आइए, अब जानते हैं कीटो डायट और टाइप 1 डायबिटीज (Keto Diet and Type 1 Diabetes) के बारे में:
कीटो डायट और टाइप 1 डायबिटीज (Keto Diet and Type 1 Diabetes)
अब बात करते हैं कीटो डायट और टाइप 1 डायबिटीज (Keto Diet and Type 1 Diabetes) के बारे में। दरअसल, टाइप 1 डायबिटीज एक ऑटोइम्यून बीमारी है। हमारा इम्यून सिस्टम एक तरह की शील्ड है, जो वायरस, बैक्टीरिया, कवक, परजीवी और विषाक्त पदार्थों से हमारे शरीर की रक्षा करती है। कुछ जेनेटिक या एनवायर्नमेंटल ट्रिगर इम्यून सिस्टम को हानि पहुंचा सकते हैं और अग्न्याशय के इंसुलिन बनाने वाले बीटा सेल्स (Insulin-Producing Beta Cells) को नष्ट कर देते हैं, जिससे शरीर इंसुलिन बनाने में असमर्थ हो जाता है। जब अग्न्याशय इंसुलिन नहीं बना पाता तो यह टाइप 1 डायबिटीज का कारण बन सकता है। टाइप 1 डायबिटीज हर उम्र के लोगों को प्रभावित करती है।
ऐसा माना गया है कि कीटोजेनिक डायट ब्लड शुगर को कंट्रोल करने और इंसुलिन की आवश्यकताओं को कम करने के लिए लाभदायक है। लेकिन, टाइप 1 डायबिटीज से पीड़ित लोगों के लिए यह डायट कई जटिलताओं का कारण भी बन सकती है। आइए जानते हैं कीटो डायट और टाइप 1 डायबिटीज (Keto Diet and Type 1 Diabetes) से जुड़े कुछ तथ्यों के बारे में:
यह भी पढ़ें: टाइप-1 डायबिटीज क्या है? जानें क्या है जेनेटिक्स का टाइप-1 डायबिटीज से रिश्ता
डायबिटिक कीटोएसिडोसिस और न्यूट्रिशनल कीटोसिस (Diabetic Ketoacidosis and Nutritional Ketosis )
अगर आप टाइप 1 डायबिटीज की समस्या से पीड़ित हैं, तो आपके लिए डायबिटिक कीटोएसिडोसिस (Diabetic Ketoacidosis) और न्यूट्रिशनल कीटोसिस (Nutritional Ketosis) के कांसेप्ट के बारे में समझना जरूरी है। जैसा की हम जानते ही हैं कि कीटो डायट में दिन में कार्बोहाइड्रेट्स की मात्रा 50 ग्राम से भी कम होनी चाहिए और फैट की मात्रा अधिक होनी चाहिए। इससे हमारे लिवर में वसा से कीटोन्स का उत्पादन अधिक होता है और वसा का उपयोग इसके मुख्य ईंधन स्रोत के रूप में करता है, जो कि कार्ब्स के विपरीत है।
इससे मेटाबॉलिज्म में इस बदलाव के कारण न्यूट्रिशनल कीटोसिस होता है, जिसका अर्थ है कि हमारा शरीर ऊर्जा के लिए हमारे खून में कीटोन्स का उपयोग करता है। लेकिन, दूसरी जगह डायबिटिक कीटोएसिडोसिस एक मेडिकल इमरजेंसी है। जो अधिकतर टाइप 1 डायबिटीज के मरीजों में होती है, अगर वो इंसुलिन नहीं लेते हैं। इंसुलिन के बिना ब्लड शुगर को शरीर के सेल्स तक पहुंचाने के लिए ब्लड शुगर और कीटोन लेवल बहुत अधिक बढ़ जाता है जिससे खून का एसिड-बेस संतुलन गड़बड़ा जाता है।
डायबिटिक कीटोएसिडोसिस और न्यूट्रिशनल कीटोसिस के बीच में अंतर् इस तरह से है:
- किटोसिस में, केवल कीटोन का स्तर अधिक होता है, जिससे शरीर को ऊर्जा के लिए ज्यादातर वसा का उपयोग करने की अनुमति मिलती है।
- डायबिटिक कीटोएसिडोसिस में, ब्लड शुगर और कीटोन लेवल अधिक होते हैं, जिससे गंभीर स्वास्थ्य स्थिति पैदा हो सकती है।