सिजेरियन या फिर सी-सेक्शन सर्जरी बच्चा पैदा होने के दौरान की जाती है। इस दौरान मां के पेट और यूट्रस में कट किया जाता है ताकि बच्चे को बाहर निकाला जा सके। सर्जरी का सहारा डॉक्टर्स तब लेते हैं जब नॉर्मल डिलिवरी के दौरान मां या बच्चे की जान को खतरा हो। कई बार महिलाएं इलेक्टिव सिजेरियन यानी अपनी मर्जी से सिजेरियन कराना पसंद करती हैं क्योंकि उन्हें लेबर पेन नहीं सहना होता है। डॉक्टर इमरजेंसी सिजेरियन कुछ खास परिस्थियों में करते हैं। जब कोई समस्या प्रेग्नेंसी के दौरान ही पता चल जाती है तो पहले से ही तय हो जाता है कि सिजेरियन से ही बच्चा पैदा होगा। जब पहले से पता हो कि सी-सेक्शन होना है तो महिलाएं सी-सेक्शन बर्थ प्लान कर सकती हैं। इस दौरान कुछ बातों का खास ख्याल भी रखना पड़ता है।
क्या कहते हैं सी-सेक्शन से जुड़े आकंड़े?
संख्याओं पर नजर डाली जाए तो भारत में 2005-06 में सिजेरियन सर्जरी का आंकड़ा मात्र 8.5% था। वहीं, 2015-16 में यह आंकड़ा बढ़कर करीब 17.5% पर पहुंच गया। आंकड़ों से यह स्पष्ट संकेत मिलता है कि भारत में इसके चलन में काफी इजाफा हुआ है। देश के ग्रामीण इलाकों में यह आंकड़ा 12.9% से कम था।
सिजेरियन डिलिवरी को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू एचओ ) ने 10 और 15% का लक्ष्य स्थापित किया है। भारत के आंकड़े इस सीमा को पार करते हुए नजर आते हैं। यह आंकड़ा नीदरलैंड और फिनलैंड जैसे धनी देशों से भी ज्यादा है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, भारत के बिहार और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में सिजेरियन सर्जरी का चलन 10% से भी कम है। इसके पीछे सबसे बड़ी वजह है वहां पर स्वास्थ्य सुविधाओं का आभाव। देश के सबसे गरीब तबके में यह आंकड़ा 4.4% से भी कम है।
वहीं, दक्षिण भारत के आंध्र प्रदेश, केरल और तेलंगाना के आर्थिक रूप से समृद्ध तबके में हर तीसरी डिलिवरी सिजेरियन सर्जरी के जरिए होती है। इनमें यह आंकड़ा 50% से भी ऊपर है।
इमरजेंसी सिजेरियन डिलिवरी की जरूरत क्यों पड़ती है?
अनप्लांड सिजेरियन डिलिवरी की जरूरत निम्नलिखित स्थितियों में होती है। जैसे-
- गर्भ में एक से ज्यादा शिशु का होना और डिलिवरी के दौरान परेशानी होना।
- अत्यधिक वजायनल ब्लीडिंग होना या प्री-क्लेम्पसिया।
- गर्भ में शिशु की सेहत को नुकसान पहुंचना।
- सामान्य से ज्यादा शिशु का बड़ा होना।
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सिजेरियन डिलिवरी के बाद सोने में परेशानी क्यों होती है?
प्रेग्नेंसी और डिलिवरी के बाद हॉर्मोन लेवल में बदलाव के कारण शुरू हुई स्थिति को ऑब्स्ट्रक्टिव स्लीप एपनिया (obstructive sleep apnea) (OSA) कहते हैं। ओएसए के कारण सोने के दौरान सांस लेने में परेशानी महसूस हो सकती है और सी-सेक्शन की स्थिति में नींद न आने की समस्या बढ़ सकती है।
39वें सप्ताह के बाद क्यों किया जाता है सी-सेक्शन बर्थ प्लान?
39वें सप्ताह से पहले शेड्यूल किए गए सी-सेक्शन के दौरान जटिलताएं आ सकती हैं। सी-सेक्शन बर्थ प्लान करने से संभावित जोखिम को टाला जा सकता है। कुछ समस्याएं जैसे प्लेसेंटा प्रीविया या फीटल डिस्ट्रेस, मल्टिपल प्रेग्नेंसी आदि में सी-सेक्शन बर्थ प्लान करना जरूरी होता है। वैसे तो 37 सप्ताह के दौरान गर्भ को पूर्ण अवधि का माना जाता है, लेकिन डॉक्टर सी-सेक्शन के लिए 39 सप्ताह का इंतजार करेंगे।
गर्भ के अंदर शिशु विभिन्न दरों या समय पर डेवलप होते हैं। कुछ बच्चे गर्भ में 37 सप्ताह में पूर्ण रूप से विकिसित हो जाते हैं, वहीं कुछ बच्चे 37 वीक के दौरान भी विकसित होते रहते हैं। इसलिए 37वें सप्ताह में सी-सेक्शन करना रिस्की रहता है। 39वें सप्ताह से पहले जन्म लेने वाले बच्चों में कुछ स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं जैसे,
- सांस लेने में परेशानी
- लो ब्लड शुगर की समस्या
- बच्चे के तापमान को नियंत्रित करने में समस्या
- पीलिया की समस्या
- फीडिंग के दौरान कठिनाई
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पहले से तय सिजेरियन किन परिस्थितियों में होता है?
इलेक्टिव सिजेरियन यानी पहले से तय सिजेरियन कुछ परिस्थितयों के चलते किया जाता है। इलेक्टिव सिजेरियन लेबर पेन के पहले किया जाता है। अगर महिला के,
- पेट में एक से ज्यादा बच्चे हो।
- जेनिटल हर्पीस है तो बच्चे को सामान्य विधि से पैदा होने पर इंफेक्शन का खतरा होगा।
- प्लासेंटा प्रीविया है तो डॉक्टर सी-सेक्शन की राय देगा।
- प्री-क्लेम्पप्सिया की समस्या है तो सिजेरियन की सलाह दी जाएगी।
- पहले से हो चुकी सर्जरी भी सी-सेक्शन को इलेक्टिव बना देती है।
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सी-सेक्शन बर्थ प्लान के दौरान इन बातों का रखें ध्यान
अगर आपका सिजेरियन इलेक्टिव है तो आप सी-सेक्शन बर्थ प्लान कर सकती हैं। आपको इसके लिए हॉस्पिटल नर्स से बात करनी होगी जैसे कि-
- सी-सेक्शन बर्थ प्लान करते समय ये निश्चित करें कि जन्म के समय आपके साथ कौन रहना चाहता है?
- सी-सेक्शन बर्थ प्लान करते वक्त ये जरूर पूछें कि आप जन्म के समय अगर बच्चे की तस्वीर ले सकती हैं।
अगर आप बच्चे को पैदा होते हुए देखना चाहती हैं तो इसके लिए स्क्रीन की जरूरत पड़ेगी। आपको इसके लिए हॉस्पिटल में पहले से बात करनी होगी।
- अगर आप सबसे पहले अपने बच्चे से बात करना चाहती हैं तो इसके लिए भी सी-सेक्शन बर्थ प्लान करते वक्त तैयारी कर सकती हैं ताकि सभी डॉक्टर्स कुछ समय के लिए आवाज न करें।
- सर्जरी के दौरान खून की कमी होने पर खून चढ़ाने की जरूरत होती है। आप ऐसे व्यक्ति को भी अपने साथ ला सकती हैं जिसका ब्लड ग्रुप आपसे मिलता हो। वैसे तो डॉक्टर अपने पास इंतजाम रखते हैं, लेकिन अगर आप ऐसा कर सके तो भी ठीक है। सी-सेक्शन बर्थ प्लान करते वक्त इस बात का भी ध्यान रखें।
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सी-सेक्शन बर्थ प्लान करते समय पसंदीदा डेट
अगर आप सी-सेक्शन बर्थ प्लान करते समय पसंदीदा डेट के बारे में सोच रही हैं तो ऐसा भी हो सकता है। कई बार कोई परेशानी के न होने पर डॉक्टर 39वें सप्ताह के बाद आपकी पसंदीदा डेट पर सिजेरियन कर सकते हैं। अगर कुछ समस्या होती है तो तय समय पर सिजेरियन करना मुश्किल हो जाता है। भले ही आप सी-सेक्शन बर्थ प्लान करते समय बहुत एक्साइटेड हो, लेकिन एक बात जरूर ध्यान दें कि आपकी प्राथमिकता स्वस्थ्य बच्चा और मां है। अगर जन्म के बाद दोनों ही हेल्दी हैं तो सबसे बड़ी बात है। सी-सेक्शन बर्थ प्लान आपके अनुसार नहीं हो पाया है तो परेशान न हो।
सी-सेक्शन के लिए तारीख चुनना हमेशा संभव नहीं हो पाता है। अगर आपको लगता है कि आप सी-सेक्शन बर्थ प्लान अपने अनुसार ही करना चाहती हैं तो एक बार अपने डॉक्टर से जरूर संपर्क करें। सी-सेक्शन बर्थ प्लान कैसे किया जा सकता है इसकी जानकारी डॉक्टर ही दे सकता है। हैलो हेल्थ ग्रुप चिकित्सक सलाह, निदान या उपचार प्रदान नहीं करता है।
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