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क्या आपका बच्चा नींद के कारण परेशान रहता है? तो इस तरह दें उसे स्लीप ट्रेनिंग

के द्वारा मेडिकली रिव्यूड डॉ. हेमाक्षी जत्तानी · डेंटिस्ट्री · Consultant Orthodontist


Hema Dhoulakhandi द्वारा लिखित · अपडेटेड 08/07/2021

    क्या आपका बच्चा नींद के कारण परेशान रहता है? तो इस तरह दें उसे स्लीप ट्रेनिंग

    बच्चा रात को सोता नहीं है। रात को बीच-बीच में उठकर रोने लगता है। ऐसी कई शिकायतें माता-पिता को होती हैं पर करना क्या है यह उन्हें नहीं पता होता। इससे बच्चे को और पेरेंट्स दोनों को ही दिक्कत होनी शुरू हो जाती है। शुरुआती महिनों में बच्चे बहुत सोते हैं, लेकिन यदि आप उन्हें स्लीप ट्रेनिंग (Sleep Training) देना चाहते हैं तो इसके लिए हर रोज कोशिश करें और शुरुआती दिनों से ही कोशिश करें। स्लीप ट्रेनिंग (Sleep Training) देने से बच्चे को धीरे-धीरे ही सही, ठीक समय पर सोने की आदत पड़ेगी, जो उसके सेहत के लिए भी फायदेमंद होगी। इस आर्टिकल में हम आपको बच्चे को स्लीप ट्रेनिंग (Sleep Training) देने के कुछ तरीके बताएंगे। आइए पहले जानते हैं कि बच्चे को कितनी देर की नींद की जरूरत होती है।

    बच्चे को कितनी देर की नींद लेनी चाहिए?

    हर व्यक्ति के लिए उसकी उम्र के हिसाब से नींद लेने की जरूरत होती है। ठीक इसी तरह बच्चों के साथ भी है। चार से 11 महीने में एक बच्चे को करीब 12 से 15 घंटे की नींद चाहिए होती है। चार महीने के बाद से ही बच्चे में स्लीप ट्रेनिंग (Sleep Training) की समझ पैदा होती है। इसलिए आप स्लीप ट्रेनिंग (Sleep Training) के लिए आर्टिकल में दी गई तकनीकों को अपना सकते हैं।

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    स्लीप ट्रेनिंग (Sleep Training) के तरीके

    उठने-सोने का समय निश्चित करें

    बड़े ही नहीं बच्चों के लिए भी स्लीप ट्रेनिंग (Sleep Training) में सबसे पहले सोने-उठने का एक निश्चित समय करना जरूरी है। इससे समय पर नींद आ जाती है और समय पर ही आंख खुल जाती है। खासकर बच्चों के लिए अगर रूटीन तय हो जाता है तो वह उसी अनुसार ढल जाते हैं।

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    खुद ही सोने की कोशिश कराना

    बच्चों को गोद में लेना या झुला-झुलाकर सुलाने की आदत बड़े ही लगाते हैं। यदि बच्चों को थोड़ी देर गोद में लेकर उन्हें बिस्तर में रख दिया जाए तो उन्हें खुद सोने की आदत लग जाती है। बच्चे के पैदा होने के साथ ही उसे हल्की नींद में ही बिस्तर में सोने की आदत डलवा दें। जिन बच्चों को माता-पिता गोद में ही सुलाते हैं, उन्हें इसकी लत लग जाती है और नींद खुलने के बाद वह खुद ही वापस नहीं सो पाते। ऐसे बच्चों को सुलाने के लिए माता-पिता या केयर टेकर को उठकर उन्हें सुलाना पड़ता है। इसमें शुरुआती दौर में बच्चे काफी रोते हैं, इसके बाद उन्हें धीरे-धीरे आदत हो जाती है।

    एक जैसा वातावरण दें

    यदि रोज वाला बिस्तर, तकिया या लाइट ना हो तो भी नींद में खलल पड़ सकता है। इसलिए कोशिश करें कि बच्चे को जैसे नींद आती है उसे वैसा ही माहौल दें। बार-बार बच्चे के वातावरण में बदलाव से उसकी नींद टूट सकती है।

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    पेट भरा हुआ होना चाहिए

    स्लीप ट्रेनिंग (Sleep Training) की यह जानकारी अधिकतर लोगों को पता होती है। बच्चे को सुलाने से पहले यह बात हमेशा याद रखें कि उसका पेट भरा हुआ होना चाहिए। चाहे दोपहर की नींद हो या रात की नींद यदि आप चाहते हैं कि बच्चा अच्छी नींद सोए तो उसे कुछ ऐसा खिलाएं, जिससे उसकी नींद भूख के कारण ना टूटे।

    नींद न आने तक रहें पास

    बच्चों की नींद या  स्लीप ट्रेनिंग (Sleep Training) में यह तरीका भी काम का है। इसमें बच्चे को जब तक गहरी नींद नहीं आ जाती तब तक उसके पास पेरेंट्स बैठे रहते हैं। माता-पिता के आसपास रहने से भी बच्चा सुरक्षित महसूस करता है और सो जाता है। इसमें बच्चे के नजदीक रहना होता है उसे गोद में नहीं लेना होता।

    स्लीप ट्रेनिंग:  दोपहर में सोने का समय भी तय करें

    बच्चे को स्लीप ट्रेनिंग (Sleep Training) देना चाहते हैं तो दोपहर में उसके सोने का समय कम कर दें। रात को सोने-उठने का ही नहीं दोपहर के समय भी बच्चों के सोने-उठने का समय तय करना चाहिए। दोपहर के समय बच्चों को ज्यादा देर नहीं सुलाना चाहिए। इससे उनकी रातों की नींद टूटती है

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    प्रतिकूल परिस्थितियों में भी रखें ध्यान

    कई बार बच्चों की तबीयत खराब होती है तो पेरेंट्स रात भर उन्हें गोद में लेकर ही सोते हैं, ताकि उन्हें कोई परेशानी ना हो। बच्चों के सोने-उठने के समय में भी वह समझौता करने लगते हैं। ऐसा ना करना भी बच्चों को सुलाना या स्लीप ट्रेनिंग का ही हिस्सा है। जो समय निर्धारित किया हो प्रतिकूल परिस्थितियों में भी उसपर कायम रहने की कोशिश करें।

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    स्लीप ट्रेनिंग: दिन और रात की समझ पैदा करें

    बच्चे के जन्म के पहले दिन से ही बच्चों में रात और दिन की समझ पैदा करनी चाहिए। बच्चों को सुलाना या स्लीप ट्रेनिंग में यह सबसे जरूरी चीज है और यह सबसे पहली ट्रेनिंग भी है। सुबह होने पर घर के अंधेरे को धूप की रोशनी से दूर करें या बच्चे को बाहर लेकर जाएं। वहीं रात होने पर घर में अंधेरा कर दें। बच्चे में यह समझ पैदा करना जरूरी है कि दिन खाने-पीने और खेलने-कूदने के लिए होता है तो रात सोने के लिए होता है।

    ‘स्लीप हैल्थ जर्नल’ में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार तरीका चाहे कोई भी हो। जरूरी है उसको नियमित रूप से फॉलो करना। यदि आप हर दिन एक नई तकनीक आजमाएंगे तो बच्चा ही नहीं आप भी परेशान रहेंगे। इसलिए बच्चों को सुलाना या स्लीप ट्रेनिंग के लिए पहले आप अपनी तैयारी करें और फिर बच्चे को ट्रेनिंग दें।

    बच्चों की नींद अगर पूरी नहीं होती है, तो उनमें चिड़चिड़ापन आ जाता है। ऐसे में नींद का पूरा होना बहुत जरूरी होता है। आप बच्चे को ऐसा माहौल दें, जिससे उसे आराम से नींद आ जाए। कुछ बच्चों को अंधेरे में नींद नहीं आती है, ऐसे में उनके कमरे में आप हल्की लाइट लगा सकते हैं, ताकि उन्हें समस्या न हो। अगर बच्चे को अक्सर डरावने सपने के कारण नींद न आने की समस्या हो गई है, तो आपको उन्हें डरावने टीवी सीरियल या फिर अन्य चीजों से दूर रखने की जरूरत है, जो उनके बुरा सपनों का कारण हो सकती है।

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    उम्मीद है बच्चे को इस तरह की बच्चों को सुलाना या स्लीप ट्रेनिंग देने के बाद उसकी नींद में सुधार आएगा। लेकिन, अगर आपको लगे कि बच्चे को स्लीप ट्रेनिंग देने पर भी वो ठीक से नहीं सो पाता और दिन भर चिड़चिड़ा रहता है, तो एक बार उसे बच्चों के डॉक्टर से पास ले जाएं। हो सकता है कि इसका कारण कुछ और हो और बच्चा किसी समस्या से परेशान हो रहा हो। ऐसे में डॉक्टर सही कारणों का पता लगाकर उसे सटीक दवा दे सकते हैं, जिससे उसे ठीक से नींद भी आए और समस्या दूर भी हो जाए।

    आशा करते हैं कि आपको हमारा ये आर्टिकल पसंद आया होगा और ऊपर बताई गई बच्चों को सुलाना या स्लीप ट्रेनिंग के टिप्स काम आएंगे। अगर आपको इससे जुड़ा कोई सवाल पूछना है तो हमसे हमारे फेसबुक, ट्विटर या इंस्टाग्राम के पेज पर जरूर पूछें। हम आपको डॉक्टर की सलाह लेकर सही जवाब देने की पूरी कोशिश करेंगे। हैलो स्वास्थ्य किसी भी तरह की मेडिकल सलाह नहीं दे रहा है। अगर आपको किसी भी तरह की समस्या हो तो आप अपने डॉक्टर से जरूर पूछ लें।

    डिस्क्लेमर

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