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मेडिकल क्षेत्र में मिलने वाली चुनौतियों का डटकर सामना कर रही हैं ये महिलाएं!

मेडिकल क्षेत्र में मिलने वाली चुनौतियों का डटकर सामना कर रही हैं ये महिलाएं!

हम बीसवी सदी में प्रवेश कर चुके हैं। साइंस ने इतनी तरक्की कर ली है कि सिर्फ बोलने भर से गाना प्ले हो जाता है, पलकें झपकाने से फोन का लॉक खुल जाता है, और कमरे में जाते ही एसी चालू हो जाता है, लेकिन जब बात महिला और पुरुषों की समानता की आती है तो आज भी ऐसा लगता है कि हम मुगल काल में जी रहे हैं। भले ही आज महिलाएं पुरुषों की तरह जॉब कर रही हैं, सेना में भर्ती हो रही हैं और प्लेन उड़ा रही हैं, लेकिन अगर बात बराबरी की जाए तो हमेशा पुरुषों को बेहतर माना जाता है।  2016 की रिपोर्ट के अनुसार इंडिया में पुरुषों और महिलाओं की सैलेरीज में 50 प्रतिशत का अंतर था। यानी महिलाओं को कम सैलरी पर काम करना पड़ता है। उन्हें उनके एक्सपीरियंस और कैलिबर के अनुसार ना तो प्रमोशन मिलता है और ना ही प्रोफाइल। महिलाओं के साथ असमानता का (Inequality with women) सबसे बड़ा उदाहरण मेडिकल सेक्टर है। इस सेक्टर में सबसे ज्यादा सेक्सिज्म के मामले देखने को मिलते हैं।

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मेडिकल सेक्टर में क्यों होता है महिलाओं के साथ असमानता (Inequality with women) का व्यवहार?

मेडिकल स्कूल की पॉप्युलेशन में पुरुषों का एक तिहाई हिस्सा होता है, बाकी सभी सीटों पर महिलाएं होती हैं। लगभग सभी हेल्थकेयर प्रोफेशल्स जैसे फिजिशियन (physician), डेंटिस्ट (Dentist), फिजियोथेरेपिस्ट (Physiotherapist), साइकोलॉजिस्ट (Psychologist), नर्स (Nurse) आदि में महिलाएं की संख्या देखने को मिलती है, लेकिन फीमेल सर्जन (Female surgeon) या फीमेल सुप्रीटेंडेंट की पोस्ट पर महिलाओं को शायद आपने बहुत कम देखा होगा। मेडिकल कॉलेज की पॉप्युलेशन के आधार पर डॉक्टर्स की टीम में 10 में से 7 डॉक्टर्स फीमेल होने चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं होता। हर साल कई लड़कियां मेडिकल स्कूल से पास आउट होती हैं, लेकिन क्या उन्हें हेल्थ केयर सिस्टम में जगह मिलती है? यह सोचने वाली बात है। अगर सिर्फ नर्सेस को छोड़ दिया जाए तो मेडिसिन की दूसरी ब्रांचेस में फीमेल हेल्थ केयर प्रोफेशनल्स की कमी है स्पेशली हेड रोल्स पर। डब्ल्यूएचओ के एक अध्ययन के अनुसार हेल्थ वर्कफोर्स में 70 प्रतिशत महिलाएं शामिल होती हैं, लेकिन वरिष्ठ पदों पर केवल 25 प्रतिशत ही हैं। महिलाओं और पुरुषों के बीच होने वाला पे गैप हेल्थकेयर सेक्टर में सबसे ज्यादा 25 प्रतिशत है। इससे समझा जा सकता है कि इस सेक्टर में महिलाओं के साथ असमानता का क्या ग्राफ है।

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मेडिकल इंडस्ट्री (Medical industry) में काम करने वाली महिलाओं को अक्सर ऐसे ही अनुभवों (महिलाओं के साथ असमानता) से दो चार होना पड़ता है। ऐसा ही एक अनुभव फिजियोथेरेपिस्ट (Physiotherapist) डॉ जसराह जावेद ने एक पब्लिकेशन के साथ शेयर किया। वे कहती हैं, ‘एक फिजियोथेरिपिस्ट होने के नाते एक हॉस्पिटल ने मुझे जॉब ऑफर किया था। यह ऑफर मुझे मेरी स्किलल्स के चलते मिला था जो साथ के किसी भी पुरुष सहयोगी की जितनी ही अच्छी थी, लेकिन मुझे वो पॉजिशन नहीं ऑफर की गई जिसकी मैं हकदार थी।

इसके कारण निम्न थे।

  • मैं मेल फिजियोथेरेपिस्ट तरह स्ट्रॉन्ग नहीं हूं
  • मैं ज्यादा अधिक छुट्टियां लेने के लिए वनरेबल हूं
  • मैं ज्यादा बीमार पड़ सकती हूं
  • मैं नाइट शिफ्ट के लिए फ्लेग्जिबल नहीं हूं
  • और लिस्ट जा रही है……

जबकि वास्तव में, मैं और अन्य सभी महिला फिजियोथेरेपिस्ट (Physiotherapist) एक दिन की छुट्टी के बिना इंटर्न के रूप में एक ही अस्पताल में काम करते थे और मरीजों के प्रति भी हमारा व्यवहार वैसा ही था जैसा कि किसी पुरुष फिजियोथेरेपिस्ट का होता है। अपने से वजन से दोगुने वजन के मरीजों को उठाना और उनका मार्गदर्शन करना, नाइट शिफ्ट करना ये सभी हमारे रूटीन में शामिल था।

मुझे हालांकि उसी टीम में दूसरे स्थान की पेशकश की गई थी, लेकिन मैंने समझौता करने के बारे में नहीं सोचा था क्योंकि मुझे पता था कि मेरे पास वह सब कुछ है जिस स्थिति के लिए मैंने आवेदन किया था। स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र ही नहीं, हर पेशे में पे गैप का मुद्दा मौजूद है, लेकिन डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के अनुसार, स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में वेतन अंतर किसी भी अन्य क्षेत्र से अधिक है। इसका एक कारण यह भी है कि ज्यादातर महिलाएं आर्थिक संकट के चलते कम वेतन पर काम करने के लिए सहमत हो जाती हैं। जिससे इस भ्रम को बढ़ावा मिलता है जिसमें ये समझा जाता है कि महिलाएं पुरुषों से नीचे हैं।’

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महिलाओं के साथ असमानता (Inequality with women) के व्यवहार के बारे में बताते इन आकंड़ों पर भी डाल लीजिए एक नजर 

भले ही ये आकंड़े हमें निराश करते हो, लेकिन कुछ तथ्य भी हैं जो थोड़ी खुशी देते हैं। हमारे देश में ऐसी महिलाओं की भी कमी नहीं है जो हेल्थकेयर के क्षेत्र में अपने झंडे गाड़ रही हों। वो भी उसी क्षेत्र में जहां उन्हें बराबरी का हक नहीं दिया जाता या कहें कि उन्हें कमतर समझा जाता है।  इस विमेंस डे के मौके पर हम आपको बताते हैं ऐसी ही कुछ महिला ऑन्ट्रप्रेन्योर के बारे में जो हेल्थकेयर के क्षेत्र में उल्लेखनीय काम कर रही हैं।

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सुनीता माहेश्वरी- टेलीरेडियोलॅजी सॉल्यूशन्स (Teleradiology Solutions)

महिलाओं के साथ असमानता

सुनीता को इस बात का एहसास बहुत जल्दी हो गया था कि मेडिकल में डायग्नोसिस के लिए एडवांस टेक्नोलॉजी का होना बहुत जरूरी है। इसलिए डॉक्टर से ऑन्ट्रप्रेन्योर बनकर उन्होंने इस क्षेत्र में काम किया और टेलीरेडियोलॉजी की चीफ बनीं। साथ ही बंगलरु में आएक्सडीएक्स मल्टी स्पेशलिटी क्लिनिक (RXDX multi-specialty acute care clinics) की शुरुआत की। इतना ही नहीं उन्होंने एक सॉफ्टेवयर कंपनी भी फॉर्म की है जो टेलीरेडियोलॉजी सॉफ्टवेयर का निमार्ण करती है ताकि डायग्नोस्टिक सॉल्यूशन्स को उन मरीजों तक पहुंचाया जा सके जो इसे अफोर्ड नहीं कर सकते।

नीरजा बिरला- एमपावर (Mpower)

नीरजा एमपावर की फाउंडर और चेयरपर्सन हैं। यह एक ऑर्गनाइजेशन है जो युवाओं में होने वाले कि मेंटल हेल्थ इशूज को मैनेज करने में मदद करती है। यह संस्था स्कूल, कॉलेज और कॉरपोरेट में वर्कशॉप लगाकर मेंटल हेल्थ से जुड़ी अवेयरनेस फैलाने और मेंटल हेल्थ कंडिशन (Mental health condition) को समझने में लोगों की मदद करती है। ये लोग एंग्जायटी (Anxiety), डिप्रेशन (depression )और दूसरे मूड डिसऑर्डर्स (mood disorders) के लिए डायग्नोसटिक्स के साथ ही ट्रीटमेंट, कंसल्टेशन भी प्रदान करते हैं। इस संस्था का उद्देश्य ऐसे लोगों तक मेंटल हेल्थकेयर सर्विसेस पहुंचाना है जो इन्हें अफोर्ड नहीं कर सकते ताकि मेडिकल केयर के लिए कॉस्ट बैरियर ना बनें।

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अदिती हाजरा गंजु-  टूगेदरफॉरहर (Togetherforher)

महिलाओं के साथ असमानता

स्वास्थ्य सेवा में एक दशक से लंबे करियर में, अदिति गंजू ने महसूस किया कि महिलाओं के लिए अपने आसपास अच्छे मेटेरनिटी केयर सेंटर्स (Maternity Care Centers) को खोजना कितना मुश्किल है। महिलाएं कैसे जान सकती हैं कि किस सेंटर ने उनके लिए अच्छा काम किया? या कौन सा डॉक्टर उनकी जरूरतों के अनुसार सबसे योग्य है? इसका बात एहसास होते ही कि महिलाओं के लिए इस तरह की जानकारी का अभाव है अदिति ने टूगेदरफॉरहर (Togetherforher) की स्थापना की, जो क्वालिटी रिव्यूज और गाइडेंस प्रदान करती है। जिससे महिलाओं को उनकी पसंद और जरूरत के हिसाब से मैटरनिटी हॉस्पिटल को चुनने में मदद मिलती है। वे अपनी वेबसाइट पर भी इससे जुड़े वीडियोज और लेख शेयर करती हैं।

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Achieving Gender Equality in India: What Works, and What Doesn’t/https://unu.edu/publications/articles/achieving-gender-equality-in-india-what-works-and-what-doesnt.html/ Accessed on 5th March 2021

Achieve gender equality and empower all women and girls/ https://www.un.org/sustainabledevelopment/gender-equality/Accessed on 5th March 2021

Women Entrepreneurship/https://www.startupindia.gov.in/content/sih/en/women_entrepreneurship.html/Accessed on 5th March 2021

Gender equality is essential to ensure that every child – girl and boy – has a fair chance in life/https://data.unicef.org/topic/gender/overview/Accessed on 5th March 2021

Current Version

07/03/2021

Manjari Khare द्वारा लिखित

के द्वारा मेडिकली रिव्यूड डॉ. प्रणाली पाटील

Updated by: Manjari Khare


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के द्वारा मेडिकली रिव्यूड

डॉ. प्रणाली पाटील

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Manjari Khare द्वारा लिखित · अपडेटेड 07/03/2021

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