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सोशल मीडिया का उपयोग
आज के समय में ज्यादातर कॉलेज स्टूडेंट्स सोशल मीडिया पर बहुत समय बिताते हैं। 2014 के एक अध्ययन में पाया गया कि कॉलेज के छात्र अपने सेलफोन पर प्रति दिन 8 से दस घंटे के बीच समय बिताते हैं। कई अध्ययनों में सामने आया है कि सोशल मीडिया का उपयोग आत्म-सम्मान में कमी, तनाव, चिंता और अवसाद को बढ़ाता है। हालांकि, यह स्पष्ट नहीं है कि तनाव, चिंता और अवसाद में वृद्धि के लिए सोशल मीडिया किस तरह से जिम्मेदार है? लेकिन कुछ एक्सपर्ट्स का सुझाव है कि दूसरों से खुद की तुलना करना या निरंतर स्क्रीन पर लगातार देखने के कारण नींद की समस्याएं हो सकती हैं। यह सब मिलकर मेंटल हेल्थ को बुरी तरह से प्रभावित कर सकते हैं।
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रिलेशनशिप में असफलता
कॉलेज स्टूडेंट्स में डिप्रेशन की बड़ी वजह रिलेशनशिप का फेल होना भी है। आंकड़ों पर गौर किया जाए तो ब्रेकअप के बाद के महीनों में 43 प्रतिशत छात्र अनिद्रा का अनुभव करते हैं। हालांकि समय रहते डिप्रेशन के लक्षणों को पहचानकर संज्ञानात्मक व्यवहार थेरेपी (Cognitive behavioral therapy) और इंटरपर्सनल थेरेपी से एक ब्रोकन हार्ट को ठीक किया जा सकता है।
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जरूरी है निदान और उपचार
अधिकांश युवाओं के लिए कॉलेज एक तनावपूर्ण वातावरण हो सकता है। इसलिए, माता-पिता, दोस्तों, फैकल्टी और काउंसलर के लिए यह विशेष रूप से महत्वपूर्ण है कि यदि कोई कॉलेज स्टूडेंट्स डिप्रेशन से पीड़ित है, तो उसकी हेल्प करें। अवसाद ग्रस्त स्टूडेंट दूसरों से सहायता मांगने में अक्सर हिचकिचाते हैं। इसलिए स्टूडेंट्स का मेंटल हेल्थ इवैल्यूएशन करना जरूरी है।
कॉलेज स्टूडेंट्स में डिप्रेशन का सबसे अच्छा उपचार आमतौर पर एंटी-डिप्रेसेंट्स मेडिसिन, कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी, इंटरपर्सनल मनोचिकित्सा जैसे-टॉक थेरेपी आदि है। इसके साथ ही नींद की कमी, खराब खानपान और पर्याप्त व्यायाम न करना कॉलेज के छात्रों में डिप्रेशन को बढ़ावा देते हैं। इसलिए उन्हें एक अच्छी लाइफस्टाइल के लिए प्रेरित करें और कॉलेज स्टूडेंट्स में बढ़ते डिप्रेशन के ग्राफ को नीचे लाने में हर कोई सहयोग करें।