शरीर में फैल सकता है। शरीर में पानी की कमी के कारण गैस्ट्रोएंटेराइटिस की समस्या हो सकती है। गैस्ट्रोएंटेराइटिस की समस्या किसी भी उम्र में हो सकती है। जानिए क्या हो सकते हैं इस बीमारी के लक्षण।
- पेट में मरोड़
- डायरिया होना
- उल्टी होना
- पेट में दर्द
- वजन कम होना
- बुखार
- ठंड लगना
- सिरदर्द होना
स्टमक फ्लू (Stomach Flu)
स्टमक फ्लू या पेट में इंफेक्शन वायरस और बैक्टीरिया के कारण होता है। शिगेला (Shigella), कोलाई (Coli), साल्मोनेला एंटेरिका (Salmonella enterica) आदि के कारण स्टमक फ्लू की समस्या हो सकती है। जानिए स्टमक फ्लू होने पर क्या लक्षण दिख सकते हैं। स्टमक फ्लू की समस्या दूषित खाने के कारण हो सकती है।
- पेट में दर्द
- आंतों में ऐंठन
- बुखार
- मांसपेशियों के दर्द
- सिरदर्द
- भूख न लगना
कब्ज (Constipation) की समस्या
कॉन्स्टिपेशन के कारण व्यक्ति को स्टूल नहीं होते हैं या फिर स्टूल के दौरान परेशानियों का सामना करना पड़ता है। ऐसा इंटेस्टाइन में मल के सूख जाने के कारण होता है। लगातार प्रेशर के साथ स्टूल पास करने से बवासीर की समस्या से भी गुजरना पड़ सकता है। जो लोग खराब डायट का सेवन करते हैं और खाने में फाइबर युक्त फूड्स के साथ ही पर्याप्त मात्रा में पानी नहीं पीते हैं, उन्हें ये समस्या हो सकती है। कब्ज होने पर निम्नलिखित लक्षण नजर आ सकते हैं।
- स्टूल पास न होना
- स्टूल पास करते समय दर्द होना
- कई दिनों तक प्रेशर न बनना
- पेट में ऐंठन
- ज्यादा गैस बनना
- असहज महसूस करना
पेट में अल्सर (Peptic Ulcer)
पेट में अल्सर की समस्या हाइड्रोक्लोरिक एसिड के कारण होती है। हाइड्रोक्लोरिक एसिड कुछ टिशूज को हार्म पहुंचाता है और पेट में छाले का कारण बन जाता है। जब एसिड और म्युकस के बीच संतुलन नहीं हो पाता है, तो पेट में छाले या पेप्टिक अल्सर की समस्या जन्म ले लेती है। ये बीमारी किसी भी उम्र के व्यक्ति को हो सकती है। जानिए पेट में अल्सर होने पर क्या लक्षण दिखाई पड़ते हैं।
- पेट में दर्द
- उल्टी होना
- सीने में जलन
- स्टूल के साथ ब्लड आना
- खाने में समस्या
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पाचन से संबंधित समस्याओं का निदान कैसे किया जाता है?
पाचन से संबंधित समस्याओं का निदान करने के लिए डॉक्टर पहले व्यक्ति से बीमारी के लक्षणों के बारे में जानकारी लेते हैं और फिर जांत करते हैं। डॉक्टर पहले शारीरिक जांच कर सकते हैं। इसके अलावा निम्नलिखित तरीकों से बीमारी का निदान किया जा सकता है।
- फीकल ओकल्ट ब्लड टेस्ट ( Fecal occult blood test)
- स्टूल कल्चर (Stool culture)
- एमआरआई (Magnetic resonance imaging )
- एमआरसीपी (Magnetic resonance cholangiopancreatography)
- ओरोफेंजियल मोटिलिटी स्टडी (Oropharyngeal motility study)
- अल्ट्रासाउंड (Ultrasound)
- कोलोनोस्कोपी (Colonoscopy)
- ईआरसीपी (Endoscopic retrograde cholangiopancreatography)
पाचन से संबंधित समस्याओं का ट्रीटमेंट कैसे किया जाता है? (Treatment of Digestive Problems)
डॉक्टर बीमारी के अनुसार ही इलाज करते हैं। अगर आपको पेट से संबंधित समस्याओं जैसे कि अपच की समस्या या फिर दस्त की समस्या हो रही है, तो डॉक्टर आपको ओवर द काउंटर दवाओं का सेवन करने की सलाह देंगे। कुछ बीमारियों जैसे कि बवासीर, इंफ्लेमेटरी बाउल डिजीज, इरिटेबल बॉवेल सिंड्रोम आदि में अधिक सावधानी के साथ ही खानपान और लाइफस्टाइल में सुधार की जरूरत पड़ती है। डॉक्टर गॉलस्टोन्स (Gallstones) होने पर सर्जरी की सलाह भी दे सकते हैं। आप इस बारे में अधिक जानकारी के लिए डॉक्टर से सलाह ले सकते हैं। जानिए पाचन संबंधित समस्याओं का इलाज कैसे किया जाता है।
लिवर डिजीज का ट्रीटमेंट (Treatment for liver disease)
जिन लोगों को हेपेटाइटिस की समस्या होती है, उन्हें डॉक्टर मजबूत इम्यूनिटी के साथ ही शरीर को हाइड्रेटेड रखने की सलाह देते हैं। साथ में लॉन्ग टर्म मेडिकल केयर की हेल्प से संक्रमण के लक्षणों को कम किया जाता है। सिरोसिस और एंड स्टेज लिवर डिजीज को कंट्रोल करने के लिए मेडिसिंस के साथ ही खास डायट लेने की सलाह दी जाती है। जिन लोगों के लिवर फेल की समस्या होती है, उन्हें लिवर ट्रांसप्लांट की जरूरत पड़ती है।
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इरिटेबल बॉवेल सिंड्रोम (Irritable bowel syndrome) का इलाज
डायजेस्टिव हेल्थ के लिए इरिटेबल बॉवेल सिंड्रोम खतरनाक है। इरिटेबल बॉवेल सिंड्रोम की बीमारी को ठीक करने के लिए डॉक्टर पेशेंट का तनाव कम करने की कोशिश करते हैं, क्योंकि इस बीमारी का मुख्य कारण यही होता है। साथ ही डॉक्टर तनाव कम करने के लिए दवाओं के सेवन की सलाह भी देते हैं। पेशेंट को कैफीन युक्त ड्रिंक्स, प्रोसेस्ड फूड न खाने की सलाह दी जाती है। साथ ही खाने को एक साथ के बजाय कम मात्रा में खाने की सलाह दी जाती है।
गैस्ट्रोएंटेराइटिस का इलाज (Treatment of Gastroenteritis)
गैस्ट्रोएंटेराइटिस का इलाज के लिए डॉक्टर पेशेंट को दवाओं के सेवन के साथ ही तरल पदार्थों के अधिक सेवन की सलाह देते हैं। साथ ही खाने में एल्कोहॉल और अधिक फैट वाले फूड्स को न लेने की सलाह दी जाती है। अगर आराम करने के साथ ही पेशेंट डॉक्टर की सलाह मानता है, तो बीमारी से राहत पाई जा सकती है।
बवासीर का इलाज (Hemorrhoids) का इलाज
बवासीर का ट्रीटमेंट करने के लिए डॉक्टर ओवर-द-काउंटर क्रीम के साथ ही कुछ दवाओं के सेवन की सलाह भी देते हैं। अगर पाइल्स दवाओं के सेवन से नहीं ठीक हो रहा है, तो हेमोराहाइडेक्टोमी प्रोसेस को भी अपनाया जा सकता है। बवासीर की समस्या से निपटने के लिए फाइबर सप्लिमेंट दे सकते हैं। खानपान में बदलाव बवासीर से छुटकारा पाया जा सकता है।
गैस्ट्रोइसोफेगल रिफ्लक्स डिजीज (GERD) का इलाज
गर्ड की समस्या से निपटने के लिए डॉक्टर एंटाएसिड्स (Antacids), प्रोटोन पंप इन्हीबेटर्स (Proton Pump Inhibitors) या एच2 रेसेप्टर ब्लॉकर्स (H2 receptor blockers) आदि ओवर द काउंटर दवा लेने की सलाह दे सकते हैं। डॉक्टर लाइफस्टाइल में बदलाव के साथ ही खानपान संबंधी सलाह भी दे सकते हैं। आपको खाने में कैफीन ड्रिंक्स को कम करने के साथ ही सोने के तुरंत बाद सोने से परहेज करना चाहिए।
गॉलस्टोन्स (Gallstones) का ट्रीटमेंट
गॉलस्टोन का ट्रीटमेंट करने के लिए डॉक्टर मेडिकेशन की हेल्प से स्टोन को हटाने की कोशिश करते हैं। स्टोन को गलाने के लिए कुछ महीनों से लेकर सालभर तक दवाओं का सेवन किया जाता है। अगर समय से पहले ट्रीटमेंट बंद कर दिया जाए, तो इसके दोबारा होने के चांसेज बढ़ जाते हैं। अगर स्टोन की संख्या अधिक होती है, तो डॉक्टर गॉलब्लैडर को हटाने के लिए सर्जरी करते हैं। डायजेस्टिव हेल्थ को बेहतर बनाने के लिए आपको बीमारी के लक्षण दिखने पर तुरंत ट्रीटमेंट कराना चाहिए।
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इंफ्लेमेटरी बाउल डिजीज (Inflammatory bowel disease) का इलाज
इंफ्लेमेटरी बाउल डिजीज का ट्रीटमेंट करने के लिए डॉक्टर एंटी-इंफ्लेमटरी ड्रग्स का सेवन करने की सलाह देते हैं। इससे सूजन की समस्या में राहत मिलती है। साथ ही डॉक्टर इंफ्लेमेटरी बाउल डिजीज की गंभीर स्थिति को संभालने के लिए कॉर्टिकोस्टेरॉइड मेडिसिंस की सलाह भी दे सकते हैं। साथ ही एंटीडायरियल ड्रग्स, एंटीबायोटिक्स आदि भी डॉक्टर लिख सकते हैं। आपको बिना डॉक्टर की सलाह के दवाओं का सेवन नहीं करना चाहिए।
स्टमक फ्लू (Stomach Flu) का ट्रीटमेंट
स्टमक फ्लू से निपटने के लिए डॉक्टर आपको एंटीवायरल दवाओं का सेवन करने की सलाह देते हैं और साथ ही अधिक मात्रा में तरल पदार्थों को लेने के लिए भी कहेंगे। ओवर द काउंटर दवा पिडिअलाइट (Pedialyte) भी ली जा सकती है। आपको खाने में तली चीजों को इग्नोर करना होगा। साथ ही कैफीन युक्त पेय पदार्थ और एल्कोहॉल भी न लें।
कब्ज (Constipation) का इलाज
कब्ज की समस्या से निपटने के लिए डॉक्टर मल को ढीला करने की दवाएं ल्यूबिप्रोस्टोन, प्लेकेनाटाइड आदि का सेवन करने की सलाह देते हैं। साथ ही फाइबर सप्लिमेंट्स लेने से भी समस्या में राहत मिलती है। डायट में परिवर्तन के साथ ही रोजाना एक्सरसाइज भी इस बीमारी को दूर भगाने में मदद करती है। खाने में पपीता, अलसी के बीज, अनाज का सेवन, पर्याप्त मात्रा में पानी का सेवन भी बहुत जरूरी है।
पेट में अल्सर का इलाज
अगर पेट में अल्सर एच.पाइलोरी के कारण हुआ है, तो डॉक्टर एंटीबायोटिक्स दवाइयों का सेवन करने की सलाह देंगे। साथ ही एसिड ब्लॉकर्स के माध्यम से पेट में एसिड की मात्रा को नियंत्रित रखने के लिए दिया जाता है। अल्सर के कारण अगर पेट में ब्लीडिंग हो रही है, तो डॉक्टर सर्जरी भी कर सकते हैं। इस बारे में अधिक जानकारी के लिए डॉक्टर से राय लें।
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डायजेस्टिव हेल्थ को बेहतर बनाने के लिए डायट (Diet for digestive health)
खाने में पौष्टिक आहार शामिल करने के साथ ही आपको फाइबर युक्त भोजन का सेवन करना चाहिए। आपको खाने के साथ ही रोजाना सात से आठ ग्लास पानी पीना चाहिए। अपनी डायट में प्रोबायोटिक्स चीजों को शामिल करें। आपको खाने में दही का सेवन, फलों का सेवन, हरी सब्जियों का सेवन, चिया सीड्स, व्होल ग्रेन, सौंफ, फाइबर युक्त आहार, पपीता आदि का सेवन करना चाहिए। आपको खाने में प्रोसेस्ड फूड, अधिक मात्रा में कैफीन नहीं लेनी चाहिए। बीट्स, जिंजर, ओमेगा-
3 फैटी एसिड् फूड्स जैसे कि सेलमोन (Salmon), पिपरमेंट आदि का सेवन करना चाहिए। इस बारे में अधिक जानकारी के लिए आप डायट एक्सपर्ट से भी बात कर सकती हैं।
डायजेस्टिव हेल्थ को दुरस्त बनाने के लिए इन बातों का रखें ध्यान
- रोजाना आठ घंटे की नींद जरूर लें।
- ऐसे फूड्स को अवायड करें, जो एसिडिटी की समस्या पैदा करते हो।
- अगर आपको गैस की समस्या रहती है, तो डॉक्टर से जानकारी ले कि आपको खाने में किन चीजों से परहेज करना चाहिए।
- खाने में प्रोसेस्ड मीट को अवायड करें। खाने में अधिक नमक और शुगर न शामिल करें।
- खाने को अच्छे से पका कर खाएं, ताकि बैक्टीरिया या जर्म्स शरीर में प्रवेश न कर पाएं।
- खाने में कैल्शियम रिच फूड्स को जरूर शामिल करें। साथ ही विटामिन डी का सेवन भी करें।
- रोजाना 30 मिनट की एक्सरसाइज जरूर करें।
पाचन संबंधी समस्याओं को दूर करने के लिए आपको सही खानपान के साथ ही जीवनशैली में सुधार की जरूरत है। आपको अगर डायजेस्टिव हेल्थ से संबंधित कोई समस्या महसूस हो, तो तुंरत डॉक्टर से संपर्क करें। आप स्वास्थ्य संबंधी अधिक जानकारी के लिए हैलो स्वास्थ्य की वेबसाइट विजिट कर सकते हैं। अगर आपके मन में कोई प्रश्न है, तो हैलो स्वास्थ्य के फेसबुक पेज में आप कमेंट बॉक्स में प्रश्न पूछ सकते हैं और अन्य लोगों के साथ साझा कर सकते हैं।