कुछ सालों पहले की बात है। जब दांतों में सड़न होने पर उस दांत को निकाल दिया जाता था, लेकिन आज ऐसा नहीं है मेडिकल साइंस ने दंतविज्ञान के क्षेत्र में काफी तरक्की कर ली है। अब आपको बहुत गंभीर समस्या होने पर ही दांत को निकलवाने की जरूरत पड़ती है। अब खोखले दांतों को बचाना आसान हो गया है। रूट कैनाल ट्रीटमेंट (Root canal treatment) मूल दांतों को बचाने का तरीका है। दांतों की ऊपरी सतह यानी इनेमल पर सड़न हो तो उसे फिलिंग करके ठीक कर लिया जाता है, लेकिन जब सड़न जड़ (पल्प) तक पहुंच जाती है ये स्थिति दर्दनाक हो जाती है। ऐसे में दात दर्द से पीड़ित इंसान को बेतहासा दर्द होता है। ऐसे दांतों को अब रूट कैनाल ट्रीटमेंट (Root canal treatment) से बचा लिया जाता है।
ये विधि आजकल बहुत फेमस है और हजारों लोग रूट कैनाल (Root canal) प्रॉसेस की मदद से अपने खोखले दांताें को ठीक करवा पाए हैं। जबकि पहले इन्हें निकाल दिया जाता था। दांत निकालने का नुकसान यह होता था कि निकले हुए दांतों के खाली हो चुके स्थान पर आसपास के नकली दांत खिसकने लगते थे। इससे एक तो मुंह का शेप बिगड़ता था, दूसरा खाना चबाने में तकलीफ होती थी। इसका एक ही उपाय था नकली दांत लगाना। नकली दांत भी दो तरीके से लगाए जाते हैं। एक किस्म का नकली दांत निकल सकने वाला होता है, दूसरे किस्म के नकली दांत को फिक्स कर दिया जाता है।
प्रत्येक दांत में एक या एक से अधिक कैनाल होती है। हर कैनाल में पल्प मौजूद रहता है। पल्प के अंदर नाड़ियां, खून की नलिकाएं तथा जोड़ने वाले ऊतक होते हैं। सड़ने के कारण पल्प नष्ट हो जाता है जिससे असहनीय पीड़ा होती है।
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रूट कैनाल ट्रीटमेंट (Root canal treatment) क्या है?
सड़े हुए दांत के ऊपरी हिस्से यानी क्राउन से ड्रिल करके कैनाल को खोल लिया जाता है। इसके साथ पूरा पल्प निकाल लिया जाता है। इसके बाद पूरे कैनाल की हाइड्रोजन पैराक्साइड एवं सोडियम हायपोक्लोराइड से सफाई की जाती है। फिर गटापार्चा फिलर से इसे पूरी तरह भर दिया जाता है। इसके बाद सिल्वर फिलिंग या टूथ कलर फिलिंग से दांत को सील कर दिया जाता है। दांत को मजबूती प्रदान करने के लिए रूट कैनाल ट्रीटमेंट के बाद इस पर कैप अथवा क्राउन लगाना आवश्यक होता है। क्राउन नहीं लगाने पर दांत टूट सकता है।
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रूट कैनाल ट्रीटमेंट (Root canal treatment) में कितना समय लगता है?
प्रारंभिक अवस्था में इलाज कराने पर एक अथवा दो सिटिंग में ही दांत का इलाज पूरा किया जा सकता है। पहली सिटिंग में ट्रीटमेंट टाइम 30-40 मिनट तक हो सकता है। अगर मरीज की लापरवाही से वहां संक्रमण हो जाए तो 4 से 5 सिटिंग लग सकती हैं।
आधुनिक उपकरण
डेंटल साइंस के आधुनिक उपकरणों ने जहां मरीजों की पीड़ा को कम किया है वहीं दंत चिकित्सक का काम भी आसान कर दिया है। वायरलेस डिजिटल एक्स-रे (digital x-ray) के उपयोग से रूट कैनाल ट्रीटमेंट अधिक कुशलतापूर्वक और कम समय में किया जा सकता है। मरीज को लैपटॉप पर उसके दांत का एक्स-रे दिखाया जा सकता है। दांत का आकार भी इसमें बड़ा और स्पष्ट दिखाई देता है। इससे चिकित्सक का काम भी आसान हो जाता है।
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रूट कैनाल ट्रीटमेंट में दर्द कितना होता है?
इसमे दर्द ना के बराबर ही होता है क्योंकि रूट कैनाल के दौरान मरीज को पहले ही एंटीडोट और एनेस्थिसिया (Anaesthesia) दे दिया जाता है जिसके बाद कोई दर्द नहीं होता है। हालांकि, रूट कैनाल के बाद थोड़े बहुत दर्द की गुजाइंश रहती है जिसे दवा से कंट्रोल कर लिया जाता है।
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रूट कैनाल ट्रीटमेंट (Root canal treatment) प्रक्रिया
स्टेप-1
डॉक्टर दांत या आसपास के प्रभावित हिस्से को सुन्न करते हैं। इसके प्रभावी हो जाने के बाद, आपके मसूड़ों में एक एनेस्थेटिक (anesthetic) इंजेक्ट किया जाता है। इस दौरान आपको हल्का सा दर्द महसूस हो सकता है जो जल्द हो ठीक हो जाता है।
स्टेप-2
दांतों में मौजूद पल्प को हटाया जाता है। डॉक्टर फाइल्स (दांतों को साफ करने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला टूल) की मदद से दांत के सभी कैनल्स को साफ करेंगे। इससे दांतों में संक्रमण और खाद्य पदार्थ जमने का खतरा कम हो जाता है।
स्टेप-3
एक बार जब पल्प हटा दिया जाता है, तो डेंटिस्ट एंटीबायोटिक से उस जगह को कोट कर देता है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि संक्रमण पूरी तरह से खत्म हो गया है और दोबारा इंफेक्शन से बचाव हो सके। इसके बाद डॉक्टर एक सीलर पेस्ट से दांतों की फिलिंग कर देते हैं। डेंटिस्ट आपको ओरल एंटीबायोटिक्स भी लेने की सलाह दे सकते हैं।
स्टेप-4
अंत में इस दांत पर क्राउन (कैप) लगा दिया जाता है जो दांत या अन्य मेटल के रंग का भी हो सकता है। इसे फिलिंग मटेरियल से जोड़ दिया जाता है।
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रूट कैनाल ट्रीटमेंट के साइड इफेक्ट्स
रूट कैनाल ट्रीटमेंट के आमतौर पर कोई दुष्प्रभाव नहीं होते हैं। हालांकि, कुछ व्यक्तियों को कभी-कभी साइड इफेक्ट्स या कुछ परेशानियों का अनुभव हो सकता है। जैसे-
- आपको लंबे समय तक दांत में हल्के दर्द का अनुभव हो सकता है। यह आमतौर पर उन लोगों में होता है, जहां इंफेक्शन पहले से ही जबड़े की हड्डी में होता है।
- अगर कुछ संक्रमित सामग्री रूट कैनाल ट्रीटमेंट के दौरान दांतों में रह जाती है या यदि एंटीबायोटिक उस पर सही से काम नहीं कर पाता है तो दांत की जड़ों में छोटा-सा फोड़ा विकसित हो सकता है
- दांत की जड़ों में दरार भी आ सकती है।
उपचार के बाद दांतों की नियमित साफ-सफाई करें और समय-समय पर अपने डेंटिस्ट से दांतों की जांच करवाते रहे, इससे आपके दांत की लाइफ बढ़ाई जा सकती है।
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रूट कैनाल के बाद रिकवरी
रूट कैनाल ट्रीटमेंट के बाद आप कुछ हफ्तों के भीतर ठीक हो जाते हैं। रिकवरी इस बात पर भी निर्भर करती है कि शुरुआत में आपका इंफेक्शन कितना था। दांतों तक सीमित संक्रमण चार से छह सप्ताह के अंदर ठीक हो जाता है। हालांकि, अगर इंफेक्शन जबड़े की हड्डी में भी फैल गया हो, तो आमतौर पर इसे पूरी तरह से ठीक होने में कई महीनों तक का समय लग सकता है।
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रूट कैनाल का खर्च
रूट कैनाल की लागत हर हास्पिटल में अलग अलग हो सकती है लेकिन एक औसत लागत तीन से पांच हजार तक बैठती है।
चलिए तो अब आपको रूट कैनाल के बारे में पूरी जानकारी हो गई है। और सटीक जानकारी के लिए अपने नजदीकी डेंटिस्ट से सर्पक करें। दांतों की सफाई और देखभाल बेहद जरूरी है। सेहत और मुस्कान का राज हमारे चमकदार और स्वस्थ दांतों में छिपा है।
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