परिचय
दाद, खाज, खुजली अक्सर ये शब्द आपने एक साथ सुने होंगे। ये तीनों अलग-अलग प्रकार के त्वचा रोग हैं। इस आर्टिकल में हम बात करेंगे दाद की। दाद पर एलोपैथिक मलहम और दवाओं के बारे में तो बहुत जानते होंगे, लेकिन क्या आपको दाद का आयुर्वेदिक इलाज पता है? दाद फंफूद के कारण होने वाला संक्रमण है, जिसे फंगल इंफेक्शन भी कहा जाता है। दाद को अंग्रेजी में रिंगवार्म (Ringworm) कहा जाता है। दाद होना बहुत सामान्य है और यह शरीर के किसी भी अंग पर हो सकता है। पूरे भारत मे लगभग एक करोड़ लोग दाद से परेशान रहते हैं। लेकिन जरूरी नहीं कि आप हर बार केमिकल युक्त दवाओं पर ही निर्भर रहें। आप चाहें तो दाद का आयुर्वेदिक इलाज भी कर सकते हैं। आइए जानते हैं कैसे :
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दाद (Ringworm) क्या है?
दाद (Ringworm) को टिनिया, डर्मेटोफाइटोसिस भी कहा जाता है। यह स्किन फंगल इंफेक्शन है। यह त्वचा के प्रभावित क्षेत्रों पर लाल धब्बे और चकत्ते के रूप में दिखाई देता है जिसमें खुजली के साथ-साथ हल्की जलन भी होती है। दाद स्कैल्प, पैर, कमर, दाढ़ी या अंडरआर्म आदि जगहों पर हो सकती हैं। अक्सर ये गोल घेरे के आकार में होती है, इसलिए इसे रिंगवार्म कहते हैं। दाद होने का मुख्य कारण मिट्टी और हमारी हवा में पाए जाने वाले फंफूद हैं। दाद होने पर त्वचा पर लाल चकत्ते और फफोले पड़ जाते हैं, जिसमें खुजली और जलन होती है।
दाद निम्न प्रकार के भी होते हैं :
- टिनिया कॉर्पोरिस : इसे शरीर का दाद भी कहा जाता है। ये अक्सर गोल आकार के साथ लाल चकत्ते के रूप में पाया जाता है।
- टिनिया कैपिटिस :इसे स्कैल्प का दाद कहा जाता है। जो सिर की त्वचा पर बालों की जड़ों में होता है। ये छोटे घावों के रूप में शुरू होता है जो खुजली के साथ ही पपड़ी के रूप में बालों की जड़ों में हो जाता है। ये अक्सर बच्चों में होता है।
- टिनिया क्रूरिस : इसे जॉक इच भी कहते हैं। ये कमर, भीतरी जांघों और नितंबों के आसपास की स्किन पर होता है। यह पुरुषों और किशोर लड़कों में सबसे आम होता है।
- टिनिया पेडीस : इसे एथलीट फुट भी कहते हैं, इस प्रकार का दाद पैर में होता है।
आयुर्वेद में दाद क्या है? (Ringworm In Ayurveda)
अभी तक आपने जाना कि दाद क्या है, लेकिन अब जानिए कि आयुर्वेद में दाद क्या है? आयुर्वेद में दाद को ‘दद्रु’ कहते हैं। दद्रु एक प्रकार का दोष है, जो कफ-वात से संबंधित है। कफ का मतलब होता है म्यूकस या बलगम। वात का मतलब होता है, हवा। कफ और वात दोष त्वचा से संबंधित होता है जो कि शरीर में टॉक्सिन को एकत्रित करने का कारण बनता है। टॉक्सिन टिश्यू की गहराई में जमा हो जाता है, जिसे आयुर्वेद की भाषा में रस (न्यूट्रिएंट्स प्लाजमा) कहते हैं। इसके अलावा टॉक्सिन रक्त (Blood), मांस (Muscles) और लसीका (Lymphatic) में भी जमा होता है। जिससे दाद होने का रिस्क बढ़ जाता है।
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कारण
दाद का कारण क्या है? (Causes of Ringworm)
दाद होने के कारण निम्न हैं :
- गर्म और नमी वाले स्थान पर रहने से
- ज्यादा पसीना होने से
- दूसरे लोगों के शरीर के संपर्क में आने से
- किसी दूसरे का तौलिया, कपड़ा आदि इस्तेमाल करने से
- डायबिटीज के कारण
- त्वचा को हानि पहुंचाने वाले कपड़े पहनने से
- बिना जूते के सार्वजनिक स्थान पर जाने से
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लक्षण
दाद के लक्षण क्या हैं? (Ringworm Symptoms)
दाद का आयुर्वेदिक इलाज जानने से पहले आपको उनके लक्षण जानना जरूरी है :
- त्वचा पर गोल उभरे हुए लाल चकत्ते
- लाल या गुलाबी रंग के हल्के चकत्ते
- त्वचा पर भूरे या ग्रे रंग के चकत्ते दिखाना
- चकत्तों पर खुजली होना
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इलाज
क्या दाद का आयुर्वेदिक इलाज प्रभावी होता है?
जैसा कि आपको पहले से पता है कि दाद एक त्वचा संबंधी रोग है। आयुर्वेद में त्वचा संबंधी रोगों को कुष्ठ रोग के रूप में वर्गीकृत किया गया है। आयुर्वेद के विद्वान माने जाने वाले आचार्य सुश्रुत और आचार्य चरक ने त्वचा रोगों को 18 वर्गों में बांटा हैं। जिसमें से दो मुख्य त्वचा रोग है, जिसे महाकुष्ठ औक शूद्र कुष्ठ कहा गया। दद्रु यानी कि दाद को आचार्य सुश्रुत ने महाकुष्ठ यानी कि गंभीर त्वचा समस्या के रूप में माना, वहीं आचार्य चरक ने दाद को शूद्र कुष्ट यानी कि सामान्य त्वचा रोग माना।
आयुर्वेद में दाद को त्रिदोषज रोग के रूप में देखा जाता हैं। सभी जीवित प्राणी में तीन तरह की ऊर्जा मौजूद होती है – वात, कफ और पित्त। इन तीनों में दोष होने से शरीर में बीमारियां होती है, जिससे ऊर्जाओं का संतुलन बिगड़ जाता है। ऐसे में दाद का आयुर्वेदिक इलाज इन ऊर्जाओं को संतुलित कर के किया जाता है।
दाद का आयुर्वेदिक इलाज या उपचार क्या है? (Ayurvedic Treatment of Ringworm)
दाद का आयुर्वेदिक इलाज कई तरीकों से किया जाता है, जिसके लिए लेप से लेकर जड़ी-बूटियों और औषधियों तक का सहारा लिया जाता है :
दाद का आयुर्वेदिक इलाज लेप के द्वारा
जैसा कि हम दाद होने पर केमिकलयुक्त मलहम का प्रयोग करते हैं, वैसे ही आयुर्वेद में लेप का इस्तेमाल किया जाता है। दाद के इलाज के लिए आप निम्न जड़ी-बूटियों का लेप लगा सकते हैं :
- खट्टी दही में सरसों, चक्रमर्द, काला नमक, कुठ की जड़ और विडंग को अच्छे से पीस कर मिला लें और लेप तैयार कर लें। फिर इस लेप को प्रभावित स्थान पर लगाएं।
- दूब घास या दूर्वा, हरीतकी के फल का छिलका, तुलसी के पत्ते और चक्रमर्द के बीज को पीस कर छाछ में मिला कर लेप बनाएं।
- मूली के रस में सहजन की छाल मिला कर लेप बनाएं और दाद पर लगाएं।
- मूली के रस में चक्रमर्द भी मिला कर लगा सकते हैं।
- हरीद्रा, लाख या लाह, मंजिष्ठा, त्रिफला, गंधक को अच्छे से पीस कर सरसों के तेल में मिला कर लेप बनाएं और दाद वाले स्थान पर लगाएं।
इसके अलावा आप नीचे बताई गई जड़ी बूटियों को घी में मिला कर भी लेप बना कर दाद पर लगा सकते हैं।
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दाद का आयुर्वेदिक इलाज (Ringworm Ayurvedic Treatment) जड़ी बूटियों के द्वारा
अक्सर लोगों में ये भ्रम पाया गया है कि औषधि और जड़ी बूटी एक ही चीज है, लेकिन दोनों अलग हैं। जड़ी बूटियों को मिला कर औषधि बनाई जाती है। आइए जानते हैं कि दाद के लिए कौन सी जड़ी बूटी उपयोगी है :
हरीद्रा या हल्दी
हरीद्रा को सामान्य भाषा में हल्दी भी कहते हैं, हरीद्रा एक आयुर्वेदिक शब्द है। ये पाचन तंत्र, ब्लड फ्लो और रेस्पाइरेटरी सिस्टम को ठीक करता है। हरीद्रा में एंटीबैक्टीरियल, एंटीफंगल और एंटीमाइक्रोबियल गुण होते हैं। हरीद्रा का प्रयोग त्वचा के रोग के लिए भी किया जाता है। त्वचा में सूजन और खाज-खुजली के लिए हल्दी को बहुत उपयोगी माना गया है। दाद के आयुर्वेदिक इलाज के लिए हल्दी सबसे उपयुक्त जड़ी-बूटी है।
शंखपुष्पी
शंखपुष्पी एक सफेद फूल की जड़ी-बूटी है, जिसका उपयोग आयुर्वेद के पंचकर्म में होता है। शंखपुष्पी का स्वाद कड़वा और तीखा होता है, इसलिए इसे वमन क्रिया (औषधियों के जरिए उल्टी कराना) कराने के लिए प्रयोग में लाया जाता है। शंखपुष्पी त्वचा रोगों के लिए अच्छा माना जाता है। शंखपुष्पी के तेल को दाद पर लगाने पर राहत मिलती है।
आरग्वध या अमलतास
आयुर्वेद में अमलतास को आरग्वध कहा जाता है। अमलतास में एंटीफंगल और एंटीबैक्टीरियल गुण होते हैं। अमलतास के सेवन या इसका लेप लगाने से दाद में राहत मिलती है। साथ ही ये त्वचा पर होने वाली जलन को भी कम करता है।
पलाश
पलाश एक बेहद खुबसूरत फूल है, जिसका जिक्र आयुर्वेद में औषधि के रूप में किया गया है। पलाश में एंटी-इंफ्लमेटरी, एंटी फंगल और एंटी माइक्रोबीयल गुण पाए जाते हैं। जिससे दाद में होने वाली खुजली, जलन और सूजन को कम करता है।
चकवड़ या चक्रमर्द
चकवड़ या चिरौट को आयुर्वेद में चक्रमर्द कहते हैं। चकवड़ में फ्लेवेनॉइड्स पाए जाते हैं, जो कि त्वचा के लिए एक जरूरी अवयव है। जैसा कि पहले ही बताया गया है कि दाद कफ और वात दोष के कारण होता है, ऐसे में चकवड़ कफ और वात दोष के लिए एक सटीक औषधि है, जो इन दोषों के कारण होने वाली त्वचा समस्याओं के लिए उपयुक्त होता है।
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दाद का आयुर्वेदिक इलाज औषधि के द्वारा
अभी तक आपने जाना कि कौन सी जड़ी बूटी दाद के आयुर्वेदिक इलाज के लिए इस्तेमाल की जाती हैं। अब हम बताएंगे कि कौन सी औषधियां आप दाद के इलाज के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं :
महामरिच्यादि तेल
महामरिच्यादि तेल का जिक्र आयुर्वेद की किताब में कुष्ठ रोग के इलाज में किया गया है। यह तेल दूध, सफेद आक, कनेर की जड़, लाल चंदन, जटामांसी, नागरमोथी, हल्दी, कुठ, हरीतला, इंद्रायण की जड़ आदि जड़ी बूटियों को मिश्रण होता है जिसे दाद पर लगाने से दाद प्रभावी रूप से ठीक होता है।
कायाकल्प वटी या दद्रु वटी
जैसा कि नाम से ही साफ है कि कायाकल्प शरीर को सुधारने के लिए लिया जाता है। इसमें चकवड़ की गोलियां होती है, जिसके सेवन से दाद और सफेद दाग जैसी त्वचा की समस्याएं कम होती हैं।
कैशोर गुग्गुल
ये औषधि बाजारों में कैशोर गुग्गुल के नाम से ही उपलब्ध है। ये गोलियों के रूप में पाया जाता है और इसका वर्णन आयुर्वेद की किताब डायग्नोसिस एंड ट्रीटमेंट ऑफ डिजीज इन आयुर्वेद में भी हुआ है। कैशोर गुग्गुल में गुडुची, त्रिफला और गुग्गुल से बनी हुई गोलियां होती हैं जो त्वचा रोगों के लिए इस्तेमाल की जाती है। कैशोर गुग्गुल को ब्लड प्योरिफायर के रूप में भी देखा जाता है। दाद का आयुर्वेदिक इलाज इसी से ब्लड प्योरीफाई कर के किया जाता है।
आरोग्यवर्धिनी वटी
आरोग्यवर्धिनी वटी का उपयोग त्वचा संबंधी समस्याओं के लिए किया जाता है। इस वटी में नीम, अभ्रक भस्म, तांबे का भस्म, त्रिफला आदि पाए जाते हैं जिसके सेवन से दाद में राहत मिलती है।
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जीवनशैली
आयुर्वेद के अनुसार आहार और जीवन शैली में बदलाव
आयुर्वेद के अनुसार दाद के लिए डायट और लाइफ स्टाइल में बदलाव बहुत जरूरी है। हेल्दी लाइफ स्टाइल और हेल्दी खाने के लिए :
क्या करें?
- रोकथाम ही किसी समस्या का पहला समाधान है। दाद से बचने के लिए सबसे बड़ी चीज है साफ सफाई। इसलिए अपने पूरे शरीर की सफाई का पूरा ध्यान रखें। खास कर के जांघों के भीतरी तरफ, जननांगों पर और कमर आदि की सफाई का विशेष ध्यान रखें।
- ढीले और सूती कपड़े पहने, जिससे ज्यादा पसीना ना हो।
- दाद होने पर अपने कपड़ों को दिन में दो बार बदलें और उन्हें अच्छे से धुलें।
- संतुलित आहार लें, जिसमें फाइबर, विटामिन सी और विटामिन ई की प्रचूर मात्रा मौजूद हो।
क्या न करें?
- बासी और खराब खाना ना खाएं।
- पेशाब और मल को ज्यादा देर तक ना रोकें। इससे भी जननांगों में दाद होने का खतरा बढ़ जाता है।
- नंगे पांव सार्वजनिक स्थानों पर ना जाएं।
- अपना तैलिया, कपड़ा, साबुन सब अलग रखें। इन्हें किसी अन्य के साथ साझा ना करें।
- मछली खाने के बाद दूध ना पिएं।
दाद का आयुर्वेदिक इलाज आप ऊपर बताए गए तरीकों से कर सकते हैं। लेकिन आपको ध्यान देना होगा कि आयुर्वेदिक औषधियां और इलाज खुद से करने से भी सकारात्मक प्रभाव नहीं आ सकते हैं। वैसे तो आयुर्वेदिक औषधियों का कोई दुष्प्रभाव नहीं देखने को मिलता है। लेकिन कुछ विशेष परिस्थितियों में किसी-किसी व्यक्ति में साइड इफेक्ट्स देखने को मिल सकते हैं। इसलिए इन उपायों का इस्तेमाल करते हुए सावधानी बरतें और किसी एक्सपर्ट की देखरेख में ही करें। अन्यथा आपको कुछ परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। इसलिए आप जब भी दाद का आयुर्वेदिक इलाज के बारे में सोचें तो डॉक्टर का परामर्श जरूर ले लें। उम्मीद करते हैं कि आपके लिए दाद का आयुर्वेदिक इलाज की जानकारी बहुत मददगार साबित होगी।