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बच्चों में अस्थमा की बीमारी होने पर क्या करना चाहिए ?

 बच्चों में अस्थमा की बीमारी होने पर क्या करना चाहिए ?

वयस्कों की तुलना में बच्चों में अस्थमा की बीमारी होने की ज्यादा संभावनाएं रहती है, खासतौर से तब जब वो संक्रमित व्यक्ति या वायरस के संपर्क में आते हैं। सांस के द्वारा पोलेन को अंदर लेने या फिर कोल्ड या अन्य रेसपीरेटरी इंफेक्शन के संपर्क में आने से बीमारी होती है। बच्चों को अस्थमा की बीमारी होने की स्थिति में उन्हें रोजमर्रा के काम करने में परेशानी आती है, जैसे उन्हें खेलने, किसी स्पोर्ट्स एक्टीविटी में भाग लेने स्कूल में या फिर सोने में परेशानी आती है। यदि अस्थमा की बीमारी को मैनेज न किया जाए या इलाज न किया जाए तो उस स्थिति में खतरनाक अस्थमा अटैक आ सकते हैं।

वयस्कों की तुलना में बच्चों को होने वाली अस्थमा की बीमारी अलग नहीं है बल्कि उन्हें बड़ों की तुलना में ज्यादा संघर्ष करना पड़ता है, चुनौतियों से जूझना पड़ सकता है। यही वजह है कि उन्हें इमरजेंसी में डॉक्टर से संपर्क करने के साथ अस्पताल में भर्ती होना पड़ सकता है, यहां तक कि उनके स्कूल भी मिस हो सकते हैं।

यह दुखद है कि बच्चों में अस्थमा की बीमारी का इलाज संभव नहीं है। वहीं वयस्क होने तक उनको बीमारी के लक्षणों को झेलना पड़ सकता है। वहीं यदि सही इलाज किया जाए तो आपके बच्चे का लक्षण न केवल कंट्रोल में रहता है बल्कि बड़े होने के दौरान लंग्स को डैमेज होने से बचाया जा सकता है।

बच्चों में अस्थमा के लक्षण पर नजर

वायरल इंफेक्शन न होने के बावजूद भी बच्चे को लगातार कफिंग की समस्या होना, सोने के समय और एक्सरसाइज करने के साथ ठंड के संपर्क में आने पर कफिंग का बढ़ना

– सांस लेने व छोड़ने के दौरान विसलिंग या घरघराहट की आवाज आना

सांस लेने में तकलीफ

– छाती में कसाव का एहसास होने के साथ असहज महसूस होना

बच्चों में अस्थमा के कारण होने वाली तकलीफ

सांस लेने के दौरान सीटी या घरघराहट की आवाज आने के साथ कफिंग के कारण सोने में परेशानी

सर्दियों के दिनों में या फिर फ्लू के कारण कफिंग की समस्या

–  रेस्पिरेटरी इंफेक्शन के कारण ब्रोंकाइटिस की बीमारी का सामान्य की तुलना में देर से ठीक होना

– थकान के कारण अच्छे से नींद पूरी न होना

बता दें कि बच्चों में अस्थमा की बीमारी अलग अलग केस में अलग अलग लक्षण दिखाई देते हैं। कई मामलों में यह घातक तो कई मामलों में सामान्य देखने को मिल सकते हैं। वहीं इस बीच एक्सपर्ट को यह पता कर पाना काफी मुश्किल हो जाता है कि बच्चों में अस्थमा के लक्षण हैं। समय समय पर या फिर लंबे समय तक घरघराहट की समस्या या फिर अस्थमा के अन्य लक्षण इंफेक्शियस ब्रोंकाइटिस (Infectious bronchitis) या फिर दूसरे रेस्पिरेटरी समस्या के कारण हो सकते हैं।

इन स्थितियों में अस्थमा रहता है कंट्रोल में

  • यदि अस्थमा से जुड़े लक्षण दो सप्ताह से ज्यादा समय तक नहीं रहते हैं वहीं यदि महीने में आपको एक या दो रात भी सोने में परेशानी नहीं आती है तब मानें की अस्थमा के लक्षण कंट्रोल में हैं।
  • सामान्य बच्चों की तुलना में आप वो तमाम एक्टिविटी सुचारू रूप से कर पा रहे हैं।
  • एक साल तक आपको किसी भी प्रकार का अस्थमा का अटैक न आया हो, जिसके कारण आपकी दवा पर निर्भरता बढ़ी हो।
  • वहीं आप कितने बेहतर तरीके से सांस ले पा रहे हैं, आपके लंग्स तक 80 फीसदी हवा पहुंच रही है या नहीं।
  • सप्ताह में कम से कम दो दिन आपको अस्थमा में तुरंत राहत दिलाने वाली दवा का सेवन नहीं करना पड़ता।

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आखिर कब लेनी चाहिए डॉक्टरी सलाह

सोने के दौरान यदि आपके बच्चों में अस्थमा के लक्षण दिखे तो आपको डॉक्टरी सलाह लेनी चाहिए। शुरुआती दौर में इलाज शुरू कर दिया जाए तो उस कारण न केवल बीमारी के लक्षणों को कम किया जा सकता है बल्कि अस्थमा के अटैक से भी बचा जा सकता है।

बच्चों में इस प्रकार के लक्षण दिखें तो लें डॉक्टरी सलाह :

– शारिरिक या आंतरिक गतिविधि के कारण लगातार कफिंग की समस्या होने से

– सांस लेने या छोड़ने के दौरान सीटी या घरघराहट की आवाज आने पर

– लगातार और असामान्य सांस लेना और रोक रोक कर सांस लेना

– बच्चे की ओर से छाती में तनाव की शिकायत करने की स्थिति में

ब्रोंकाइटिस या नियोमोनिया के बार-बार लक्षण दिखने की स्थिति में

यदि आपके बच्चे को अस्थमा की बीमारी है तो उस स्थिति में वो यह कह सकता है कि उसकी छाती में हमेशा भरा भरा रहता है। कफिंग के कारण बार बार नींद से उठ जाना, कफिंग और घरघराहट के कारण रोना, चिल्लाना और इमोशनल रिएक्शन के साथ तनाव में रहना हो सकता है। यदि आपका बच्चा अस्थमा की बीमारी से ग्रसित हो जाता है और उसका पता चल जाए तो उस स्थिति में पेरेंट्स की जिम्मेदारी और बढ़ जाती है। बच्चों के लिए आप अस्थमा प्लान तैयार कर सकते हैं ताकि उसे कम से कम तकलीफ हो।

सही तरह से बीमारी को न पकड़ पाने की स्थिति में

बच्चों में अस्थमा की बात करें तो कई बार एकस्पर्ट भी इसे नहीं पकड़ पाते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि यह डिस्फंक्शनल ब्रिदिंग से जुड़ा है (जिसे हाइपरवेंटिलेशन और वोकल कॉर्ड डिस्फंक्शन, वीसीडी) भी कहा जाता है। वहीं सही प्रकार के सांस न ले पाने के कारण एक्सपर्ट इसे ट्रैकियल मलेसिया- tracheal malacia, वैस्कुलर रिंग मान बैठते हैं। इतना ही नहीं कई एक्सपर्ट इसे कार्डिएक एनोमेलिस-cardiac anomalies, इम्युन डेफिशिएंशी, प्राइमरी सिलैरी डिस्नेसिया-primary cilliairy dyskinesia, सिस्टिक फाइब्रोसिस-cystic fibrosis, ब्रोंककाइटिस, ऑबिटरवेटिव ब्रोंकाइटिस, इनहेल्ड फॉरन बॉडी, एलर्जिक रेनिटिस और गेस्ट्रोफेगल रिफ्लक्स की बीमारी मान बैठते हैं।

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कब पड़ सकती है इमरजेंसी ट्रीटमेंट की जरूरत

बच्चों में अस्थमा होने की वजह से यदि आपके बच्चे की छाती बार बार अंदर की तरफ असामान्य रूप से जाए या फिर उसे सांस लेने में तकलीफ हो, वहीं असामान्य रूप से बच्चे का हार्ट बीट अचानक बढ़ जाए, उसे पसीना हो, चेस्ट पेन हो,  तो आपको इमरजेंसी ट्रीटमेंट की जरूरत पड़ सकती है। ऐसे लक्षणों को कतई इग्नोर नहीं करना चाहिए।

– बोलते बोलते वाक्य को पूरा कर पाने के बीच में ही सांस लेने की आदत

– सांस लेने में परेशानी होना, सामान्य लोगों की तुलना में काफी मशक्कत करना

– सांस लेने के दौरान नाक का सिकुड़ना

–  सांस लेने के दौरान पेट का अंदर जाना व छाती की हडि्डयां (Ribs) का साफ तौर पर दिखना

ऐसे लक्षण दिखने पर सतर्क हो जाना चाहिए। वहीं यदि बच्चों में अस्थमा के लक्षण न दिखने की स्थिति में भी यदि उसे सांस लेने व छोड़ने में परेशानी हो तो तुरंत इमरजेंसी ट्रीटमेंट करवानी चाहिए। अस्थमा के तीव्रता से जुड़े अटैक की बात करें तो अस्थमा अटैक कफिंग से स्टार्ट होता है और आगे चलकर छींकने या फिर सांस लेने में तकलीफ में तब्दील हो सकता है। जरूरी है कि किसी भी बच्चों में अस्थमा के लक्षण दिखाई देने पर डॉक्टरी सलाह लेनी चाहिए।

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इन कारणों से हो सकती है बच्चों में अस्थमा की बीमारी

साइंस के इतना विकसित होने के बावजूद अभी तक बीमारी के कारणों का सही सही पता नहीं चल सका है। माना जाता है कि इन कारणों से यह बीमारी हो सकती है, जैसे :

– अनुवांशिक कारणों से एलर्जी का होना

– पेरेंट्स में अस्थमा की बीमारी होने के कारण

– युवावस्था में कुछ प्रकार के एयर इंफेक्शन के कारण

– इनवायरमेंटल फैक्टर जैसे सिगरेट स्मोकिंग या फिर एयर पॉलुशन के कारण

वैसे लोग जिनका इम्युनिटी सिस्टम ठीक होता है, उनको इस प्रकार के कारकों के कारण उनका लंग्स सामान्य की तुलना में ज्यादा फूलता है। इसके कारण इन लोगों में देरी से लक्षण दिखाई देते हैं। ऐसे में बीमारी का पता कर पाना और भी मुश्किल हो जाता है। बता दें कि हर बच्चे में अलग अलग लक्षण देखने को मिलते हैं।  जैसे :

– वायरल इंफेक्शन जैसे कॉमन कोल्ड

– एयर पॉलुशन या फिर तंबाकू का सेवन करने के कारण

– धूलकण, पालतू जानवर, पोलेन आदि के कारण एलर्जी होने से

– फिजिकल एक्टीविटी

– मौसम के बदलने या फिर ठंड हवा के चलने के कारण

– कई मामलों में अस्थमा की बीमारी बिना किसी लक्षण के भी हो जाती है

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बच्चों में अस्थमा के होने के रिस्क फैक्टर

– पेसिव स्मोकिंग के कारण, धूम्रपान के संपर्क में आने की वजह से, शिशु जब मां के पेट में हो उस समय से है खतरा

– पूर्व में हुए एलर्जिक रिएक्शन के कारण, जैसे स्किन रिएक्शन, फूड एलर्जी या फिर हे फीवर (एलर्जिक रिनीटिस-Allergic rhinitis) के कारण

– परिवार में किसी एलर्जी या फिर अस्थमा की बीमारी होने के कारण

– हाई पॉपुलेशन वाले इलाके में रहने की वजह से

– ओबेसिटी के कारण

– रेस्पिरेटरी कंडीशन की वजह से जैसे, नाक का बहना (रिनीटिस), साइनिसाइटस या फिर नियोमोनिया के कारण

– महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों को होती है ज्यादा बीमारी

अस्थमा के कारण इन प्रकार की बीमारी का है खतरा

– कुछ प्रकार के अस्थमा अटैक की वजह से इमरजेंसी ट्रीटमेंट या फिर हॉस्पिटल में जाने की जरूरत पड़ सकती है

– पूरी तरह लंग्स का काम न कर पाना

– बीमारी के कारण आम बच्चों की तरह स्कूल न जा पाना

– अच्छी नींद न आना, थका-थका महसूस करना

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बच्चों में अस्थमा की बीमारी का इस प्रकार करें बचाव

अस्थमा न हो इसलिए बाहरी संपर्क करें कम: बच्चे को एलर्जी या फिर इरीटेशन के साथ दूसरी बीमारी से बचाने के लिए जितना संभव हो बाहरी संपर्क कम करें।

बच्चे के आसपास स्मोकिंग न करें : बच्चा यदि छोटा है तो या मां के गर्भ में है तो उस स्थिति में उसके आसपास स्मोकिंग करना उसकी सेहत के लिए घातक हो सकता है। वहीं अस्थमा अटैक की संभावनाएं बढ़ सकती है।

बच्चे को एक्टिव होने के लिए करें प्रोत्साहित : आप चाहते हैं कि बच्चे का अस्थमा लंबे समय तक कंट्रोल रहे इसके लिए जरूरी है कि बच्चे की फिजिकल एक्टिविटी पर जोर दें, उसे आउटडोर गेम्स खेलने के लिए प्रोत्साहित करें। ऐसा करने से वो इनहेलर से छुटकारा पा सकता है।

जरूरत पड़ने पर लें डॉक्टरी सलाह : बच्चे की सेहत पर हमेशा नजर बनाए रखे, अस्थमा से संबंधित किसी प्रकार के लक्षण को इग्नोर न करें। वहीं जरूरत पड़ने पर इनहेलर पर जोर दें। समय के साथ अस्थमा की बीमारी में परिवर्तन देखने को मिलता है। समय समय पर डॉक्टरी सलाह लेते रहने से बीमारी के इलाज में सहुलियत होती है। वहीं लक्षणों को कंट्रोल रखा जा सकता है।

बच्चे का उम्र के हिसाब से हो वजन : मोटापे के कारण अस्थमा की बीमारी बद से बदतर हो सकती है। वहीं यह आपके बच्चे को कई अन्य बीमारी होने की संभावनाएं बढ़ जाती है।

हार्ट बर्न को रखें कंट्रोल : एसिड की वजह से  बच्चों में हार्टबर्न की समस्या (गेस्ट्रोफेगल रिफलक्स डिजीज व जीईआरडी) हो सकती है। ऐसे में इस लक्षण को रोकने के लिए दवाओं का सेवन करना पड़ सकता है।

इस विषय पर अधिक जानकारी के लिए डाक्टरी सलाह लें। हैलो हेल्थ ग्रुप चिकित्सा सलाह, निदान या उपचार प्रदान नहीं करता है।

डिस्क्लेमर

हैलो हेल्थ ग्रुप हेल्थ सलाह, निदान और इलाज इत्यादि सेवाएं नहीं देता।

Childhood asthma/ https://www.mayoclinic.org/diseases-conditions/childhood-asthma/symptoms-causes/syc-20351507/ Accessed 11 May 2020

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Childhood Asthma: Diagnosis and Treatment/ https://www.ncbi.nlm.nih.gov/pmc/articles/PMC3820621/ Accessed 11 May 2020

Current Version

21/07/2020

Satish singh द्वारा लिखित

के द्वारा मेडिकली रिव्यूड डॉ. प्रणाली पाटील

Updated by: Nikhil deore


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डॉ. प्रणाली पाटील

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Satish singh द्वारा लिखित · अपडेटेड 21/07/2020

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