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सोरियासिस एक त्वचा संबंधी रोग है। सोरियासिस एक ऑटोइम्यून डिजीज है, जिसमें हमारे शरीर का इम्यून सिस्टम ही हमारे शरीर के खिलाफ काम करने लगता है और हमारे शरीर में बीमारी पैदा करने लगता है। सोरियासिस भी कुछ ऐसा ही है। सोरियासिस में त्वचा पर रैशेज के साथ खुजली भी होती है, जिससे हमें त्वचा में जलन और सूजन महसूस होती है। सोरियासिस का अगर वक्त पर इलाज नहीं किया गया, तो आगे चल कर ये घातक हो सकती है। अगर आप आयुर्वेद में भरोसा करते हैं, तो सोरायसिस का आयुर्वेदिक इलाज भी है। तो आइए जानते हैं, आयुर्वेद में सोरियासिस के सभी पहलुओं को :
सोरायसिस एक स्किन इंफेक्शन है, जिसमें त्वचा पर लाल दाने और रैशेज हो जाते हैं। सोरियासिस आमतौर पर घुटनों पर, सिर की त्वचा या स्कैल्प पर, कोहनियों पर हो सकता है। सोरायसिस क्रॉनिक ऑटोइम्यून डिसऑर्डर है। हमारी बाहरी त्वचा की कोशिकाएं त्वचा की सतह के काफी अंदर विकसित होती हैं और धीरे-धीरे वह परत दर परत बाहर की ओर आती हैं। इसके बाद अंत में ऊपर की स्किन नष्ट हो जाती है। इस पूरी प्रक्रिया को होने में लगभग एक महीने का वक्त लगता है। लेकिन, सोरायसिस से पीड़ित व्यक्ति में यह प्रॉसेस तेजी से होने लगती है और कोशिकाएं उतनी तेजी से नष्ट नहीं हो पाती हैं। ऐसे में वे स्किन बाहर की ओर जमा होने लगती है। यही सोरियासिस का रूप ले लेता है।
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सोरियासिस मुख्य रूप से पांच प्रकार के होते हैं :
प्लाक सोरायसिस (Plaque psoriasis)
प्लाक सोरायसिस इस स्किन प्रॉब्लम का सबसे सामान्य प्रकार है। अमेरिकन एकेडमी ऑफ डर्मेटोलॉजिस्ट (AAD) के मुताबिक सोरायसिस से ग्रसित 80 फीसदी लोगों में प्लाक सोरियासिस पाया जाता है। प्लाक सोरायसिस में त्वचा पर लाल चकत्ते और जलन होती है। कई मामलों में सफेद और सिल्वर रंग के स्केल्स भी पाए जाते हैं। प्लाक सोरायसिस कोहनी, घुटने और बालों की जड़ों में होते हैं।
पस्ट्यूलर सोरायसिस (Pustular psoriasis)
पस्ट्यूलर सोरायसिस में भी त्वचा पर लाल चकत्ते पड़ सकते हैं। ये शरीर के किसी भी भाग में हो सकते हैं, लेकिन कोहनी और घुटनों पर इसके होने की आशंका ज्यादा होती है। पस्ट्यूलर सोरायसिस में त्वचा पर सफेद पस से भरे हुए छाले भी दिखाई देते हैं।
गट्टेट सोरायसिस (Guttate psoriasis)
गट्टेट सोरायसिस बच्चों में होने वाला आम सोरायसिस है। इसमें बच्चे की त्वचा पर गुलाबी रंग के चकत्ते पड़ने लगते हैं, जो सामान्यतः बच्चे के टखने, पैरों और हाथों पर होता है।
एरिथ्रोडर्मिक सोरायसिस (Erythrodermic psoriasis)
एरिथ्रोडर्मिक सोरायसिस बहुत रेयर होने वाला सोरायसिस है। जो शरीर के ज्यादा हिस्सों को प्रभावित करता है। एरिथ्रोडर्मिक सोरायसिस के मामलों में सनबर्न जैसी समस्या भी हो सकती है। इसमें बुखार आना एक सामान्य लक्षण है और कभी-कभी तो ये जानलेवा भी साबित हो सकता है।
इंवर्स सोरायसिस (Inverse psoriasis)
इंवर्स सोरायसिस में त्वचा में जलन, लालपन और ऑयलीनेस आ जाती है। इंवर्स सोरायसिस अंडर आर्म्स या सीने पर या जननांगों के स्कीन फोल्ड्स पर होता है। इसमें प्रभावित जगहों पर जलन और लालपन हो जाता है।
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आयुर्वेद के शब्दकोश पर लिखी गई किताब के अनुसार आयुर्वेद में सोरियासिस दो प्रकार का होता है :
किटिभ में त्वचा पर लाल रंग के चकत्ते पड़ते हैं, जिसमें खुजली होती है। ये चकत्ते देखने में ड्राय से लगते हैं। कई बार इनमें से रिसाव भी होता है। वहीं, कफ और वात में असंतुलन के कारण ये सोरियासिस होता है।
दूसरी तरफ एककुष्ठ कुष्ठ रोग की श्रेणी में रखा गया है, क्योंकि ये एक स्किन प्रॉब्लम है। इसमें सिल्वर रंग के स्केल्स त्वचा पर दिखाई देने लगते हैं।
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सोरायसिस के लक्षण निम्न हो सकते हैं :
सोरायसिस होने के पीछे का सटीक कारण अभी तक पता नहीं चल पाया है। जैसा कि सोरायसिस एक ऑटोइम्यून डिजीज है, इसलिए ज्यादातर विशेषज्ञों का मानना है कि सोरायसिस के लिए इम्यून सिस्टम और जेनेटिक दोनों कारण जिम्मेदार हैं। सोरायसिस में इम्यून सिस्टम में बनने वाली ब्लड सेल्स, जिसे टी-सेल्स भी कहा जाता है। किन्हीं कारणों से स्वस्थ त्वचा की कोशिकाओं पर हमला करने लगती है। जिस कारण यह सोरायसिस हो सकता है। वहीं, माता-पिता में भी अगर सोरायसिस की समस्या है, तो बच्चे में जीन्स के द्वारा जाने की संभावना ज्यादा होती है।
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सोरायसिस का आयुर्वेदिक इलाज के लिए पहले आयुर्वेदिक थेरेपी का सहारा लिया जा सकता है। इसके साथ ही जड़ी-बूटियों और औषधियों के द्वारा भी सोरायसिस का आयुर्वेदिक इलाज किया जाता है :
सोरायसिस का आयुर्वेदिक इलाज निम्न कर्म या थेरेपी के द्वारा किया जाता है :
1- शोधन विधि या शुद्धिकरण कर्म
शोधन विधि के अंतर्गत कई तरह के कर्म किए जाते हैं। जैसे- वमन कर्म, विरेजन कर्म, रक्तमोक्षण कर्म :
वमन कर्म
वमन कर्म में उल्टी कराई जाती है। वमन कर्म औषधियों के द्वारा उल्टी करवाई जाती है। ये पंचकर्म थेरेपी के अंतर्गत किया जाने वाला कर्म है। इससे शरीर के अंदर से टॉक्सीन निकालने का काम किया जाता है। वमन से निकाले जाने वाले टॉक्सीन से स्किन प्रॉब्लम को ठीक किया जा सकता है। जैसे- एग्जिमा, सोरायसिस और सफेद दाग का इलाज वमन के द्वारा किया जा सकता है। लेकिन किसी भी गर्भवती महिला, पेट संबंधी समस्याओं से परेशान व्यक्ति को वमन कर्म नहीं कराना चाहिए। वमन के लिए नमक का पानी और मुलेठी का सेवन करा के उल्टी कराई जाती है। इसके अलावा नीम, पिप्पली जैसी कड़वी जड़ी-बूटियों का सेवन करा के भी उल्टी कराई जाती है।
रक्तमोक्षण
रक्तमोक्षण कर्म के द्वारा शरीर के अशुद्ध रक्त को स्रावित कराया जाता है। जिससे शरीर से टॉक्सिक ब्लड निकल जाता है, जिससे त्वचा संबंधी समस्याओं में राहत मिलती है। लेकिन पीरियड्स में या गर्भवती महिला को रक्तमोक्षण कर्म नहीं कराना चाहिए।
विरेचन कर्म
विरेचन कर्म का मतलब है कि मल के द्वारा शरीर से टॉक्सिन को निकालना। इसे त्वचा पर रैशेज को ठीक करने के लिए किया जाता है। इसके साथ ही त्वचा के चकत्ते भी ठीक किए जाते हैं। विरेचन कर्म में कड़वी जड़ी-बूटियों का इस्तेमाल किया जाता है, जिसमें एलोवेरा, शहद आदि का इस्तेमाल किया जाता है।
2- तेल लगाना
तेल लगाने के कर्म को स्नेहन कर्म कहते हैं। इस थेरेपी में त्वचा को मुलायम बनाने के लिए तेल से शरीर पर मालिश की जाती है। इस प्रक्रिया में तेल और घी का प्रयोग किया जाता है, जिसे गर्म कर के शरीर की मालिश की जाती है।
3- रक्त शोधन
रक्त शोधन को आप ब्लड प्यूरिफाई से समझ सकते हैं। रक्त शोधन विधि के द्वारा शरीर को पूरी तरह से साफ किया जाता है। क्योंकि आयुर्वेद में सोरायसिस को रक्त की अशुद्धि के कारण होना भी माना गया है। ऐसे में ब्लड को प्यूरिफाई करने से ही सोरायसिस में राहत मिलती है।
4- लेपन विधि
सोरायसिस के इलाज लिए लेपन विधि का उपयोग भी करते हैं। इसके लिए औषधि और घी व तेल के साथ पेस्ट बना कर सोरायसिस से प्रभावित स्थान पर लगाने से आराम मिलता है।
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सोरायसिस का आयुर्वेदिक इलाज निम्न जड़ी-बूटियों के द्वारा किया जाता है :
गिलोय
आयुर्वेद में गिलोय एक इम्यून बूस्टर के रूप में जाना जाता है। ये रोग प्रतिरोधक क्षमता में इजाफा करता है, जिससे स्किन संबंधी समस्याओं में भी निजात मिलती है। गिलोय अर्क, पाउडर, टैबलेट आदि के रूप में भी पाया जाता है। इसे आप शहद या गुनगुने पानी के साथ खा सकते हैं। इससे सोरायसिस में आराम मिलता है।
हल्दी
हल्दी एक एंटी-बैक्टीरियल जड़ी-बूटी है। हल्दी प्राकृतिक एंटीबायोटिक भी है। हल्दी को त्वचा के लिए एक बेहतरीन दवा मानी जाती है। घाव से लेकर किसी भी तरह की चोट के इलाज के लिए हल्दी का उपयोग होता है। हल्दी पाउडर को दो से तीन हफ्ते तक रोजाना तीन बार पीने से सोरायसिस में राहत मिलती है। इसके लिए आप अने डॉक्टर से परामर्श जरूर ले लें।
मंजिष्ठा
मंजिष्ठा को नैचुरल ब्लड प्यूरिफायर के रूप में जाना जाता है। मंजिष्ठा ब्लड फ्लो को ठीक करने के साथ ही स्किन डिजीज में भी राहत पहुंचाता है। स्कार या चोट के निशानों को मिटाने के लिए मंजिष्ठा का प्रयोग किया जाता है। वहीं, त्वचा को निखारने के लिए भी मंजिष्ठा का इस्तेमाल किया जाता है। मंजिष्ठा का काढ़ा, पाउडर के रूप में मौजूद होता है। इसे शहद या गुनगुने पानी के साथ पीया जा सकता है। इसका काढ़ा बना कर भी सेवन करने से आराम मिलता है।
सोरायसिस का आयुर्वेदिक इलाज निम्न औषधियों के द्वारा किया जाता है :
कैशोर गुग्गुल
कैशोर गुग्गुल त्वचा पर मौजूद स्कार और घावों को भरने में मददगार होते हैं। कैशोर गुग्गुल पित्त दोषों के इलाज के लिए इस्तेमाल की जाने वाली औषधि है। ये टैबलेट के रूप में पाया जाता है, जिसका सेवन गुनगुने पानी के साथ दो से तीन हफ्ते तक दिन में दो बार करने से सोरायसिस में आराम मिलता है। लेकिन बिना डॉक्टर की सलाह के इसका सेवन न करें।
आरोग्यवर्धिनी वटी
आरोग्यवर्धिनी वटी बाजार में इसी नाम से पाई जाती है। ये कफ, वात और पित्त सभी तरह के दोषों को ठीक करने के लिए इस्तेमाल की जाती है। ये त्रिफला, गुग्गुल, तांबे का भस्म, शिलाजीत, लोहे का भस्म आदि से मिल कर बनी होती है। इससे त्वचा संबंधी रोगों में राहत मिलती है।
मंजिष्ठा क्वाथ
मंजिष्ठा की जड़ के काढ़े को मंजिष्ठा क्वाथ कहते हैं। ये सोरायसिस और कई तरह के इंफेक्शन को दूर करने के काम आती है। ये ब्लड प्यूरिफाई भी करता है। मंजिष्ठा क्वाथ को दो से तीन हफ्ते तक दिन में दो से तीन बार डॉक्टर के परामर्श पर लें।
खदिरारिष्ट
खदिरारिष्ट में माइक्रोबियल गुण पाए जाते हैं। ये त्वचा संबंधी रोगों को ठीक करने के लिए उपयोग किया जाता है। डॉक्टर के परामर्श के आधार पर खदिरारिष्ट का सेवन करें।
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आयुर्वेद के अनुसार सोरायसिस के लिए डायट और लाइफ स्टाइल में बदलाव बहुत जरूरी है। हेल्दी लाइफ स्टाइल और हेल्दी खाने के लिए :
क्या करें?
क्या न करें?
सोरायसिस का आयुर्वेदिक इलाज अपनाने से पहले जान लें कि इनका प्रभाव दिखने में आपको थोड़ा समय लग सकता है। इसलिए आपको इन्हें अपनाते हुए थोड़ा सब्र रखना जरूरी है। दूसरी तरफ इस बात का भी ख्याल रखें कि बेशक आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियां व औषधियां अधिकतर मामलों में साइड इफेक्ट्स नहीं दिखाती हैं, लेकिन कुछ खास स्थिति में इनके दुष्प्रभावों से इंकार नहीं किया जा सकता है। इसलिए इन्हें अपनाने से पहले किसी आयुर्वेदिक एक्सपर्ट की सलाह जरूर लें। ताकि वह आपके संपूर्ण स्वास्थ्य का अध्ययन करके आपके लिए फायदेमंद व नुकसानदायक चीजों से अवगत करा सके।
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