जंक्शनल एपिडर्मोलिसिस बुलोसा – यह प्रकार गंभीर हो सकता है, क्योंकि इसमें फफोले नवजात अवस्था में ही विकसित होने लगते हैं। इस स्थिति के कारण शिशु बेहद जोर से रोने लग सकता है क्योंकि त्वचा पर लगातार फफोले विकसित और फूटते रहते हैं।
डिस्ट्रोफिक एपिडर्मोलिसिस बुलोसा – इस प्रकार एपिडर्मोलिसिस बुलोसा जीन में आई खराबी के कारण होता है जो कोलेजन के उत्पादन में मदद करता है। कोलेजन त्वचा के ऊतकों को बनने में मदद करता है। इस जीन की कमी या खराबी के कारण त्वचा की परत सही तरह से नहीं जुड़ पाती हैं।
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एपिडर्मोलिसिस बुलोसा के जोखिम कारक और जटिलताएं
परिवार में एपिडर्मोलिसिस बुलोसा की हिस्ट्री होने पर इसका जोखिम बढ़ जाता है। अनुवांशिकता इसका एकलौता मुख्य जोखिम कारक है। एपिडर्मोलिसिस बुलोसा की जटिलताओं में निम्न शामिल हैं –
संक्रमण – फफोलो के कारण त्वचा पर संक्रमण होने का जोखिम बढ़ जाता है।
सेप्सिस – जब बैक्टीरिया बढ़ी मात्रा में रक्त प्रवाह में मिलकर पूरे शरीर में फैल जाता है तो सेप्सिस की स्थिति विकसित होती है। सेप्सिस लगातार तेजी से बढ़ने वाली जानलेवा बीमारी है जिसके कारण शॉक से व्यक्ति का अंग कार्य करना भी बंद कर सकता है।
उंगलियों का जुड़ना या जोड़ों में बदलाव – एपिडर्मोलिसिस बुलोसा के गंभीर प्रकार के कारण उंगलियों का जुड़ना और जोड़ों का अनियमित रूप से आकर लेना शामिल होता है। इस के कारण उंगलियों, घुटनों और कोहनियों के कार्यों में समस्या आ सकती है।
पोषण में समस्या आना – मुंह में छाले होने के कारण व्यक्ति को खाने में मुश्किलें आ सकती है जिसके कारण कुपोषण और एनीमिया हो सकता है। पोषण की कमी के कारण घाव भरने की प्रक्रिया में भी देरी आने लगती है जिससे बच्चे का विकास धीरे होता है।
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कब्ज – गुदा में छालें होने के कारण मल त्यागने में समस्या आ सकती है। यह नियमित मात्रा में तरल पदार्थ और हाई फाइबर आहार न लेने के कारण भी हो सकता है।
डेंटल प्रॉब्लम – कुछ प्रकार के एपिडर्मोलिसिस बुलोसा के कारण दांत टूटने और मुंह के ऊतकों में समस्या भी आ सकती है।
स्किन कैंसर – एपिडर्मोलिसिस बुलोसा से ग्रसित लोगों में बढ़ती उम्र के साथ स्क्वैमस सेल कार्सिनोमा नाम के स्किन कैंसर होने का खतरा रहता है।
मृत्यु – जंक्शनल एपिडर्मोलिसिस बुलोसा से ग्रसित नवजात शिशुओं में संक्रमण और तरल पदार्थ की कमी के कारण शरीर में फफोले तेजी से फैलने लगते हैं जिसके कारण स्थिति जानलेवा हो जाती है। फफोलों के कारण नवजात के जीने की संभावना बेहद कम हो जाती है जिसके कारण उनके सांस लेने और खाने की क्षमताएं भी प्रभावित होने लगती हैं। इस स्थिति में नवजात शिशु की किशोरावस्था तक मृत्यु भी हो सकती है।
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एपिडर्मोलिसिस बुलोसा (ईबी) का इलाज
हालांकि, अभी तक इस बीमारी का सफल इलाज नहीं किया जा सका है लेकिन, इसके शुरुआती इलाज में कई तरह के टेस्ट किए जाते हैं।
एपिडर्मोलिसिस बुलोसा का परीक्षण और इलाज
मरीज के खून की जांच कर जेनेटिक टेस्ट भी किए जाते हैं। इससे यह पता लगाया जा सकेगा कि मरीज के जीन में आनुवंशिक तौर पर कितना परिवर्तन हुआ है।
इस प्रक्रिया के दौरान त्वचा विशेषज्ञ मरीज के त्वचा के टिश्यू के एक हिस्से की जांच करते हैं। इसके माध्यम से डॉक्टर यह पता लगा सकेंगे कि त्वचा के विकास के लिए आवश्यक प्रोटीन सामान्य रूप से काम कर रहा है या नहीं।
इसके अलावा, अभी तक इस बीमारी के इलाज के लिए कोई सफल उपचार नहीं खोजा जा सका है। एपिडर्मोलिसिस बुलोसा से पीड़ित बच्चों के इलाज के लिए घरेलू तरीके थोड़े मददगार हो सकते हैं। इसके लिए बच्चे की ड्रेसिंग अच्छे से करें। समय-समय पर उसके शरीर और फफोलों पर मरहम लगाते हैं। उसे बाहर के धूल और प्रदूषण से दूर रखें। साथ ही, डेबरा एक राष्ट्रीय दान है, जो एपिडर्मोलिसिस बुलोसा से पीड़ित लोगों की मदद के लिए अंतर्राष्ट्रीय तौर पर काम करता है। उसकी मदद ले सकते हैं।
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एपिडर्मोलिसिस बुलोसा का घरेलू इलाज
एपिडर्मोलिसिस बुलोसा का इलाज भले ही मुमकिन न हो लेकिन इसे कुछ घरेलू उपायों की मदद से कम किया जा सकता है या इसे बढ़ने से रोका जा सकता है। फफोलों को बढ़ने से रोकने के लिए त्वचा की खास देखभाल करें और निम्न घरेलू उपचार अपनाएं –
त्वचा पर चोट या घाव न लगने दें – लोशन की मदद से त्वचा को नम बनाएं रखने की कोशिश करें। घाव को ढंकने के लिए नरम पट्टी का इस्तेमाल करें और उसे ज्यादा टाइट न बांधें। ढीले कपड़े पहनें जिनपर न तो कोई टैग लगा हो और न ही जिनकी बाजुएं और सिलाई टाइट हो।
त्वचा को ठंडा रखें – अपने नहाने के पानी को कमरे के तापमान यानी 25 डिग्री से अधिक न रखें। जितना हो सके उतना एसी (एयर कंडीशनर) में रहने की कोशिश करें और गर्म व नमी से बचें।
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फफोलों को फोड़ना – अगर इनका इलाज न किया जाए तो इनमें तरल पदार्थ भर सकता है जो की आगे चल के संक्रमित हो जाते हैं। फफोलों को खाली करने के लिए डॉक्टर से परामर्श करें।
संक्रमण के संकेतों को पहचाने – अगर त्वचा संक्रमित होने लगी है तो त्वचा के छूने पर लालिमा या गर्म महसूस हो सकता है। इसके साथ ही प्रभावित हिस्से से पस या पीलें रंग का डिस्चार्ज निकलता नजर आ सकता है। त्वचा पर लालिमा दिखाई देने या बुखार और ठंडा महसूस होने पर आपको त्वचा का संक्रमण हो सकता है। इनमें से किसी भी लक्षण के दिखाई देने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।