पुरुषों में दिखाई देने वाले लक्षण निम्न हैं।
- बॉडी पर बाल कम होना
- मसल्स लॉस
- असामान्य स्तनों का विकास
- पीनस और टेस्टिकल्स के विकास में कमी
- इरेक्टाइल डिसफंक्शन (erectile dysfunction)
- ऑस्टियोपोरोसिस (osteoporosis)
- सेक्स ड्राइव में कमी (Low sex drive)
- इनफर्टिलिटी (infertility)
- थकान (fatigue)
- हॉट फ्लैशेज
- ध्यान केन्द्रित करने में परेशानी
और पढ़ें: एस्ट्रोजन हार्मोन टेस्ट क्या होता है, क्यों पड़ती है इसकी जरूरत?
हायपोगोनाडिज्म का निदान कैसे किया जाता है? (how is hypogonadism diagnosed)
आपका डॉक्टर एक फिजिकल एग्जाम के जरिए यह कंफर्म करेगा कि उम्र के अनुसार आपका सेक्शुअल डेवलपमेंट हुआ है या नहीं। डॉक्टर मसल्स मास, बॉडी हेयर और सेक्शुअल ऑर्गन्स को भी एक्जामिन कर सकते हैं। इसके अलावा भी कुछ टेस्ट किए जा सकते हैं।
हॉर्मोन टेस्ट (Hormone test)

अगर डॉक्टर को लगता है कि हायपोगोनाडिज्म हो सकता है तो वे सबसे पहले सेक्स हॉर्मोन के लेवल को चेक करेंगे। आपको इसके लिए ब्लड टेस्ट करने की जरूरत होगी जिसमें फॉलिकल स्टिम्युलेटिंग हॉर्मोन (follicle-stimulating hormone) (FSH) और ल्यूटीनाइजिंग हॉर्मोन (luteinizing hormone) के लेवल को चेक किया जाएगा। हमारी पिट्यूटरी ग्लांड इन हॉर्मोन्स का निर्माण करती है।
महिलाओं में एस्ट्रोजन (estrogen level) के लेवल को चेक किया जाता है। वहीं पुरुषों में टेस्टोस्टेरोन का लेवल। ये टेस्ट सुबह के समय किए जाते हैं क्योंकि इस समय ये हॉर्मोन उच्च स्तर पर होते हैं। पुरुषों के लिए डॉक्टर सीमेन एनालिसिस के लिए भी कह सकते हैं क्योंकि हायपोगोनाडिज्म स्पर्म काउंट को कम कर सकता है।
इनके अलावा दूसरे कारणों का पता लगाने के लिए डॉक्टर कुछ ब्लड टेस्ट करने के लिए भी कह सकता है। आयरन लेवल भी सेक्स हॉर्मोन्स को प्रभावित करता है। इस कारण आयरन लेवल को टेस्ट किया जा सकता है। इसके अलावा प्रोलेक्टिन के लेवल की भी जांच की जा सकती है। यह मेल और फीमेल दोनों में प्रेजेंट होता है। थायरॉइड हॉर्मोन के लेवल की भी जांच करवाई जा सकती है। थायरॉइड की बीमारी हायपोगोनाडिज्म के समान लक्षण पैदा कर सकती है।
इमेजिंग टेस्ट्स (imaging tests)
डायग्नोसिस के लिए इमेजिंग टेस्ट भी मददगार हो सकते हैं। अल्ट्रासाउंड के द्वारा ओवरी में होने वाली किसी भी प्रॉब्लम जैसे कि ओवेरियन सिस्ट (ovarian cysts) और पॉलिसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (polycystic ovary syndrome) का पता लगाया जा सकता है। डॉक्टर एमआरआई या सीटी स्कैन के लिए भी कह सकते हैं। इससे पिट्यूटरी ग्रंथि में होने वाले ट्यूमर के बारे में पता चल जाएगा।