जोड़ों में दर्द या हड्डियों से जुड़ी परेशानियों से हमसभी वाहकीफ हैं, क्योंकि प्रायः उम्र बढ़ने के साथ-साथ इन बीमारियों का दस्तक देना सामान्य माना जाता है। वैसे बढ़ती उम्र और हड्डियों से जुड़ी ये तकलीफ कम उम्र में भी आपको अपना शिकार बना लेती है। ऐसा हम इसलिए कह रहें हैं, क्योंकि नैशनल सेंट्रल फॉर बायोटेक्नोलॉजी इंफॉर्मेशन (NCBI) में पब्लिश्ड रिपोर्ट के अनुसार हड्डियों (Bone) से जुड़ी कुछ बीमारियां ऐसी भी हैं, जो अनुवांशिक (Genetical) कारणों से होती हैं और शिशु के जन्म के साथ ही अपना आशियाना ढूंढ़ लेती हैं। आज इस आर्टिकल में स्केलेटल डिस्प्लेसिया (Skeletal Dysplasia), जो हड्डी से जुड़ी जेनेटिकल प्रॉब्लम (Genetical problem) है, उसके बारे में समझने की कोशिश करेंगे।
- क्या है स्केलेटल डिस्प्लेसिया?
- स्केलेटल डिस्प्लेसिया के लक्षण क्या हैं?
- स्केलेटल डिस्प्लेसिया के कारण क्या हैं?
- स्केलेटल डिस्प्लेसिया का निदान कैसे किया जाता है?
- स्केलेटल डिस्प्लेसिया का इलाज कैसे किया जाता है?
- डॉक्टर से कंसल्टेशन कब करना है जरूरी?
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चलिए अब एक-एक कर स्केलेटल डिस्प्लेसिया (Skeletal Dysplasia) से जुड़े सवालों का जवाब जानते हैं।
क्या है स्केलेटल डिस्प्लेसिया (Skeletal Dysplasia)?
स्केलेटल डिस्प्लेसिया को बोन डिस्प्लेसिया (Bone dysplasia) के नाम से भी जाना जाता है। हड्डियों से जुड़ी यह बीमारी 10 हजार जन्म लेने वाले बच्चों में 2 प्रतिशत बच्चों में होने वाली अनुवांशिक बीमारी है। इसलिए स्केलेटल डिस्प्लेसिया (Skeletal Dysplasia) को दुर्लभ अनुवांशिक विकार माना जाता है। जिन बच्चों में बोन डिस्प्लेसिया की समस्या होती है, तो उन बच्चों का शारीरिक विकास ठीक तरह से नहीं हो पाता है। स्केलेटल डिस्प्लेसिया से प्रभावित बच्चों का सिर (Head), रीढ़ (Spine), पैर (Leg) या हाथों (Hand) की हड्डियों का आकार छोटा होता है। ऐसा भी माना जाता है कि शरीर के किसी अंग की लंबाई भी छोटी हो सकती है। ऐसी स्थिति में स्केलेटल डिस्प्लेसिया (Skeletal Dysplasia) के लक्षणों को समझना बेहद जरूरी हो जाता है।
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स्केलेटल डिस्प्लेसिया के लक्षण क्या हैं? (Symptoms of Skeletal Dysplasia)
स्केलेटल डिस्प्लेसिया या बोन डिस्प्लेसिया (Bone dysplasia) को निम्नलिखित शारीरिक लक्षणों के आधार पर समझा जा सकता है। जैसे:
- शारीरिक बनावट (Body structure) ठीक ना होना।
- हाथ या पैर छोटा होना।
- उंगलियों (Finger) की साइज नॉर्मल से छोटी होना।
- कम हाइट या बौना (Dwarf) होना।
- पसलियां एक तरह की ना होना।
- हड्डियों (Bone) का ठीक तरह से विकास ना होना।
- कार्टिलेज (Cartilage) से जुड़ी कोई परेशानी।
- रीढ़ (Spine) या पैरों की हड्डी (Leg bone) टेढ़ी विकसित होना।
- सांस लेने में परेशानी (Breathing problem) महसूस होना।
- ठीक से सुनाई ना देना।
इन लक्षणों को इग्नोर नहीं करना चाहिए, बल्कि डॉक्टर से जल्द से जल्द संपर्क करना चाहिए। चलिए अब स्केलेटल डिस्प्लेसिया (Skeletal Dysplasia) के कारणों को समझने की कोशिश करते हैं। किसी भी बीमारी या शारीरिक परेशानियों के कारणों को समझकर इससे बच्चा जा सकता है।
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स्केलेटल डिस्प्लेसिया के कारण क्या हैं? (Cause of Skeletal Dysplasia)
स्केलेटल डिस्प्लेसिया का मुख्य कारण अनुवांशिक ही माना जाता है। अगर माता या पिता या परिवार में कोई सदस्य इस समस्या से पीड़ित है, तो इसका खतरा आने वाली पीढ़ियों पर पड़ सकता है। स्केलेटल डिस्प्लेसिया का सबसे सामान्य प्रकार एकॉन्ड्रॉप्लासिया (Achondroplasia) होता है, जो जीन म्यूटेशन FGFR3 के कारण होता है। हालांकि कुछ केसेस ऐसे भी देखे गयें हैं, जिनमें परिवार में स्केलेटल डिस्प्लेसिया की समस्या ना हो और व्यक्ति स्केलेटल डिस्प्लेसिया (Skeletal Dysplasia) का शिकार हो। ऐसी स्थिति में इसके कुछ कारण इस प्रकार हैं। जैसे:
- अगर बच्चे का आर्म्स, पैर या लंग्स का विकास ठीक तरह से ना हो, तो ऐसी स्थिति में थैनाटोफोरिक डिस्प्लेसिया (Thanatophoric dysplasia) इसका कारण माना जाता है।
- अगर बच्चे के हाथ या पैर की उंगलियां छोटी-छोटी हों या कार्टिलेज हड्डियों में परिवर्तित ना हो, तो हाइपोकॉन्ड्रोप्लासिया (Hypochondroplasia) की वजह से ऐसा हो सकता है।
- कैंपोमेलिक डिसप्लेसिया (Campomelic dysplasia), जिसकी वजह से नवजात शिशु के हाथ या पैर की हड्डियों का आकार अलग होने लगता है।
- कुछ लोगों की हड्डियां आसानी से या हल्की चोट लगने पर भी टूट जाती हैं, ऐसी स्थिति दरअसल ऑस्टिओजेन्सिस इम्पेफिस्टा (Osteogenesis imperfecta) की वजह से हो सकती है।
- कुछ बच्चों के अंग ठीक तरह से विकसित नहीं हो पाते हैं, जिसका कारण एकेंड्रोजेनेसिस डिसऑर्डर (Achondrogenesis disorder) माना जाता है।
स्केलेटल डिस्प्लेसिया (Skeletal Dysplasia) के यही मुख्य कारण माने जाते हैं। हालांकि ऐसा नहीं है कि स्केलेटल डिस्प्लेसिया का इलाज नहीं किया जाता है। दरअसल डॉक्टर इस बीमारी को दूर करने के लिए डायग्नोसिस भी करते हैं।
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स्केलेटल डिस्प्लेसिया का निदान कैसे किया जाता है? (Diagnosis of Skeletal Dysplasia)
स्केलेटल डिस्प्लेसिया से पीड़ित व्यक्ति को निम्नलिखित टेस्ट करवाने की सलाह दी जाती है। जैसे:
- एक्स-रे (X-ray)
- एमआरआई (MRI)
- सीटी स्कैन (CT Scan)
इन स्कैनिंग टेस्ट की मदद से बॉडी के बोन के शेप और साइज को समझा जाता है और फिर इलाज पर विचार किया जाता है।
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स्केलेटल डिस्प्लेसिया का इलाज कैसे किया जाता है? (Treatment for Skeletal Dysplasia)
स्केलेटल डिस्प्लेसिया (Skeletal Dysplasia) के इलाज के लिए डॉक्टर सबसे पहले बच्चे को ग्रोथ हॉर्मोन (Growth Hormone) से जुड़ी दवाओं को प्रिस्क्राइब करते हैं। इस दौरान बच्चे के शारीरिक विकास के लिए इंजेक्शन भी दी जा सकती है। हालांकि इससे बच्चे का शारीरिक विकास नॉर्मल लोगों की तरह नहीं हो पाता है। कुछ खास परिस्थितियों में सर्जरी की मदद ली जा सकता है, जिससे शरीर में मौजूद वैसे बोन को हटाया जाता है, जिससे बच्चे को तकलीफ कम हो। हालांकि स्केलेटल डिस्प्लेसिया के दौरान की जाने वाली सर्जरी एक बार से ज्यादा भी किये जा सकते हैं।
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डॉक्टर से कंसल्टेशन कब करना है जरूरी?
स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार महिलाओं को प्रेग्नेंसी (Pregnancy) के दौरान बताये गए समय पर अल्ट्रासाउंड (Ultrasound) स्कैन करवाते रहना चाहिए। ऐसा करने से गर्भ में पल रहे शिशु के विकास की पूरी जानकारी ठीक तरह से मिलती रहती है। वहीं अगर शिशु के जन्म के बाद (After birth) उसका शारीरिक विकास ठीक तरह से नहीं होने की स्थिति में डॉक्टर से इस बारे में बात करें।
फिलाडेल्फिया के चिल्ड्रन हॉस्पिटल (Children’s Hospital of Philadelphia) द्वारा जारी किये गए रिसर्च के अनुसार स्केलेटल डिस्प्लेसिया (Skeletal Dysplasia) से पीड़ित बच्चों की मौत भी हो जाती है। वहीं जो बच्चे जीवत रहते हैं, उनमें कोई न कोई शारीरिक परेशानी जरूर रहती है। हालांकि कुछ बच्चे नॉर्मल लाइफ भी जी पाते हैं। अगर आपके परिवार में स्केलेटल डिस्प्लेसिया (Skeletal Dysplasia) से कोई पीड़ित रहा है, तो इसकी जानकारी प्रेग्नेंसी के दौरान डॉक्टर को जरूर दें। अगर आप स्केलेटल डिस्प्लेसिया (Skeletal Dysplasia) से जुड़े किसी तरह के कोई सवाल का जवाब जानना चाहते हैं, तो विशेषज्ञों से समझना बेहतर होगा।
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