ऑटिज्म (स्वलीनता, Autism) एक दिमागी बीमारी है, जो व्यक्ति के बात करने, सीखने और दूसरों से अपने विचार प्रकट करने की क्षमता को प्रभावित करती है। ऑटिज्म का दिमाग पर असर (Autism’s effect on the brain) छोटे बच्चों में 6 महीने की उम्र से ही दिखाई देने लगते हैं। ऑटिज्म के कई प्रकार और लक्षण हैं। ऐसा माना जाता है कि ऑटिज्म का दिमाग पर असर कुछ समय बाद भी दिखाई दे सकता है। शोधकर्ताओं के मुताबिक इसके पीछे असामान्य दिमागी संरचना और दिमाग के ठीक ढंग से काम न करने को जिम्मेदार माना गया है।
ऑटिज्म का दिमाग पर असर (Autism’s effect on the brain) के कारण असामान्य दिमागी संरचना
ऑटिज्म का दिमाग पर असर को समझने के लिए एक्स-रे, ब्रेन स्कैन, एमआरआई आदि के माध्यम से साइंटिस्ट्स निम्नलिखित निष्कर्ष निकाल चुके हैं –
ऑटिज्म का दिमाग पर असर गर्भ में और जन्म के बाद : शोध में पाया गया कि जन्म से पहले और जन्म के बाद कम वजन वाले और असामान्य दिमागी संरचना वाले बच्चों में ऑटिज्म होने की संभावना सामान्य बच्चों के मुकाबले तीन गुना ज्यादा थी। दिमाग के उन हिस्सों में विकार देखा गया, जो हिस्से खासतौर पर हमारी भावनाओं और विचार व्यक्त करने जैसे व्यवहार को नियंत्रित करते हैं।
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ऑटिज्म का दिमाग पर असर (Autism’s effect on the brain) के कारण असामान्य दिमागी प्रक्रिया
ऑटिज्म का दिमाग पर असर को समझने के दौरान कई शोधकर्ताओं ने ऑटिज्म रोगियों में न्यूरोट्रांसमिटर्स खासकर दिमाग में संदेश भेजने वाले तत्व सेरोटॉनिन (Serotonin) की अधिकता देखी। इसके अलावा ऑटिज्म पर एक नए लेख में बताया गया है कि ऐसे मामलों में दिमागी सेल्स में उर्जा की कमी देखी गई, जो माइटोकॉन्ड्रिया के असामान्य व्यवहार की वजह से होती है।
ये थ्योरी जानवरों पर एक एक्सपेरिमेंट पर आधारित है, जिसमें सिद्ध किया गया कि एपीटी मेडियेटर की मदद से ऑटिज्म के लक्षणों को कम किया जा सकता है। इसमें 17 तरह की दवाईयों को चिन्हित किया गया, जो कई तरह के मनोविकार, बोल-चाल में पेरशानी, सामाजिक व्यवहार, डर आदि जैसे ऑटिज्म के लक्षणों को ठीक कर सकती हैं। हालांकि, अब तक इन दवाईयों का प्रयोग इंसानों पर नहीं किया गया है।
ऑटिज्म का दिमाग पर असर को लेकर एक और खोज
अब तक माना जाता था कि दिमाग के सेरेब्रल कॉर्टेक्स (Cerebral cortex) में बनी धारियां जन्म के वक्त तक पूर्ण रूप से विकसित हो जाती है। पर इस रिसर्च में यह अद्भुत खोज हुई जिसमें साइंटिस्ट्स ने पाया कि सेरेब्रल कॉर्टेक्स में बनी धारियां ऑटिज्म प्रभावित लोगों में समय के साथ-साथ गहरी होती चली जाती हैं।
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ऑटिज्म के लक्षण (Autism Symptoms)
ऑटिज्म के लक्षण बच्चों के शुरुआती जीवन यानि कि एक से तीन साल की उम्र में ही बच्चों में दिखने लगते हैं। बच्चा लगभग एक साल का होने के बावजूद भी अगर मुस्कुराता या कोई प्रतिक्रिया नहीं देता है, तो यह चिंता की बात हो सकती है और आपको अपने बच्चे को डॉक्टर को दिखाने की जरूरत हो सकती है। साथ ही बोलने की कोशिश करने पर अगर बच्चा कुछ अजीब-अजीब आवाजें निकालता है, तो यह चिंता का विषय हो सकता है। साथ ही बच्चों में ऑटिज्म के लक्षण भी अलग-्अलग हो सकते हैं। इसके अलावा ऑटिज्म का दिमाग पर असर भी हो सकता है। ऑटिज्म के कुछ सबसे आम लक्षण हैं:
- अक्सर बच्चे के आस-पास पेरेंट्स या अन्य किसी के होने पर या उनके साथ बात करने पर प्रतिक्रिया देते हैं। लेकिन, ऑटिज्म के शिकार बच्चों में यह नहीं दिखता है। वे किसी भी चीज या एक्टीविटी पर कोई रिस्पॉन्स नहीं देते हैं। ऑटिज्म का दिमाग पर ही असर देखा जा सकता है।
- इसके अलावा कई मामलों में देखा जाता है कि लोगों को लगता है कि बच्चे को सुनने में परेशानी है और वे उसको लेकर चिंतित हो जाते हैं। लेकिन, असल में इसका कारण ऑटिज्म हो सकता है और बच्चे इससे पीड़ित होने पर आवाजें सुनने के बाद भी कोई प्रतिक्रिया नहीं देते हैं।
- ऑटिज्म से जूझ रहे बच्चों को बोलने में दिकक्त तो होती ही है और साथ ही अपनी भावनाओं को भी व्यक्त नहीं कर पाते हैं। ऐसे में बच्चों में हीन भावना पैदा होना भी आम बात है और साथ ही इसके चलते बच्चे चिड़चिड़े भी हो जाते हैं।
- कई बार देखा जाता है ऑटिज्म से पीड़ित बच्चे बिना किसी कारण के हिलते रहते हैं या दूसरी भाषा में कहे, तो ऐसे बच्चों के बॉडी पार्ट्स में लगातार कंपन होता रहता है।
- ऑटिज्म से पीड़ित बच्चे अपने आप में ही खोए भी रहते हैं, जो उनके साथ-साथ पेरेंट्स के लिए परेशान करने वाला हो सकता है। ऐसे में वे सामाजिक स्किल्स सीखने में पिछड़ जाते हैं।
- कई बार देखने को मिलता है कि जब बच्चे ऑटिज्म से जूझ रहे होते हैं, तो उनके वे एक ही काम में बहुत समय लगा सकते हैं और यहां तक कि पूरा कई घंटे तक एक ही काम में फंसे रह सकते हैं।
- ऑटिज्म का दिमाग पर असर भी हो सकता है। इसी का नतीजा है कि बच्चों के दिमाग के विकास में भी दिकक्त हो सकती है।
ऑटिज्म का इलाज (Autism Treatment)
ऐसा माना जाता है कि अभी तक ऑटिज्म का कोई भी इलाज विकसित नहीं किया जा सका है। वहीं कुछ तरीके हैं जिनकी मदद से इसके लक्षणों को कम किया जा सकता है। इनमें स्पीच थेरेपी और मोटर स्किल शामिल हैं। इनकी मदद से बच्चों में ऑटिज्म को कंट्रोल करने में मदद मिल सकती है। इसके अलावा बच्चों के साथ प्यार और धैर्य से बर्ताव करने से भी इस बीमारी से जूझ रहे बच्चों को सामान्य जिंदगी जीने में मदद की जा सकती है।
आप ये जान लें कि ऑटिस्टिक बच्चे का जीवन सामान्य बच्चों की तुलना में बहुत ही कठीन होता है। लेकिन ऐसे में पेरेंट्स का सपोर्ट उनके इस संघर्ष को कम कर सकता है। वहीं कई मामलों में देखा जाता है कि पेरेंट्स सही समय पर बच्चों पर ध्यान नहीं देते और देर हो जाने पर मेडिकल हेल्प पाने की कोशिश करते हैं। लेकिन सही तरीका यह होगा कि बच्चे के शुरुआती लक्षण पहचान कर ही उसे मदद मिलनी चाहिए। साथ ही बच्चे की ऐसी परिस्थिति में पेरेंट्स को बहुत धैर्य रखने की जरूरत होती है।
आपको ये बात शायद न पता हो कि दुनिया में ऐसी तमाम महान हस्तियां हैं, जिन्होंने ऑटिज्म की बीमारी होने पर भी ऐसे अविष्कार किए, जो साधारण इंसान के लिए आसान न थे। अल्बर्ट आइंस्टीन, चार्ल्स डार्विन, न्यूटन आदि के नाम से शायद ही कोई अंजान हो। इन सबको ऑटिज्म की समस्या थी। भले ही इन लोगों के काम करने का ढंग अलग था, लेकिन इनके अविष्कारों ने लोगों को नई दिशा दी। इसलिए निराश ना हो बच्चे की देखभाल करें और उसे सही इलाज उपलब्ध कराएं।
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