कम हो जाता है फेफड़ों का दबाव
छाती के फूलने से हवा के लिए पर्याप्त जगह बन जाती है। इसके साथ ही फेफड़ों में लो प्रेशर हो जाता है। हवा का सिद्धांत है कि वह हाई प्रेशर से लो प्रेशर की ओर बहती है। शरीर से बाहर यानी हमारे आसपास की हवा हाई प्रेशर की ही होती है। इसकी वजह से यह नाक के जरिए लो प्रेशर जोन यानी हमारे फेफड़ों की ओर आसानी से पहुंच जाती है। निश्चित है सांस के बारे में आपने यह बातें पहले कभी नहीं सुनी होंगी।
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ऐसे बाहर जाती है सांस
जब हम रिलेक्स होते हैं या सांस छोड़ने को होते हैं तब डाइफ्रम और उससे जुड़े मसल्स ढीले पड़ जाते हैं। इनके ढीले पड़ते ही फेफड़ों में कैद हवा बाहर जाने के लिए बाध्य हो जाती है। इसी तरह से कार्बन डाइऑक्साइड शरीर से बाहर निकलती है और सांस लेने की प्रक्रिया पूरी हो जाती है।
सांस ऐसे होती है कंट्रोल
दिमाग में सांस संबंधी फंक्शन पहले से ही सेट है। यह फंक्शन शरीर के श्वास तंत्र को संदेश देता है कि उसे कब सांस लेनी है और कब छोड़नी है। हमें इसके लिए बार-बार सोचने की जरूरत नहीं पड़ती। हालांकि, हम स्थिति अनुसार श्वास पर नियंत्रण कर सकते हैं, जो हमारे लिए किसी वरदान से कम नहीं है।