लिवर कैंसर एक गंभीर कैंसर है जोकि लिवर यानी यकृत में होता है। कुछ कैंसर ऐसे भी होते हैं जो किसी और अंग में शुरू होते हैं और लिवर तक पहुंच जाते हैं। उसे सेकेंड्री लिवर कैंसर कहते हैं। वहीं लिवर से शुरू होने वाले कैंसर को प्राइमरी लिवर कैंसर कहते हैं।
डॉक्टरों के अनुसार, लिवर से शुरू होने वाले कैंसर को ही लिवर कैंसर कहा जाता है। अमेरिकन कैंसर सोसाइटी (एसीएस) का अनुमान है कि 2019 में 42,030 लोगों में लिवर कैंसर पाया गया। इनमें से 29,480 पुरुष और 12,550 महिलाएं शामिल हैं। लिवर कैंसर मुख्य रूप से हेपेटाइटिस संक्रमण के बढ़ने के कारण होता है।अमेरिका में यह कैंसर महिलाओं के मुकाबले पुरुषों में ज्यादा पाया जाता है।
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लिवर क्या काम करता है (How does liver work)?
लिवर शरीर के सबसे महत्वपूर्ण अंगों में से एक होता है और यह निम्नलिखित कार्य करता है—
- यह फेफड़ों के ठीक नीच होता है और शरीर से विषैले पदार्थों को हटाने का कार्य भी करता है।
- इसके अलावा लिवर खून को भी फिल्टर करता है। यही खून पूरे शरीर में प्रवाहित होता है।
- लिवर कई प्रकार के सेल्स यानी कोशिकाओं का निर्माण करता है। इसलिए सेल्स से कई प्रकार के ट्यूमर भी बनते हैं।
- इनमें से कुछ सेल्स नॉनकैंसरस होते हैं जो ट्यूमर या कैंसर नहीं बनाते हैं। वहीं कुछ कैंसर वाले होते हैं और अन्य भागों में फैल जाते हैं।
- ट्यूमर बनने के अलग-अलग कारण होते हैं और इनका इलाज भी अलग तरह से होता है।
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लिवर कैंसर के प्रकार (Types of liver cancer)
लिवर कैंसर दो प्रकार के होते हैं। पहला प्राइमरी लिवर कैंसर और दूसरा सेकेंड्री लिवर कैंसर। प्राइमरी लिवर कैंसर उसे कहते हैं जो लिवर में ही शुरू हुआ हो। वहीं सेकेंड्री लिवर कैंसर वो है जो किसी अन्य अंग में शुरू होता है और रक्त के माध्यम से लिवर तक पहुंच जाता है। स्तन, ब्लेडर, किडनी, ओवरी, पेनक्रियाज, पेट, यूट्रस और फेफड़ों से शुरू होने वाले कैंसर लिवर तक पहुंच जाते हैं। प्राइमरी और सेकेंड्री लिवर कैंसर के भी कुछ प्रकार होते हैं।
इस बारे में डॉ डोनाल्ड बाबू, सर्जिकल ऑन्कोलॉजिस्ट, हीरानंदानी अस्पताल वाशी-ए फोर्टिस नेटवर्क अस्पताल का कहना है कि पेट की समसया आज के समय होने लोगों को होने वाली अधिक समस्याओं मे एक् है। पैंक्रियाज में होने वाली शुरूआती सिस्ट, कोशिकाओं का एक समूह है, जोकि फ्लूइड (Fluid), हवा या किसी ठोस सामग्री से भरा हुआ हो सकता है। अग्न्याशय में अलग-अलग प्रकार के सिस्ट बन सकते हैं, जिनमें से दो मुख्य हैं, जो सीरस और म्यूकिनस (Mucinous) हैं। म्यूकिनस सिस्ट (Mucinous cyst) आगे जाकर आईपीएमएन का कारण बन सकता है। इसमें तरल पदार्थ होते हैं, जो सीरस सिस्ट में पाए जाने वाले की तुलना में अधिक चिपचिपा होते हैं। आईपीएमएन IPMN अग्न्याशय के नलिकाओं के अंदर बनते हैं। वे अन्य प्रकार के सिस्ट से अलग होते हैं।
प्राइमरी लिवर कैंसर (Primary Liver Cancer) क्या है?
प्राइमरी लिवर कैंसर लिवर में मौजूद अलग—अलग सेल्स से बनते हैं। प्राइमरी लिवर कैंसर लिवर में पनपने वाली एक गांठ के रूप में शुरू हो सकता है। यह कैंसर एक ही समय पर लिवर में कई जगहों पर भी हो सकता है। प्राइमरी लिवर कैंसर के कई प्रकार होते हैं, जैसे कि-
हेपेटोसेल्युलर कार्सिनोमा (एचसीसी)
इस कैंसर को हेपेटोमा के नाम से भी जाना जाता है। यह लिवर कैंसर का सबसे आम प्रकार है। हेपेटोसाइट्स सेल्स में निर्मित होने वाला कैंसर है। हेपेटोसाइट्स लिवर की प्रमुख कोशिका है। यह कैंसर लिवर से शरीर के अन्य भागों जैसे अग्न्याशय, आंत और पेट में फैल सकता है। उन लोगों में ये कैंसर होने की ज्यादा आशंका होती है जो शराब पीते हैं।
लिवर कैंसर के प्रकार: कोलैंगियोकार्सिनोमा
इस कैंसर को आमतौर पर पित्त नली कैंसर के नाम से जाना जाता है। यह कैंसर लिवर में छोटे ट्यूब जैसे पित्त नली की तरह विकसित होता है। पित्त नली भोजन को पचाने के लिए पित्त को पित्ताशय की थैली में ले जाती है। जब यह कैंसर लिवर के अंदर विकसित होता है तो उसे इंट्राहेपेटिक पित्त नली का कैंसर कहा जाता है। जब कैंसर लिवर के बाहर होता है तो इसे एक्स्ट्रापेटिक पित्त नली का कैंसर कहते हैं।
लिवर एंजियोसारकोमा
लिवर एंजियोसारकोमा, लिवर कैंसर का एक दुर्लभ प्रकार है। यह लिवर की रक्त वाहिकाओं में शुरू होता है। यह कैंसर लिवर में बहुत तेजी से फैलता है। जब यह कैंसर डायगनोज होता है तो एडवांस स्टेज पर पहुंच चुका होता है।
हेपेटोब्लास्टोमा
हेपेटोब्लास्टोमा लिवर कैंसर का बेहद दुर्लभ प्रकार है। यह ज्यादा बच्चों में पाया जाता है। 3 साल तक के बच्चों में इसे ज्यादा देखा गया है। इस कैंसर का इलाज सर्जरी और कीमोथेरेपी से किया जाता है। जब यह कैंसर शरीर में डायगनोज होता है तो जीवित रहने की संभावना 90 फीसदी तक होती है।
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सेकेंड्री लिवर कैंसर के प्रकार (Secondary liver cancer)
संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोप में सेकेंड्री लिवर कैंसर, प्राइमरी की तुलना में अधिक सामान्य हैं। कुछ सेकेंड्री ट्मर भी लिवर कैंसर का कारण बनते हैं—
बेनिग्न लिवर ट्यूमर
बेनिग्न लिवर ट्यूमर छोटे होते हैं लेकिन इनसे नुकसान ज्यादा होता है। ये पास के टिशू में तो नहीं फैलते लेकिन शरीर के अन्य हिस्सों में तेजी से बढ़ते हैं। इन ट्यूमर को सिर्फ सर्जरी करके ही ठीक किया जा सकता है।
लिवर कैंसर के प्रकार: हेमेनजिओमा (Hemangioma)
ये सबसे आम प्रकार का ट्यूमर है। यह रक्त वाहिकाओं blood vessels में शुरू होते हैं। कुछ हेमेनजिओमा ट्यूमर के लक्षण लिवर में नहीं पाए जाते हैं। वहीं कुछ हेमेनजिओमा काफी नुकसान पहुंचाते हैं और इसे सर्जरी करके निकाला जाता है।
लिवर कैंसर के प्रकार: हेपेटिक एडेनोमा
ये भी बेनिग्न लिवर ट्यूमर का एक प्रकार है। यह लिवर की मुख्य कोशिकाओं में शुरू होता है। इसके शुरुआती लक्षण नहीं दिखाई देते हैं लेकिन बाद में यह पेट में दर्द और खून की कमी का कारण बनता है। ज्यादा खून की कमी होने से ये और भी ज्यादा नुकसान पहुंचाता है। इसे भी सर्जरी करके ही निकाला जा सकता है।
कुछ दवाओं का उपयोग करने से भी इन ट्यूमर के होने का खतरा बढ़ सकता है। महिलाएं अगर बर्थ कंट्रोल की दवाएं लेती हैं तो उन्हें ये ट्यूमर होने की संभावना ज्यादा होती है। जो पुरुष एनाबॉलिक स्टेरॉयड का उपयोग करते हैं, उनमें भी ये ट्यूमर विकसित हो सकता है। जब ये दवाएं बंद हो जाती हैं तो ट्यूमर अपने आप सिकुड़ जाता है।
फोकल नॉड्यूलर हाइपरप्लासिया Focal nodular hyperplasia
फोकल नॉड्यूलर हाइपरप्लासिया (FNH) एक ऐसा ट्यूमर होता है जो कई कोशिकाओं से बना होता है। एफएनएच ट्यूमर मुख्य रूप से लिवर कैंसर नहीं बनाता है। इसके लक्षण भी स्पष्ट नहीं होते हैं। ऐसे में डॉक्टरों को इलाज करने में परेशानी होती है। एडेनोमा और एफएनएच ट्यूमर पुरुषों की तुलना में महिलाओं में अधिक आम हैं।
क्या चीजें हैं जो लिवर कैंसर के खतरे को बढ़ा सकती हैं?
डॉक्टरों के अनुसार, अभी ये साफ नहीं हो पाया है कि लोगों को लिवर कैंसर क्यों होता है। वहीं कुछ कारक हैं जो लिवर कैंसर के खतरे को बढ़ा सकते हैं।
- 50 साल से ज्यादा उम्र के लोगों में लिवर कैंसर अधिक पाया जाता है। इसका मतलब यह है कि उम्र के चलते भी लिवर कैंसर हो सकता है।
- हेपेटाइटिस बी या सी संक्रमण आपके लिवर को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचा सकता है। हेपेटाइटिस एक शरीर से दूसरे में फैलने वाली बीमारी है।
- हेपेटाइटिस व्यक्ति के खून या स्पर्म के जरिए दूसरे व्यक्ति को भी संक्रमित कर सकता है। हेपेटाइटिस बी से बचने के लिए वैक्सीन उपलब्ध है।
- सालों से शराब का सेवन करने वालों को लिवर कैंसर जल्दी हो सकता है। वहीं जो लोग रोज शराब पीते हैं उनके लिए भी खतरा बना रहता है।
- लिवर खराब होने के एक प्रकार का नाम सिरोसिस भी है। एक खराब लिवर ठीक से काम नहीं कर पाता। साथ ही कैंसर की संभावनाओं को भी बढ़ा देता है। अमेरिका में सबसे ज्यादा लिवर कैंसर सिरोसिस की वजह से ही होता है।
- एफ्लेटॉक्सिन की वजह से भी लिवर कैंसर हो सकता है। यह एक विषैला पदार्थ होता है जो मूंगफली, अनाज और मकई खाने वाले लोगों में विकसित होता है। अमेरिका में फूड हैंडलिंग कानून के तहत इन खाद्य पदार्थों को सीमित मात्रा में ही बेचा जाता है। भारत के अलावा अन्य देशों के लोगों में एफ्लेटॉक्सिन का खतरा ज्यादा होता है।
लिवर कैंसर होने के अन्य कारण
टाइप 2 डायबिटीज
डायबिटीज यानी मधुमेह वाले मरीजों को लिवर कैंसर का खतरा हो सकता है। अगर उन्हें हेपेटाइटिस भी है तो ये खतरा और भी बढ़ सकता है। ऐसे लोगों को शराब के नियमित सेवन से बचना चाहिए। साथ ही डायबिटीज में लोगों को ये ध्यान देना चाहिए कि उनका वजन न बढ़े।
आनुवांशिक बीमारी
यदि घर में मां, पिता, भाई या बहन को कभी लिवर कैंसर हो चुका है तो परिवार के अन्य सदस्यों को भी कैंसर होने का खतरा बना रहता है।
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ज्यादा शराब पीना
हर दिन शराब के 6 पैग पीने से सिरोसिस का खतरा बढ़ जाता है। सिरोसिस को लिवर कैंसर में बदलने में देर नहीं लगती।
इम्युनिटी कमजोर होना
स्वस्थ मनुष्य की तुलना में कमजोर इम्युनिटी सिस्टम वालों को लिवर कैंसर होने का खतरा पांच गुना ज्यादा होता है।
मोटापा
मोटे होने के कारण कई तरह के कैंसर विकसित हो जाते हैं। इसमें लिवर कैंसर भी शामिल है। फैटी लिवर कैंसर बनाता है।
धूम्रपान (Smoking)
कभी सिगरेट न पीने वालों की तुलना में धूम्रपान करने वाले लोगों को लिवर कैंसर का खतरा ज्यादा होता है।
अगर आप हेपेटाइटिस बी या सी से संक्रमित हैं तो आपको समय—समय पर डॉक्टर से जांच करवाते रहना चाहिए। ज्यादा शराब पीने वाले भी अपने लिवर का ध्यान रखें। लिवर कैंसर के एडवांस स्टेज में पहुंचने के बाद डॉक्टर उसे डायगनोज करते हैं तो इलाज करना बहुत मुश्किल होता है। इसका सीधा तरीका यही है कि जांच करवाते रहें। क्योंकि लिवर कैंसर के शुरुआती लक्षण नजर नहीं आते हैं। लिवर कैंसर की जांच ब्लड टेस्ट, हेपेटाइटिस टेस्ट, सीटी स्कैन, बायोप्सी, लेपेरोस्कोपी के जरिए होती है।
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