अफ्रीकी ट्रिपैनोसोमियासिस ट्रिपेनोसोमा ब्रूसी की दो प्रजातियों के कारण होता है। ट्रिपैनोसोमियासिस ब्रूसी गैम्बियंस वेस्ट अफ्रीका में पाया जाता है। वहीं, दूसरा है ट्रीपोसोमासा ब्रूसी रोड्सेंस, जो ईस्ट अफ्रीका में पाया जाता है।
इस बीमारी से पीड़ित व्यक्ति अक्सर बुखार, सिर दर्द, ठीक से नींद न आने जैसी परेशानियों का सामना करता है। ऐसे में, वक्त पर इलाज शुरू करना बेहद जरूरी होता है। एक रिसर्च के अनुसार, 90% से अधिक मामले परजीवी ट्रिपैनोसोमा ब्रूसी गैंबियेंस (टीबीजी) के कारण होते हैं, जिससे गंभीर न्यूरोलॉजिकल (तंत्रिका संबंधी) परेशानी देखी गई है।
स्लीपिंग सिकनेस (Sleeping Sickness) के शुरूआती लक्षण
जर्नल ऑफ दी एसोसिएशन ऑफ फिजिशियंस ऑफ इंडिया (JTAPI) की एक रिपोर्ट के अनुसार, महाराष्ट्र के चंद्रपुर डिस्ट्रिक्ट में स्लीपिंग सिकनेस से पीड़ित एक व्यक्ति की पहचान हुई थी। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के रिपोर्ट के अनुसार, साल 2012 में स्लीपिंग सिकनेस के 7,197 मामले सामने आए थे।
स्लीपिंग सिकनेस की शुरुआत में, बुखार, सिर दर्द, खुजली और जोड़ों में दर्द जैसे परेशानी होती है। ऐसा पहले एक से तीन सप्ताह के अंदर शुरू होता है। कुछ सप्ताह या महीनों के अंदर दूसरा चरण प्रारंभ होता है, जिसमें, मरीज को भ्रम, शरीर का सुन्न होना और सोने में कठिनाई महसूस हो सकती है।
बेल्जियन के जर्नल नेचर द्वारा की गई एक रिसर्च के अनुसार, अब एक ऐसा प्रोटीन तैयार किया है, जिसके बारे में शुरुआती परीक्षणों से पता चला है कि उससे ट्राइपानोसोमा परजीवियों के कई प्रकारों को खत्म किया जा सकता है। इसमें गैंबियन नस्ल का ट्राइपानोसोमा परजीवी भी है। वहीं, पश्चिमी और मध्य अफ्रीका में पाई जाने वाली स्लीपिंग सिकनेस की बीमारी के 97 फीसदी मामले गैंबियन नस्ल के ट्राइपानोसोमा परजीवियों के कारण होती है।
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स्लीपिंग सिकनेस (Sleeping Sickness) को कैसे दें मात
मानव शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली ‘अपोलवन प्रोटीन’ का उत्पादन करती है, जो इन परजीवियों पर हमला करने की कोशिश करती है। वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन के अनुसार, साल 2015 से 2020 तक स्लीपिंग सिकनेस को कैसे मात दी जाए, इसका हल ढूंढ लिया जाएगा। अभी भी बेल्जियम के ब्रक्सेलेस यूनिवर्सिटी द्वारा किए गए अध्ययन में इस बात की ओर इशारा किया है कि गैंबियन अपोलवन प्रोटीन के खिलाफ तीन हिस्सों वाली रोग से लड़ने की क्षमता को विकसित कर लेता है।