इलाज
टाइफाइड का आयुर्वेदिक इलाज क्या है? (Ayurvedic treatment for Typhoid)
टाइफाइड का आयुर्वेदिक इलाज शोधन विधि के द्वारा किया जाता है। इसके अलावा जड़ी-बूटी और आयुर्वेदिक औषधियों की मदद से टाइफाइड का इलाज किया जाता है।
टाइफाइड का आयुर्वेदिक इलाज शोधन विधि के द्वारा
टाइफाइड के इलाज में शोधन विधि का इस्तेमाल किया जाता है। आचार्य चरक ने शोधन विधि को शरीर को डिटॉक्स करने का तरीका बताया है। शोधन विधि में टाइफाइड के मरीज को उपवास रखना होता है। उपवास दो प्रकार का होता है। एक होता है निराहार यानी कि बिना कुछ आहार का सेवन किए उपवास रखना। दूसरा होता है फलाहार, यानी कि सिर्फ फलों का सेवन कर के उपावस रखना। जिन्हें वात की समस्या होती है, उन्हें फलाहार वाला उपवास रखना होता है और जिन्हें कफ व पित्त की समस्या होती है, उन्हें निराहार उपवास रहना होता है।
टाइफाइड में शोधन विधि में व्यक्ति को कुछ समय तक बिना कुछ खाए, सिर्फ पानी पर रखा जाता है। इससे शरीर में वात का संतुलन होता है, जिससे बुखार में राहत मिलती है। शोधन विधि का मुख्य उद्देश्य शरीर के धातु और दोषों में संतुलन बना कर शरीर को हल्का महसूस कराना है।
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टाइफाइड (Typhoid) का आयुर्वेदिक इलाज जड़ी-बूटियों के द्वारा
जटामांसी
जटामांसी का उपयोग पेट दर्द और पेट संबंधी समस्याओं को दूर करने के लिए किया जाता है। इसके अलावा जटामांसी को टाइफाइड में भी प्रभावी पाया गया है। जटामांसी पित्त संबंधी रोगों के लिए बहुत प्रभावी जड़ी-बूटी है। जटामांसी को पाउडर और अर्क के रूप में लिया जा सकता है।
हरड़
हरड़ को हर्रे या हरीतकी भी कहा जाता है। टाइफाइड में कब्ज जैसी समस्या भी होती है, ऐसे में हरड़ कब्ज को ठीक करने के लिए उपयुक्त जड़ी-बूटी है।
हरड़ को नींबू के रस के साथ भिगा कर सेवन किया जा सकता है। ये मल को पतला कर के पेट की समस्या से राहत दिलाता है। साथ ही कफ संबंधी समस्या के लिए भी हरड़ एक उपयुक्त दवा है।
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दालचीनी
दालचीनी में ऐसे तत्व होते हैं, जो कि कई तरह के इंफेक्शन से लड़ने में मदद करते हैं। दालचीनी का तेल लिस्टेरिया और सालमोनेला जैसे बैक्टीरिया को पनपने से रोकते हैं। साथ ही यह सांस की बदबू को भी दूर करता है।
दालचीनी को टाइफाइड में आप शहद के साथ गुनगुने पानी में मिला कर ले सकते हैं। अधिक जानकारी के लिए अपने डॉक्टर से संपर्क करें।
बेल का फल
बेल का फल सभी लोगों को बहुत पसंद होता है। बेल के फल का शरबत, च्यवनप्राश और मुरब्बा भी बनता है। बेल को पेट की समस्याओं में कामगार माना गया है। कब्ज, अपच जैसी समस्याओं के लिए बेल का इस्तेमाल किया जाता है।
बाजारों में कैप्सूल और च्यवनप्राश के रूप में बेल मिलता है। जब टाइफाइड की शुरुआत हुई हो, तो ऐसे में बेल खाने से टाइफाइड का असर कम होता है।
गिलोय
गिलोय को आयुर्वेद में इम्यूनिटी बढ़ाने वाली जड़ी-बूटी के रूप में माना जाता है। गिलोय में एंटी-बैक्टीरियल गुण पाए जाते हैं, जिससे टाइफाइड के लिए जिम्मेदार बैक्टीरिया कमजोर पड़ सकता है। इसलिए टाइफाइड में गिलोय का सेवन करने से फायदा मिलता है।
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टाइफाइड (Typhoid) का आयुर्वेदिक इलाज औषधियों के द्वारा
टाइफाइड के आयुर्वेदिक इलाज के लिए निम्न औषधियों का प्रयोग किया जाता है :
सितोपलादि चूर्ण
सितोपलादि चूर्ण एक प्रचलित चूर्ण है, जिसे गले की खराश और बुखार के लिए लिया जाता है। सितोपलादि चूर्ण में पिप्पली के साथ अन्य कई जड़ी-बूटियों का मिश्रण होता है। टाइफाइड में बुखार के इलाज के लिए आप सितोपलादि चूर्ण को गुनगुने पानी के साथ खा सकते हैं।
इसके अलावा अगर गले में खराश या जुकाम हो गया है, तो एक चम्मच शहद के साथ मिला कर सितोपलादि चूर्ण का सेवन किया जा सकता है।
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संजीवनी वटी
संजीवनी वटी में त्रिफला, सोंठ, गिलोय, मुलेठी आदि का मिश्रण होता है। संजीवनी वटी बुखार में राहत देने के काम आती है। संजीवनी वटी बुखार, शरीर पर चकत्ते, पेट की समस्या आदि में असरदार होती है। इसलिए डॉक्टर टाइफाइड में आपको संजीवनी वटी के साथ सुदर्शन घृत वटी अन्य औषधियों के साथ देते हैं। बिना अपने डॉक्टर के परामर्श के आप एक भी औषधि का सेवन ना करें।
किरतदीसप्त कषाय
किरतदीसप्त कषाय एक प्रकार का पाउडर होता है, जिसे काढ़े की तरह बना कर पिया जाता है। किरतदीसप्त कषाय एंटीबायोटिक की तरह काम करता है और बुखार को कम करने में मददगार साबित होता है। साथ ही ब्लड शुगर लेवल को मेंटेन भी करता है।
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त्रिभुवनकीर्ति रस
त्रिभुवनकीर्ति रस कई जड़ी-बुटियों का मिश्रण होता है। इसमें हींग, सोंठ, काली मिर्च, पिप्पली, भस्म, अदरक, धतूरा, तुलसी आदि का मिश्रण होता है। शरीर में दर्द को कम करने और बुखार से राहत पहुंचाने में ये मददगार होता है।
सुदर्शन चूर्ण
सुदर्शन चूर्ण का इस्तेमाल संजीवनी वटी के साथ किया जाता है। सुदर्शन चूर्ण लगभग चिरायता या चिरैता समेत 50 तरह की जड़ी-बूटियों से मिल कर बना होता है। ये बाजार में टैबलेट के रूप में पाया जाता है। इसके लिए आपको अपने डॉक्टर से परामर्श का सहारा लेना चाहिए।
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जीवनशैली
आयुर्वेद के अनुसार आहार और जीवन शैली में बदलाव
आयुर्वेद के अनुसार टाइफाइड के लिए डायट और लाइफ स्टाइल में बदलाव बहुत जरूरी है। हेल्दी लाइफ स्टाइल और हेल्दी खाने के लिए :
क्या करें?
- शोधन विधि के द्वारा उपवास रखें।
- पूरी तरह से बेड रेस्ट करें।
- हरी सब्जियां और रंगीन फलों का सेवन करें।
- पर्याप्त मात्रा में नींद लें।
- संपूर्ण अनाज को अपनी थाली का हिस्सा बनाएं। इसमें जौ, चावल और दलिया को शामिल कर सकते हैं।
- साफ-सफाई का पूरा ध्यान रखें।
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क्या ना करें?
- भारी और तैलीय भोजन से परहेज करें। ऐसी कोई भी चीज का सेवन ना करें, जो पेट के लिए ठीक ना हो।
- जंक फूड्स और कच्ची चीजें खाने से बचें।
- पानी को बिना उबालें ना पिएं।
टाइफाइड का आयुर्वेदिक इलाज आप ऊपर बताए गए तरीकों से कर सकते हैं। लेकिन आपको ध्यान देना होगा कि आयुर्वेदिक औषधियां और इलाज खुद से करने से भी सकारात्मक प्रभाव नहीं आ सकते हैं। इसलिए आप जब भी टाइफाइड का आयुर्वेदिक इलाज के बारे में सोचें, तो डॉक्टर का परामर्श जरूर ले लें।
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