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टाइफाइड का आयुर्वेदिक इलाज कैसे करें? जानिए दवा और प्रभाव

के द्वारा एक्स्पर्टली रिव्यूड डॉ. पूजा दाफळ · Hello Swasthya


Shayali Rekha द्वारा लिखित · अपडेटेड 19/05/2021

टाइफाइड का आयुर्वेदिक इलाज कैसे करें? जानिए दवा और प्रभाव

परिचय

टाइफाइड  (Typhoid) एक बैक्टीरियल डिजीज है, इसमें व्यक्ति को बुखार, उल्टी, भूख में कमी आदि समस्याएं हाेने लगती है। टाइफाइड दूषित पानी पीने और दूषित खाना खाने से होता है। टाइफाइड का ज्यादातर खतरा बरसात के मौसम में बढ़ जाता है, लेकिन ये किसी भी मौसम में बाहर का दूषित खाना और पानी पीने से भी हो सकता है। अक्सर आपने सुना होगा कि टाइफाइड की दवाओं का कोर्स पूरा करना होता है। ये दवाएं केमिकल फॉर्मूला से बनी होती है। अगर आप आयुर्वेद में भरोसा रखते हैं, तो आप टाइफाइड का आयुर्वेदिक इलाज (Ayurvedic treatment for Typhoid)भी कर सकते हैं। आइए जानते हैं कैसे :

टाइफाइड (Typhoid) क्या है?

टाइफाइड एक प्रकार का बैक्टीरियल इंफेक्शन है, जो दूषित पानी और दूषित खाना खाने से होता है। टाइफाइड में तेज बुखार के साथ पेट दर्द, सिर दर्द आदि भी होते हैं। ज्यादातर लोग जिनको टाइफाइड होता है, उनका इलाज एंटीबायोटिक द्वारा होता है। वहीं, ऐसे बहुत कम लोग होते हैं, जिनकी टाइफाइड के कारण मृत्यु हो जाती है। 

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आयुर्वेद में टाइफाइड (Typhoid) क्या है?

टाइफाइड का आयुर्वेदिक इलाज जानने से पहले आप आयुर्वेद में टाइफाइड को समझिए। आयुर्वेद में भी टाइफाइड के होने का कारण जीवाणु को माना गया है। जिसके कारण आंतरिक ज्वर यानी कि अंदरूनी बुखार आता है। इस दौरान सिरदर्द, थकान, काम में मन न लगना, भूख कम लगना और स्वाद में भी बदलाव महसूस होता है

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टाइफाइड का आयुर्वेदिक इलाज करने के लिए आयुर्वेदिक डॉक्टर ज्वर नाशक और शोधन विधि का उपयोग करते हैं। टाइफाइड के इलाज में प्रयोग की जाने वाली आयुर्वेदिक दवा स्वाद में तीखी और कड़वी होती है।

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लक्षण

टाइफाइड के लक्षण क्या हैं? (Symptoms of Typhoid)

टाइफाइड में बैक्टीरियल इंफेक्शन होने के एक से दो सप्ताह बाद लक्षण सामने आने लगते हैं :

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कारण

टाइफाइड होने का कारण क्या है? (Cause of Typhoid)

टायफाइड बुखार क्या है यहां जानें

जैसा कि पहले ही बता दिया गया है कि टाइफाइड एक बैक्टीरियल इंफेक्शन है। टाइफाइड सालमोनेला टाइफी (salmonella typhi) नामक बैक्टीरिया के कारण होता है।

सालमोनेला टाइफी दूषित पानी और खाने में पाया जाता है। जो लोग सालमोनेला टाइफी से दूषित पानी और दूषित खाने का सेवन करते हैं, वे टाइफाइड से ग्रसित हो सकते हैं।

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इलाज

टाइफाइड का आयुर्वेदिक इलाज क्या है? (Ayurvedic treatment for Typhoid)

टाइफाइड का आयुर्वेदिक इलाज शोधन विधि के द्वारा किया जाता है। इसके अलावा जड़ी-बूटी और आयुर्वेदिक औषधियों की मदद से टाइफाइड का इलाज किया जाता है।

टाइफाइड का आयुर्वेदिक इलाज शोधन विधि के द्वारा

टाइफाइड के इलाज में शोधन विधि का इस्तेमाल किया जाता है। आचार्य चरक ने शोधन विधि को शरीर को डिटॉक्स करने का तरीका बताया है। शोधन विधि में टाइफाइड के मरीज को उपवास रखना होता है। उपवास दो प्रकार का होता है। एक होता है निराहार यानी कि बिना कुछ आहार का सेवन किए उपवास रखना। दूसरा होता है फलाहार, यानी कि सिर्फ फलों का सेवन कर के उपावस रखना। जिन्हें वात की समस्या होती है, उन्हें फलाहार वाला उपवास रखना होता है और जिन्हें कफ व पित्त की समस्या होती है, उन्हें निराहार उपवास रहना होता है। 

टाइफाइड में शोधन विधि में व्यक्ति को कुछ समय तक बिना कुछ खाए, सिर्फ पानी पर रखा जाता है। इससे शरीर में वात का संतुलन होता है, जिससे बुखार में राहत मिलती है। शोधन विधि का मुख्य उद्देश्य शरीर के धातु और दोषों में संतुलन बना कर शरीर को हल्का महसूस कराना है।

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टाइफाइड (Typhoid) का आयुर्वेदिक इलाज जड़ी-बूटियों के द्वारा

जटामांसी

जटामांसी का उपयोग पेट दर्द और पेट संबंधी समस्याओं को दूर करने के लिए किया जाता है। इसके अलावा जटामांसी को टाइफाइड में भी प्रभावी पाया गया है। जटामांसी पित्त संबंधी रोगों के लिए बहुत प्रभावी जड़ी-बूटी है। जटामांसी को पाउडर और अर्क के रूप में लिया जा सकता है।

हरड़ 

हरड़ को हर्रे या हरीतकी भी कहा जाता है। टाइफाइड में कब्ज जैसी समस्या भी होती है, ऐसे में हरड़ कब्ज को ठीक करने के लिए उपयुक्त जड़ी-बूटी है।

हरड़ को नींबू के रस के साथ भिगा कर सेवन किया जा सकता है। ये मल को पतला कर के पेट की समस्या से राहत दिलाता है। साथ ही कफ संबंधी समस्या के लिए भी हरड़ एक उपयुक्त दवा है।

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दालचीनी

दालचीनी में ऐसे तत्व होते हैं, जो कि कई तरह के इंफेक्शन से लड़ने में मदद करते हैं। दालचीनी का तेल लिस्टेरिया और सालमोनेला जैसे बैक्टीरिया को पनपने से रोकते हैं। साथ ही यह सांस की बदबू को भी दूर करता है।

दालचीनी को टाइफाइड में आप शहद के साथ गुनगुने पानी में मिला कर ले सकते हैं। अधिक जानकारी के लिए अपने डॉक्टर से संपर्क करें।

बेल का फल

बेल का फल सभी लोगों को बहुत पसंद होता है। बेल के फल का शरबत, च्यवनप्राश और मुरब्बा भी बनता है। बेल को पेट की समस्याओं में कामगार माना गया है। कब्ज, अपच जैसी समस्याओं के लिए बेल का इस्तेमाल किया जाता है।

बाजारों में कैप्सूल और च्यवनप्राश के रूप में बेल मिलता है। जब टाइफाइड की शुरुआत हुई हो, तो ऐसे में बेल खाने से  टाइफाइड का असर कम होता है। 

गिलोय

गिलोय को आयुर्वेद में इम्यूनिटी बढ़ाने वाली जड़ी-बूटी के रूप में माना जाता है। गिलोय में एंटी-बैक्टीरियल गुण पाए जाते हैं, जिससे टाइफाइड के लिए जिम्मेदार बैक्टीरिया कमजोर पड़ सकता है। इसलिए टाइफाइड में गिलोय का सेवन करने से फायदा मिलता है। 

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टाइफाइड (Typhoid) का आयुर्वेदिक इलाज औषधियों के द्वारा

टाइफाइड के आयुर्वेदिक इलाज के लिए निम्न औषधियों का प्रयोग किया जाता है :

सितोपलादि चूर्ण

सितोपलादि चूर्ण एक प्रचलित चूर्ण है, जिसे गले की खराश और बुखार के लिए लिया जाता है। सितोपलादि चूर्ण में पिप्पली के साथ अन्य कई जड़ी-बूटियों का मिश्रण होता है। टाइफाइड में बुखार के इलाज के लिए आप सितोपलादि चूर्ण को गुनगुने पानी के साथ खा सकते हैं।

इसके अलावा अगर गले में खराश या जुकाम हो गया है, तो एक चम्मच शहद के साथ मिला कर सितोपलादि चूर्ण का सेवन किया जा सकता है।

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संजीवनी वटी

संजीवनी वटी में त्रिफला, सोंठ, गिलोय, मुलेठी आदि का मिश्रण होता है। संजीवनी वटी बुखार में राहत देने के काम आती है। संजीवनी वटी बुखार, शरीर पर चकत्ते, पेट की समस्या आदि में असरदार होती है। इसलिए डॉक्टर टाइफाइड में आपको संजीवनी वटी के साथ सुदर्शन घृत वटी अन्य औषधियों के साथ देते हैं। बिना अपने डॉक्टर के परामर्श के आप एक भी औषधि का सेवन ना करें। 

किरतदीसप्त कषाय

किरतदीसप्त कषाय एक प्रकार का पाउडर होता है, जिसे काढ़े की तरह बना कर पिया जाता है। किरतदीसप्त कषाय एंटीबायोटिक की तरह काम करता है और बुखार को कम करने में मददगार साबित होता है। साथ ही ब्लड शुगर लेवल को मेंटेन भी करता है।

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त्रिभुवनकीर्ति रस

त्रिभुवनकीर्ति रस कई जड़ी-बुटियों का मिश्रण होता है। इसमें हींग, सोंठ, काली मिर्च, पिप्पली, भस्म, अदरक, धतूरा, तुलसी आदि का मिश्रण होता है। शरीर में दर्द को कम करने और बुखार से राहत पहुंचाने में ये मददगार होता है। 

सुदर्शन चूर्ण

सुदर्शन चूर्ण का इस्तेमाल संजीवनी वटी के साथ किया जाता है। सुदर्शन चूर्ण लगभग चिरायता या चिरैता समेत 50 तरह की जड़ी-बूटियों से मिल कर बना होता है। ये बाजार में टैबलेट के रूप में पाया जाता है। इसके लिए आपको अपने डॉक्टर से परामर्श का सहारा लेना चाहिए। 

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जीवनशैली

आयुर्वेद के अनुसार आहार और जीवन शैली में बदलाव

आयुर्वेद के अनुसार टाइफाइड के लिए डायट और लाइफ स्टाइल में बदलाव बहुत जरूरी है। हेल्दी लाइफ स्टाइल और हेल्दी खाने के लिए : 

क्या करें?

  • शोधन विधि के द्वारा उपवास रखें।
  • पूरी तरह से बेड रेस्ट करें।
  • हरी सब्जियां और रंगीन फलों का सेवन करें।
  • पर्याप्त मात्रा में नींद लें।
  • संपूर्ण अनाज को अपनी थाली का हिस्सा बनाएं। इसमें जौ, चावल और दलिया को शामिल कर सकते हैं
  • साफ-सफाई का पूरा ध्यान रखें। 

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क्या ना करें?

  • भारी और तैलीय भोजन से परहेज करें। ऐसी कोई भी चीज का सेवन ना करें, जो पेट के लिए ठीक ना हो।
  • जंक फूड्स और कच्ची चीजें खाने से बचें।
  • पानी को बिना उबालें ना पिएं।

टाइफाइड का आयुर्वेदिक इलाज आप ऊपर बताए गए तरीकों से कर सकते हैं। लेकिन आपको ध्यान देना होगा कि आयुर्वेदिक औषधियां और इलाज खुद से करने से भी सकारात्मक प्रभाव नहीं आ सकते हैं। इसलिए आप जब भी टाइफाइड का आयुर्वेदिक इलाज के बारे में सोचें, तो डॉक्टर का परामर्श जरूर ले लें।

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अन्य उपचार

अगर टाइफाइड का पता सही समय पर न लगाया जाए तो इलाज की प्रक्रिया में देरी आ सकती है। जिसके कारण दुष्प्रभावों और जटिलताओं की आशंका बढ़ जाती है।

ऐसे में आपको आयुर्वेदिक या घरेलू उपचार की बजाए डॉक्टर से परामर्श कर के प्राथमिक उपचार को अपनाना चाहिए।

टाइफाइड की जांच के लिए ब्लड टेस्ट की मदद ली जाती है। रक्त में एस. टाईफी की मौजूदगी टाइफाइड का संकेत होता है। इस स्थिति के इलाज में एंटीबायोटिक्स जैसे अजिथ्रोमाइसिन, सेफ्ट्रियक्सोन और फ्लुओरोक्यूनोलोन दी जा सकती है।

सही इलाज और तेज परिणामों के लिए सभी दवाओं का सेवन डॉक्टर द्वारा बताए गए तरीके अनुसार ही करना चाहिए।

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टाइफाइड की वैक्सीन (टीकाकरण)

स्वस्थ मरीज को टाइफाइड के टीकाकरण की जरूरत नहीं होती है। हालांकि, निम्न परिस्थितियों में आपके डॉक्टर इसके उपयोग की सलाह दे सकते हैं –

  • यदि आप वायरस के वाहक (कैरियर) हैं
  • यदि आप किसी वाहक के संपर्क में आएं हों
  • किसी ऐसे देश से वापिस लौटना, जहां टाइफाइड सामान्य रोग हो
  • लैब कर्मचारी जो एस. टाईफी के संपर्क में आया हो

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टाइफाइड की वैक्सीन 50 से 80 प्रतिशत प्रभावशाली होती है और दो प्रकार में आती है –

  • इनएक्टिवेटिड टाइफाइड टीकाकरण – यह टीका एक खुराक का होता है। यह दो वर्ष की आयु से कम के बच्चों के लिए नहीं होता है और इसे प्रतिक्रिया दिखाने में दो हफ्तों का समय लगता है। आप हर दो साल में बूस्टर खुराक भी ले सकते हैं।
  •  लाइव टाइफाइड टीकाकरण – यह टीका 6 वर्ष की आयु से कम वाले बच्चों के लिए नहीं होता है। यह मुंह से लेने वाली वैक्सीन है, जिसे दो दिन के गैप के साथ चार खुराक में लिया जाता है। इसे अपने प्रभाव दिखाने में आखिरी खुराक के बाद एक सप्ताह का समय लगता है। आप हर पांच वर्ष में बूस्टर खुराक ले सकते हैं।

टाइफाइड के लिए घरेलू उपचार

लहसुन – लहसुन शरीर को साफ करने यानी डिटॉक्स करने के लिए काफी लाभदायक होता है। इसमें मौजूद एंटीऑक्सीडेंट गुण टाइफाइड से छुटकारा दिलाने में मदद करते हैं। इसके अलावा यह आपका इम्यून सिस्टम मजबूत भी करता है।

लौंग – लौंग में मौजूद एसेंशियल ऑयल में एंटी-बैक्टीरियल गुण होते हैं। इस कारण वह टाइफाइड के जीवाणुओं को नष्ट करने में मदद करता है और आपको बुखार से राहत प्रदान करता है।

केला – टाइफाइड के साथ डायरिया की समस्या होना काफी आम है। इस स्थिति में शरीर में इलेक्ट्रोलाइट्स की कमी होने लगती है। लेकिन केले में मौजूद पौटेशियम इस कमी को पूरा करने में मदद करता है। इसलिए टाइफाइड के दौरान केला खाना फायदेमंद हो सकता है।

सेब का सिरका – टाइफाइड के बुखार में सेब का सिरका आपके शरीर से अतिरिक्त गर्मी निकालकर तापमान सामान्य बनाने और शरीर का पीएच लेवल बैलेंस करने में मदद करता है। इसके अलावा शरीर में टाइफाइड के दौरान हुई मिनरल्स की कमी को भी सेब के सिरके की मदद से पूरा किया जा सकता है।

फ्ल्यूइड – टाइफाइड आपके शरीर में डिहाइड्रेशन यानी पानी की कमी पैदा कर सकता है। जिसके लिए आपको फ्ल्यूइड यानी तरल पदार्थों से दूरी नहीं बनानी चाहिए। आप फलों का जूस, पानी आदि का भरपूर सेवन करते रहें। इससे शरीर में एनर्जी बनी रहती है।

हम उम्मीद करते हैं कि आपको इस आर्टिकल को पढ़कर पता चल चुका होगा कि टाइफाइड का आयुर्वेदिक इलाज क्या है और यह कैसे काम करता है? लेकिन हमारी सलाह है कि इन उपायों को किसी डॉक्टर या एक्सपर्ट की देखरेख में ही अपनाएं। क्योंकि, आमतौर पर आयुर्वेदिक औषधियां सुरक्षित होती हैं, लेकिन कुछ मामलों में इनके दुष्प्रभाव देखने को मिल सकते हैं।

डिस्क्लेमर

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