ओरल हेल्थ को लेकर अंग्रेजी में एक लाइन एकदम सटीक बैठती है ‘Oral cavity is the reflection of your systematic health’ यानि ओरल हेल्थ हमारे शरीर की संपूर्ण जानकारी देता है। इसलिए मुंह के कैंसर के प्रकार की जानकारी हासिल कर इससे बचा जा सकता है। ओमकारानंदा डेंटल केयर एंड रिसर्च बिष्टुपुर जमशेदपुर के माइक्रो एंडोडोंटिस्ट और एसपी डेंटल सर्जन डॉक्टर सौरव बनर्जी बताते हैं कि, ‘ओरल हेल्थ (Oral health) से ही शरीर की कई प्रकार की बीमारी की जानकारी हासिल की जा सकती है। डायबिटीज और कार्डियोलॉजी से संबंधी रोग की जानकारी भी इससे मिलती है।’
मुंह के कैंसर के प्रकार की बात करें तो भारतीय लोगों में पुरुषों को होने वाले कैंसर में ओरल कैंसर सबसे ज्यादा है, इसमें 80% ओरल कैंसर (Oral cancer) के मरीजों में कोई न कोई नशा होने की हिस्ट्री मिली है, जैसे खैनी, गुटका, सुपारी, स्मोकिंग इत्यादि। वहीं महिलाओं को होने वाले कैंसर में ब्रेस्ट कैंसर के केस काफी ज्यादा हैं। इसलिए जरूरी है कि हमें ओरल हेल्थ को लेकर न केवल जागरूक होना चाहिए, बल्कि ऐसे खाद्य पदार्थ का सेवन नहीं करना चाहिए जिससे हमारी सेहत को नुकसान हो। आइए इस आर्टिकल में ओरल हेल्थ को लेकर मुंह के कैंसर के प्रकार की कैसे करें पहचान, इसके लक्षण और बचाव के बारे में जानते हैं।
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हेड और नेक के आसपास होने वाला कैंसर ओरल कैंसर (Oral cancer) की श्रेणी में
डेंटल सर्जन डॉक्टर सौरव बनर्जी बताते हैं कि ओरल कैंसर हेड और नेक में पाए जाने वाले कैंसर की श्रेणी में आता है। यह मुंह के कैंसर के प्रकार में से एक है। वहीं इस जगह पर होने वाला कैंसर बहुत हद तक इंसान की बुरी आदतों के कारण होता है। वहीं यदि सही समय पर हम बचाव कर लें तो बीमारी से भी बचा जा सकता है। ओरल कैंसर के मामले में 80 फीसदी केस सिर्फ गुटका, पान, मसाला, तंबाकू, सिगरेट, सुपारी व तंबाकू के अन्य पदार्थों के सेवन के कारण होता है।
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मुंह के अंदर का घाव यदि सप्ताह में ठीक न हो तो लें सलाह
डाॅक्टर सौरव बताते हैं कि मुंह के कैंसर के प्रकार की बात करें तो मुंह के अंदर का घाव यदि दो से तीन सप्ताह में ठीक न हो तो डॉक्टरी सलाह लेना चाहिए। क्योंकि यही घाव आगे चलकर कैंसर का कारण बनता है। कैंसर शरीर का ऑल्टरेटेड फिजियोलॉजी प्रोसेस है, जिसको तीन लेवल पर समझा जा सकता है। पहला लेवल ओरल प्री कैसेरियस कंडीशन है। इसमें तंबाकू या तंबाकू के उत्पाद का सेवन करने के कारण मुंह में छाला, घाव हो जाता है। वहीं ओरल सब म्यूकस फाइब्रोसिस की समस्या होती है, इसमें गाल फाइब्रोसिस होकर सख्त हो जाता है और उसका लचीलापन कम हो जाता है। नतीजनत मुंह कम खुलता है और कुछ भी खाने पीने में जलन, एडवांस स्टेज में पानी यहां तक की अपने थूक से भी जलन होता है।
दूसरा लेवल ओरल प्री कैंसेरियस लीसन या ओरल व्हाइट लीसन कहा जाता है। इसमें जेनेटिक्स का काफी बड़ा महत्तव होता है। इसमें गाल या जुबान में सेफड लकीर या पैच दिखता है। इन दोनों लैवल में सतर्कता नहीं बरती गई तो थर्ड लेवल यानी ओरल कैंसर में तब्दील हो सकता है। जरूरी है कि सही समय पर डाक्टरी परामर्श लेना चाहिए। मुंह के कैंसर के प्रकार के बारे में जानना बेहद जरूरी है, तभी एहतिहात बरता जा सकता है।
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मुंह के कैंसर और उनके प्रकार (Types of Oral cancer)
मुंह के कैंसर के प्रकार की बात करें तो लेरेंगियल कैंसर, थायराॅइड कैंसर हेड और नेक के कैंसर के प्रकार हैं। टंग कैंसर (जीभ का कैंसर), मसूड़े का कैंसर, गम कैंसर, ताल का कैंसर, गाल का कैंसर, नुकीले दांतों के कारण घाव बनने से कैंसर हो सकता है।
मुंह के कैंसर में सबसे खतरनाक है जीभ का कैंसर
मुंह के कैंसर के प्रकार में सबसे खतरनाक होता है जीभ का कैंसर। डॉक्टर सौरव बनर्जी बताते हैं कि मुंह के कैंसर की पहचान करना बेहद ही जरूरी है। जीभ का कैंसर इसलिए घातक होता है क्योंकि जीभ लिम्फ ग्लैंड (lymph) से सटी हुई होती है। वहीं जीभ में हड्डी नहीं होने के कारण अन्य जगहों की तुलना में कैंसर काफी तेजी से फैलता है। बता दें कि जिस प्रकार शरीर में खून ऑक्सीजन और ग्लूकोज को कोशिकाओं व आर्गन तक पहुंचाता है, ठीक उसी प्रकार लिम्फ हमारे शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। लिम्फ हमारे शरीर में जबड़े के नीचे, कान के नीचे, गर्दन जहां खत्म होती है और धड़ शुरू होता है उस जगह पर होता है। सामान्य कैंसर की तुलना में यह तेजी से इसलिए फैलता है क्योंकि यदि गाल में कोई कैंसर है तो उसे फैलने के लिए जबड़े व जबड़े की हड्डी से गुजरना होगा इसमें समय लगता है, लेकिन जीभ को बचाने के लिए कोई हड्डी नहीं है। इसलिए यह तेजी से फैलता है। इसलिए जरूरी है कि हम सभी को मुंह के कैंसर के प्रकार की जानकारी होनी चाहिए ताकि इससे बचाव किया जा सके।
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मुंह के कैंसर का ऐसे करें बचाव
डेंटल सर्जन डॉक्टर सौरव बनर्जी बताते हैं कि मुंह के कैंसर के प्रकार को जानकर इससे बचाव के लिए हम अपनी बुरी आदतों को कंट्रोल करके भी कर सकते हैं। वहीं बीमारी होने का दूसरा कारण जेनेटिक/अनुवांशिक भी है। यदि किसी के पूर्वजों को भी कैंसर की बीमारी रही हो तो उनके बच्चों को भी बीमारी होने की संभावना काफी बढ़ जाती है। मान लें यदि कोई दिन में दो से तीन सिगरेट ही पीता है या फिर गुटका खाता है, वहीं कोई ऐसा भी है जो दिन में 10-15 सिगरेट या फिर गुटका का सेवन करता है और उसको बीमारी नहीं होती, ऐसा जीन के कारण भी संभव हो सकता है। वहीं 80 फीसदी मामलों में तंबाकू व तंबाकू के पदार्थों का सेवन करना भी इसके रिस्क फैक्टर्स में से एक है। इसलिए जरूरी है कि हर व्यस्क को मुंह के कैंसर के प्रकार की जानकारी होनी चाहिए, ताकि वे इससे बचाव कर सकें।
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नुकीलें दांत होने के कारण भी हो सकता है जीभ व गाल का कैंसर
कैंसर की पहचान के लिए जरूरी है कि मुंह के कैंसर के प्रकार की जानकारी रखी जाए ताकि मुंह में होने वाले किसी भी प्रकार के बदलाव को लेकर डाॅक्टरी सलाह ली जाए। डाॅक्टर सौरव बनर्जी बताते हैं कि दांतों में कैविटी या फिर दांत टूट जाने के कारण या फिर प्राकृतिक तौर पर यदि किसी का दांत नुकीला हो जाता है और उससे जीभ या फिर मुंह के अंदर किसी जगह कटता या छिलता है तो इस कारण भी कैंसर की बीमारी हो सकती है। क्योंकि नुकीलें दांत के कारण लंबे समय तक यदि कटेगा तो उस कारण मुंह में घाव बनेगा, वहीं इसी घाव का यदि सही इलाज न किया गया तो आगे चलकर यह कैंसर का रूप लेता है। इसलिए यदि किसी के नुकीलें दांत है तो उसे डाक्टरी सलाह लेनी चाहिए। वहीं हर किसी को ओरल हाइजीन मेनटेन रखना चाहिए।
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लैरेंगल कैंसर
लैरेंगल और थायरायड कैंसर हेड और नेक के कैंसर के प्रकार हैं। डाक्टर सौरव बताते हैं कि यह बीमारी ज्यादातर उन लोगों को होती है जो अत्यधित स्मोकिंग करते हैं। ज्यादातर यह बीमारी 40 साल से अधिक उम्र के लोगों में देखने को मिलती है। वहीं कुछ मामलों में यह बीमारी जैनेटिक कारणों से भी हो सकती है।
लोगों में यह भ्रम है कि गाना गाने के कारण लैरेंगल कैंसर होता है। लेरिंग्स इंसान का व्वाइस बॉक्स होता है। जहां हवा वोकल कोर्ड से होकर लेरिंग्स के जरिए गुजरती हैं तो उसी से आवाज उत्पन्न होती है। लैरिंग्स कैंसर से ग्रसित लोगों की आवाज शक्ति चली जाती है, वहीं उन्हें बोलने के लिए मशीन का सहारा लेना पड़ता है, गले में बटन दबाकर ही वो अपनी बातों को बता पाते हैं। वहीं इस बीमारी के होने से भी कैंसर के सामान्य लक्षण देखने को मिलते हैं। वहीं मरीज की आवाज में एकाएक बदलाव आ जाता है, बिना सर्दी, खांसी या जुकाम के मरीज की आवाज बदल जाती है, वजन घटना और भूख न लगना जैसे लक्षण दिखाई देते हैं। शरीर में इस प्रकार के लक्षण दिखाई देने पर डाक्टरी सलाह लेनी चाहिए।
मुंह के कैंसर में खतरनाक है थायरायड कैंसर
डॉक्टर सौरव बताते हैं कि थायराॅइड कैंसर हेड व नेक में पाए जाने वाला कैंसर का प्रकार है। यह काफी खतरनाक कैंसर है। यह बीमारी 40 साल से ऊपर के लोगों को होती है। यह पुरुष व महिलाओं दोनों को होती है। ज्यादातर मामले महिलाओं में देखने को मिलते हैं, इनमें रिस्क फैक्टर ज्यादा है। बीमारी के होने पर भूख कम लगना, वजन कम होना, गर्मी लगना सामान्य लक्षणों में एक है, ऐसे लक्षण दिखने पर डाक्टरी सलाह लेना चाहिए।
मसूड़ा और गले का कैंसर
डाक्टर सौरव के अनुसार मुंह के कैंसर के प्रकार में मसूड़ा और गले का कैंसर भी आता है। 90 फीसदी मामलों में खैनी व तंबाकू व तंबाकू के पदार्थों का सेवन करने के कारण यह बीमारी होती है। इस बीमारी का शुरुआत में पता लग जाए तो मरीज को बचाया जा सकता है। यदि मुंह के खास जगह पर तंबाकू रखता है तो उस जगह पर आगे चलकर घाव बन जाता है। इस बीमारी के होने पर मरीज के मुंह में घाव, छाला बन जाता है, जरूरी नहीं कि उसमें दर्द ही हो, यदि दर्द न हो स्थिति और गंभीर है, लाल घेरा होता है, वहीं समय के साथ यह काफी कठोर हो जाता है। ऐसे लक्षण दिखाई देने पर डाॅक्टरी सलाह लेना चाहिए। इसलिए जरूरी है कि मुंह के कैंसर के प्रकार को जान बीमारी से सावधान रहा जाए।
ओरल कैंडिडिएसिस एक प्रकार का फफूंदी
डाॅक्टर बताते हैं कि इसके भी दो ग्रेड होते हैं पहला ओरल लाइकेन प्लानस और दूसरा ओरल कैंडिएसिस, यह एक प्रकार का फफूंद होता है। जिसे व्हाइट लीजन ऑफ माउथ भी कहा जाता है। इस बीमारी का इलाज नहीं है, यह कैटेगरी ओरल प्री कैंसरेरियल लीजन के अंतर्गत आती है। डाॅक्टर इस बीमारी के होने के कारणों का पता नहीं लगा पाएं हैं, लेकिन माना जाता है कि यह बीमारी तंबाकू के सेवन के कारण हो सकती है। बीमारी के लक्षणों की बात करें तो मुंह में व्हाइट व ग्रे पैचेस उभर आते हैं, जहां यह होता है वहां का एरिया काफी हार्ड हो जाता है।
35 साल के बाद जरूरी होता है दांतों का रेगुलर चेकअप
डॉ सौरव के अनुसार 35 साल के बाद हर व्यस्क को दांतों का रूटीन चेकअप जरूर कराना चाहिए। छह महीने में यदि संभव न हो तो कम से कम एक साल पर चेकअप कराना ही चाहिए। मुंह के कैंसर के कई प्रकार की बीमारियां इसी उम्र के बाद से लोगों को होती है। वहीं दांतों से संबंधित बीमारी इसी उम्र के आसपास शुरू होती है। वहीं शुरुआती अवस्था में ही बीमारी का पता लग जाए तो उसका इलाज संभव होता है, वहीं बाद के स्टेज में बीमारी का पता चले तो मरीज की जान नहीं बचाई जा सकती। विदेशी लोगों की तुलना में भारतीय लोग रेगुलर डेंटल चेकअप कराना जरूरी नहीं समझते, बल्कि उन्हें इसे भी अपनी आदत में शुमार करना होगा। ऐसा तभी संभव है जब कोई मुंह के कैंसर के प्रकार से भली भांति अवेयर होगा।
इस विषय पर अधिक जानकारी के लिए डाक्टरी सलाह लें।
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