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भ्रूण स्थानांतरण की प्रक्रिया पूरी होने के बाद आपको कम से कम दो हफ्ते इंतजार करना होता है और इस दौरान अपना ध्यान भी रखना होता है ताकि भ्रूण ठीक से गर्भाशय में विकसित हो सके। भ्रूण स्थानांतरण के बाद महिलाओं में कुछ शारीरिक बदलाव भी आते हैं।
ब्लीडिंग
भ्रूण स्थानांतरण के बाद लगभग सभी मामलों में थोड़ी ब्लीडिंग होती है यह पीरियड्स के दौरान होने वाली ब्लीडिंग जैसी नहीं होती, बस थोड़ी मात्रा में होती है और 2-3 दिन में ठीक हो जाती है। ऐसा आमतौर पर सर्विक्स में ट्यूब के पास होने के कारण होता है। यदि आपको भी यह लक्षण दिखें तो घबराने की जरूरत नहीं है, क्योंकि यह सामान्य है।
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चक्कर, झुनझनी, पेट या कमर में दर्द
भ्रूण स्थानांतरण के बाद ये सारे लक्षण दिखना आम है। दरअसल, ऐसा इसलिए होता है क्योंकि आईवीएफ तकनीक में भ्रूण स्थानांतरण के लिए पहले ओवरी को अधिक अंडे बनाने के लिए उत्तेजित किया जाता है। फॉलीक्यूल पंक्चर या बॉडी के पीरियड्स के लिए तैयार होने के परिणामस्वरूप भी ये लक्षण दिखते हैं। यदि अंडाणु डोनर से लिए गए हैं तो यह लक्षण हार्मोनल ट्रीटमेंट की वजह से दिख सकते हैं। इसके अलावा वेटिंग पीरियड के दौरान होने वाले तनाव की वजह से भी चक्कर आ सकता है।
निप्पल का सख्त होना और सूजन
यह भी एक सामान्य लक्षण है जो भ्रूण स्थानांतरण के बाद दिखता है। ऐसा एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन से पहले हार्मोन के एडमिन्स्ट्रिंग के कारण होता है। इन दोनों हार्मोन की वजह से लिक्विड रिटेन्शन, ब्लॉटिंग और ब्रेस्ट में हैवी सेंसेशन महसूस होता है।
भावनात्मक बदलाव
शारीरिक बदलावों के साथ ही प्रेग्नेंसी की प्रतीक्षा कर रही महिलाओं में चिंता, घबराहट, अनिद्रा जैसी समस्याएं भी हो जाती हैं। ये सब स्ट्रेस के कारण होता है। 14 दिनों का वेटिंग टाइम महिलाओं के लिए बहुत कठिन होता है, क्योंकि इसके बाद ही उन्हें पता चल पाता है कि भ्रूण स्थानांतरण के लिए इतने दर्द सहने के बाद वह सफल हुआ या नहीं। आगे क्या होगा बस इसी उधेड़बुन में महिला का दिमाग लगा रहता है, कहीं प्रेग्नेंसी फेल हो गई तो, जैसी बातें सोचकर वह घबराती रहती हैं। ऐसी स्थिति में उन्हें अपना ध्यान कहीं और लगाने की कोशिश करनी चाहिए, जैसे कोई बुक पढ़ें, फिल्म देखें, दोस्तों से किसी अन्य मुद्दे पर चर्चा आदि।
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भ्रूण स्थानांतरण की प्रक्रिया के बाद प्रेग्नेंसी की संभावना बढ़ाने के लिए आपको कुछ सावधानी बरतने की जरूरत हैः