क्या आयुर्वेदिक दवाएं असरदार हैं?
कुछ अध्ययन बताते हैं कि आयुर्वेदिक उपचार से ऑस्टियोअर्थारइटिस के लक्षणों को कम करने और व्यक्ति के दर्द को कम करने के साथ ही सामान्य गतिविधि में भी मदद मिली। इसके असाला यह टाइप 2 डायबिटीज के लक्षणों को कम करने में भी मददगार है, लेकिन यह अध्ययन बहुत छोटे पैमाने पर किए गए हैं। इस संबंध में और रिसर्च की जरूरत है। आयुर्वेद से किसी बीमारी को पूरी तरह से खत्म किया जा सकता है या नहीं इस बारे में पर्याप्त साइंटिफिक रिसर्च नहीं किया गया है।
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खास और प्रचलित आयुर्वेदिक रेमेडीज
खास और प्रचलित आयुर्वेदिक रेमेडीज की अगर हम बात करें तो ज्यादा लोग आयुर्वेदिक हर्ब का सहारा लेते हैं, लेकिन इनके अलावा भी आयुर्वेदिक उपचार के तरीके हैं जिनके बारे में हम ऊपर थोड़ी जानकारी प्राप्त कर चुके हैं। चलिए अब उनके बारे में विस्तार से जानते हैं।
- आहार और जीवनशैली में बदलाव
- जड़ी-बूटियों का उपयोग
- एक्यूपंक्चर
- मसाज
- मेडिटेशन और योगासन
- ब्रीदिंग एक्सरसाइज
- पंचकर्म
1. आयुर्वेदिक रेमेडीज में सबसे पहले है आहार और जीवनशैली में बदलाव
अगर आप आयुर्वेद के अनुसार अपने आहार और जीवनशैली में बदलाव लाना चाहते हैं तो आप कुछ आदतों को अपने डेली रूटीन में शामिल करना होगा। इन्हें आयुर्वेद के नियम भी कह सकते हैं।
सीजन के अनुसार खाएं फूड

सीजन के अनुसार फूड खाना एक हेल्दी ईटिंग हैबिट है। जैसे कि गुड़ और घी की तासीर गर्म होती है तो इन्हें सर्दियों में खाना चाहिए। इसी तरह छाछ की तासीर ठंडी होती है इसे गर्मियों में खाने से यह गले के म्यूकस को बढ़ाकर ठंडा प्रदान करता है।
खड़े रहकर पानी न पिएं
अगर आयुर्वेदिक ईटिंग हैबिट्स की बात करें तो यह नियम सबसे महत्वूपूर्ण है। आपको खड़े होकर खाना और पानी पीना अवॉइड करना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि खड़े होकर पानी पीने से बॉडी के फ्लूड्स का बैलेंस डिस्टर्ब हो जाता है। जिससे जोड़ों में ज्यादा फ्लूइड जमा हो जाता है जो कि अर्थराइटिस का कारण बन सकता है। इसके साथ ही खड़े होकर पानी पीने से किडनी भी प्रभावित हो सकती है। आयुर्वेदिक एक्सपर्ट के अनुसार खाना या पानी इसे धीरे-धीरे ही खाना या पीना चाहिए।
दोष के अनुसार चुनें भोजन
आयुर्वेद के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति के मन और शरीर की एक अलग तरह की रचना होती है जिसे दोष कहा जाता है। दोष में इम्बैलेंस होने पर विकृति उत्पन्न होती है। इसे दोष का बढ़ना भी कह सकते हैं। उन खाद्य पदार्थों को खाने से जो बढ़े हुए दोष को कम करते हैं शरीर के अंदर सामंजस्य बिठाया जा सकता है। सामान्य तौर पर तीन दोषों के आधार पर खाद्य पदार्थों को चुनने और तैयार करने के लिए निम्न आयुर्वेदिक सिद्धांतों को अपनाया जा सकता है।
वात दोष होने पर
वात दोष का स्वभाव ठंड़ा, रूखा, खुरदुरा और हल्का होता है। उन पदार्थों का सेवन करना जो इन विशेषताओं को काउंटर करते हैं बैलेंस क्रिएट करता है। इन लोगों में वात दोष अधिक होता है उन्हें गर्म फूड्स का सेवन करना चाहिए। गर्म से मतलब जिन फूड्स की तासीर गर्म हो साथ ही उन्हें गर्म गर्म ही खाया जाए। साथ ही वे बॉडी को हाइड्रेट करने वाले हो जैसे सूप। इसके साथ ही उन्हें हेल्दी फैट्स जैसे कि ऑलिव ऑयल, घी, ऑर्गेनिक क्रीम और एवाकाडो खाना चाहिए।
पित्त दोष होने पर
इसी तरह पित्त दोष गर्म, ऑयली, लाइट और शार्प क्वालिटीज के लिए जाना जाता है। इसलिए ऐसे खाद्य पदार्थ का सेवन करना चाहिए जो कि ठंड़े हों और शरीर के अंदर से ठंडे पहुंचाएं जैसे कि पुदीना, खीरा, सीताफल और अजमोद आदि।
कफ दोष होने पर
कफ दोष हेवी, कूल, ऑयली और स्मूद क्वालिटीज के लिए जाना जाता है। इसको बैलेंसे करने के लिए लाइट, गर्म और सूखे खाद्य पदार्थों को खाना चाहिए जैसे कि बीन्स, पॉपकॉर्न, सब्जियां आदि।
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ओवरईटिंग न करें और एक कंप्लीट मील के तुरंत बाद ना खाएं
आयुर्वेद के अनुसार आपको यह पता होना चाहिए कि खाते वक्त कहां पर रुकना है। जब तक भूख ना लगे तब तक खाना नहीं खाएं। लाइट सात्विक फूड को अपनाएं। सात्विक डायट में सीजनल फूड्स, फ्रूट्स, सब्जियां, डेयरी प्रोडक्ट्स, नट्स, सीड्स, ऑयल और पकी सब्जियां शामिल हैं। सात्विक फूड बॉडी से टॉक्सिन्स निकालने में मदद करते हैं जो वातावरण के पॉल्यूशन के कारण बॉडी में प्रवेश कर जाते हैं। साथ ही आउटसाइड के जंक फूड खाने से होने वाले डैमेज को रिकवर करते हैं।
खाने को रिस्पेक्ट दें
खाना खाते समय टीवी देखना, फोन का उपयोग और न्यूजपेपर को ना पढ़ें। आयुर्वेद कहता है कि आप जी रहे हैं क्योंकि आपकी प्लेट में फूड मौजूद है। इसलिए खाने के प्रति रिस्पेक्ट रखें। खाने के समय होने वाला डिस्ट्रैक्शन बॉडी की खाना पचाने की क्षमता को प्रभावित करता है। इससे कई पेट संबंधी बीमारियां होती हैं।
धीरे खाएं
जल्दी-जल्दी खाना ना खाएं। खाने को धीरे-धीरे और अच्छे से चबाकर खाएं। इससे खाने का अच्छी तरह ब्रेकडाउन होता है और डायजेस्टिव एंजाइम को अपने काम करने के जरूरी समय मिलता है। अगर खाना अच्छी तरह नहीं पचता है तो यह बहुत सारी डायजेस्टिव प्रॉब्लम्स का कारण बनता है और इससे वजन बढ़ भी सकता है। दिन की शुरुआत गुनगने पानी से करें। यह पुराने समय से चली आ रही आयुर्वेदिक प्रेक्टिस है। गुनगुने पानी से बॉडी का टेम्प्रेचर बढ़ता है जो मेटाबॉलिज्म को बढ़ाता है और वेट लॉस भी करता है।
डायजेस्टिव फायर को जगाएं
कई बार आप भूख महसूस नहीं करते क्योंकि डायजेस्टिव फायर नहीं होती है। इसके लिए कसे हुए अदरक को नींबू की कुछ बूंदों और एक चुटकी नमक के साथ लें। ये सभी तत्व लार ग्रंथियों (salivary gland) को डायजेस्टिव एंजाइम को प्रोड्यूस करने के लिए एक्टिव करते हैं। जो डायजेशन में मदद करने के साथ ही हम जो खाते हैं उस फूड को एब्जॉर्ब करने में मदद करते हैं।
कुछ फूड्स को साथ में ना खाएं
आयुर्वेद के अनुसार कुछ निश्चित फूड कॉब्निनेशन गैस्ट्रिक फायर के फंक्शन को डिस्टर्ब करते हैं और दोषों को इम्बैलेंस करते हैं। यह इनडायजेशन, गैस और फर्मेंटेशन का कारण बनते हैं।
2. आयुर्वेदिक रेमेडीज में शामिल हैं जड़ी-बूटियां

आयुर्वेदिक रेमेडीज या कहे कि आयुर्वेदिक उपचार में जड़ी बूटियों का उपयोग सबसे ज्यादा किया जाता है। आयुर्वेद के अनुसार हर्ब्स के शरीर और मन के लिए अनेक फायदे हैं। इनका उपयोग बाहरी और अंदरूनी दोनों तौर पर किया जाता है। साथ ही ये अरोमाथेरिपी में भी यूज की जाती हैं। जड़ी बूटियों के निम्न फायदे हैं।