आई कैंसर से मतलब आंख में होने वाले कैंसर से है। आई कैंसर के कारण सेल्स (कोशिका) में तेजी से ग्रोथ होने लगती है। सेल्स में अचानक से ग्रोथ के कारण सेल्स चारों ओर फैलने लगती हैं। आई कैंसर में मेलेनोमा (melanoma) कॉमन टाइप है। अन्य प्रकार के आई कैंसर भी पाए जाते हैं जो आंखों की विभिन्न प्रकार की सेल्स को प्रभावित करते हैं। आई कैंसर अनकॉमन होता है। आई कैंसर आंख के आउटर पार्ट जैसे कि आईलिड को प्रभावित करता है। अगर कैंसर आईबॉल के अंदर पाया जाता है तो इसे इंट्राऑकुलर कैंसर कहते हैं। बच्चों में कैंसर के लक्षण दिख सकते हैं। बच्चों में सबसे कॉमन आई कैंसर रेटीनोब्लास्टोमा है, जो कि रेटीना की सेल्स से शुरू होता है। आई कैंसर आंख के साथ ही पूरे शरीर में भी फैल सकता है। अगर आपको आई कैंसर के बारे में जानकारी नहीं है तो ये आर्टिकल पढ़ें और जाने कि आई कैंसर कितने प्रकार का होता है।
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आई कैंसर आंख के किस भाग में होता है ?
आंखें विभिन्न लेयर्स से मिलकर बनी होती हैं। आखों में आईबॉल, रेटिन आदि स्थानों में आई कैंसर होने की संभावना होती है।
- आईबॉल (ग्लोब) जैली की तरह दिखने वाले मटेरियल से भरा हुआ होता है, जिसे विट्रियस ह्यूमर (vitreous humor ) कहते हैं।
- विट्रियस ह्यूमर में तीन परतें होती हैं, जिन्हें स्केलेरा, यूविया और रेटिना कहते हैं।
- आईबॉल के आसपास के टिशू को ऑर्बिट कहते हैं।
- एडनेक्सल (एसेसरी) स्ट्रक्चर जैसे कि आईलिड और टीयर ग्लैंड्स।
- आंखों की विभिन्न संरचनाएं सेल्स से बनी होती है और इनमें से किसी भी स्थान में कैंसर होने का खतरा रहता है।
इंट्राओक्युलर कैंसर (Intraocular cancers)
जब आंखों में कैंसर की शुरुआत होती है तो इसे इंट्राओक्युलर कैंसर कहते हैं। कैंसर जैसे ही आंखों के साथ शरीर के दूसरे भागों में फैलने लगता है, इसे सेकेंड्री इंट्राओक्युलर कहते हैं। एडल्ट्स में मोस्ट कॉमन प्राइमरी इंट्राओक्युलर कैंसर है,
- मेलानोमा (इंट्राओक्युलर मेलेनोमा आई कैंसर के बारे में जानकारी देता है)
- नॉन- हॉजकिन लिंफोमा (Non-Hodgkin lymphoma) में प्राइमरी इंट्राऑक्युलर लिम्फोमा के बारे में अधिक जानकारी मिलती है।
- वहीं बच्चों में रेटिनोब्लास्टोमा (Retinoblastoma) कॉमन कैंसर होता है, ये रेटिना सेल्स से शुरू होता है। आंख के पीछे की ओर संवेदनशील कोशिकाओं में कैंसर सेल्स बनने की शुरुआत होती है।
- मेडुलोएपीथेलिओमा (Medulloepithelioma) सेकेंड मोस्ट कॉमन आई कैंसर है। लेकिन ये रेयर होता है।
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रेटिनोब्लास्टोमा (Retinoblastoma)
यह एक अलग तरह का नेत्र कैंसर है, जिसे रेटिनोब्लास्टोमा कहा जाता है। ये आई कैंसर बच्चों को अधिक प्रभावित करता है। ये कैंसर ज्यादातर म्यूटेशन के कारण होता है।इस आई कैंसर में आंखे के पीछे की ओर संवेदी कोशिकाओं में कैंसर सेल्स बनने की शुरुआत होती है। ये आंख के साथ ही शरीर के अन्य हिस्सों में भी फैलता है। वहीं, अन्य प्रकार के कैंसर भी आंखों को प्रभावित करते हैं। ऑर्बिटल कैंसर ऑईबॉल के टिशू को प्रभावित करता है। साथ ही ये ऑईबॉल से अटैच मसल्स को भी प्रभावित करता है। एडनेक्सल स्ट्रक्चर (Adnexal structures) को एक्सेसरी स्ट्रक्चर भी कहा जाता है। इसमे पलकें और आंसू ग्रंथियां शामिल होती हैं। इनके टिशू में जब अचानक से ग्रोथ शुरू हो जाती है तो कैंसर उत्पन्न होने लगता है। इसे एडनेक्सल कैंसर ( adnexal cancers) कहा जाता है।
कंजंक्टिवल मेलानोमा (Conjunctival melanomas)
स्क्लेरा कवर करने वाली लेयर को कंजंक्टिवा कहते हैं। स्क्लेरा आईबॉल के आउटसाइड के अधिकतर भाग को कवर करने का काम करती है। ये टफ और सफेद रंग की होती है। ये फ्रंट आई में कॉर्निया के साथ होती है, जिसके माध्यम से प्रकाश जाता रहता है। इस तरह का मेलेनोमा रेयर होता है। ये बहुत ही एग्रेसिव होता है और आस-पास के स्ट्रक्चर में बढ़ने लगता है। ये रक्त कोशिका और लिम्फ सिस्टम में भी फैल सकता है। साथ ही ये लंग, लिवर, और ब्रेन में भी फैल सकता है। ये कैंसर जानलेवा भी साबित हो सकता है।
मेलेनोमा आई कैंसर
मेलेनोमा एक प्रकार का कैंसर है जो मेलेनिन का प्रोडक्शन करने वाली कोशिकाओं में फैलता है। आंखों में भी मेलेनिन का उत्पादन करने वाली कोशिकाएं होती हैं। मेलेनिन त्वचा को रंग देने का काम करता है। मेलेनोमा को ऑकुलर मेलेनोमा भी कहते हैं। आई मेलेनोमा को शीशे में देखने के बाद भी नहीं पहचाना जा सकता है क्योंकि मेलेनोमा का पता लगाना मुश्किल होता है।आंख में मेलेनोमा होने पर आमतौर पर किसी भी प्रकार के लक्षण नहीं दिखाई देते हैं। अगर आंख में छोटा मेलेनोमा है तो उसका ट्रीटमेंट आसानी से किया जा सकता है, जबकि लार्ज आई मेलेनोमा को दूर करने के दौरान आंखों की रोशनी जाने का खतरा रहता है।
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मेलेनोमा आई कैंसर के लक्षण क्या हैं ?
आई मेलेनोमा होने पर किसी भी तरह के लक्षण नहीं दिखाई देते हैं। हो सकता है कि किसी व्यक्ति को कुछ लक्षण महसूस हो, जैसे कि
- आंखों के सामने अचानक से सेंसशन होना या फिर धूल की छींटों का एहसास होना।
- आईरिस में डार्क स्पॉट नजर आना
- आंख के सेंटर यानी काली पुतली के आकार में बदलाव नजर आना
- धुंधली दृष्टि हो जाना
- पेरीफेरल विजन का लॉस होना
मेलेनोमा आई कैंसर के कारण क्या हैं ?
मेलेनोमा आई कैंसर का कोई स्पष्ट कारण नहीं है। डॉक्टर्स का मानना है कि आई कैंसर तब होता है जब डीएनए में किसी भी प्रकार की कमी आती है और सेल्स हेल्दी सेल्स प्रभावित होने लगती हैं। म्युटेशन के बाद सेल्स तेजी से अपनी संख्या बढ़ाने लगती हैं। सेल्स आंखों में मेलेनोमा की स्थिति पैदा कर देती है। आई मेलेनोमा आंख की मिडिल लेयर में डेवलप होता है जिसे यूविए (uvea ) कहते हैं। यूविए में तीन पार्ट होते हैं और तीनों ही आई मेलेनोमा से प्रभावित होते हैं।
- आईरिस जोकि फ्रंट आईज का कलर्ड पार्ट होता है।
- कोराइड लेयर जो कि ब्लड वैसल्स और कनेक्टिव टिशू लेयर होती है जोकि रेटीना और स्क्लेरा (sclera) के पीछे की ओर होती है।
- सिलिअरी बॉडी यूविए के सामने होती है और आंखों में तरल पदार्थ स्रावित करती है।
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आई कैंसर के रिस्क फैक्टर क्या हैं ?
आई कैंसर के लिए किसी एक स्पष्ट कारण को नहीं बताया जा सकता है। प्राइमरी मेलेनोमा के लिए कुछ रिस्क फैक्टर होते हैं,
- ब्लू और ग्रीन रंग की आंख वाले व्यक्तियों में मेलोनो कैंसर होने का अधिक खतरा रहता है।
- अधिक साफ रंग वाले लोगों में अन्य व्यक्तियों की अपेक्षा आई कैंसर का खतरा अधिक होता है।
- उम्र बढ़ने का साथ ही आई कैंसर होने की संभावना भी बढ़ जाती है।
- स्किन डिसऑर्डर के कारण भी आई कैंसर हो सकता है। डिस्प्लास्टिक नेवस सिंड्रोम के कारण आई कैंसर का खतरा बढ़ जाता है।
- यूवी लाइट एक्सपोजर के कारण आंखों के कैंसर का खतरा बढ़ जाता है।
- कई बार बच्चों को पेरेंट्स से ऐसे कुछ जीन मिलते हैं, जिनके कारण आई कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। आई कैंसर म्यूटेशन के कारण भी हो सकता है।
कैसे किया जाता है आई कैंसर का टेस्ट ?
अगर आपको आंखों में कुछ अलग किस्म के लक्षण दिख रहे हैं तो तुरंत डॉक्टर से जांच कराएं। डॉक्टर कुछ इमेजिंग टेस्ट करके देखेगा।
अल्ट्रासाउंड
हाई फ्रीक्वेंसी साउंड वेव की हेल्प से आंखों के अंदर के स्ट्रक्चर की जांच की जाती है। अल्ट्रासाउंड की हेल्प से आई मेलेनोमा की जांच की जा सकती है। साथ ही अल्ट्रासाउंड स्कैन ट्यूमर की मोटाई निर्धारित करने में भी मदद कर सकता है।
फ्लोरेसिन एंजियोग्राफी
डॉक्टर यलो कलर की डाई की व्यक्ति की वेंस में इंजेक्ट करता है और फिर कैमरे की हेल्प से आंखों की तस्वीर ली जाती है। ईमेज की हेल्प से डाई के फ्लो को दिखाया जाता है और साथ ही रेटीना की ब्लड वैसेल्स भी दिखने लगती हैं।अगर डॉक्टर को कैंसर का पता चल जाता है तो डॉक्टर पेशेंट को ऑन्कोलॉजिस्ट के पास रिफर कर सकते हैं।
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आई कैंसर का ट्रीटमेंट कैसे किया जाता है ?
आई कैंसर का ट्रीटमेंट बहुत से फैक्टर पर डिपेंड करता है। कुछ फैक्टर जैसे कि आंख में कैंसर ने किस भाग को प्रभावित किया है, ट्यूमर का साइज कितना और किस टाइप का ट्यूमर है। साथ ही व्यक्ति की ओवरऑल हेल्थ का चेकअप भी किया जाता है। अगर आंख में मेलेनोमा का असर दिख रहा है तो डॉक्टर तुरंत ट्रीटमेंट करने के बजाय कुछ समय तक मॉनिटरिंग करता है। ऐसे में किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप से आंख की रोशनी भी जा सकती है। कैंसर के इलाज के लिए ऑप्शन भी उपलब्ध होते हैं।
सर्जरी
आंख के कैंसर के इलाज के लिए विभिन्न प्रकार की सर्जरी अपनाई जा सकती है।
इरिडेक्टॉमी (Iridectomy)
सर्जन छोटे मेलेनोमा वाली परत के कुछ हिस्सों को हटा देगा जो आंख के अन्य भागों में नहीं फैलते हैं।
इरिडोट्रेबिकुलेक्टोमी( Iridotrabeculectomy)
इस सर्जरी की हेल्प से उन टिशू को हटा दिया जाता है जिनसे कैंसर होने का खतरा रहता है।
इरिडोसाइक्लिटॉमी (Iridocyclectomy)
इस सर्जरी में डॉक्टर आईरिस और सिलिअरी बॉडी के हिस्से को हटा देता है।सिलिअरी बॉडी में रक्त वाहिकाएं होती हैं। ये आंख के वाइट और रेटीना के बीच की पतली परत होती है।
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कोरॉएडेक्टमी (Choroidectomy)
इस सर्जरी में सर्जन कोरॉइड का हिस्सा निकाल सकता है या फिर आईवॉल सेक्शन को भी हटा सकता है। कोरॉइड आंख का पिंगमेंट पार्ट होता है जिसमे ब्लड वैसल्स होती हैं। रेडिएशन थेरेपी का यूज भी किया जा सकता है।
इन्युक्लिएशन (Enucleation)
इस स्थिति में सर्जन पूरी आंख निकाल सकता है। इस सर्जरी की जरूरत तब पड़ती है जब ट्यूमर बहुत बड़ा हो जाता है। ऐसे में किसी और ट्रीटमेंट को अपनाया नहीं जा सकता है। ट्रीटमेंट के बाद आंख का अधिकतर हिस्से का लॉस हो जाता है। जिन लोगों को ट्यूमर की वजह से आंख में दर्द होता है, उनके लिए भी ये प्रोसीजर अपनाया जा सकता है।
रेडिएशन और अन्य टार्गेट थेरेपी
रेडिएशन थेरेपी की हेल्प से कैंसर सेल्स के जेनेटिक मैटीरियल्स को खत्म किया जा सकता है। ऐसा करने से कैंसर सेल्स रिप्रोड्यूस नहीं हो पाता है। हेल्थ प्रोफेसनल्स रेडिएशन के दौरान इस बात का ध्यान रखते हैं कि केवल कैंसर सेल्स ही टार्गेट हो, हेल्दी सेल्स को किसी भी तरह का नुकसान न पहुंचे।
टेलीथेरेपी (Teletherapy)
इस प्रोसीजर में पेशेंट के शरीर के बाहर रेडिएशन उत्पन्न किया जाता है। आंख में घातक कोशिकाओं को इस प्रोसीजर की हेल्प से खत्म किया जाता है।
ब्रैकीथेरेपी (Brachytherapy)
इस थेरेपी में टेम्पररी रूप से ट्यूमर को सिकोड़ने के लिए आंखों में छोटा रेडियोएक्टिव सीड डाला जाता है। ये आंख में चार से पांच दिन के लिए रहता है और रेडिएशन उत्पन्न करता है। इससे ट्युमर धीरे-धीरे नष्ट हो जाता है। डॉक्टर इस बात की जांच करता रहता है कि ट्यूमर का आकार कितना बचा है।
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आई कैंसर के कॉम्प्लीकेशन क्या हैं ?
आंख में प्रेशर बढ़ जाना (ग्लूकोमा)
आई मेलेनोमा की वजह से आंख में ग्लूकोमा की समस्या भी हो सकती है। ग्लूकोमा के कारण आंखों में दर्द की समस्या, आंख में लालिमा, आंख से साफ न दिखाई देना, आदि लक्षण शामिल होते हैं।
विजन लॉस की समस्या
लार्ज आई मेलेनोमा की वजह से विजन लॉस की समस्या भी हो सकती है।ऐसे में आंखों में कॉम्प्लीकेशन जैसे की रेटीनल डिटेचमेंट और विजन लॉस की समस्या हो सकती है।
पूरी तरह से जा सकती है रोशनी
स्मॉल आई मेलेनोमा के कारण आंख की पूरी रोशनी खोने का खतरा रहता है।आपको सेंटर में देखने में या फिर किसी भी दिशा की तरह देखने में समस्या महसूस हो सकती है। एडवांस आई मेलेनोमा से भी आंख की रोशनी खोने का खतरा रहता है।
शरीर के अन्य अंग होते हैं प्रभावित
आई मेलेनोमा से सिर्फ आंख ही प्रभावित नहीं होती है, बल्कि शरीर के अन्य अंगों में भी कैंसर फैलने का खतरा रहता है। शरीर में लिवर कैंसर , लंग कैंसर और बोंस में समस्या उत्पन्न हो सकती है।
डॉक्टर से कब करें संपर्क ?
आंखें शरीर का बहुत ही नाजुक हिस्सा होती है। आंखों में समस्या किसी भी व्यक्ति को परेशान कर सकती है। अगर आपको उपरोक्त लक्षण नजर आएं तो बिना देरी के तुरंत डॉक्टर से मिलें। डॉक्टर को अपनी समस्या बताएं। डॉक्टर आपकी जरूरी जांच करेंगे। अगर आपको आई कैंसर की समस्या है तो डॉक्टर उसका समाधान भी बताएंगे। आंखों में किस ट्रीटमेंट को करना चाहिए, ये बात कैंसर के टाइप पर डिपेंड करती है।
आई कैंसर के आमतौर पर लक्षण नजर नहीं आते हैं। बच्चों में भी कैंसर का खतरा रहता है। बेहतर रहेगा कि आप अपने साथ ही बच्चों की दृष्टि का भी ध्यान रखें। किसी भी तरह की समस्या होने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।