जैसा कि पहले ही बता दिया गया है कि टाइफाइड एक बैक्टीरियल इंफेक्शन है। टाइफाइड सालमोनेला टाइफी (salmonella typhi) नामक बैक्टीरिया के कारण होता है।
सालमोनेला टाइफी दूषित पानी और खाने में पाया जाता है। जो लोग सालमोनेला टाइफी से दूषित पानी और दूषित खाने का सेवन करते हैं, वे टाइफाइड से ग्रसित हो सकते हैं।
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इलाज
टाइफाइड का आयुर्वेदिक इलाज क्या है? (Ayurvedic treatment for Typhoid)
टाइफाइड का आयुर्वेदिक इलाज शोधन विधि के द्वारा किया जाता है। इसके अलावा जड़ी-बूटी और आयुर्वेदिक औषधियों की मदद से टाइफाइड का इलाज किया जाता है।
टाइफाइड का आयुर्वेदिक इलाज शोधन विधि के द्वारा
टाइफाइड के इलाज में शोधन विधि का इस्तेमाल किया जाता है। आचार्य चरक ने शोधन विधि को शरीर को डिटॉक्स करने का तरीका बताया है। शोधन विधि में टाइफाइड के मरीज को उपवास रखना होता है। उपवास दो प्रकार का होता है। एक होता है निराहार यानी कि बिना कुछ आहार का सेवन किए उपवास रखना। दूसरा होता है फलाहार, यानी कि सिर्फ फलों का सेवन कर के उपावस रखना। जिन्हें वात की समस्या होती है, उन्हें फलाहार वाला उपवास रखना होता है और जिन्हें कफ व पित्त की समस्या होती है, उन्हें निराहार उपवास रहना होता है।
टाइफाइड में शोधन विधि में व्यक्ति को कुछ समय तक बिना कुछ खाए, सिर्फ पानी पर रखा जाता है। इससे शरीर में वात का संतुलन होता है, जिससे बुखार में राहत मिलती है। शोधन विधि का मुख्य उद्देश्य शरीर के धातु और दोषों में संतुलन बना कर शरीर को हल्का महसूस कराना है।
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टाइफाइड (Typhoid) का आयुर्वेदिक इलाज जड़ी-बूटियों के द्वारा
जटामांसी
जटामांसी का उपयोग पेट दर्द और पेट संबंधी समस्याओं को दूर करने के लिए किया जाता है। इसके अलावा जटामांसी को टाइफाइड में भी प्रभावी पाया गया है। जटामांसी पित्त संबंधी रोगों के लिए बहुत प्रभावी जड़ी-बूटी है। जटामांसी को पाउडर और अर्क के रूप में लिया जा सकता है।
हरड़
हरड़ को हर्रे या हरीतकी भी कहा जाता है। टाइफाइड में कब्ज जैसी समस्या भी होती है, ऐसे में हरड़ कब्ज को ठीक करने के लिए उपयुक्त जड़ी-बूटी है।
हरड़ को नींबू के रस के साथ भिगा कर सेवन किया जा सकता है। ये मल को पतला कर के पेट की समस्या से राहत दिलाता है। साथ ही कफ संबंधी समस्या के लिए भी हरड़ एक उपयुक्त दवा है।
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दालचीनी
दालचीनी में ऐसे तत्व होते हैं, जो कि कई तरह के इंफेक्शन से लड़ने में मदद करते हैं। दालचीनी का तेल लिस्टेरिया और सालमोनेला जैसे बैक्टीरिया को पनपने से रोकते हैं। साथ ही यह सांस की बदबू को भी दूर करता है।
दालचीनी को टाइफाइड में आप शहद के साथ गुनगुने पानी में मिला कर ले सकते हैं। अधिक जानकारी के लिए अपने डॉक्टर से संपर्क करें।
बेल का फल
बेल का फल सभी लोगों को बहुत पसंद होता है। बेल के फल का शरबत, च्यवनप्राश और मुरब्बा भी बनता है। बेल को पेट की समस्याओं में कामगार माना गया है। कब्ज, अपच जैसी समस्याओं के लिए बेल का इस्तेमाल किया जाता है।
बाजारों में कैप्सूल और च्यवनप्राश के रूप में बेल मिलता है। जब टाइफाइड की शुरुआत हुई हो, तो ऐसे में बेल खाने से टाइफाइड का असर कम होता है।
गिलोय
गिलोय को आयुर्वेद में इम्यूनिटी बढ़ाने वाली जड़ी-बूटी के रूप में माना जाता है। गिलोय में एंटी-बैक्टीरियल गुण पाए जाते हैं, जिससे टाइफाइड के लिए जिम्मेदार बैक्टीरिया कमजोर पड़ सकता है। इसलिए टाइफाइड में गिलोय का सेवन करने से फायदा मिलता है।
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टाइफाइड (Typhoid) का आयुर्वेदिक इलाज औषधियों के द्वारा
टाइफाइड के आयुर्वेदिक इलाज के लिए निम्न औषधियों का प्रयोग किया जाता है :
सितोपलादि चूर्ण