प्रेग्नेंसी में पोषण की कमी शिशु और मां दोनों के लिए नुकसानदायक हो सकती है। प्रेग्नेंसी के दौरान कुपोषण एनीमिया, हाइपरटेंशन, मिसकैरिज और भ्रूण की मृत्यु जैसे खतरे को बढ़ा देता है। यह गर्भवती महिला के लिए जानलेवा भी हो सकता है। प्रेग्नेंसी के दौरान मां को समुचित पोषण ना मिलने से बच्चे का वजन कम हो सकता है। प्रेग्नेंसी में पोषण की कमी होने के नुकसान इतने खतरनाक है कि वह मां के साथ बच्चे की जिंदगी को नुकसान पहुंता सकता है।यह भ्रूण की इंट्रायूट्राइन के विकास को धीमा कर देता है, जिससे नवजात शिशु के विकास, जीवन की गुणवत्ता और हेल्थ केयर कॉस्ट पर प्रभाव पड़ता है। इस आर्टिकल में हम प्रेग्नेंसी में पोषण की कमी के प्रभावों के बारे में बताएंगे।
प्रेग्नेंसी में पोषण की कमी दो प्रकार से होती है?
- कुपोषण
- पोषक तत्वों की कमी
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कुपोषण
गर्भवती महिला रोजाना जितनी कैलोरी खर्च करती है उसके मुकाबले यदि वह कम कैलोरी लेती है (प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट से) तो इसे कुपोषण कहा जाएगा। कुपोषण की स्थिति में गर्भवती महिला और शिशु का वजन कम हो सकता है। साथ ही उसके बीमार होने की संभावना बड़ जाती है। प्रेग्नेंसी में पोषण की कमी में कुपोषण के शिकार ज्यादातर गरीब तबके के लोग होते हैं। जिन महिलाओं को प्रेग्नेंसी के दौरान सही देखभाल और खाना पीना नहीं मिलता उनके बच्चे को कुपोषण होने के चांसेस ज्यादा हैं।
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प्रेग्नेंसी में पोषक तत्वों की कमी
यह वह स्थिति है जब गर्भवती महिला पर्याप्त मात्रा में खाना तो खाती है लेकिन, प्रेग्नेंसी के दौरान जरूरी पोषक तत्वों को पर्याप्त मात्रा में नहीं लेती। जैसे कि कैल्शियम का सेवन, जिंक, आयरन, फोलिक एसिड आदि। उदाहरण के तौर पर गर्भवती महिलाओं में कैल्शियम की कमी शिशु की हड्डियों और दांतों के विकास को प्रभावित कर सकती है। रोजाना के भोजन में इसकी एक निश्चित मात्रा की बॉडी को जरूरत होती है। पोषक तत्वों को ठीक से ना लेने की वजह से प्रेग्नेंसी में पोषण की कमी हो सकती है। इससे बच्चे को आगे चलकर परेशानी हो सकती है।
प्रेग्नेंसी में पोषण की कमी होने का नुकसान
जर्नल ऑफ नर्सिंग केयर में प्रकाशित एक शोध के मुताबिक, कुपोषण नवजात शिशु के इम्यून सिस्टम के विकास को बुरी तरह प्रभावित कर सकता है। इसको लेकर मिस्र के मेनुफिया गवरनोरेट के मेटरनल एंड चाइल्ड हेल्थ केयर सेंटर में 150 गर्भवती महिलाओं पर शोध किया गया। इस शोध में पाया गया कि गर्भावस्था में कुपोषण और नवजात शिशु के बीच एक महत्वपूर्ण संबंध था। उन्होंने पाया कि न्यूट्रिशनल काउंसिलिंग एंटीनेटल केयर का एक अभिन्न हिस्सा होनी चाहिए, जिससे गर्भ में भ्रूण और नवजात शिशु की समस्याओं को कम किया जा सके। प्रेग्नेंसी में पोषण की कमी होने से बच्चा जहां कुपोषित होता है वहीं आगे चलकर उसे और बीमारियां होने का भी खतरा बढ़ जाता है क्योंकि इसकी वजह से बच्चे का इम्यून सिस्टम कमजोर हो जाता है।
प्रेग्नेंसी में पोषण की कमी से होने वाले खतरे
महिला जब गर्भधारण करती है उस वक्त बॉडी में पोषण की स्थिति प्रेग्नेंसी के दौरान उसके स्वास्थ्य को प्रभावित करती है। इसका असर बच्चे पर भी पड़ता है। प्रेग्नेंसी से पहले उसके और बच्चे के लिए कितने पोषक तत्वों की जरूरत है इसका पता लगाया जाना चाहिए। अगर किसी महिला को गर्भधारण करने से पहले संपूर्ण पोषण ना मिल रहा हो, तो वह गर्भधारण के वक्त कुपोषित और अंडरवेट हो सकती है।
उसकी सेहत पर इसका असर पूरी प्रेग्नेंसी के दौरान रह सकता है। गर्भधारण करते वक्त उसके स्वास्थ्य की स्थिति भ्रूण को भी प्रभावित करती है। यहां तक कि इसका असर दीर्घकालीन समय में शिशु पर भी पड़ता है।
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प्रेग्नेंसी में पोषण की कमी से मां के लिए खतरा
गर्भधारण के समय जिन महिलाओं को संपूर्ण पोषण नहीं मिलता है, वे प्रेग्नेंसी के दौरान भी पोषण के स्तर को सुधारने में कामयाब नहीं हो पाती हैं। इस दौरान बॉडी में शिशु का विकास होने की वजह से पोषण की अतिरिक्त मांग बढ़ जाती है। कुपोषित महिलाएं प्रेग्नेंसी के दौरान पर्याप्त वजन नहीं बढ़ा पाती हैं, जिसके चलते गर्भावस्था के दौरान उनकी मृत्यु तक हो सकती है।
कुपोषित शिशुओं के लिए खतरा
प्रेग्नेंसी में पोषण की कमी से बच्चों में बर्थ डिफेक्ट और मेंटल हेल्थ से जुड़ी परेशानियां हो सकती हैं। पहले ट्राइमेस्टर के दौरान मां के कुपोषित होने के चलते बच्चे को भविष्य में मोटापा, कॉरनरी हार्ट डिजीज होने का खतरा रहता है। यदि दूसरे या तीसरे ट्राइमेस्टर में महिला बुरी तरह कुपोषित है तो शिशु में ग्लूकोज को झेलने की झमता नहीं होती, फेफड़ों की बीमारी, हाइपरटेंशन, दो प्रकार की डायबिटीज, ऑस्टियोपरोसिस और अंगों के डायफ्यूजन होने का खतरा बढ़ जाता है। इस प्रकार के बच्चों को आजीवन जल्दी संक्रमण होने का खतरा रहता है। प्रेग्नेंसी में पोषण की कमी होने से बच्चे का इम्यून सिस्टम कमजोर हो जाता है जिसकी वजह से उसे बीमारी लगने का खतरा बना रहता है।
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प्रेग्नेंसी में पोषण की कमी से होने वाले खतरे
आयरन: आयरन का इस्तेमाल हीमोग्लोबिन बनाने में होता है। प्रेग्नेंसी के दौरान आयरन की कमी से बच्चे के इम्यून सिस्टम के विकास में बाधा आती है।
कैल्शियम: शिशु और मां की हड्डियों को मजबूत बनाने में कैल्शियम सबसे अहम होता है। इससे इम्यून सिस्टम, मसल्स और सर्कुलेटरी सिस्टम ठीक रहता है। अध्ययन के अनुसार प्रेग्नेंट महिला में कैल्शियम की कमी से नवजात शिशु में हाई ब्लड प्रेशर का खतरा हो सकता है।
जिंक: जिंक शिशुओं के डीएनए निर्माण में अहम भूमिका अदा करता है। प्रेग्नेंसी के शुरुआती दिनों में इसकी कमी से मिसकैरिज का खतरा रहता है।
आयोडीन: थाइरॉयड हार्मोन के उत्पादन के लिए यह सबसे अहम होता है। प्रेग्नेंसी के दौरान आयोडीन की कमी के चलते बच्चों की बौद्धिक क्षमता कम हो सकती है।
ओमेगा-3 फैटी एसिड: यह बच्चे के दिमाग का विकास करते हैं। इससे उनकी ध्यान लगाने और सीखने की क्षमता बढ़ती है। ओमेगा-3 फैटी एसिड की कमी से बच्चे का वजन कम हो सकता है। साथ ही न्यूरोनल डेवलपमेंट में बाधा आ सकती है।
इस प्रकार अब समझ ही गई होंगी कि पोषण और हेल्दी प्रेग्नेंसी के बीच गहरा संबंध। यहां बताई टिप्स को फॉलो करने के अलावा आप डायटीशियन की मदद भी ले सकती हैं। प्रेग्नेंसी में पोषण की कमी के खतरों से बचने के लिए आप ऊपर बताई गई चीजों को अपनी डायट में शामिल कर सकते हैं।
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