हमारे शरीर में दो किडनी होती हैं, जो कि कई शारीरिक क्रियाओं के लिए महत्वपूर्ण होती हैं। राजमा की शेप के जैसा यह ऑर्गन आकार में एक मुट्ठी बराबर होता है। किडनी पसलियों के नीचे और स्पाइन के दोनों तरफ स्थित होती हैं। किडनी को आम बोलचाल की भाषा में गुर्दा भी कहा जाता है, जो कि शरीर से वेस्ट मटेरियल को बाहर निकालने में मदद करती है। लेकिन, किडनी रोग (Kidney Diseases) के कारण इसकी कार्यक्षमता कम होती चली जाती है और शरीर में वेस्ट मटेरियल जमता चला जाता है, जो किसी गंभीर बीमारी का कारण बनता है। हम इस आर्टिकल में किडनी रोग के लक्षणों के बारे में विस्तार से बात करेंगे।
किडनी रोग को ऐसे समझें (गुर्दे का रोग)
हमारी किडनी हर मिनट करीब आधा कप खून को फिल्टर करके शरीर से अतिरिक्त फ्लूड और वेस्ट मटेरियल पेशाब के रास्ते बाहर निकालती है। पेशाब आपकी दोनों किडनी से यूरेटर के द्वारा ब्लैडर में पहुंचकर संग्रहित होता है। किडनी, यूरेटर, ब्लैडर और यूरेथ्रा मिलकर यूरिनरी ट्रैक्ट सिस्टम बनता है। इसके अलावा, किडनी शरीर में पानी और अन्य मिनरल के संतुलन का भी कार्य करती है और रेड ब्ल़ड सेल्स के उत्पादन में भी मदद करती है। हमारी हड्डियों की मजबूती के लिए विटामिन डी की जरूरत होती है। लेकिन, विटामिन-डी का मेटाबॉलिज्म करके उसे हड्डियों द्वारा अवशोषित करने के लिए उपयुक्त बनाती है। दूसरी तरफ, किडनी शरीर के ब्लड प्रेशर को संयमित रखने में भी मदद करती है।
और पढ़ें: पब्लिक टॉयलेट यूज करने पर होने वाली योनि इंफेक्शन से कैसे बचें?
किडनी रोग कितने प्रकार के हो सकते हैं? (Types of Kidney Diseases)
किडनी रोग की वजह से इनकी कार्यक्षमता प्रभावित होने लगती है। इससे शरीर में कई बीमारियां होना शुरू हो जाती हैं। इसके साथ ही, किडनी रोग के लक्षण उसके प्रकार पर निर्भर करते हैं, जिसमें अलग-अलग तरह से प्रतिक्रिया मिलती है। किडनी रोग के प्रकार जानने से पहले हम किडनी के हिस्सों के बारे में बात कर लेते हैं।
किडनी के पार्ट्स
किडनी का सबसे मुख्य हिस्सा नेफ्रॉन (Nephron) होता है, जिनकी संख्या प्रत्येक किडनी में करीब 10 लाख के करीब होती है। इनमें रक्त जाने के बाद उसको फिल्टर करके मिनरल और वेस्ट मटेरियल अलग-अलग किया जाता है। नेफ्रॉन के तीन मुख्य हिस्से होते हैं, जिनमें रीनल कॉर्पसकल (Renal Corpuscle) और रीनल ट्यूबल्स (Renal Tubules) शामिल होते हैं। नेफ्रॉन के अलाव, किडनी में रीनल कॉर्टेक्स (Renal Cortex) होता है, जो कि किडनी का बाहरी हिस्सा होता है और अंदरुनी हिस्से को सुरक्षा प्रदान करता है। किडनी के अन्य हिस्सों में रीनल मेडुला (Renal Medulla), रीनल पेल्विस होता है।
किडनी रोग के प्रकार
किडनी रोग- यूरिनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन (Urinary Tract Infection)
जैसा कि हम ऊपर ही बता चुके हैं कि, यूरिनरी सिस्टम में किडनी, यूरेटर और ब्लैडर शामिल होता है। इन्हीं में से किसी अंग में बैक्टीरियल संक्रमण होने की समस्या को यूरिनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन कहा जाता है। इन बीमारियों का इलाज आसानी से किया जा सकता है और इनके फैलने की आशंका बहुत कम ही होती है। लेकिन, अगर इनका इलाज नहीं किया गया, तो यह इंफेक्शन फैलकर किडनी फैलियर भी कर सकते हैं।
और पढ़ें: यूरिनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन का इलाज कैसे करें? जानिए इससे जुड़ी सावधानियां
किडनी रोग- पथरी (Kidney Stones)
किडनी रोग में पथरी होना आजकल आम हो चला है। जब खून में मौजूद मिनरल और अन्य तत्व सही तरीके से अवशोषित नहीं हो पाते और क्रिस्टल के रूप में जमा होने लगते हैं, तो किडनी में पथरी की समस्या तब बनती है। किडनी स्टोन आमतौर पर पेशाब के द्वारा शरीर से बाहर निकल आते हैं। लेकिन, कई बार यह आकार में बड़े होने के कारण बहुत दर्द करते हैं और उचित इलाज मांगते हैं।
किडनी रोग- क्रोनिक किडनी डिजीज या क्रोनिक किडनी फेलियर
लंबे समय तक किडनी रोग चलते रहने पर क्रोनिक किडनी डिजीज विकसित होती है। यह किडनी रोग का सबसे आम प्रकार है, जो कि मुख्य रूप से हाई ब्लड प्रेशर से किडनी या उसके अन्य हिस्सों के खराब होने पर होता है। सामान्यः उच्च रक्तचाप से किडनी में मौजूद छोटी-छोटी रक्त वाहिकाओं पर दबाव पड़ता है, जिससे खून का फिल्टर होने का कार्य बाधित हो जाता है। इन रक्त वाहिकाओं को ग्लोमेरुलाय (Glomeruli) कहा जाता है। जब लंबे समय तक किडनी रोग का इलाज नहीं किया जाता, तो किडनी डैमेज हो जाती है। किडनी डैमेज होने पर सबसे पहला विकल्प डायलिसिस होता है, जिसके अंतर्गत शरीर में मौजूद वेस्ट मटेरियल को निकाला जाता है। हालांकि, डायलिसिस से किडनी रोग को सही नहीं किया जा सकता है। किडनी रोग की वजह से गुर्दा बिल्कुल खराब होने पर किडनी ट्रांसप्लांट की जरूरत पड़ सकती है।
डायबिटीज भी किडनी रोग को विकसित कर सकती है। क्योंकि डायबिटीज में शरीर का ब्लड शुगर बढ़ जाने पर ग्लोमेरुली रक्त वाहिकाओं पर प्रेशर पड़ता है और उनकी कार्यक्षमता कम हो जाती है।
और पढ़ें: Buchu: बुचु क्या है?
ग्लोमेरुलोनफ्रिटिस
इस समस्या में ग्लोमेरुलाय में सूजन आ जाती है। यह बीमारी संक्रमण, ड्रग्स या जन्मजात असामान्यताओं की वजह से होती है। हालांकि, आमतौर पर यह खुद ही सही हो जाती है।
पॉलीसिस्टिक किडनी डिजीज
यह समस्या एक जेनेटिक डिसऑर्डर होता है, जिसमें किडनी में कई सिस्ट का विकास हो जाता है। यह सिस्ट किडनी फंक्शन में रुकावट डालते हैं और किडनी फेलियर का कारण भी बन सकते हैं। यह एक गंभीर बीमारी है।
रीनल कैंसर (Renal Cancer)
रीनल कैंसर एक गंभीर बीमारी है, जिसमें किडनी में मौजूद कोशिकाओं का असामान्य रूप से विकास होने लगता है और ट्यूमर का निर्माण होता है। यह ट्यूमर शुरुआत में किडनी में मौजूद छोटी ट्यूबल्स में विकसित होता है और फिर धीरे-धीरे फैलने लगता है। इसका इलाज बहुत जरूरी होता है, वरना यह जानलेवा हो जाता है।
और पढ़ें: प्रेग्नेंसी में फ्रीक्वेंट यूरिनेशन क्यों होता है?
किडनी रोग होने पर किन किडनी रोग के लक्षण का सामना करना पड़ता है?
किडनी रोग के लक्षण उनके प्रकार पर निर्भर करते हैं। इसी कड़ी में आइए, हम इन लक्षणों के बारे में बात करते हैं। निम्नलिखित लक्षण किसी अन्य बीमारी के भी हो सकते हैं, लेकिन जब आपको नीचे बताए गए संकेतों में से एक या एक से ज्यादा दिखते हैं, तो अपने डॉक्टर से संपर्क करें। हालांकि, आपको बता दें कि किडनी रोगों के शुरुआत में इसके लक्षण दिखना मुश्किल है। आमतौर पर किडनी रोग के लक्षण दिखना मतलब इनका गंभीर रूप ले लेना होता है।
ठंड लगना
किडनी रोग होने पर शरीर में रेड ब्लड सेल्स का उत्पादन नकारात्मक रूप से प्रभावित हो जाता है। क्योंकि, किडनी ही शरीर को इसके निर्माण करने का संकेत देती है। रेड ब्लड सेल्स का उत्पादन कम होने पर खून की कमी हो जाती है, जिसे एनीमिया कहा जाता है। खून का सही प्रवाह शरीर को गर्म रखने का भी कार्य करता है। लेकिन, एनीमिया की शिकायत के कारण रक्त प्रवाह नहीं हो पाता और हमें ठंड लगने लगती है।
बेहोशी या चक्कर आना
एनीमिया की कमी के कारण शरीर में अपर्याप्त खून होने पर ही मस्तिष्क को उचित मात्रा में खून नहीं मिल पाता। इसका मतलब है कि दिमाग तक खून के साथ पहुंचने वाली ऑक्सीजन की मात्रा में भी कमी आती है। इसकी वजह से ही बेहोशी या चक्कर आने शुरू होते हैं।
हर समय थकावट होना
स्वस्थ किडनी एरिथ्रोपीटिन (Erythropoietin; EPO) नामक हॉर्मोन का उत्पादन करती है, जो कि शरीर को ऑक्सीजन युक्त रेड ब्लड सेल्स का उत्पादन करने का संकेत भेजता है। जब किडनी रोग हो जाता है या किडनी फेल हो जाती है, तो ईपीओ के स्तर में कमी आती है। जिस वजह से अपर्याप्त ऑक्सीजन युक्त रक्त होने पर मसल्स को थकान बहुत जल्दी-जल्दी महसूस होने लगती है।
सांस फूलना
सांस फूलने की बीमारी किडनी रोग के कारण होने वाली दो परेशानियों की वजह से हो सकती है। पहला कारण होता है कि, किडनी रोग होने की वजह से आपके शरीर में अतिरिक्त फ्लूड का संग्रहण होने लगता है, जो कि फेफड़ों में इकट्ठा होने लगता है। दूसरा कारण होता है कि, किडनी रोग होने से एनीमिया की शिकायत होने लगती है और शरीर में ऑक्सीजन युक्त रेड ब्लड सेल्स की कमी होने पर भी सांस फूलने लगती है।
याद्दाश्त और फोकस करने में दिक्कत
ऑक्सीजन युक्त खून की कमी होने पर अन्य शारीरिक अंगों की तरह दिमाग को भी पर्याप्त रक्त नहीं मिलता। जिस वजह से याद्दाश्त कमजोर होती है और ध्यान लगाने में दिक्कत होती है।
हाथ-पैरों में सूजन
जब किडनी रोग होता है, तो शरीर में अतिरिक्त फ्लूड एकत्रित होने लगता है। जो कि आपके किसी भी शारीरिक अंग में हो सकता है, जैसे- हाथ, पैर या दोनों में ही। अतिरिक्त फ्लूड जमने से पैर, टखने, तलवों या हाथ में सूजन आने लगती है।
चेहरे पर सूजन
शरीर में जम रहा यह अतिरिक्त फ्लूड आपके चेहरे की सूजन का कारण भी हो सकता है।
खुजली (Itching) होना
किडनी रोग की वजह से खून के फिल्टर होने की प्रक्रिया बाधित हो जाती है, जिससे खून से वेस्ट मटेरियल शरीर से बाहर नहीं निकल पाता। यही वेस्ट मटेरियल और हानिकारक तत्व शरीर में होने की वजह से त्वचा पर खुजली जैसी समस्या उत्पन्न करते हैं।
खाने का टेस्ट अजीब लगना
किडनी रोग की वजह से जब हमारे खून में वेस्ट मटेरियल जमा होने लगता है, तो इस स्थिति को यूरेमिया कहा जाता है। इसी समस्या की वजह से खाने का टेस्ट अलग लगने की समस्या होती है। इसके साथ ही आपको भूख लगने में कमी आ सकती है, जिसकी वजह से शरीर में पोषण न जाने की वजह से वजन भी घटने लगता है।
अमोनिया ब्रीद
जैसा कि हमने ऊपर बताया कि खून में यूरेमिया की समस्या होने पर खाने का टेस्ट अलग लगने लगता है। ठीक इसी की वजह से ही सांस में बदबू आने लगती है।
पेट खराब होना और अपच
शरीर में यूरेमिया की समस्या की वजह से पाचन क्रिया बिगड़ जाती है, जिससे खाना पच नहीं पाता। खाना न पचने की वजह से अपच की समस्या होने लगती है और पेट खराब हो जाता है।
पेशाब (Urine) ज्यादा आना
किडनी खून से वेस्ट मटेरियल निकालकर पेशाब का निर्माण करती है। लेकिन, जब आपको किडनी रोग हो जाते हैं, तो आपके पेशाब का रंग बदलने लगता है। जैसे- खून सही से फिल्टर न होने की वजह से जरूरी मिनरल पेशाब के रास्ते निकल सकते हैं, जिससे पेशाब का रंग पीला हो सकता है और आपको ज्यादा पेशाब आ सकता है। इसके अलावा, आपके पेशाब आने की प्रक्रिया में कमी भी आ सकती है।
पेशाब का रंग लाल, पर्पल या ब्राउन होना
किडनी खराब होने की वजह से न सिर्फ मिनरल, बल्कि खून भी आपके पेशाब के जरिए बाहर निकल सकता है। पेशाब में खून की मात्रा ज्यादा होने पर यह लाल हो सकता है या संक्रमण की वजह से पर्पल या ब्राउन भी हो सकता है।
पेशाब में झाग होना
किडनी रोग (Kidney Diseases) होने पर गुर्दे की कार्यक्षमता कमजोर हो जाती है, जिससे शरीर के लिए जरूरी प्रोटीन भी यूरिन में बाहर निकल आता है। पेशाब में प्रोटीन की मात्रा होने से उसमें झाग या बुलबुले पैदा हो सकते हैं।
यूरिन के दौरान प्रेशर
किडनी रोग (Kidney Diseases) होने की वजह से किडनी यूरिन का निर्माण करना बंद भी कर सकता है। जिससे, आपको यूरिन करते हुए प्रेशर महसूस हो सकता है।
किडनी रोग (Kidney Diseases) होने का खतरा किसे होता है?
किडनी रोग होने का खतरा कई फैक्टर पर निर्भर कर सकता है। आइए, जानते हैं कि स्थितियों में व्यक्ति को किडनी रोग होने का खतरा ज्यादा होता है।
- जिन व्यक्तियों की उम्र ज्यादा होती हैं।
- जिन लोगों का ब्लड प्रेशर हाई रहता है।
- अगर आपके फैमिली में किसी को पहले कभी किडनी रोग (Kidney Diseases) हुआ है।
- जिन व्यक्तियों को डायबिटीज होती है।
- भौगोलिक फैक्टर की वजह से खतरा बढ़ सकता है। जैसे- अफ्रीकी अमेरीकन लोगों को इस बीमारी के होने का खतरा ज्यादा होता है।
किडनी रोग की जांच कैसे होती है? (Diagnosis of Kidney Diseases)
जब तक आपका गुर्दा या किडनी रोग गंभीर नहीं हो जाते, तब तक शरीर में इसके लक्षण दिखने काफी मुश्किल हैं। लेकिन, लक्षणों के दिखने पर या आपको नियमित हेल्थ चेकअप में इन टेस्ट्स के जरिए किडनी रोग (Kidney Diseases) के बारे में जानकारी हो सकती है।
यूरिन टेस्ट (Urine Test)
यूरिन टेस्ट में किडनी रोग का पता लगाने के लिए आपके पेशाब में खून या प्रोटीन के स्तर की जांच की जाती है। अगर, आपके पेशाब में प्रोटीन या खून की मात्रा होती है, तो आपको किडनी रोग (Kidney Diseases) होने की आशंका हो सकती है।
ब्लड प्रेशर (Blood Pressure)
इस जांच के जरिए देखा जाता है कि, आपका दिल सही तरीके से ब्लड पंप कर रहा है या नहीं। इसके अलावा, दिल को ब्लड पंप करने के लिए कहीं ज्यादा मेहनत तो नहीं करनी पड़ रही। हाई ब्लड प्रेशर होने से किडनी रोग (Kidney Diseases) हो सकता है और ठीक इसी तरह किडनी रोग होने से भी हाई ब्लड प्रेशर की दिक्कत हो सकती है। अधिकतर लोगों के लिए उनका ब्लड प्रेशर 120/80 के आसपास होना चाहिए। हालांकि, आपका सामान्य ब्लड प्रेशर आपके लिंग, उम्र और अन्य कारकों पर भी निर्भर करता है। इसलिए, अपने लिए ब्लड प्रेशर के सामान्य स्तर के लिए डॉक्टर से बातचीत करें।
ईजीएफआर (एस्टीमेटिड ग्लोमेरुलर फिल्टरेशन रेट)
ईजीएफआर एक संकेत होता है, जो कि बताता है कि आपकी किडनी आपके खून को साफ कर पा रही है या नहीं। आपका शरीर हर समय वेस्ट मटेरियल का उत्पादन करता रहता है। क्रेटिनाइन भी एक तरह का वेस्ट मटेरियल है, जो कि किडनी उत्पादित करती है। अगर, आपके खून में क्रेटिनाइन का स्तर अधिक होता है, तो यह किडनी रोग का संकेत होता है।
किडनी रोग (Kidney Diseases) को दूर करने के लिए डायट और जीवनशैली संबंधी बदलाव
किडनी रोग से बचाव के लिए आपको अपनी डायट और जीवनशैली में कुछ जरूरी बदलाव भी करने होते हैं। जिससे, इसकी गंभीरता कम होने लगती है। आइए, इन बदलावों के बारे में जानते हैं।
- खाने में नमक की मात्रा कम करें।
- डायट में कोलेस्ट्रॉल युक्त खाद्य पदार्थों को कम करें।
- इंसुलिन इंजेक्शन के द्वारा डायबिटीज नियंत्रित करें।
- अपने खाने में ताजे फल, हरी सब्जियां, साबुत अनाज, लो-फैट डेयरी उत्पाद शामिल करें।
- वजन नियंत्रित करें।
- शराब का सेवन बंद करें।
- स्मोकिंग करना छोड़ दें।
- व्यायाम जैसी शारीरिक गतिविधि बढ़ाएं।
- पर्याप्त और साफ पानी पीएं।
- अपने ब्लड प्रेशर की नियमित जांच करवाते रहें और अगर आपको हाई ब्लड प्रेशर की शिकायत है, तो इसकी दवाई नियमित रूप से लेते रहें।
- अपनी डायट में अत्यधिक सोडियम युक्त पदार्थों को शामिल न करें।
- आहार में बीफ या चिकन जैसे एनिमल प्रोटीन को शामिल न करें।
- संतरे, नींबू या चकोतरे जैसे सिट्रिक एसिड वाले फलों का सेवन न करें।
- पालक, शकरकंदी, चॉकलेट आदि में ऑक्सलेट नामक कैमिकल पाया जाता है, जो कि किडनी रोग (Kidney Diseases) को बढ़ा सकता है। इसलिए इन चीजों का सेवन भी नियंत्रित करें।