एंडोक्राइन फीडबैक सिस्सटम के फीडबैक से जुड़ी समस्या के कारण एंडोक्राइन डिसऑर्डर का होना किसी बीमारी के कारण ग्लैंड का सही प्रकार से हाॅर्मोन का रिसाव न कर पाने की स्थिति में एंडोक्राइन डिसऑर्डर का होना (उदाहरण के तौर पर हाइपोथैलेमस ग्लैंड में किसी प्रकार की समस्या होने की वजह से पिट्यूटरी ग्लैंड में हाॅर्मोन का प्रोडक्शन न हो पाना) जेनेटिक डिसऑर्डर, जैसे एंडोक्राइन नियोप्लेसिया (endocrine neoplasia) (पुरुषों में) और कंजेनाइटल हायपोथायरायडिज्म (congenital hypothyroidism) इंफेक्शन के कारण एंडोक्राइन ग्लैंड में इंज्युरी होने के कारण एंडोक्राइन ग्लैंड में ट्यूमर होने की वजह से ज्यादातर एंडोक्राइन ट्यूमर और नोड्यूल्स (nodules (lumps)) (लंप्स) नॉनकैंसरस होते हैं, यानि इससे कैंसर नहीं होता है। वहीं ये शरीर के अन्य हिस्सों में भी नहीं फैलते हैं। ऐसे में संभव है कि ग्लैंड में ट्यूमर या नोड्यूल्स ग्लैंड हाॅर्मोन के प्रोडक्शन को प्रभावित कर सकते हैं।
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कितने प्रकार के होते हैं एंडोक्राइन डिसऑर्डर (Endocrine disorder types)
मौजूदा समय में कई प्रकार के एंडोक्राइन डिसऑर्डर के बारे में पता किया जा चुका है। इनमें डायबिटीज सबसे सामान्य एंडोक्राइन डिसऑर्डर में से एक है। भारत में भी इस बीमारी से सबसे अधिक मरीज मिलते हैं।
अन्य एंडोक्राइन डिसऑर्डर (Other Endocrine disorder)
- पॉलिसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (पीसीओएस) : एंड्रोजेन्स जब सामान्य से अधिक मात्रा में बनते हैं तो उसके कारण अंडे का विकास और महिलाओं की ओवरी से उसके निकलने की प्रक्रिया को प्रभावित करता है। पीसीओएस इनफर्टिलिटी इसका सबसे बड़ा कारण है।
- प्रीकोशियस प्यूबर्टी (Precocious puberty) : समय से पहले जवां व्यक्ति तभी होता है जब हमारे ग्लैंड हमारे शरीर को समय से पहले हाॅर्मोन रिलीज करने के सिग्नल भेजते हैं।
- हाइपरथाइरॉयडिज्म : एंडोक्राइन डिसऑर्डर के तहत इस स्थिति में थायराइड ग्लैंड सामान्य से ज्यादा थायराइड हाॅर्मोन का रिसाव करते हैं, जिसके कारण ओवरएक्टिव थायराइड, जो कि एक ऑटो इम्युन डिसऑर्डर है, जिसे ग्रेव डिजीज कहते हैं।
- हायपोथायराॅइडिज्म : इस स्थिति में थायराइड ग्लैंड सामान्य से कम मात्रा में निकलता है, इस कारणथकान, कब्जियत, ड्राय स्किन, डिप्रेशन की समस्या होती है। इसके कारण बच्चों का विकास भी प्रभावित होता है। कुछ प्रकार के हायपोथायराइडिज्म जन्म के समय से ही बच्चों में मौजूद होते हैं।
- डायबिटीज (Diabetes) : शोध से पता चला है कि हाॅर्मोन इम्बैलेंस के कारण लोगों में डायबिटीज की संभावना होता है। शोध से यह भी पता चला है कि कम नींद लेने की वजह से लोगों में इंसुलिन रेजिस्टेंस की जरूरत होती है। यह डायबिटीज टाइप 2 होने का सबसे बड़ा कारण है। अव शोधकर्ताओं ने इसका बायोलॉजिकल कारण भी खोज निकाला है। पुरुषों में टेस्टोस्टेरोन और कार्टिसोल हाॅर्मोन के इम्बैलेंस के कारण भी यह बीमारी होती है।
- मल्टीपल एंडोक्राइन नियोप्लेसिया 1 और थर्ड : यह जेनेटिक बीमारी है। जो लोगों को उनके पूर्वजों से मिलती है। इसके कारण हमारे पाराथायराइड, एड्रेनल, थायराइड ग्लैंड में हाॅर्मोन ट्यूमर होने की वजह से हाॅर्मोन का सामान्य से ज्यादा प्रोडक्शन होता है। इस कारण लोगों को यह बीमारी होती है।
- एड्रेनल इंसफिशिएंसी (Adrenal insufficiency) : इस एंडोक्राइन डिसऑर्डर में हमारे एड्रेनल ग्लैंड सामान्य से काफी कम कोर्टिसोल हाॅर्मोन या एल्डोस्टेरोन (aldosterone) का रिसाव करते हैं। इसके कारण मरीज में कुछ प्रकार के लक्षण दिख सकते हैं जैसे थकान, पेट की परेशानी, डिहाइड्रेशन और स्किन में बदलाव। एडिसन डिजीज भी एड्रेनल इंसफिशिएंसी के कारण होने वाली बीमारी है।
- कुशिंग डिजीज : पिट्यूटरी ग्लैंड हाॅर्मोन का सामान्य से ज्यादा प्रोडक्शन होने की वजह से एड्रेनल ग्लैंड की अधिकता हो सकती है। यह काफी हद तक इस सिंड्रोम से मिलती जुलती समस्या है, जो लोगों में देखने को मिलती है। एंडोक्राइन डिसऑर्डर के कारण खासतौर पर बच्चों में यह बीमारी होती है, जो ज्यादा मात्रा में कोर्टिकोस्टेरॉयड दवाओं (corticosteroid medications) का सेवन करते हैं।
- गिगेन्टिज्म (एक्रोमिगेली) (Gigantism (acromegaly) और ग्रोथ हाॅर्मोन प्रॉब्लम : एंडोक्राइन डिसऑर्डर के तहत यह समस्या भी गंभीर समस्या में से एक है। इस स्थिति यदि पिट्यूटरी ग्लैंड यदि ज्यादा हाॅर्मोन का रिसाव करते हैं तो उस स्थिति में बच्चों की हडि्डयां और शरीर के अन्य पार्ट असामान्य रूप से विकसित होते हैं। ऐसे में सामान्य की तुलाना में ज्यादा हाइट बढ़ता है। यदि ग्रोथ हाॅर्मोन कम होता है तो ऐसे में शिशु की हाइट रुक जाती है, वो सामान्य की तरह नहीं बढ़ पाता। इसे बौनापन (DWARFISM) भी कहा जाता है।
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एंडोक्राइन डिसऑर्डर की ऐसे की जाती है टेस्टिंग (Endocrine disorder testing)
यदि आपको एंडोक्राइन डिसऑर्डर है तो आपके डॉक्टर आपको एंडोक्रोनोलॉजिस्ट स्पेशलिस्ट के पास भेज सकते हैं। एंडोक्राइन सिस्टम से जुड़ी समस्याओं को सुलझाने में एंडोक्रोनोलॉजिस्ट अहम भूमिका अदा करते हैं। एंडोक्राइन डिसऑर्डर के लक्षण इस बात पर निर्भर करता है कि समस्या किस ग्लैंड से जुड़ी हुई है। एंडोक्राइन डिसऑर्डर और डिजीज से ग्रसित व्यक्ति खासतौर पर थकान और कमजोरी की शिकायत करते हैं।
इस मामले में हमारे डॉक्टर हमें ब्लड और यूरीन टेस्ट का सुझाव दे सकते हैं। ताकि हमारे हाॅर्मोन लेवल की जांच कर यह पता कर सकें कि लोगों को एंडोक्राइन डिसऑर्डर है या नहीं। कई मामलों में इमेजिंग टेस्ट कर यह पता किया जाता है कि कहां पर नोड्यूल और ट्यूमर है।
समय-समय पर कराएं रूटीन चेकअप
वैसे तो कई एंडोक्राइन डिसऑर्डर के कुछ लक्षणों को छोड़कर बीमारी का पता नहीं किया जा सकता है, लेकिन यदि आपको शरीर में लंबे समय तक थकान और कमजोरी की समस्या हो तो आप डॉक्टरी सलाह लेनी चाहिए। संभावना रहती है कि डॉक्टर कुछ चेकअप करवाकर एंडोक्राइन डिसऑर्डर से जुड़ी बीमारी का पता कर सकते हैं। वहीं एंडोक्रोनोलॉजिस्ट एंडोक्राइन डिसऑर्डर का इलाज करते हैं।
एंडोक्राइन डिसऑर्डर से जुड़ी समस्या का इलाज करना थोड़ा जटिल होता है, संभावना रहती है कि एक हाॅर्मोन का लेवल बदलने के कारण शरीर का दूसरा हाॅर्मोन कहीं प्रभावित न हो जाए। आपका डॉक्टर आपको रूटीन ब्लड टेस्ट कराने की सलाह दे सकते हैं, ताकि हाॅर्मोन लेवल की जांच कर उसी के हिसाब से दवा देकर हाॅर्मोन को एडजस्ट किया जा सके।