आयुर्वेद का मतलब होता है “Science of Life” यानी जीवन का विज्ञान। आयुर्वेद भारत की सदियों पुरानी परंपरा है जिसमें न सिर्फ किसी बीमारी का इलाज किया जाता है, बल्कि यह अच्छे स्वास्थ्य को बढ़ावा देने पर जोर देता है और ऐसा सिर्फ शारीरिक स्वास्थ्य का ध्यान रखकर नहीं, बल्कि शरीर, मन और अध्यात्म को संतुलित करके किया जाता है। यानी आयुर्वेद को संपूर्ण स्वास्थ्य का विज्ञान कहा जा सकता है।
आयुर्वेदिक रेमेडीज यानी आयुर्वेदिक उपचार में मुख्य रूप से शरीर को डिटॉक्स करने के साथ ही वात, पित्त और कफ दोष को संतुलित करने पर फोकस किया जाता है। आयुर्वेदिक उपचार में जड़ी-बूटियों के साथ ही खास डायट, जीवनशैली में बदलाव और थेरेपीज आदि की मदद ली जाती है। भारत में आयुर्वेद को पारंपरिक पश्चिमी चिकित्सा, पारंपरिक चीनी चिकित्सा, प्राकृतिक चिकित्सा और होमियोपैथिक चिकित्सा के समान ही माना जाता है। आयुर्वेद की प्रैक्टिस करने वाले डॉक्टर राज्य से मान्यता प्राप्त संस्थान से ट्रेनिंग लेते हैं। आयुर्वेदिक उपचार का सही असर तभी होता है जब किसी प्रशिक्षित डॉक्टर की निगरानी में इसे किया जाए। कई लोग इस भ्रम में रहते हैं कि आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों और आयुर्वेदिक रेमेडीज के कोई साइड इफेक्ट्स नहीं होते हैं, लेकिन ऐसा नहीं है यदि निश्चित और बताए गए तरीके के विपरित इसका सेवन किया जाए तो पॉजिटिव की बजाय इसका निगेटिव असर हो सकता है। आयुर्वेदिक उपचार में एलोपैथी ट्रीटमेंट की तरह एक बीमारी के लिए सबको एक ही दवा नहीं दी जाती, बल्कि व्यक्ति की शारीरिक और भावनात्मक जरूरतों व समस्याओं को समझने के बाद उपचार का तरीका तय किया जाता है।
किसी भी आयुर्वेदिक उपाय या उपचार का इस्तेमाल व्यक्ति की प्रकृति, उसके वात, पित्त और कफ दोष के आधार पर किया जाता है। एक उपचार यदि किसी व्यक्ति के लिए प्रभावी होता है तो जरूरी नहीं कि वह दूसरे के लिए भी। आयुर्वेद में उपचार के कई लिए कई तरीकों का इस्तेमाल किया जाता है जिसमें शामिल हैं:
आहार और जीवनशैली में बदलाव
हर्बल मेडिसिन, जिसमें जड़ी-बूटियों के साथ मेटल, मिनरल्स और जेम्स (जिन्हें रस शास्त्र मेडिसिन कहा जाता है) का मिश्रण शामिल है। यह अलग-अलग रंग और महक की गोलियों और पाउडर के रूप में हो सकती हैं।
एक्यूपंक्चर (कुछ प्रैक्टिशनर इसकी प्रैक्टिस करते हैं)
पंचकर्म (इसमें पांच क्रियाए हैं) – एक विशेष उपचार पद्धति जिसमें इमिस (उल्टी), एनीमा सहित पांच उपचार शामिल हैं, जो शरीर को डिटॉक्स करके उसका संतुलन बनाते हैं।
साउंड थेरेपी, जिसमें मंत्रों का इस्तेमाल किया जाता है।
कौन सी तकलीफों में आयुर्वेदिक रेमेडीज से मदद मिल सकती है?
आयुर्वेद का इस्तेमाल सामान्य सर्दी-खांसी से लेकर कई गंभीर बीमारियों के इलाज के लिए किया जाता है। आयुर्वेद के जानकारों के मुताबिक यदि आयुर्वेदिक उपचार का सही तरीके से इस्तेमाल किया जाए तो यह निम्न बीमारियों में बहुत प्रभावी हो सकता है :
आयुर्वेदिक रेमेडीज का इस्तेमाल क्यों किया जाता है?
प्राचीन काल से भारत में आयुर्वेदिक चिकित्सा का इस्तेमाल किया जा रहा है और आज के समय में भी इसकी उपयोगिता बनी हुई है। नीचे कुछ कारण दिए जा रहे हैं जिसके बाद आप समझ जाएंगे कि आयुर्वेदिक चिकित्सा का इस्तेमाल क्यों किया जाना चाहिएः
आयुर्वेद में बीमारी के लक्षणों को कंट्रोल करने पर नहीं, बल्कि बीमारी को जड़ से खत्म करने पर ध्यान दिया जाता है।
आयुर्वेद इलाज के तरीके हजारों साल पुराने और कारगर हैं।
आयुर्वेदिक दवाएं किफायती होती हैं।
आयुर्वेद में सिर्फ बीमारी होने पर इलाज नहीं किया जाता, बल्कि स्वस्थ जीवनशैली अपनाने पर जोर दिया जाता है ताकि व्यक्ति बीमार पड़े ही न।
इसमें दवाओं से ज्यादा ध्यान जीवनशैली, योग, आहार आदि पर दिया जाता है जिससे आपका शरीर और मन प्राकृतिक तरीके से स्वस्थ और संतुलित रहते हैं।
आयुर्वेद में इन चीजों की दी गई है सलाह
सुबह 3 से 6 बजे के बीच उठें, क्योंकि पढ़ने, ध्यान करने और योग करने का यह सबसे अच्छा वक्त होता है।
सुबह उठने के बाद सबसे पहले पानी पिएं, इससे पेट साफ रहता है।
शरीर से निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थों का तुरंत त्याग करें, इसे रोकना नहीं चाहिए।
दांत और जीभ की नियमित सफाई के बाद ठंडे पानी से चेहरा धोएं।
आंखों पर भी ठंडे पानी के छींटे मारें, इससे रोशनी बढ़ती है।
खाने के बाद लौंग और इलायची वाला मीठा पान खा सकते हैं, इससे ताजगी का एहसास होता है और खाना भी पच जाता है।
आयुर्वेदिक रेमेडीज के इस्तेमाल से पहले ध्यान रखने वाली बातें
आयुर्वेद का इस्तेमाल करते समय कुछ सावधान बरतनी भी जरूरी है।
हर्बल दवाएं भी एलोपैथी दवाओं की तरह ही असरदार होती हैं, इसलिए इसका इस्तेमाल सावधानी से और डॉक्टर की सलाह से ही किया जाना चाहिए। आयुर्वेदिक दवाएं सुरक्षित हैं और इससे कोई नुकसान नहीं पहुंचता, वाली सोच इसके गलत उपयोग और ओवरडोज को बढ़ावा देती है।
कॉम्प्लीमेंट्री दवाएं जैसे जड़ी-बूटियों को बिना प्रिस्क्रिप्शन के ही खरीदा जा सकता है, हालांकि दूसरी दवा के साथ वह प्रतिक्रिया कर सकती हैं और उनका साइड इफेक्ट हो सकता है, जो लेबल पर लिखा नहीं होता है। इसलिए डॉक्टर की सलाह के बिना इनका इस्तेमाल न करें।
अपनी मर्जी से न तो कोई दवा लें और न ही उसकी डोज खुद निर्धारित करें।
इसके अलावा पंचकर्म, कुछ निश्चित योगासन और आयुर्वेदिक डायट जैसे आयुर्वेदिक उपचार जरूरी नहीं है कि सबके लिए सुटेबल हों। इसलिए किसी को भी अपनाने से पहले डॉक्टर से ही संपर्क करें।
क्या आयुर्वेदिक दवाएं सुरक्षित हैं?
कुछ आयुर्वेदिक दवाओं में सीसा और पारा जैसे धातुओं का इस्तेमाल किया जाता है, जो टॉक्सिक हो सकते हैं। इसलिए हमेशा अच्छे मेडिकल प्रैक्टिशनर की सलाह पर ही कोई आयुर्वेदिक दवा लें और उन्हें अपने स्वास्थ्य की पूरी जानकारी दें।
क्या आयुर्वेदिक दवाएं असरदार हैं?
कुछ अध्ययन बताते हैं कि आयुर्वेदिक उपचार से ऑस्टियोअर्थारइटिस के लक्षणों को कम करने और व्यक्ति के दर्द को कम करने के साथ ही सामान्य गतिविधि में भी मदद मिली। इसके असाला यह टाइप 2 डायबिटीज के लक्षणों को कम करने में भी मददगार है, लेकिन यह अध्ययन बहुत छोटे पैमाने पर किए गए हैं। इस संबंध में और रिसर्च की जरूरत है। आयुर्वेद से किसी बीमारी को पूरी तरह से खत्म किया जा सकता है या नहीं इस बारे में पर्याप्त साइंटिफिक रिसर्च नहीं किया गया है।
खास और प्रचलित आयुर्वेदिक रेमेडीज की अगर हम बात करें तो ज्यादा लोग आयुर्वेदिक हर्ब का सहारा लेते हैं, लेकिन इनके अलावा भी आयुर्वेदिक उपचार के तरीके हैं जिनके बारे में हम ऊपर थोड़ी जानकारी प्राप्त कर चुके हैं। चलिए अब उनके बारे में विस्तार से जानते हैं।
1. आयुर्वेदिक रेमेडीज में सबसे पहले है आहार और जीवनशैली में बदलाव
अगर आप आयुर्वेद के अनुसार अपने आहार और जीवनशैली में बदलाव लाना चाहते हैं तो आप कुछ आदतों को अपने डेली रूटीन में शामिल करना होगा। इन्हें आयुर्वेद के नियम भी कह सकते हैं।
सीजन के अनुसार खाएं फूड
सीजन के अनुसार फूड खाना एक हेल्दी ईटिंग हैबिट है। जैसे कि गुड़ और घी की तासीर गर्म होती है तो इन्हें सर्दियों में खाना चाहिए। इसी तरह छाछ की तासीर ठंडी होती है इसे गर्मियों में खाने से यह गले के म्यूकस को बढ़ाकर ठंडा प्रदान करता है।
खड़े रहकर पानी न पिएं
अगर आयुर्वेदिक ईटिंग हैबिट्स की बात करें तो यह नियम सबसे महत्वूपूर्ण है। आपको खड़े होकर खाना और पानी पीना अवॉइड करना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि खड़े होकर पानी पीने से बॉडी के फ्लूड्स का बैलेंस डिस्टर्ब हो जाता है। जिससे जोड़ों में ज्यादा फ्लूइड जमा हो जाता है जो कि अर्थराइटिस का कारण बन सकता है। इसके साथ ही खड़े होकर पानी पीने से किडनी भी प्रभावित हो सकती है। आयुर्वेदिक एक्सपर्ट के अनुसार खाना या पानी इसे धीरे-धीरे ही खाना या पीना चाहिए।
दोष के अनुसार चुनें भोजन
आयुर्वेद के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति के मन और शरीर की एक अलग तरह की रचना होती है जिसे दोष कहा जाता है। दोष में इम्बैलेंस होने पर विकृति उत्पन्न होती है। इसे दोष का बढ़ना भी कह सकते हैं। उन खाद्य पदार्थों को खाने से जो बढ़े हुए दोष को कम करते हैं शरीर के अंदर सामंजस्य बिठाया जा सकता है। सामान्य तौर पर तीन दोषों के आधार पर खाद्य पदार्थों को चुनने और तैयार करने के लिए निम्न आयुर्वेदिक सिद्धांतों को अपनाया जा सकता है।
वात दोष होने पर
वात दोष का स्वभाव ठंड़ा, रूखा, खुरदुरा और हल्का होता है। उन पदार्थों का सेवन करना जो इन विशेषताओं को काउंटर करते हैं बैलेंस क्रिएट करता है। इन लोगों में वात दोष अधिक होता है उन्हें गर्म फूड्स का सेवन करना चाहिए। गर्म से मतलब जिन फूड्स की तासीर गर्म हो साथ ही उन्हें गर्म गर्म ही खाया जाए। साथ ही वे बॉडी को हाइड्रेट करने वाले हो जैसे सूप। इसके साथ ही उन्हें हेल्दी फैट्स जैसे कि ऑलिव ऑयल, घी, ऑर्गेनिक क्रीम और एवाकाडो खाना चाहिए।
पित्त दोष होने पर
इसी तरह पित्त दोष गर्म, ऑयली, लाइट और शार्प क्वालिटीज के लिए जाना जाता है। इसलिए ऐसे खाद्य पदार्थ का सेवन करना चाहिए जो कि ठंड़े हों और शरीर के अंदर से ठंडे पहुंचाएं जैसे कि पुदीना, खीरा, सीताफल और अजमोद आदि।
कफ दोष होने पर
कफ दोष हेवी, कूल, ऑयली और स्मूद क्वालिटीज के लिए जाना जाता है। इसको बैलेंसे करने के लिए लाइट, गर्म और सूखे खाद्य पदार्थों को खाना चाहिए जैसे कि बीन्स, पॉपकॉर्न, सब्जियां आदि।
ओवरईटिंग न करें और एक कंप्लीट मील के तुरंत बाद ना खाएं
आयुर्वेद के अनुसार आपको यह पता होना चाहिए कि खाते वक्त कहां पर रुकना है। जब तक भूख ना लगे तब तक खाना नहीं खाएं। लाइट सात्विक फूड को अपनाएं। सात्विक डायट में सीजनल फूड्स, फ्रूट्स, सब्जियां, डेयरी प्रोडक्ट्स, नट्स, सीड्स, ऑयल और पकी सब्जियां शामिल हैं। सात्विक फूड बॉडी से टॉक्सिन्स निकालने में मदद करते हैं जो वातावरण के पॉल्यूशन के कारण बॉडी में प्रवेश कर जाते हैं। साथ ही आउटसाइड के जंक फूड खाने से होने वाले डैमेज को रिकवर करते हैं।
खाने को रिस्पेक्ट दें
खाना खाते समय टीवी देखना, फोन का उपयोग और न्यूजपेपर को ना पढ़ें। आयुर्वेद कहता है कि आप जी रहे हैं क्योंकि आपकी प्लेट में फूड मौजूद है। इसलिए खाने के प्रति रिस्पेक्ट रखें। खाने के समय होने वाला डिस्ट्रैक्शन बॉडी की खाना पचाने की क्षमता को प्रभावित करता है। इससे कई पेट संबंधी बीमारियां होती हैं।
धीरे खाएं
जल्दी-जल्दी खाना ना खाएं। खाने को धीरे-धीरे और अच्छे से चबाकर खाएं। इससे खाने का अच्छी तरह ब्रेकडाउन होता है और डायजेस्टिव एंजाइम को अपने काम करने के जरूरी समय मिलता है। अगर खाना अच्छी तरह नहीं पचता है तो यह बहुत सारी डायजेस्टिव प्रॉब्लम्स का कारण बनता है और इससे वजन बढ़ भी सकता है। दिन की शुरुआत गुनगने पानी से करें। यह पुराने समय से चली आ रही आयुर्वेदिक प्रेक्टिस है। गुनगुने पानी से बॉडी का टेम्प्रेचर बढ़ता है जो मेटाबॉलिज्म को बढ़ाता है और वेट लॉस भी करता है।
डायजेस्टिव फायर को जगाएं
कई बार आप भूख महसूस नहीं करते क्योंकि डायजेस्टिव फायर नहीं होती है। इसके लिए कसे हुए अदरक को नींबू की कुछ बूंदों और एक चुटकी नमक के साथ लें। ये सभी तत्व लार ग्रंथियों (salivary gland) को डायजेस्टिव एंजाइम को प्रोड्यूस करने के लिए एक्टिव करते हैं। जो डायजेशन में मदद करने के साथ ही हम जो खाते हैं उस फूड को एब्जॉर्ब करने में मदद करते हैं।
कुछ फूड्स को साथ में ना खाएं
आयुर्वेद के अनुसार कुछ निश्चित फूड कॉब्निनेशन गैस्ट्रिक फायर के फंक्शन को डिस्टर्ब करते हैं और दोषों को इम्बैलेंस करते हैं। यह इनडायजेशन, गैस और फर्मेंटेशन का कारण बनते हैं।
2. आयुर्वेदिक रेमेडीज में शामिल हैं जड़ी-बूटियां
आयुर्वेदिक रेमेडीज या कहे कि आयुर्वेदिक उपचार में जड़ी बूटियों का उपयोग सबसे ज्यादा किया जाता है। आयुर्वेद के अनुसार हर्ब्स के शरीर और मन के लिए अनेक फायदे हैं। इनका उपयोग बाहरी और अंदरूनी दोनों तौर पर किया जाता है। साथ ही ये अरोमाथेरिपी में भी यूज की जाती हैं। जड़ी बूटियों के निम्न फायदे हैं।
ये वजन कम करने में मददगार हैं
कैंसर से लड़ने में मदद करती हैं
बॉडी को डिटॉक्सीफाई करने के साथ ही ब्लड को प्यूरीफाई करती हैं
डायजेशन को इम्प्रूव करती हैं
स्किन को जवां बनाती हैं
इम्यूनिटी को बढ़ाती हैं
मेंटल हेल्थ को बूस्ट करती हैं
यह हम आपको कुछ ऐसी हर्ब्स के बारे में बता रहे हैं जिन्हें आप हेल्दी लाइफस्टाइल के लिए अपने डेली रूटीन में शामिल कर सकते हैं। अगर आपको किसी हर्ब से एलर्जी है तो डॉक्टर की सलाह के बिना इसका उपयोग ना करें।
एक्यूपंक्चर में आपकी बॉडी के स्पेसिफिक पॉइंट पर पतली सुईंयां इंसर्ट की जाती हैं। इस थेरिपी का यूज दर्द का इलाज करने के लिए किया जाता है। वैसे तो यह चायनीज थेरिपी है, लेकिन ऐसा माना जाता है कि इसका आयुर्वेद से संबंध है। इस थेरिपी में एनर्जी के फ्लो को बैलेंस करने का काम किया जाता है। एक्यूपंचर प्रैक्टिशनर एनर्जी फ्लो को रि बैलेंस करते हैं। कई प्रैक्टिशनर का विचार है कि इससे यह नर्व, मसल्स और कनेक्टिव टिशूज स्टिमुलेट होते हैं। कुछ का मानना है कि यह स्टिमुलेशन बॉडी के नैचुरल पेनकिलर्स को बूस्ट करता है। यह दांत के दर्द, सिर दर्द, माइग्रेन, लेबर पेन, लो बैक पेन, नेक पेन, मेन्ट्रुअल पेन, ऑस्टियोअर्थराइटिस, रेस्पिरेट्री डिसऑर्डर आदि में उपयोगी है।
4.अभ्यंग मसाज भी है आयुर्वेदिक रेमेडीज
आयुर्वेद में इस मसाज का विशेष महत्व है। इसे आयुर्वेद की प्रचलित मसाज कहा जा सकता है। इसमें गर्म तेल से पूरी बॉडी की सिर से लेकर पंजों तक मसाज की जाती है। इस मालिश को वैसे तो एक्सपर्ट के द्वारा करवाया जाता है, लेकिन आप इसे घर पर खुद से भी कर सकते हैं। इससे बॉडी का टेम्प्रेचर संतुलित रहता है और ब्लड का सर्कुलेशन बढ़ता है जिससे बॉडी से टॉक्सिन्स बाहर हो जाते हैं। साथ ही मांसपेशियों और जोड़ों की अकड़न को दूर होती है। इस मसाज के लिए आप सरसों का तेल उपयोग कर सकते हैं।
5.मेडिटेशन और योगासन भी हैं आयुर्वेदिक रेमेडीज
मेडिटेशन या कहें कि ध्यान इसकी शुरुआत भारत से हुई है। ध्यान लगाने से ना सिर्फ मन का विकास होता है ब्लकि तन का विकास भी होता है। यह शांति और सुकून पहुंचाने के साथ ही इनर पीस भी देता है। यह एकाग्रता को बढ़ाने वाला और स्ट्रेस को मिनटों में दूर करने वाला है। कोई भी मेडिटेशन प्रैक्टिस कर सकता है। यह बेहद आसान है। कई लोग सांस के आने जाने पर ध्यान लगाते हैं तो कुछ आईब्रो के बीच के भाग पर। कुछ लोग जलते हुए दीये पर भी ध्यान केन्द्रित करते हैं। इसके लिए आपको शांत वातावरण में चटाई पर बैठना है और ध्यान केन्द्रित करना है। आप 5 मिनट लेकर 1 घंटे तक ध्यान लगा सकते हैं। यह एक आयुर्वेदिक रेमेडी (आयुर्वेदिक उपचार) ही है।
इसी तरह आयुर्वेद में योगासनों का विशेष महत्व है। ये भी आयुर्वेदिक उपचार की तरह किए जाते हैं। हर तरह के रोग के लिए योग या कहे कि योगासन मौजूद हैं। आप किसी एक्सपर्ट की मदद से इनको सीखने के बाद घर में आसानी से इनका अभ्यास कर सकते हैं। जैसे बॉडी बैलेंस और पॉश्चर को सुधारने के लिए ताड़ासन, मेमोरी और फोकस को बढ़ाने और बॉडी पेन को कम करने के लिए अधोमुख श्वानासन, कमर और स्पानइल प्रॉब्लम्स के लिए सेतुबंध आसन आदि।
6.ब्रीदिंग एक्सरसाइजेज भी हैं आयुर्वेदिक रेमेडीज
आयुर्वेद की भाषा में इन्हें प्राणायाम कहा जाता है। ये सांस लेने और छोड़ने पर आधारित होते हैं। भारत के ऋषि मुनियों ने इन प्रक्रियाओं को खोजा था। यह तनाव को दूर करने के साथ ही कई प्रकार के शारीरिक लाभ देती हैं। इन्हें खाली पेट दिन में कभी भी कर सकते हैं। प्राणायाम के कई प्रकार हैं। जैसे हाय ब्लड प्रेशर के लिए भ्रामरी प्राणायाम करना चाहिए तो वहीं भस्त्रिका प्राणायाम से आप अपनी डलनेस को कम कर सकते हैं। कपालभाति प्राणायाम शरीर को रोगमुक्त रखने के लिए जाना जाता है।
पंचकर्म आयुर्वेद का एक प्रमुख शुद्धिकरण उपचार है। पंचकर्म का मतलब है कि इसमें पांच चिकित्साओं का समावेश है। इस प्रक्रिया का उपयोग बॉडी के डिटॉक्सिफिकेशन के लिए किया जाता है। जिससे कई प्रकार के रोगों से राहत मिलती है। इसमें पांच कर्म होते हैं लेकिन उन्हें शुरु करने से पहले दो काम और करने पड़ते हैं वे हैं स्नेहन और स्वेदन। इसके बाद वमन, विरेचन, वस्ति, नस्य और रक्त मोक्षण किया जाता है। इसका मकसद शरीर की सफाई करना है यानी शरीर से ऐसे पदार्थों को बाहर निकालना है जो पच नहीं पाते और शरीर में रहकर बीमारी बढ़ाते हैं। यह आयुर्वेदिक उपचार बीमारी के लक्षणों को कम करने के साथ ही जीवन में सामंजस्य और संतुलन बनाए रखता है।
उम्मीद करते हैं कि आपको यह आर्टिकल पसंद आया होगा और आयुर्वेदिक रेमेडीज (आयुर्वेदिक उपचार) से संबंधित जरूरी जानकारियां मिल गई होंगी। अधिक जानकारी के लिए एक्सपर्ट से सलाह जरूर लें। अगर आपके मन में अन्य कोई सवाल हैं तो आप हमारे फेसबुक पेज पर पूछ सकते हैं। हम आपके सभी सवालों के जवाब आपको कमेंट बॉक्स में देने की पूरी कोशिश करेंगे। अपने करीबियों को इस जानकारी से अवगत कराने के लिए आप ये आर्टिकल जरूर शेयर करें।
हैलो हेल्थ ग्रुप हेल्थ सलाह, निदान और इलाज इत्यादि सेवाएं नहीं देता।