के द्वारा मेडिकली रिव्यूड डॉ. प्रणाली पाटील · फार्मेसी · Hello Swasthya
बीसीजी वैक्सीन टीबी जैसी घातक बीमारी के प्रति रोग प्रतिरोधक क्षमता प्रदान करती है । ये वैक्सीन खासकर उन लोगों को दी जाती है जिन्हें टीबी होने का ज्यादा खतरा रहता है। इसके अलावा ये वैक्सीरन ब्लाडर का ट्यूमर या उसके कैंसर के रोकथाम के लिए भी दी जाती है।
इसके अलावा भी कई रोगों के लिए ये वैक्सीन दी जाती है। अधिक जानकारी के लिए अपने डॉक्टर से संपर्क अवश्य करें।
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बीसीजी का टीका मुख्य रूप से टीबी से बचाव के लिए लगाया जाता है। यह उन शिशुओं को दिया जाता है जिनको टीबी होने की संभावनाएं ज्यादा रहती हैं। इसके साथ ही जिन देशों में टीबी और कुष्ठ रोग आम समस्या होती है, उन देशों में शिशु के जन्म के समय ही बीसीजी का टीका लगाने की सलाह दी जाती है। इतना ही नहीं बीसीजी बुरूली अल्सर (Buruli ulcer) इंफेक्शन और अन्य नॉन ट्यूबरकुलोस माईकोबैक्टीरिया (nontuberculous mycobateria) संक्रमण से भी सुरक्षा प्रदान करता है। बीसीजी के टीके से व्यक्ति को टीबी के संक्रमण से करीब बीस सालों तक बचाव होता है।
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बीसीजी का टीका छह साल से कम आयु के बच्चों को लगाया जाता है। यदि शिशु या बच्चा तीन महीनों के लिए किसी ऐसे देश में जाने वाला हो, जहां पर ट्यूबरकुलोसिस के मामले 0.04 प्रतिशत तक होते हैं। ट्यूबरकुलोसिस संक्रमित देशों में बार-बार जाना। यदि घर का कोई सदस्य ट्यूबरकुलोसिस के अधिक मामलों वाले देश से आए, तो ऐसे में नवजात शिशु को बीसीजी वैक्सीन की आवश्यकता होती है।
शिशु के जन्म के कुछ दिनों बाद से छह माह तक बीसीजी का टीका लगाए जाने का सही समय माना जाता है। लेकिन, बच्चे के पांच साल के होने तक भी आप उसको बीसीजी का टीका लगवा सकते हैं। यदि आपका शिशु छह माह से ज्यादा आयु का हो गया हो, तो ऐसे में आप शिशु में टीबी की जांच करवा सकते हैं। टेस्ट की रिपोर्ट के आधार पर इस बात को निर्धारित किया जाता है कि शिशु को बीसीजी वैक्सीन दी जाएगी या नहीं।
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आपका डॉक्टर तय करेगा कि आपको इस वैक्सीन की जरूरत है या नहीं। जब टीबी के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है, तो इसका इंजेक्शन चमड़ी में लगाया जाता है। इसके बाद इंजेक्शन लगाए गए हिस्से को करीब 24 घंटे तक सूखा रखना होता है। इस हिस्से का साफ भी रखना होता है जिससे पता चल सके कि इंजेक्शन कहां लगाया गया है।
यह वैक्सीन एक बार ही दी जाती है लेकिन अगर इसका सटीक असर ना हो तो अगले दो-तीन महीने में इसे फिर दिया जा सकता है। इसका असर स्किन टीबी टेस्ट से पता किया जाता है।
बीसीजी वैक्सीन को माईकोबैक्टीरियम बोविस (Mycobacterium bovis) के सबसे कमजोर बैक्टीरिया से तैयार किया जाता है। यह बैक्टीरिया टीबी के मुख्य कारण माने जाने वाले बैक्टीरिया एम. ट्यूबरकुलोसिस (M. tuberculosis) से संबंधित होता है। यह दवा 13 सालों (1908 से 1921 तक) में तैयार की गई थी। इसको फ्रांस के बैक्टीरियोलोजिस्ट (Bacteriologist) एडबर्ट कैलमिटी और कैमिली ग्युरिन ने तैयार किया था। इन दोनों ही बैक्टीरियोलोजिस्ट के नाम के कारण इस वैक्सीन को बेसिल कालमेट ग्युरिन (Bacillus calmette-guerin) नाम दिया गया। यह टीका टीबी के उच्च जोखिम वाले शिशुओं को जन्म के तुरंत बाद दिया जाता है। बीसीजी वैक्सीन टीबी से बचाव के लिए शिशुओं की रोग प्रतिरोधक क्षमता को तैयार करती है।
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बीसीजी वैक्सीन को प्रमुख रूप से फ्रिज में रखा जाता है। ऐसा इसलिए किया जाता है जिससे यह खराब ना हो, पर इस बात का ध्यान रखना आवश्यक है कि वैक्सीन जम ना जाए। हालांकि, इस वैक्सीन के कुछ अन्य प्रकारों को अलग ढंग से रखा जाता है। हर वैक्सीन पर उसे रखने के निर्देश दिए जाते हैं।
बीसीजी वैक्सीन के ये साइड इफेक्ट हो सकते हैं-
अगर आपको निम्न साइड इफेक्ट दिखाई दें, तो तत्काल डॉक्टर की मदद लें। जैसे-
अगर आप वैक्सीन का डोज लेना भूल जाएं तो बिना देर किए वो डोज लें। हालांकि, डोज भूलने के बाद आपके दूसरे डोज का वक्त आ गया है, तो शेड्यूल के हिसाब से ही वैक्सीन लें। डबल डोज लेने से बचें।
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