अओर्टिक वॉल्व इंसफिशिएंसी (Aortic valve insufficiency (AVI) को अओर्टिक इंसफिशिएंसी (Aortic insufficiency) और अओर्टिक रिगर्जिटेशन (Aortic regurgitation) भी कहा जाता है। यह एक वालव्यूलर हार्ट डिजीज (Valvular Heart disease) है। यह स्थिति तब होती है जब हार्ट का अओर्टिक वॉल्व लीक होता है और ब्लड का फ्लो गलत डायरेक्शन में होने लगता है। इसके कारण हार्ट अच्छी तरह से ब्लड पंप नहीं कर पाता। इसकी वजह से थकान और सांस लेने में कठिनाई जैसी परेशानियां होती हैं। कई बार लोग इस परेशानी से कई सालों से पीड़ित रहते हैं, लेकिन उन्हें किसी प्रकार के लक्षण नहीं दिखाई देते। इसके अलावा यह कंडिशन अचानक भी हो सकती है।
अओर्टिक वॉल्व इंसफिशिएंसी के कारण क्या हैं? (Aortic valve insufficiency Causes)
अओर्टिक वॉल्व (Aortic Valve) हार्ट के अंदर होने वाले चार वॉल्व में से एक है। ये वॉल्व लेफ्ट वेंट्रिकल और एऑर्टा (यह मुख्य आर्टरी है जो ऑक्सिजन युक्त ब्लड को पूरी बॉडी में ले जाती है) के बीच में होने वाले ब्लड फ्लो को कंट्रोल करते हैं। अओर्टिक वॉल्व ओपन होकर होकर ब्लड को एऑर्टा में जाने की परमीशन देते हैं और फिर बंद होकर ब्लड होकर वापस ब्लड को लेफ्ट वेंट्रिकल में जाने से रोकते हैं। अओर्टिक इंसफिसिएंशी में अओर्टिक वॉल्व के तीन फ्लैप जिन्हें लीफ्लैट्स कहा जाता है ठीक से बंद नहीं होते हैं। जिससे ब्लड हार्ट के अंदर लीक हो जाता है। इसकी वजह से एऑर्टा में ब्लड का प्रेशर कम हो जाता है और पल्स का प्रेशर बढ़ जाता है। इसके साथ ही ब्लड का फ्लो भी कम हो जाता है। इसे अओर्टिक रिगर्जिटेशन (Aortic regurgitation) कहते हैं।
अओर्टिक वॉल्व इंसफिशिएंसी में सामान्य कारणों में हाय ब्लड प्रेशर, हार्ट टिशूज में होने वाला बैक्टीरियल इंफेक्शन, सिफ़िलिस जिसका इलाज न किया गया हो और इंजरी शामिल हैं।
और पढ़ें : टॉप 10 हार्ट सप्लिमेंट्स: दिल 💝 की चाहत है ‘सप्लिमेंट्स’
अओर्टिक वॉल्व इंसफिशिएंसी के लक्षण (Symptoms of Aortic Insufficiency)
अओर्टिक वॉल्व इंसफिशिएंसी (Aortic valve insufficiency) के मरीज वैसे ही लक्षणों का अनुभव करते हैं जैसे कि हार्ट फेलियर के दौरान महसूस होते हैं।
- फिजिकल एक्टिविटीज के दौरान या सीधा लेटने पर सांस लेने में परेशानी।
- कफ और रात के समय सांस लेने में तकलीफ।
- सीने में दर्द।
- पैरों और पंजों पर सूजन।
- थकान और कमजोरी का एहसास, खासतौर पर जब आप फिजिकल एक्टिविटीज को बढ़ाते हैं।
- सिर का हल्का लगना या बेहोशी।
- एरिदमिया।
अगर अओर्टिक वॉल्व इंफिशिएंसी के लक्षण दिखाई देते हैं तो डॉक्टर से तुरंत संपर्क करना चाहिए। अगर थकान, सांस लेने में परेशानी, पैरों और पंजों में सूजन जैसे लक्षण दिखाई दें, तो तुरंत डॉक्टर से सलाह लें। ये हार्ट फेलियर के भी लक्षण हैं।
और पढ़ें : दिल के साथ-साथ हार्ट वॉल्व्स का इस तरह से रखें ख्याल!
अओर्टिक वॉल्व इंसफिशिएंसी के जोखिम कारक कौन से हैं? (Aortic valve Insufficiency Risk Factors)
अओर्टिक वॉल्व इंसफिशिएंसी (Aortic valve insufficiency) के जोखिम कारकों में निम्न शामिल हैं।
- उम्र का बढ़ना
- जन्म के साथ होने वाली हार्ट प्रॉब्लम्स (Congenital heart disease)
- हार्ट इंफेक्शन की हिस्ट्री
- कुछ ऐसी कंडिशन जो हार्ट को प्रभावित कर सकती हैं जैसे कि मार्फन सिंड्रोम (Marfan syndrome)
- दूसरी वॉल्व कंडिशन जैसे कि अओर्टिक वॉल्व स्टेनोसिस (Aortic valve stenosis)
- हायपरटेंशन (Hypertension)
अओर्टिक वॉल्व इंसफिशिएंसी के कॉम्प्लिकेशन कौन से हैं? (Aortic Valve Insufficiency Complications)
अओर्टिक वॉल्व इंसफिशिएंसी (Aortic valve insufficiency) कंडिशन निम्न कॉम्प्लिकेशन का कारण बन सकती है।
- हार्ट फेलियर
- हार्ट को प्रभावित करने वाला इंफेक्शन जैसे कि एंडोकार्डाइटिस (Endocarditis)
- हार्ट रिदम एब्नार्मेलिटीज (Heart rhythm abnormalities)
- मृत्यू
अओर्टिक वॉल्व इंसफिशिएंसी का पता कैसे लगाया जाता है? (Aortic Valve Insufficiency diagnosis)
अओर्टिक वॉल्व इंसफिशिएंसी (Aortic valve insufficiency) का पता लगाने के लिए डॉक्टर लक्षणों की जांच करते हैं। साथ ही वे मरीज और उसके परिवार की मेडिकल हिस्ट्री भी जानते हैं। वे फिजिकल एग्जामिनेशन के जरिए डॉक्टर हार्ट मर्मर (Heart murmur) के बारे में पता लगाने की कोशिश करते हैं, जो कि अओर्टिक वॉल्व कंडिशन की तरफ इशारा करता है। फिजिकल एग्जामिनेशन के बाद डॉक्टर कुछ टेस्ट करने की सलाह दे सकते हैं। जिनमें निम्न शामिल हैं:
- चेस्ट एक्स रे Chest X-ray (जिससे लेफ्ट वेंट्रिकल के इनलार्जमेंट के बारे में पता चलता है)
- इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम (Electrocardiogram) (EKG) के जरिए हार्ट की इलेक्ट्रिकल एक्टिविटीज की जानकारी मिलती है। जिसमें हार्ट रेट के साथ ही हार्टबीट की रेगुलरिटी शामिल है।
- ईकोकार्डियोग्राम (Echocardiogram) इस टेस्ट के जरिए हार्ट चैम्बर्स और हार्ट वॉल्व की कंडिशन के बारे में पता चलता है
- कार्डिएक कैथेटेराइजेशन (Cardiac catheterization) के जरिए हार्ट चैम्बर्स में ब्लड का फ्लो और प्रेशर का पता लगाया जाता है।
इन टेस्ट के रिजल्ट के आधार पर डॉक्टर डैमेज कितना हुआ है इसका पता लगा पाते हैं और फिर उसके हिसाब से ट्रीटमेंट रिकमंड करते हैं।
और पढ़ें : राइट साइड हार्ट फेलियर के लक्षणों को न करें नजरअंदाज, हो सकते हैं जानलेवा
अओर्टिक वॉल्व रिगर्जिटेशन का इलाज कैसे किया जाता है? (Aortic valve regurgitation Treatment)
अओर्टिक वॉल्व रिगर्जिटेशन या अओर्टिक वॉल्व इंसफिशिएंसी का इलाज स्थिति की गंभीरता और लक्षणों पर निर्भर करता है। अगर मरीज के लक्षण हल्के हैं या लक्षण नहीं है तो डॉक्टर स्थिति को नियमित तौर पर मॉनिटर करेगा और वे हेल्दी लाइफ स्टाइल चेंजेस और दवाएं रिकमंड कर सकता है जो लक्षणों को कम करने के साथ ही कॉम्प्लिकेशन के रिस्क को कम करेंगे। अगर कंडिशन गंभीर है तो डॉक्टर हार्ट वॉल्व को रिपेयर करने या रिप्लेस करने के लिए हार्ट सर्जरी रिकमंड कर सकते हैं।
महाधमनी वॉल्व (Aortic valve) की मरम्मत या बदलने के लिए सर्जरी आमतौर पर सीने में एक कट (चीरा) के माध्यम से की जाती है। कुछ मामलों में, डॉक्टर मिनिमली इनवेसिव हार्ट सर्जरी (Minimally invasive heart surgery) कर सकते हैं, जिसमें ओपन-हार्ट सर्जरी (Open-heart surgery) में इस्तेमाल किए जाने वाले चीरों की तुलना में छोटे चीरों का उपयोग शामिल है। सर्जरी ऑप्शन में निम्न शामिल हैं।
- अओर्टिक वॉल्व रिपेयर (Aortic valve repair)
- अओर्टिक वॉल्व रिप्लेसमेंट (Aortic valve replacement)
अओर्टिक वॉल्व रिगर्जिटेशन से कैसे बचें (Aortic valve regurgitation Prevention)
किसी भी हार्ट कंडिशन के लिए, अपने डॉक्टर से नियमित रूप से मिलें ताकि वह मॉनिटरिंग कर सके और संभवतः महाधमनी वाल्व रिगर्जिटेशन या अन्य हृदय की स्थिति को विकसित होने से पहले या प्रारंभिक अवस्था में पकड़ सके। ताकि इसका इलाज आसानी से किया जा सके। यदि आपको लीकिंग एओर्टिक वॉल्व (अओर्टिक वॉल्व रिगर्जिटेशन) या टाइट अओर्टिक वॉल्व (अओर्टिक वॉल्व स्टेनोसिस) का निदान किया गया है, तो आपको नियमित इकोकार्डियोग्राम टेस्ट करने की आवश्यकता होगी ताकि एओटिक वाल्व रिगर्जेटेशन गंभीर न हो जाए।
इसके अलावा, उन स्थितियों से अवगत रहें जो महाधमनी वाल्व रिगर्जेटेशन के विकास में योगदान करती हैं, जिनमें शामिल हैं:
रूमेटिक फीवर: यदि आपके गले में गंभीर खराश है, तो डॉक्टर से मिलें। स्ट्रेप थ्रोट का इलाज न करने पर यह रूमेटिक फीवर का कारण बन सकता है। स्ट्रेप थ्रोट का आसानी से एंटीबायोटिक दवाओं के साथ इलाज किया जाता है।
उच्च रक्तचाप: अपने रक्तचाप की नियमित जांच करें। सुनिश्चित करें कि यह अओर्टिक वॉल्व इंसफिशिएंसी को रोकने के लिए यह अच्छी तरह से नियंत्रित हो।
और पढ़ें : हार्ट इन्फेक्शन में एंटीबायोटिक आईवी : इस्तेमाल करने से पहले जान लें ये बातें!
लाइफस्टाइल में बदलाव
इस कंडिशन का इलाज करते वक्त डॉक्टर निम्न लाइफस्टाइल चेंजेस भी सजेस्ट कर सकते हैं। जिन्हें मरीज को फॉलो करना चाहिए।
- हेल्दी डायट लें। जिसमें सब्जियों और फलों की मात्रा अधिक हो और फैटी फूड्स कम हों। अधिक मात्रा में शुगर और नमक के सेवन से भी बचें।
- वजन को संतुलित रखें। अगर वजन अधिक है या आप मोटे हैं तो डॉक्टर वजन कम करने के लिए कह सकते हैं।
- दिन भर में रोज तीस मिनट फिजिकल एक्सरसाइज करें। जिसमें वॉकिंग शामिल है।
- तनाव को हावी ना होने दें। स्ट्रेस मैनेजमेंट के लिए मेडिटेशन, योग या ब्रीदिंग एक्सरसाइज की मदद ले सकते हैं।
- तंबाकू और एल्कोहॉल का सेवन बंद कर दें। इसके लिए सपोर्ट ग्रुप का सहारा भी ले सकते हैं।
- ब्लड प्रेशर को कंट्रोल में रखें। अगर ब्लड प्रेशर की दवा लेते हैं तो डॉक्टर ने जैसे दवा प्रिस्क्राइब की है वैसे ही लें।
उम्मीद करते हैं कि आपको अओर्टिक वॉल्व इंसफिशिएंसी (Aortic valve insufficiency) और इसके कारणों से संबंधित जरूरी जानकारियां मिल गई होंगी। अधिक जानकारी के लिए एक्सपर्ट से सलाह जरूर लें। अगर आपके मन में अन्य कोई सवाल हैं तो आप हमारे फेसबुक पेज पर पूछ सकते हैं। हम आपके सभी सवालों के जवाब आपको कमेंट बॉक्स में देने की पूरी कोशिश करेंगे। अपने करीबियों को इस जानकारी से अवगत कराने के लिए आप ये आर्टिकल जरूर शेयर करें।
[embed-health-tool-heart-rate]