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किशोरावस्था में बदलाव के दौरान माता-पिता कैसे निभाएं अपनी जिम्मेदारी?

के द्वारा मेडिकली रिव्यूड डॉ. प्रणाली पाटील · फार्मेसी · Hello Swasthya


Shivam Rohatgi द्वारा लिखित · अपडेटेड 20/09/2021

    किशोरावस्था में बदलाव के दौरान माता-पिता कैसे निभाएं अपनी जिम्मेदारी?

    क्या आपका बचपन भी हिंसा, डिप्रेशन, शराब या ड्रग्स की लत में गुजरा है? किशोरावस्था में पहुंचने पर माता-पिता अपने बच्चे को समझने की बेहद कोशिश करते हैं लेकिन अक्सर नाकाम रहते हैं। ऐसा आमतौर पर किशोरावस्था में खराब व्यवहार की वजह से भी होता है जिसे पेरेंट्स बिलकुल भी बर्दाश्त नहीं कर पाते हैं। किशोरावस्था में बदलते  व्यवहार में जितने भागीदार वह खुद होते हैं उतने ही उनके माता-पिता भी होते हैं। हालांकि, पेरेंट्स हमेशा अपने बच्चे का भला ही चाहते हैं जिसके चलते वह उनके किशोरावस्था में बदलते व्यवहार को समझने की कोशिश करते हैं।

    सभी माता-पिता न जाने अपने बच्चे के पालन पोषण के लिए क्या कुछ नहीं करते हैं। शिशु की उम्र में डायपर बदलने से लेकर स्कूल जाने की उम्र तक हर मुमकिन कोशिश करते हैं कि उनके बच्चे को किसी भी प्रकार की कोई परेशानी न हो। लेकिन इन सबके बावजूद सबसे अधिक परेशान माता-पिता बच्चे की टीनएज (किशोरवस्था) को समझने में नाकाम रहते हैं। जब आप यह सोचते हैं कि युवावस्था एक बड़े बदलाव की उम्र होती है, न केवल शारीरिक रूप से बल्कि भावनात्मक और मानसिक रूप से भी। यह हर परिवार के लिए एक उलझन और उथल-पुथल का समय होता है।

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    किशोरावस्था की उम्र में बच्चों का व्यवहार

    टीनएजर्स यही सोचते हैं कि वयस्क उनके बारे में जो भी सोचते हैं वह गलत होता है। किशोरावस्था की उम्र में बच्चों का व्यवहार ऊर्जावान, विचारशील और आदर्शवादी होता है और साथ ही वह सही और गलत के बीच पहचान करने की बेहद कोशिश करते हैं। देखा जाए तो यह केवल पेरेंट्स और किशोरावस्था के टकराव की अवधि होती है। इस उम्र में माता-पिता को अपने बच्चे को इस बात का चयन करने देना चाहिए कि वह जीवन में आगे चल कर कैसा इंसान बनना चाहते हैं, और उस संदर्भ में उनका मार्गदर्शन करना चाहिए।

    इस लेख के माध्यम से आज हम आपको बताएंगे कि आप कैसे किशोरावस्था के बच्चों के बदलते व्यवहार को समझ सकते हैं और उनसे किस तरह बात करनी चाहिए। नीचे किशोरावस्था को समझने और उन्हें अपनी बात समझाने के सबसे सरल और बेहतरीन टिप्स दी गई हैं।

    किशोरावस्था में बदलाव को कैसे समझें?

    सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि आपके बच्चे की किशोरावस्था की शुरुआत कब हुई है। हर बच्चे में किशोरावस्था के जैसे व्यवहार अलग समय पर आते हैं। कुछ बच्चे समय से पहले ही मानसिक तौर पर खुद को बड़ा समझने लगते हैं तो कुछ को युवावस्था खत्म होने पर भी अपने बदलते व्यवहार की पहचान नहीं होती।

    हालांकि, युवावस्था और वयस्क के बीच विभिन्नता होनी बेहद महत्वपूर्ण होती है। ज्यादातर माता-पिता को लगता है कि किशोरावस्था केवल वयस्क यौन विशेषताओं के विकास जैसे स्तन, पीरियड्स, प्यूबिक हेयर और चेहरे के बालों से जुड़ी होती है। लेकिन यह केवल युवावस्था के सबसे अधिक दिखने वाले संकेतों में से एक हैं। इसके अलावा भी एक शिशु युवावस्था के दौरान मानसिक और शारीरिक बदलावों से गुजरता है। इन बदलावों को यौन विशेषताओं की तरह बाहर से देखा नहीं जा सकता है। इन्हीं बदलावों को युवावस्था माना जाता है। 

    किशोरावस्था में बच्चों के अपने माता-पिता के प्रति अचानक बदलते व्यवहार से उनमें युवावस्था की पहचान की जा सकती है। इस स्थिति में वह अपने पेरेंट्स से दूर होने लगते हैं और आत्मनिर्भर बनने लगते हैं। इसके अलावा किशोर अपने व्यवहार की तुलना अपने से कम उम्र के किशोरों से करने लगते हैं जिससे वह उनसे अलग दिख सकें। इसके अलावा वह अपनी उम्र के साथियों के साथ घुलने-मिलने के लिए अपने व्यवहार में बदलाव लाने की कोशिश करते हैं। इसमें उनके साथी उनके माता-पिता से अधिक महत्वपूर्ण हो जाते हैं। इसके बाद उनके निर्णय भी पेरेंट्स की बजाए साथियों पर निर्भर करने लगते हैं।

    युवावस्था में पहुंचने पर बच्चे अक्सर नए लुक्स और पहचान धारण करने की कोशिश करने लगते हैं। इसके साथ ही वह साथियों से बेहतर बनने की कोशिश करते हैं जिसका सीधा असर उनके मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ता है।

    यदि आपको अपने बच्चे में ऐसे बदलाव नजर आते हैं तो समझ लीजिए कि वह अब किशोरावस्था में कदम रख चुका है।

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    किशोरावस्था के बदलाव पर माता-पिता को क्या करना चाहिए?

    व्यवहारिक बदलाव के प्रति नियम बनाएं

    परिवार के नियम किशोरावस्था में बच्चे को बिगड़ने न देने के काम आते हैं। इसके लिए आपको परिवार के सभी सदस्यों के लिए एक समान व्यवहारिक नियम बनाने की आवश्यकता होगी। नियम बनाते समय किशोर की सहमति भी जरूर लें। नियमों को सकारात्मक रूप में पेश करें। किशोर को ऐसा नहीं लगना चाहिए कि आप उसे बांध कर या उस पर नियम थोपना चाहते हैं। उदाहरण के लिए किशोर को अनुचित व्यवहार से बात नहीं करने की बजाए कहें कि हम सभी एक दूसरे से आदर से बात करेंगे।

    नियम का उल्लंघन होने पर क्या करें

    इस बारे में फोर्टिस अस्पताल मुलुंड के न्यूरोलॉजी विभाग के सलाहकार डॉ धनुश्री चोंकर का कहना है कि बच्चों  में बढ़ रहा तनाव उनके हेल्थ के लिए अच्छा नहीं है। इसका  असर उनके व्यवहार और मानसिक स्वास्थ्य दाेनों पर पड़ रहा है।  ध्यान रहे कि आपने नियम किशोर के व्यवहार को बेहतर बनाने के लिए बनाएं हैं और उनका उल्लंघन होने पर यदि आप भी उनसे निरादर से बात करेंगे तो वह भी नियम का उल्लंघन ही होगा। युवावस्था में बच्चे के नियम तोड़ने पर उसे डांटने की बजाए उससे इसका कारण जानने की कोशिश करें और धैर्य से उसे समझाएं कि उसने जो किया वह अनुचित था।बढ़ रहे सोशल प्रेशर से बच्चों में स्ट्रेस और भी ज्यादा बढ़ने लगा है। इन सभी कारणों से किशोरों में हिंसा की प्रवृत्ति बढ़ जाती है।  काउंसलर से मिलें। बच्चें से बात करना और उसकी बात समझना ही,इस  स्थिति का सबसे अच्छा उपाय है।  

    इसके अलावा यदि किशोरवस्था में बच्चा कोई बड़ी गलती करता है तो उसे दंड दें। जैसे कि यदि बच्चा तय किए गए समय पर घर नहीं आता है तो उसके अगले दो दिन तक बाहर जाने पर रोक लगा दें। इससे भविष्य में किशोर के व्यवहार में परिवर्तन जरूर देखने को मिलेगा।

    किशोर को उसके व्यवहार का सामना करवाएं

    यदि किशोरावस्था में बदलाव के परिणामों को बच्चे के सामने दर्शाया जाए, तो बच्चे को समझाने का यह एक बेहतर तरीका होता है। इससे किशोर को यह समझने में आसानी होती है कि वह क्या गलत कर रहा है और वह उसे दोहराने से कैसे रोक सकता है। उदाहरण के लिए अपने बच्चे को कहें कि तुम पिछली बार घर देर से आए थे इसलिए अगली बार मैं तुम्हें बताए गए समय पर खुद लेने आऊंगा, या बिना बताये देर से घर आने पर क्या-क्या मुसीबतें हो सकती हैं। ऐसा करने से किशोर अगली बार गलती दोहराने की कोशिश नहीं करेगा। साथ ही बच्चे से यह भी पूछें कि यदि यह दोहराया गया तो उसके परिणामस्वरूप क्या किया जाना चाहिए।

    बच्चे पर कुछ भी थोपने से बेहतर है उससे बात करके चीजों को सुलझाने की कोशिश करें।

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    सकरात्मक प्रेरणास्रोत बनने की कोशिश करें

    शिशु से लेकर किशोरावस्था तक बच्चे वही करने की कोशिश करते हैं जो आप करते हैं। किशोरावस्था में व्यवहार परिवर्तन के लिए आपको एक बेहतर रोल-मॉडल बनना होगा। आपका व्यक्तित्व आपके शिशु के लिए बेहद शक्तिशाली और प्रभावशाली होता है। किशोरावस्था में व्यवहारिक बदलाव के लिए आपको स्वयं परिवार के नियमों का पालन करना होगा जिससे बच्चा आपको देख कर खुद भी नियमों को माने और उन्हें गंभीरता से लें।

    टकराव के उद्देश्य को समझें

    किशोरावस्ता के व्यवहारिक बदलाव को लेकर अपने शिशु से टकराव करने से पहले यह सोचें कि यह विषय बात करने योग्य है या नहीं। बिना वजह किशोर की गलतियां निकालने या उसे समझाने पर उनका व्यवहार चिड़चिड़ा हो जाता है, जिसके कारण कोई बात न होते हुए भी आपके और बच्चे के बीच टकराव पैदा हो सकते हैं। बच्चे की छोटी गलतियों को नजरअंदाज करने की कोशिश करें।

    किशोरावस्था के बदलाव को गंभीरता से लें

    किशोरवावस्था में व्यवहारिक बदलाव के कारण आपके शिशु का एक अलग व्यक्तित्व बनता है जिसकी आपको भी कदर करनी होगी। बच्चे को यह एहसास दिलाना जरूरी है कि आप उसके व्यक्तित्व को स्वीकार, आदर और महत्व देते हैं। बच्चे में हर समय कमियां निकालने से वह मानसिक रूप से आपसे दूर हो सकता है। इस स्थिति को विकसित न होने देने के लिए आपको किशोरावस्था में बदलाव आने पर बच्चे की बातों और विचारों को गंभीरता से लेना होगा, भले ही आप उनसे समहत न हों।

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    बच्चे को जिम्मेदार बनाएं

    किशोरावस्था में बदलाव आने पर बच्चे को जिम्मेदारियां उठाना सिखाएं। हालांकि, यह युवावस्था का सबसे मुश्किल कार्य हो सकता है। लेकिन एक पेरेंट होने के नाते आपका यह फर्ज बनता है कि आप उसे एक जिम्मेदार व्यक्ति बनने में मदद करें। बच्चे को अपना हेयर स्टाइल और कपड़े खुद चुनने दें। इससे उनमें आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता बढ़ती है।

    किशोरावस्था में व्यवहार की परेशानियों से बचें

    बच्चे या अपने पार्टनर से किसी बात पर लड़ाई या असहमति होने पर उसे सकरात्मक तरीकों से सुलझाने की कोशिश करें। ऐसा करने से आप धैर्य रख सकेंगे और साथ ही आपके बच्चे पर इसका अच्छा असर पड़ेगा।

    व्यवहारिक बदलाव में बच्चे की प्रशंसा करें

    किशोरावस्था में बदलाव के कारण बच्चे का आत्मविश्वास कमजोर हो सकता है, ऐसे में उसकी प्रशंसा करना उसे काफी उत्साहित कर सकता है। किशोरवस्था में भले ही बच्चे आत्मनिर्भर नजर आते हों लेकिन उन्हें फिर भी अपने माता-पिता की मंजूरी की आवश्यकता और चाहत होती है। बच्चे यदि कोई भी अच्छा काम करते हैं, तो उसकी प्रशंसा करें और हो सके तो उसे इनाम भी दें। इससे उसका उत्साह बढ़ेगा। इस बात का ध्यान रखें कि किशोरावस्था में बच्चे आपसे प्रशंसा अकेले में प्राप्त करना पसंद करेंगे न कि अपने दोस्तों के सामने।

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    किशोरावस्था के बदलाव में बच्चों से कैसे बात करनी चाहिए?

    किशोरावस्था में बदलाव के कारण हो सकता है कि आप में और आपके बच्चे में कुछ टकराव भरी बातें होने लगें। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि आप उसे डांटे या उसे सजा दें। सबसे पहले उसे अच्छे से समझें कि वह कहना क्या चाहता है और उसकी बातों को भावनात्मक रूप से समझने की कोशिश करें। 

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    किशोरावस्था में बच्चे के खराब व्यवहार को सुधारने के लिए आपको निम्न टिप्स फॉलो कर सकते हैं:

    • यदि आपका बच्चा बदतमीजी से बात करता है, तो अपने ऊपर धैर्य बनाएं रखें। बच्चे की बात को उस समय के लिए नजरअंदाज करें और एक गहरी सांस लें। इसके बाद धैर्य के साथ बच्चे को सही बात समझाएं।
    • बच्चे से जुड़ने व बात करने के लिए मजाकिया व्यवहार का इस्तेमाल करें। इस व्यवहारिक बदलाव से हो सकता है बच्चा आपको अपना दोस्त समझने लगे और अपनी सभी बातें शेयर करे। मजाकिया व्यवहार से बच्चे को डर नहीं लगेगा और न ही वह उल्टा जवाब देगा।
    • यदि आपका बच्चे आपकी सभी बाते मानता है और जैसा आप कहते हैं वैसा करता है, तो कभी-कभी उसकी शारीरिक गतिविधियों जैसे आंख उठाना, कंधे उठाना और उबा देने वाले व्यवहार को नजरअंदाज करने की कोशिश करें।
    • किशोरवस्था में बदलाव को समझने की कोशिश करें। इस उम्र में बच्चा न चाहते हुए भी आप से निरादर से बात कर बैठता है। ऐसे में आप उसको बता सकते हैं कि उसका इस तरीके से कोई बात कहना सही नहीं है।
    • बच्चे जब आप से सकारात्मक रूप से बात करने की कोशिश करें तो उसकी प्रशंसा करें।

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    किशोरावस्था में बदलाव के कारण पेरेंट्स को हो सकती है कठिनाई

    पेरेंट्स को टीनएज में बिहेवियर चेंज के कारण कई प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इसमें कई बार माता-पिता को अपने बच्चे से लड़ाई करनी पड़ती है, तो कई बार उन्हें सजा भी देनी पड़ सकती है। इन सभी स्थितियों में बुरा पेरेंट्स को ही महसूस होता है क्योंकि कोई भी माता-पिता अपने बच्चे को न तो डांटना पसंद करते हैं और न ही सजा देना।

    निम्न कुछ ऐसी समस्याएं हैं जो माता-पिता को अक्सर अपने बच्चे की किशोरावस्था में बदलाव के कारण होती हैं :

    • डिप्रेशन
    • आर्थिक तंगी
    • खुद को समय न दे पाना
    • पारिवारिक स्थिति को नियंत्रित रखना
    • आराम का समय न मिलना – बच्चे के जन्म से लेकर जवानी तक माता-पिता को खुद आराम का समय ही नहीं मिल पाता है। ऐसे में किशोरावस्था में व्यवहार का अनुचित होना उन्हें और ठेस पहुंचा सकता है।
    • स्वास्थ्य संबंधित समस्याएं

    किशोरावस्था में बदलाव का असर बच्चों जितना ही उनके पेरेंट्स पर भी पड़ता है। बच्चे को कई अलग प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है तो माता-पिता को उन्हें समझने व उसका समाधान निकालने के लिए कई कठिनाइयों से जूझना पड़ सकता है। अंग्रेजी में एक कहावत है “Once a parent always a parent” यानी एक बार माता-पिता बनने के बाद बच्चों को पालने की जिम्मेदारी कभी खत्म नहीं होती।

    अगर इससे जुड़ा आपका कोई सवाल है, तो अधिक जानकारी के लिए आप अपने डॉक्टर से संपर्क कर सकते हैं।

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