आपने रेडिएशन के बारे में तो सुना ही होगा। रेडिएशन की बात होने पर लोग अक्सर मोबाइल के रेडिएशन की चर्चा करते हैं। यानी मोबाइल से निकलने वाला विकिरण। इस रेडिएशन से होने वाली मां और इसका बच्चा भी प्रभावित हो सकता है। प्रेग्नेंसी में रेडिएशन पेट में पल रहे बच्चे में नकारात्मक प्रभाव भी डाल सकता है। प्रेग्नेंसी में रेडिएशन के कारण होने वाली मां सांस लेने पर रेडियो एक्टिव मैटीरियल शरीर में खींच लेती है।
मां के खून से रेडियो एक्टिव मैटीरियल फीटस तक पहुंच जाते हैं। रेडिएशन का होने वाले बच्चे पर क्या प्रभाव पड़ेगा, ये बात फीटस की उम्र और रेडिएशन की मात्रा पर निर्भर करती है। पेट में पल रहा बच्चा अर्ली डेवलपमेंट स्टेज में अधिक सेंसिटिव होता है। प्रेग्नेंसी में रेडिएशन के कारण होने वाले बच्चे को नुकसान पहुंच सकता है। प्रेग्नेंसी में रेडिएशन और एक्स-रे का होने वाले बच्चे पर क्या प्रभाव पड़ता है, इस आर्टिकल के माध्यम से जानें।
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फीटस की अर्ली स्टेज और प्रेग्नेंसी में रेडिएशन
फीटस डेवलपमेंट की अर्ली स्टेज रेडिएशन के लिए अधिक सेंसिटव होती है। प्रेग्नेंसी में रेडिएशन का प्रभाव दो हफ्ते से 18 सप्ताह की प्रेग्नेंसी के दौरान अधिक रहता है। माइक्रोवेव, अल्ट्रासाउंड, रेडियो फ्रीक्वेंसी और इलेक्ट्रोमैग्नेटिक वेव्स आदि में भी रेडिएशन होता है। प्रेग्नेंसी में रेडिएशन होने वाले बच्चे को प्रभावित करेगा या नहीं, ये रेडिएशन की तीव्रता पर निर्भर करता है।
कुछ वैज्ञानिक यह मानते हैं कि नॉन-आयोनाइजिंग रेडिएशन, आयोनाइजिंग रेडिएशन की तुलना में हल्की होती है। हॉस्पिटल में इस्तेमाल किए जाने वाले एक्स-रे मशीन, रेडिएशन थैरिपी मशीन और सीटी स्कैनर आदि आयोनाइजिंग रेडिएशन छोड़ती हैं। इसलिए विशेषज्ञों का मानना है कि गर्भावस्था में नॉन-आयोनाइजिंग रेडिएशन से गर्भ में पलने वाले शिशु को ज्यादा नुकसान पहुंचने की संभावना नहीं रहती है। प्रेग्नेंसी में रेडिएशन का खतरा उसकी तीव्रता पर भी निर्भर करता है।
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प्रेग्नेंसी में रेडिएशन और फीटस
प्रेग्नेंसी में रेडिएशन की वजह से मां के पेट में पल रहे बच्चे में प्रभाव पड़ सकता है। प्रेग्नेंसी में रेडिएशन का खतरा काफी हद इस बात पर भी निर्भर करता है कि रेडिएशयन किस प्रकार का है। आयनीकृत विकिरण और नॉन आयनीकृत विकिरण मेडिकल प्रॉसीजर, वर्कप्लेस के दौरान, डायनॉस्टिक टेस्ट के दौरान प्रेग्नेंट वीमन को प्रभावित कर सकता है। नॉन आयनीकृत विकिरण माइक्रोवेव, अल्ट्रासाउंड, रेडियो फ्रीक्वेंसी और इलेक्ट्रोमैग्नेटि वेव्स के कारण हो सकता है। अभी तक नॉन आयनीकृत विकिरण का होने वाले बच्चे पर प्रभाव स्पष्ट नहीं हो सका है। इस कारण प्रेग्नेंसी में अल्ट्रासोनोग्राफी को सेफ कहा जा सकता है।
आयनीकृत विकिरण पार्टिकल्स में, इलेक्ट्रोमेग्नेटिक रेडिएशन जैसे कि गामा रेज, एक्स रेज आदि में होती हैं। दो से सात सप्ताह का भ्रूण विकिरण से प्रभावित हो सकता है। विकिरण का प्रभाव आर्गेनोजेनेसिसि की प्रक्रिया के दौरान पड़ता है। प्रेग्नेंसी में रेडिएशन के हाई एक्सपोजर के कारण फीटस की ग्रोथ में समस्या, अचानक से अबॉर्शन की स्थिति, मानसिक मंदता आदि समस्या पैदा हो सकती है। अगर महिला किसी कारणवश प्रेग्नेंसी में रेडिएशन के संपर्क में हो तो उसे डॉक्टर से संपर्क कर प्रेग्नेंसी मैनेजमेंट के बारे में जानकारी लेनी चाहिए।
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प्रेग्नेंसी में रेडिएशन और उसका स्टेज एक्सपोजर
- प्रेग्नेंसी के पहले दो हफ्तों के बाद या पीरियड्स के दूसरे दो सप्ताह में भ्रूण एक्स किरणों के प्रति संवेदनशील होता है। 50 mSv से अधिक मात्रा में रेडिएशन से गर्भपात की स्थिति भी पैदा हो सकती है।
- गर्भावस्था के तीसरे से आठवें सप्ताह तक प्रारंभिक भ्रूण के विकास हो रहा होता है। इस दौरान रेडिएशन के अधिक एक्सपोजर से जन्म दोष, गर्भावस्था की समस्याएं या बच्चे का विकास मंद हो सकता है।
- गर्भावस्था के आठवें से पंद्रहवें सप्ताह तक भ्रूण के केंद्रीय तंत्रिका तंत्र ( central nervous system) पर विकिरण का इफेक्ट हो सकता है। विकासशील भ्रूण के आईक्यू पर प्रभाव देखा जा सकता है।
- गर्भावस्था के 20 वें सप्ताह के बाद जब भ्रूण पूरी तरह से विकसित हो जाता है तो रेडिएशन का इफेक्ट ज्यादा नहीं दिखाई पड़ता है। होने वाली मां को मिसकैरिज का खतरा नहीं रहता है। इस दौरान डायग्नोस्टिक रेडियोलॉजिकल प्रॉसीजर का प्रभाव होने वाले बच्चे पर नहीं पड़ता है।
एक्स-रे इमेजिंग का क्या काम है?
कई बार चोट लगने के कारण, गिर जाने की वजह से या किसी अन्य दुर्घटना की वजह से बोन में फैक्चर हो जाता है। एक्स-रे के दौरान टेक्निशियन शरीर के जख्मी हिस्से को एक्स-रे मशीन और फोटोग्राफिक फिल्म के बीच में रखकर एक्स-रे करता है। जब एक्स-रे किया जाता है तो शरीर को स्थिर रखने को बोला जाता है। एक्स-रे के बाद शरीर की आंतरिक संरचना नजर आती है। इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेज की हेल्प से एक्स-रे किया जाता है। प्रेग्नेंसी के दौरान एक्स-रे को लेकर डॉक्टर विचार कर सकता है। अगर प्रेग्नेंट महिला को चोट लगी है तो डॉक्टर इमेजिंग अध्ययन का उपयोग करने पर विचार करेगा और आपकी चोट को ठीक करने का प्रयास करेगा। ऐसे समय में हो सकता है कि आपका डॉक्टर एक्स-रे विकिरण का प्रयोग न करें।
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प्रेग्नेंसी में रेडिएशन और एक्स-रे का इफेक्ट
एक्स-रे एक्जामिनेशन के दौरान हाथ, पैर, सिर, दांत या सीने और प्रजनन अंग को एक्स-रे बीम के संपर्क में नहीं आने दिया जाता है। इस तरह से मां के पेट में पल रहे बच्चे को एक्स-रे से किसी भी प्रकार का खतरा नहीं रहता है। हालांकि मां के निचले धड़ का एक्स-रे जैसे, पेट, पेल्विक, लोअर बैक या किडनी के एक्स रे के दौरान बीम का कुछ हिस्सा अजन्मे बच्चे तक पहुंच सकता है। इस बारे में चिंता की जा सकती है।
विकिरण की कम मात्रा अजन्मे बच्चे को नुकसान पहुंचा सकती है। बच्चे विकिरण, कुछ मेडिसिन, एल्कोहॉल, या इंफेक्शन वाली चीजों के प्रति बहुत संवेदनशील होते हैं। अजन्मे बच्चे का गर्भ में तेजी से विकास हो रहा होता है। साथ ही कोशिकाओं में भी तेजी से विभाजन हो रहा होता है। ऐसे में विकिरण कोशिका विभाजन के समय ऊतकों में परिवर्तन का काम कर सकता है। इससे कुछ जन्मदोष या ल्यूकेमिया जैसी बीमारी हो सकती है। वैज्ञानिकों का मानना है कि बच्चे के डेवलपमेंट प्रॉसेस में हैरिडिटी और अचानक से आए परिवर्तन समस्या का कारण बन सकते हैं।
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इन बातों का रखें ध्यान
- हमेशा लेड एप्रिन पहनें अगर यह एक्स-रे वाली जगह के साथ कोई भी हस्तक्षेप न करें। यहां तक कि अगर आप गर्भवती नहीं हैं, तो लेड एप्रिन पहनने से आपके प्रजनन अंगों को आनुवांशिक क्षति के जोखिम से बचने में मदद मिलेगी।
- अगर बच्चे या पालतू पशु का एक्स-रे किया जा रहा है तो उसके साथ न खड़ी हो। ऐसे समय में लेड एप्निन पहनना सही रहेगा।
- अगर आप ऐसी जगह पर काम करते हैं जहां विकिरण का खतरा रहता है तो ऐसे समय में फिल्म बैज पहनें। बच्चे के सेफ्टी के लिए ये बहुत जरूरी है। बैज को ऐनालाइज करके बच्चे की सुरक्षा को सुनिश्चित किया जा सकता है।
- आप इस संबंध में अपने काम वाली जगह में बात कर सकते हैं। विकिरण के स्त्रोत से खुद को बचाने के लिए संभव प्रयास करें।
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प्रेग्नेंसी की शुरुआत में रेडिएशन का खतरा महिलाओं को हो सकता है। प्रेग्नेंसी में रेडिएशन का हाई एक्सपोजर गर्भ में पल रहे फीटस को प्रभावित कर सकता है। प्रग्नेंसी में रेडिएशन का खतरा किस प्रकार से महिलाओं को प्रभावित करता है, इस बारे में एक बार डॉक्टर से जरूर परामर्श करें।
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