कंगना रनौत एक सफल हिंदी फिल्म अभिनेत्री हैं। कंगना ने साल 2006 में बतौर अभिनेत्री अपना करियर शुरू किया था। तब से अब तक वे सुर्खियों में बनी रहती हैं। लेकिन एक वक्त कंगना एक बीमारी को लेकर भी सुर्खियों में आ गई थीं। ऋतिक रोशन संग विवाद के दौरान रितिक ने उनके एक एसपरजर्स सिंड्रोम नामक बीमारी से पीड़ित होने के आरोप लगाए थे। इसे लेकर दोनों के कुछ ई-मेल भी सामने आए थे, जिसने उनके इस मानसिक बीमारी से पीड़ित होने पर कई सवाल उठा दिए थे। कंगना 23 मार्च को अपना जन्मदिन मनाती हैं। इस मौके पर जानते हैं कि दरअसल वो बीमारी क्या है जिससे कथित तौर पर कंगना पीड़ित रहीं।
एसपरजर्स सिंड्रोम (Asperger Syndrome) क्या है ?
एसपरजर्स सिंड्रोम एक ऐसी बीमारी है जिसमें मरीज का दिमाग तो तेज होता है लेकिन उन्हें दूसरों से घुलने-मिलने और बात करने में परेशानी होती है। वे अगर किसी विषय पर बात करना शुरू करें तो करते ही रहते हैं। एक ही चीज को बार-बार दोहराने की आदत होती है। आजकल एसपरजर्स सिंड्रोम को बीमारी नहीं माना जाता है। यह एक मानसिक अवस्था है। इस सिंड्रोम का इलाज ऑटिज्म स्पेक्ट्रम सिंड्रोम डिसऑर्डर की तरह ही किया जाता है। आगे जानें इस बीमारी के कारण, लक्षण और इलाज के बारे में।
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एसपरजर्स सिंड्रोम के लक्षण (Symptoms of Asperger Syndrome)
इस बीमारी को लक्षणों से ही पहचाना जा सकता है। इस बीमारी का पता लगाने के लिए कोई परीक्षण करना संभव नहीं है। एसपरजर्स सिंड्रोम के लक्षण बचपन में ही दिखने शुरू हो जाते हैं। अगर मां अपने बच्चे पर ध्यान देती है तो वो बच्चे की हर एक्टिविटी पर नजर रख सकती है। ऐसे बच्चे दूसरों से नजरें मिलाकर बात नहीं कर पाते। बच्चा समाज में ज्यादा घुलने-मिलने में दिलचस्पी नहीं रखता है। अगर उससे कोई बात करता है तो उसे नहीं पता होता कि उसे क्या कहना है या उन्हें कैसी प्रतिक्रिया देनी है। ऐसे बच्चे किसी की बॉडी लैंग्वेज या चेहरे के भावों को समझ नहीं पाते हैं। उदाहरण के लिए जैसे उन्हें ये समझ नहीं आता कि कोई उन पर प्यार जता रहा है कोई उन पर गुस्सा हो रहा है। ऐसे भावों में वे अंतर नहीं समझ पाते हैं। एक और लक्षण ये भी है कि बच्चा अपने भावों को नहीं दिखा पाता। जैसे हो सकता है कि वो बिल्कुल ना हंसे। वो बिना भाव के अपनी बात कहते हैं। जैसे कोई रोबोट बोलता है। एक और संकेत यह है कि आपका बच्चा कुछ ही भावनाओं को दिखा सकता है। इसके अलावा बच्चा अपने से ही बातें करता दिखता है। वो अपने पसंदीदा टॉपिक पर बहुत बोल सकता है। वो अपनी पसंदीदा एक्टिविटी को भी बार-बार दोहरा सकते हैं।
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एसपरजर्स सिंड्रोम के कारण (Causes of Asperger Syndrome)
इस सिंड्रोम के कारणों पर कई तरह की स्टडी की गई है। इस सिंड्रोम के होने के कुछ कारण जेनेटिक यानी वंशानुगत भी होते हैं। घर में अगर किसी सदस्य को ये सिंड्रोम है तो नवजात बच्चे में भी इसके लक्षण देखे जा सकते हैं। जैसे बड़े भाई को अगर ये बीमारी है तो छोटे को भी हो सकती है। वहीं अगर टि्वंस बच्चे हैं तो भी दोनों को ये सिंड्रोम हो सकता है। एक में 95 फीसदी असर होगा तो दूसरे में 36 फीसदी असर देखने को मिलेगा। यह ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर का ही एक प्रकार है। जब ऑटिज्म स्पेक्ट्रम वाले मरीज के दिमाग का इमेजिंग परीक्षण होता है तो मस्तिष्क के कुछ हिंसों में अंतर देखा गया है । अभी इस पर स्टडी चल रही है और डॉक्टर यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि यह कोई वंशानुगत असमान्यता है या प्रेग्नेंसी के दौरान किसी चोट की वजह से ऐसा हो जाता है। यह सिंड्रोम घर और बाहर के माहौल के कारण भी पनपता है।
एसपरजर्स सिंड्रोम के अन्य कारण
- प्रेग्नेंसी के समय मां को कोई इनफेक्शन हो जाए
- जन्म के समय कॉम्प्लिकेशन होना
- किसी दवाई का रिएक्शन हो जाना
हालांकि, इन सभी कारणों पर रिसर्च जारी है।
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एसपरजर्स सिंड्रोम का परीक्षण (Test of Asperger Syndrome)
यदि आपको अपने बच्चे में ऐसे लक्षण दिखाई देते हैं, तो अपने आप बाल रोग विशेषज्ञ की मदद ले सकते हैं। वह बच्चे की मानसिक स्थिति को समझते हुए बच्चे का इलाज करेंगे। डॉक्टर बच्चे में निम्न परीक्षण करेगा-
- वह बच्चे की भावनाओं और व्यवहार को समझेगा। वो देखेंगे कि किसी के व्यवहार को समझने में बच्चे को किस प्रकार की दिक्कत होती है।
- कुछ डॉक्टर बच्चे की मानसिक स्थिति का इलाज करते हैं।
- डॉक्टर बच्चे की भाषा में होने वाली दिक्कत को भी देखते हैं। वह जानने की कोशिश करते हैं कि बोलते समय बच्चा कैसी समस्याएं झेल रहा है। इसे विकास संबंधी समस्या कहते हैं।
- मनोवैज्ञानिक भी बच्चे का इलाज कर सकते हैं। मानसिक स्थिति समझते हुए वो कुछ दवाएं लिख सकते हैं।
- डॉक्टर पैरेंट्स से बच्चों के व्यवहार से संबंधित इस प्रकार के सवाल पूछ सकते हैंः किस तरह के लक्षण नजर आ रहे हैं। पहली बार आपने कब ध्यान दिया। आपके बच्चे ने पहली बार कब बोला था। वो कैसे बात करता है। वो पढ़ाई पर ध्यान दे पाता है या नहीं उसके कोई दोस्त हैं या उसे दूसरों से बात करने में परेशान होती है।
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एसपरजर्स सिंड्रोम का इलाज (Treatment of Asperger Syndrome)
हर बच्चा अलग होता है । इसलिए डॉक्टर हर बच्चे का इलाज अलग तरह से करते हैं । वो इलाज से पहले बच्चे को कुछ थेरेपी देते हैं । जो इस प्रकार हैः
सामाजिक कौशल प्रशिक्षण- कुछ समय के लिए डॉक्टर बच्चों को ये ट्रेनिंग देते हैं कि दूसरों से कैसे बात करनी चाहिए । दूसरों से बात करने में बच्चे की दिलचस्पी पैदा करते हैं । इससे बच्चे के व्यवहार में बदलाव दिखना शुरू होता है ।
भाषण देना या बात करना- इससे आपके बच्चे के दोस्त बनने में मदद मिलती है । इसमें बच्चे को सिखाया जाता है कि कब धीरे बोलना है, कब तेज बोलना है या फिर किस तरह सामान्य बात करनी है । उसको कुछ इशारे करना भी सिखाया जाता है । जैसे हाथ से, आंखों से अपनी बात को कैसे कहें । साथ ही इन सब पर नियंत्रण करना भी सिखाया जाता है ।
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व्यवहार बदलने की थेरेपी- यह आपके बच्चे के सोचने के तरीके को बदलने में मदद करती है । इस सिंड्रोम में बच्चे बार-बार एक चीज को ही दोहराते रहते हैं । डॉक्टर उन्हें सिखाते हैं कि कैसे इस पर कंट्रोल करना है । बहुत ज्यादा भावुक होना, बहुत ज्यादा गुस्सा होने पर भी डॉक्टर नियंत्रण करना सिखाते हैं ।
पैरेंट्स को ट्रेनिंग- डॉक्टर तो कुछ समय के लिए ये सारी ट्रेनिंग देते हैं । ऐसे में माता-पिता को भी कुछ तकनीकें सिखाई जाती हैं । जिससे वो अपने बच्चे के साथ उसी तरह व्यवहार करें। कुछ पैरेंट्स घर पर काउंसलर भी रख सकते हैं जो बच्चे से हर दिन ये थेरेपी कराते हैं। एसपरजर्स सिंड्रोम में बच्चों को दवाओं की जरूरत नहीं होती है । वो इन थेरेपी से ही ठीक हो जाते हैं ।