डिलिवरी के दौरान महिलाओं के शरीर में खून की कमी हो सकती है। अगर डिलिवरी नॉर्मल हुई है तो खून कम होने का रिस्क थोड़ा कम रहता है। वहीं सी-सेक्शन से डिलिवरी होने पर महिला के शरीर में खून की कमी हो जाती है। अगर महिला ने सी-सेक्शन की हेल्प से दो से ज्यादा बच्चों को जन्म दिया है तो पेट के आसपास के टिशू ढीले पड़ने लगते हैं। जब एक महिला कंसीव करती है तो उसे ग्रेविडा शब्द से संबोधित करते हैं। अगर एक महिला ने अपने जीवन में सात बार प्रेग्नेंट हुई तो मल्टीग्रेविडा G7 कहा जाएगा। मल्टीग्रेविडा की संख्या बढ़ने के साथ ही होने वाली मां के साथ रिस्क भी जुड़ते चले जाते हैं। सी-सेक्शन हो या फिर नॉर्मल डिलिवरी, प्रेग्नेंसी की संख्या बढ़ने के साथ ही भविष्य में इससे संबंधित रिस्क के बढ़ने की संभावना भी रहती है। इस आर्टिकल के माध्यम से जानिए कि मल्टीग्रेविडा का क्या मतलब होता है।
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मल्टीग्रेविडा से क्या मतलब है?
ग्रेविडा से मतलब महिला के प्रेग्नेंट होने की संख्या से है। महिला के प्रेग्नेंट होने के बाद बच्चे की डिलिवरी हुई है या नहीं, इसे ग्रेविडिटी में नहीं गिना जाता है। जबकि मल्टिपैरा प्रेग्नेंसी में 20 सप्ताह का गर्भ होना जरूरी होता है। पैरिटी (Parity) से मतलब फीटस को दिए गए जन्म की संख्या से है। इसमे जिंदा पैदा हुए या फिर मरे हुए बच्चे को भी शामिल किया जाता है। पैरिटी में सात महीने तक की प्रेग्नेंसी को शामिल किया जाता है।
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इस तरह से समझें मल्टीग्रेविडा का गणित
मल्टिग्रेविडा को समझने के लिए हम आपको यहां एक उदाहरण दे रहे हैं, जो आपकी जानकारी को बढ़ाने का काम करेगा।
एक महिला जो पहली बार प्रेग्नेंट हुई, लेकिन मिसकैरिज हो गया। दूसरी बार प्रेग्नेंट होने पर भी मिसकैरेज हो गया। इस महिला की मल्टिग्रेविडा 2 यानी G2 होगा। अब यही महिला तीसरी प्रेग्नेंसी को कंप्लीट कर लेती है और एक बच्चे को जन्म देती है। चौथी बार प्रेग्नेंट होने पर आठवें महीने में महिला का मिसकैरिज हो गया। इस महिला की ग्रेविडा G2 और मल्टिपैरा 2 यानी P2 होगा। अगर कोई महिला दो बार प्रेग्नेंट हुई, लेकिन दूसरे या तीसरे महीने में मिसकैरिज हो गया तो इस महिला की ग्रेविडा G2 होगा।
मल्टीग्रेविडा और प्रेग्नेंसी से रिलेटेड टर्म
नलीपेरस वीमन ( Nulliparous woman)
जिसने कभी भी बच्चे को जन्म न दिया हो।
प्राइमीग्रेविडा (PRIMIGRAVIDA])
फर्स्ट प्रेग्नेंसी के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
मल्टीग्रेविडा (Multigravida)
जो महिला एक से ज्यादा बार प्रेग्नेंट हो।
ग्रांड मल्टीपैरा (A grand multipara)
जो महिला पांच बार से ज्यादा बार प्रेग्नेंट हो चुकी हो, और प्रेग्नेंसी 24 हफ्ते से ज्यादा हो। ऐसी महिलाएं प्रेग्नेंसी के हाई रिस्क में रहती हैं।
ग्रांड मल्टिग्रेविडा (Grand multigravida)
जो महिला पांच बार से ज्यादा बार प्रेग्नेंट हो चुकी हो।
ग्रेट ग्रांड मल्टीपैरा (Great grand multipara )
जिस महिला सात से ज्यादा प्रेग्नेंसी हो चुकी हो और जिसने गर्भकाल का 24वां सप्ताह पार कर लिया हो।
मल्टीग्रेविडा के कारण प्रेग्नेंसी का रिस्क
- मल्टीग्रेविडा प्रेग्नेंसी की संख्या से रिलेटेड है। महिला की पहली प्रेग्नेंसी जैसी होती है, उसका असर भविष्य में होने वाली प्रेग्नेंसी पर भी पड़ता है।
- अगर पहली प्रेग्नेंसी में किसी भी प्रकार का खतरा रहा है तो दूसरी प्रेग्नेंसी में रिस्क बढ़ जाता है। मल्टीग्रेविडा के कारण भविष्य में खतरा अधिक बढ़ जाता है।
- प्रेग्नेंसी की संख्या बढ़ने यानी मल्टीग्रेविडा के कारण होने वाले बच्चे और को भी खतरा बढ़ने के चांसेस बढ़ जाते हैं।
- अगर डॉक्टर मल्टीग्रेविडा के कारण प्रेग्नेंसी को लेकर भविष्य में खतरा बता रहे हो तो कंसीव करने से पहले डॉक्टर से सलाह लेना जरूरी हो जाता है।
मल्टीग्रेविडा से जुड़े रिस्क
- प्रीक्लेम्पसिया (pre-eclampsia) विकसित होने का जोखिम।
- लेबर की फर्स्ट स्टेज में देरी होना, इसे प्राइमाग्रेविडा में सामान्य माना जाता है।
- प्राइमाग्रेविडा में 37 प्रतिशत कठिन लेबर के चांसेस।
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प्रीक्लेमप्सिया (preeclampsia) क्या होता है?
20 सप्ताह की प्रेग्नेंसी के बाद हाई ब्लड प्रेशर और यूरिन में अधिक मात्रा में प्रोटीन का शामिल होना, प्रीक्लेम्पसिया के कुछ मुख्य लक्षणों में से हैं। प्रीक्लेम्पसिया कम से कम पांच से आठ प्रतिशत गर्भवती महिलाओं को प्रभावित करता है।
प्रीक्लेमप्सिया (preeclampsia) के क्या लक्षण हैं?
आमतौर महिलाओं को प्रीक्लेम्पसिया के बारे में पता ही नहीं चलता है। डॉक्टरी जांच के बाद ही इस समस्या के बारे में जानकारी मिलती है। इसलिए प्रीक्लेम्पसिया के लक्षणों को जानना जरूरी है, जिससे समय रहते ही इलाज किया जा सके-
- यूरिन में अतिरिक्त प्रोटीन।
- ब्लड प्रेशर अचानक से बढ़ जाना। करीब 140/90 या उससे ज्यादा हो जाना।
- तेज सिरदर्द।
- धुंधला दिखना।
- पेट के ऊपरी हिस्से में दर्द, आमतौर पर दाईं ओर पसलियों के नीचे।
- उल्टी या मितली होना।
- यूरिन की मात्रा में कमी आना।
- ब्लड में प्लेटलेट्स के स्तर में कमी (थ्रोम्बोसाइटोपेनिया)।
- सांस लेने में तकलीफ होना।
- अचानक वजन बढ़ना और सूजन आना- विशेष रूप से चेहरे और हाथों पर।
ये लक्षण दिखते ही अपने डॉक्टर से तुरंत संपर्क करें क्योंकि प्रीक्लेम्पसिया गर्भ में पल रहे शिशु को नुकसान पहुंचा सकता है।
प्रीक्लेम्पसिया (preeclampsia) की समस्या किसे हो सकती है?
निम्नलिखित परिस्थितियों में प्रीक्लेम्पसिया होने की संभावना बढ़ सकती है-
- प्रेग्नेंट महिला की मां या बहन को प्रीक्लेम्पसिया पहले हुआ हो।
- जो महिलाएं मोटापे से ग्रस्त हैं या जिनका बीएमआई 30 या उससे अधिक है।
- जिन महिलाओं को गर्भावस्था से पहले किडनी की कोई समस्या रही हो।
- 20 वर्ष से कम और 40 वर्ष से अधिक उम्र की प्रेग्नेंट महिलाओं में प्रीक्लेम्पसिया का खतरा सबसे अधिक रहता है।
- इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) के जरिए गर्भधारण किया है, तो प्रीक्लेम्पसिया का खतरा बढ़ जाता है।
- प्रेग्नेंसी के दौरान प्रीक्लेम्पसिया डेवलप होने की संभावना सबसे अधिक होती है।
- अगर प्रेग्नेंट महिला को पहले से ही हाई ब्लड प्रेशर हो।
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मल्टीग्रेविडा से जुड़ा हुआ रिस्क
- मल्टीग्रेविडा के कारण प्री-क्लेम्पसिया विकसित होने का अधिक जोखिम।
- लेबर के फर्स्ट स्टेज में देरी होना, इसे प्राइमाग्रेविडी में नॉर्मल कहा जा सकता है।
- प्राइमाग्रेविडी की स्थिति में 37 प्रतिशत केस डिफिकल्ट पाए गए हैं।
- मल्टीग्रेविडा की समस्या पर डॉक्टर से राय लेना जरूरी होता है।
अगर कोई भी महिला कई बार प्रेग्नेंट हो चुकी है और उसकी प्रेग्नेंसी सक्सेसफुल नहीं रही है तो उसे डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। मल्टीग्रेविडा के कारण प्रेग्नेंसी में समस्या हो सकती है। डॉक्टर ये बात मानते हैं कि जब महिला कई बार प्रेग्नेंट होती है और बच्चे पैदा करती है तो उसके शरीर में कमजोरी आ जाती है। साथ ही कई बार सी-सेक्शन होने से पेट की मसल्स को भी नुकसान पहुंचता है। अगर महिला ये सब जानते हुए भी फिर से प्रेग्नेंट होती है तो उसकी जान को भी खतरा हो सकता है। अगर डॉक्टर किसी भी कमी के चलते महिला को भविष्य में कंसीव करने से मना करते हैं तो डॉक्टर की बात जरूर माननी चाहिए। ऐसा न करने से मां के साथ ही बच्चे को भी खतरा हो सकता है।
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