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Living with Liver Cancer: लिवर कैंसर के सर्वाइवर्स को किन चीजों का रखना चाहिए ध्यान, जानिए

के द्वारा मेडिकली रिव्यूड डॉ. प्रणाली पाटील · फार्मेसी · Hello Swasthya


AnuSharma द्वारा लिखित · अपडेटेड 19/01/2022

    Living with Liver Cancer: लिवर कैंसर के सर्वाइवर्स को किन चीजों का रखना चाहिए ध्यान, जानिए

    कैंसर एक गंभीर बीमारी है। कैंसर पेशेंट्स का सर्वाइवल कैंसर के स्टेज पर निर्भर करता है। लेकिन, लिवर कैंसर पेशेंट्स का सर्वाइवल रेट अन्य अंडरलायिंग मेडिकल कंडिशंस जैसे सिरोसिस (Cirrhosis) के कारण कम होता है। ऐसा माना गया है कि लिवर कैंसर (Liver cancer) की सभी स्टेजेज के लिए पांच साल सर्वाइवल रेट केवल पंद्रह प्रतिशत है। हालांकि, पांच साल सर्वाइवल रेट इस बात पर भी निर्भर करता है कि मरीज में कैंसर कितना फैला है। आज हम लिवर कैंसर के साथ लिविंग (Living with Liver Cancer) के बारे में आपको जानकारी देने वाले हैं। लिवर कैंसर के साथ लिविंग (Living with Liver Cancer) से पहले लिवर कैंसर के बारे में थोड़ा जान लेते हैं।

    लिवर कैंसर किसे कहा जाता है? (Liver cancer)

    लिवर शरीर के सबसे बड़े अंग को कहा जाता है। इससे हमारे शरीर को फूड डायजेस्ट करने में मदद मिलती है। इसके साथ ही यह एनर्जी स्टोर करने और हानिकारक चीजों को रिमूव करने में भी सहायक होता है। प्राइमरी लिवर कैंसर (Primary Liver cancer),  लिवर में शुरू होता है। जबकि, मेटास्टैटिक लिवर कैंसर (Metastatic Liver Cancer) शरीर के किसी अंग से शुरू होता है और लिवर तक फैल जाता है। प्राइमरी लिवर कैंसर के रिस्क फैक्टर्स इस प्रकार हैं:

    • हेपेटाइटिस बी या सी (Hepatitis B or C)
    • हैवी एल्कोहॉल का इस्तेमाल (Heavy alcohol use)
    • सिरोसिस होना (Having cirrhosis)
    • हेमोक्रोमैटोसिस होना (Hemochromatosis)
    • मोटापा और डायबिटीज (Obesity and diabetes)

    लिवर कैंसर के साथ लिविंग (Living with Liver Cancer) से पहले लिवर कैंसर के लक्षणों के बारे में जानना भी जरूरी है। इसके लक्षणों में पेट के राइट साइड में लम्प या दर्द होना और त्वचा का पीला होना आदि शामिल है। लेकिन, यह लक्षण तब तक नजर नहीं आते हैं जब तक कैंसर एडवांस लेवल तक न पहुंच जाए। इस कंडिशन में इसका उपचार मुश्किल हो सकता है। इस कैंसर की कंडिशन में डॉक्टर लिवर की जांच के लिए टेस्ट्स करते हैं और ब्लड टेस्ट्स की भी जांच की जाती है ताकि लिवर कैंसर का निदान हो सके। इसके ट्रीटमेंट में सर्जरी (Surgery), रेडिएशन (Radiation), कीमोथेरेपी (Chemotherapy) और लिवर ट्रांसप्लांटेशन (Liver transplantation) आदि शामिल है। अब जानते हैं लिवर कैंसर के साथ लिविंग (Living with Liver Cancer) के बारे में।

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    लिवर कैंसर के साथ लिविंग: जानिए इस बारे में विस्तार से (Living with Liver Cancer)

    लिवर कैंसर से पीड़ित कुछ लोगों में ट्रीटमेंट से कैंसर को रिमूव या नष्ट किया जा सकता है। लेकिन, इसका ट्रीटमेंट स्ट्रेस्फुल और परेशान करने वाला हो सकता है। अगर किसी को कैंसर है तो कैंसर के सफल उपचार के बाद फिर से कैंसर न हो जाए, यह परेशानी होना भी कैंसर पेशेंट्स में स्वभाविक है। लिवर कैंसर (Liver cancer) से पीड़ित अधिकतर लोगों में कैंसर पूरी तरह से ठीक नहीं होता है या शरीर के अन्य भाग पर यह कैंसर फिर से हो सकता है। ऐसे मरीजों को रेडिएशन थेरेपी, कीमोथेरेपी आदि की जरूरत भी हो सकती है। आइए जानें लिवर कैंसर के साथ लिविंग (Living with Liver Cancer) के बारे में विस्तार से।

    फॉलो-अप केयर (Follow-up care)

    लिवर कैंसर के किसी मरीज का अगर कम्पलीट ट्रीटमेंट हो जाता है, तो डॉक्टर उसे नियमित जांच के लिए कहेंगे। यह फॉलो-अप अपॉइंटमेंट्स बहुत जरूरी हैं। इन विजिट्स के दौरान, आपके डॉक्टर आपसे आपकी समस्या के बारे में जानेंगे और अन्य टेस्ट्स भी करा सकते हैं जैसे ब्लड टेस्ट, लिवर फंक्शन टेस्ट, इमेजिंग टेस्ट आदि। इनसे कैंसर के लक्षणों को ट्रीटमेंट के साइड-इफेक्ट्स के बारे में जाना जा सकता है। यही नहीं, अगर मरीज को कोई परेशानी है, तो वो भी इस दौरान डॉक्टर को इसके बारे में बता सकते हैं ताकि किसी बड़ी समस्या से बचा जा सके। लिवर कैंसर के साथ लिविंग (Living with Liver Cancer) में फॉलो-अप केयर बेहद महत्वपूर्ण है।

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    लिवर कैंसर के साथ लिविंग में डॉक्टर की विजिट्स और टेस्ट्स (Doctors visits and tests)

    अगर लिवर कैंसर (Liver cancer) के रोगियों का उपचार सर्जरी, लिवर ट्रांसप्लांट आदि से हुआ है और कैंसर का कोई भी लक्षण उन्हें नजर नहीं आ रहा हो, तो डॉक्टर अधिकतर लोगों को पहले दो सालों में हर तीन से छह महीनों में ब्लड टेस्ट और इमेजिंग टेस्ट की सलाह दे सकते हैं। इसके बाद उन्हें हर छह महीने और एक साल में इसकी जरूरत होगी। कैंसर के फिर से होने और फैलने के साथ ही खास ट्रीटमेंट के संभावित साइड इफेक्ट्स के लिए भी फॉलो-अप जरूरी है। उम्मीद है कि लिवर कैंसर के साथ लिविंग (Living with Liver Cancer)  के बारे में यह जानकारी आपको पसंद आ रही होगी। अपने डॉक्टर से सर्वाइवरशिप केयर प्लान के बारे में बात करें। इस प्लान में यह सब शामिल है:

    • फॉलो-अप एक्साम्स और टेस्ट्स के लिए शेड्यूल।
    • अन्य जरूरी टेस्ट्स के लिए शेड्यूल जैसे कैंसर और इसके उपचार का कैंसर पेशेंट्स पर लॉन्ग-टर्म हेल्थ इफेक्ट्स
    • ट्रीटमेंट के कारण होने वाले संभावित लेट या लॉन्ग टर्म साइड इफेक्ट्स। जिसमें यह भी शामिल है कि किन चीजों का ध्यान रखना चाहिए और कब डॉक्टर की सलाह लेना जरूरी है।

    डॉक्टर से उन सब चीजों की सलाह लें जिनसे आपका स्वास्थ्य सुधर सके। इसमें कैंसर के फिर से होने की संभावना को कम करने के उपाय आदि शामिल है। अब जानते हैं इसके बारे में और अधिक।

    लिवर कैंसर के साथ लिविंग (Living with liver cancer)
    लिवर कैंसर के साथ लिविंग (Living with liver cancer)

    और पढ़ें: Secondary Liver Cancer: सेकेंड्री लिवर कैंसर क्या है?

    लिवर कैंसर को बढ़ने या फिर से होने की संभावना को कैसे कम किया जा सकता है?

    यह तो थी लिवर कैंसर के साथ लिविंग (Living with Liver Cancer) के बारे में जानकारी। अगर किसी व्यक्ति को लिवर कैंसर है, तो वह शायद उन चीजों के बारे में जानना चाहेंगे जिनसे कैंसर के फिर से होने के जोखिम को कम किया जा सके जैसे व्यायाम, सही आहार का सेवन या न्यूट्रिशनल सप्लीमेंट्स का सेवन करना आदि। हालांकि, दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि यह सब चीजें किस तरह से लाभदायक हैं, इस बारे में सही जानकारी मौजूद नहीं है। हेपेटाइटिस बी और सी का उपचार भी लिवर के डैमेज को कम करने में मददगार है, जिससे लिवर कैंसर रिस्क भी बढ़ सकता है।

    तंबाकू और एल्कोहॉल का इस्तेमाल सीधे तौर पर लिवर कैंसर (Liver cancer) से जोड़ कर देखा जाता है। ऐसे में स्मोकिंग और एल्कोहॉल के सेवन को कम करने से इसके जोखिम को भी कम किया जा सकता है। यही नहीं, इससे संपूर्ण स्वास्थ्य को सुधारने में भी मदद मिलेगी। इससे अन्य तरह के कैंसर के विकसित होने के जोखिम को भी कम किया जा सकता है। अन्य हेल्दी हैबिट्स जैसे एक्टिव रहना, सही आहार का सेवन और सही वजन को बनाए रखने से भी कई समस्याओं के रिस्क को कम किया जा सकता है।

    और पढ़ें: लिवर कैंसर में एक्यूप्रेशर कितना उपयोगी है?

    डायटरी सप्लीमेंट्स (Dietary supplements)

    हालांकि, अभी तक की गयी स्टडीज से यह बात क्लियर नहीं हुई है कि डायट्री सप्लीमेंट्स (जिनमें विटामिन, मिररल और हर्बल प्रोडक्ट्स आदि शामिल हैं), लिवर कैंसर के जोखिम के विकसित होने और फिर से इसके होने को जोखिम को कम किया जा सकता है। लेकिन, इसका अर्थ यह भी नहीं है कि सप्लीमेंट्स का इस्तेमाल करने से कोई लाभ नहीं होता है। इससे रोगी को लाभ हो सकता है। इसके बारे में अधिक जानकारी के लिए डॉक्टर की सलाह अवश्य लें।

    और पढ़ें: जानें लिवर कैंसर और इसके हाेने के कारण क्या हैं?

    लिवर कैंसर के साथ लिविंग (Living with Liver Cancer) के बारे में तो आप जान ही गए होंगे। अगर कैंसर पेशेंट्स के सर्वाइवल को यह समस्या फिर से हो जाती है तो इसका उपचार कई बातों पर निर्भर करता है जैसे कैंसर कहां हैं, रोगी को पहले कौन सा उपचार दिया गया था और पेशेंट की हेल्थ आदि। इस कैंसर के उपचार में भी एब्लेशन (Ablation) , रेडिएशन थेरेपी (Radiation therapy), कीमोथेरेपी (Chemotherapy), टार्गेटेड थेरेपी (Targeted therapy) या इन सब का कॉम्बिनेशन आदि शामिल है।

    इसमें कोई संदेह नहीं कि लिवर कैंसर के साथ लिविंग (Living with Liver Cancer) बेहद मुश्किल है। लेकिन, इस दौरान कैंसर पेशेंट्स के लिए सकारात्मक रहना, परिवार और दोस्तों का साथ, प्रोफेशनल काउंसलिंग आदि बेहद जरूरी है। अगर इसके बारे में आपके मन में कोई भी सवाल है तो डॉक्टर से इस बारे में अवश्य जानें। आप हमारे फेसबुक पेज पर भी अपने सवालों को पूछ सकते हैं। हम आपके सभी सवालों के जवाब आपको कमेंट बॉक्स में देने की पूरी कोशिश करेंगे। अपने करीबियों को इस जानकारी से अवगत कराने के लिए आप ये आर्टिकल जरूर शेयर करें।

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