आज हम बात कर रहे हैं इंसानी डिसेबिलिटी के प्रकार के बारे में। हमें सामान्य तौर पर इसकी जानकारी होनी चाहिए और इसी बात को ध्यान में रखते हुए आज का आर्टिकल डिसेबिलिटी के प्रकार पर आधारित है।
बहुत-सी डिसेबिलिटी ऐसी हैं, जो हमें जन्म से होती हैं लेकिन, उनके बारे में हमें देर से पता चलता है। मेडिकल साइंस में कुछ निश्चित प्रकार की डिसेबिलिटी को निर्धारित किया गया है, जिसके बारे में हम जानने की कोशिश करेंगे।
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बौद्धिक विकलांगता या मेंटल डिसेबिलिटी
एक ही उम्र के अन्य लोगों की तुलना में मानसिक विकास, सीखने में कठिनाई और कुछ दैनिक जीवन कार्यों में दिक्कत आना इस समस्या के संकेत है। दिखाई देने वाली स्थितियों में शामिल हैं: डाउन सिंड्रोम, ट्यूबरल स्केलेरोसिस, क्रि-डू-चैट सिंड्रोम। हमारे देश में मानसिक विकलांगता को लेकर कई सारे मिथक हैं। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि मानसिक विकालांगता कई तरह की होती है। किसी इंसान को मानसिक विकलांग तभी कह सकते हैं, जब उनकी सोचने-समझने यानि बौद्धिक क्षमता नॉर्मल इंसानों से कम हो। इसको ऐसे भी समझ सकते हैं कि यदि किसी इंसान का आईक्यू (IQ) लेवल 70 से कम हैं, तो उसे पूरी तरह से मानसिक विकलांगता की कैटेगरी में रख सकते हैं। आमतौर पर 18 साल की उम्र से पहले ही इंसान में मानसिक विकलांगता के लक्षण दिखने लगते हैं। कई मामलों मेंटल डिसेबिलिटी जन्म से भी हो सकती है।
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अटेंशन डेफिसिट डिसऑर्डर (ADD)
लर्निंग डिसेबिलिटी, जिसे केंद्रीय तंत्रिका तंत्र की शिथिलता के कारण माना जाता है। इस स्थिति में सुनना, बोलना, पढ़ना, लिखना, तर्क करना या मैथमेटिकल स्किल में समस्या आती है।
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मेंटल डिसेबिलिटी: ऑटिज्म
इस स्थिति में सामाजिक बातचीत और व्यवहार विशेष रूप से जुनूनी, रूढ़िबद्ध और कठोर व्यवहारों में गड़बड़ी दिखाई देती है। ऑटिज्म से जूझ रहे बच्चों को केवल मानसिक स्थिति के साथ-साथ कई सामाजिक परिस्थितियों का भी सामना करना पड़ता है। अक्सर देखा जाता है कि ऑटिस्टिक बच्चे और लोगों से कटे रहते हैं और अपनी ही धुन में रहते हैं।
इस परेशानी से ग्रसित बच्चों का आईक्यू कमजोर होने के कारण वे और लोगों की बातें ठीक से समझ नहीं पाते हैं। इसके अलावा इस बीमारी का असर बच्चों की पढ़ाई पर भी पड़ता है। लेकिन यह भी देखने को मिलता है कि ऑटिस्टिक बच्चे किसी एक विषय में काफी मजबूत होते हैं। कई मामलों में देखा जाता है कि ये बच्चे गणित या फिर कला में अच्छे होते हैं।
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भौतिक
शारीरिक विकलांगता में अक्सर न्यूरो मस्कुलोस्केलेटल सिस्टम की हानि शामिल होती है। उदाहरण के लिए, पैरापेलिया, क्वाड्रिप्लेगिया, मांसपेशियों की डिस्ट्रोफी, मोटर न्यूरॉन रोग, न्यूरोमस्कुलर विकार, मस्तिष्क पक्षाघात, अनुपस्थिति या अंगों की विकृति, स्पाइना बिफिडा, गठिया, पीठ के विकार के साथ स्कोलियोसिस आदि।
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मस्तिष्क की चोट के कारण डिसेबिलिटी
मस्तिष्क की चोट भी डिसेबिलिटी का एक मुख्य कारण हो सकती है। इसके कारण भी संज्ञानात्मक, शारीरिक, भावनात्मक या स्वतंत्र कामकाज में गिरावट देखने को मिलती है। मस्तिष्क मानवीय शरीर की चलने-बोलने से लेकर सांस लेने, दिल की धड़कनें जैसी लगभग सभी क्रियाओं को कंट्रोल करता है। इसके अलावा दिमाग हमारे विचारों और बोली को नियंत्रित करता है। ऐसे में दिमाग में चोट लगने से शरीर की क्रियाओं पर असर पड़ सकता है।
दिमागी चोट इंसान को मेंटल डिसेबिलिटी की समस्या तक हो सकती है। दिमागी चोट के कारण इंसान की चेतना में कम होना या खत्म होना, याददाश्त में कमजोरी आना, व्यक्तित्व में बदलाव और आंशिक या पूर्ण रूप से लकवे की भी समस्या हो सकती है।
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न्यूरोलॉजिकल (मिर्गी और अल्जाइमर रोग सहित)
ये स्थिति जन्म के बाद होने वाली तंत्रिका तंत्र की दुर्बलताओं को दर्शाती है, जिसमें मिर्गी और कार्बनिक मनोभ्रंश (उदाहरण के लिए, अल्जाइमर रोग) के साथ-साथ मल्टिपल स्केलेरोसिस और पार्किंसंस रोग जैसी परिस्थितियां शामिल हैं। मिर्गी को एपिलेप्सी के नाम से भी जाना जाता है। यह एक न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर है।
इस स्थिति से जूझ रहे इंसान के दिमाग में असामान्य तरंगे पैदा होने लगती है। इस कारण इंसान को बार-बार दौरे पड़ते हैं। इन दौरों के दौरान इंसान का मानसिक संतुलन बिगड़ जाता है और उसका पूरा शरीर लड़खड़ाने लगता है। साथ ही इसका असर शरीर के किसी एक हिस्से या फिर शरीर के कई हिस्सों पर एक साथ दिखा सकता है।
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डेफब्लिंड (दोहरी संवेदी)
ये स्थिति बहरापन और दिखाई न देने की स्थिति को दर्शाती है या दोनों में से किसी एक की समस्या को दिखाती है।
विजन
इसमें अंधापन और दृष्टि दोष शामिल हैं।
श्रवण
इसमें बहरापन, श्रवण दोष, श्रवण हानि शामिल है।
भाषण
इसमें भाषण समझने में कठिनाई शामिल है।
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मानसिक रोग भी है एक डिसेबिलिटी
मनोरोग विकलांगता में स्किजोफ्रेनिया, भावात्मक विकार, चिंता विकार, व्यसनी व्यवहार, व्यक्तित्व विकार, तनाव, मनोविकार, अवसाद और समायोजन विकार जैसी स्थितियों के विशिष्ट प्रभाव शामिल हैं। कई मामलों में देखने को मिलता है कि लोगों को समय-समय पर मानसिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। लेकिन, इन्हें लगातार लंबे समय तक अनदेखा करने से ये मानसिक बीमारियों का रूप ले लेती हैं।
साथ ही मानसिक बीमारियों के लक्षण अक्सर तनाव का भी कारण बन जाते हैं और साथ ही इंसान की किसी काम करने की क्षमता भी इसके कारण काफी कम हो जाती है। साथ ही मानसिक बीमारी के कारण इंसान दुखी रहने लग सकता है। इसके अलावा मेंटल डिसेबिलिटी के कारण उसे रोज के कार्य करने में भी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है।
डिसेबिलिटी, घबराने नहीं सजग और सर्तक होने की बात है। जरूरी बात ये है कि हम उन्हें समझें, जो ऐसी किसी डिसेबिलिटी से जुझ रहे हैं। हमारे समाज में इन डिसेबिलिटी को लेकर बहुत-सी कुंसित धारणाएं और कल्पनाएं विकसित हो गई हैं, जो हकीकत से कोसों दूर हैं।
हमें इन डिसेबिलिटी को समझ कर खुद को और पूरे समाज को जागरूक करना होगा। किसी भी बिमारी के बारे में सीमित ज्ञान अक्सर उसके इलाज का रास्ता नहीं ढूंढ पाता। अंत में जरूरी बात ये है कि हमें मानवता दिखानी होगी और उनकी सहायता के लिए आगे आना होगा, जो किसी न किसी डिसेबिलिटी से जुझ रहे हैं। हमें उन्हें समाज की मुख्यधारा में लाना होगा।