स्वास्थ्य विशेषज्ञों की लोगों को सलाह है कि कभी भी अपने डॉक्टर से पूछे बिना किसी दवा का सेवन ना करें। पेनकिलर टैबलेट (पैरासिटामोल, आइबूप्रोफेन, एस्पिरिन, निमेसुलाइड आदि), एंटीबायोटिक्स (सल्फोनामाइड्स, टोबरामायसिन, वैंकोमायसिन आदि), एसिडिटी के लिए प्रोटॉन पंप इन्हिबिटर्स, जैसे ओमेप्राजोल, लांसोप्राजोल, पैंटोप्राजोल, रेबेप्राजोल आदि) ऐसी दवाएं हैं, जिन्हें डॉक्टर और मेडिकल एक्सपर्ट्स अक्सर रिकमेंड करते हैं, लेकिन इन दवाओं का सेवन तबतक ही करना चाहिए जब आपके डॉक्टर से इसके सेवन की सलाह दी हो। इसे लेकर यूएसएफडीए (यूनाइटेड स्टेट्स फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेटर) और कई अन्य अंतरराष्ट्रीय निकायों ने दवाओं के दुष्प्रभावों को लेकर सार्वजनिक रूप से लोगों को सतर्क भी किया है। लेकिन अक्सर लोग इसे तब तक नहीं समझते जब तक कोई बड़ी शारीरिक परेशानी नहीं आ जाती। अगर इसे आसान शब्दों में समझें तो सेल्फ मेडिकेशन से आप खुद ही बीमारी को अनजाने में दावत दे रहें हैं।
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नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इन्फॉर्मेशन (NCBI) के अनुसार, गैस या एसिडिटी के उपचार के लिए दी जाने वाली पीपीआई (Proton Pump Inhibitor) दवाओं का लंबे समय तक इस्तेमाल करने से किडनी पर बुरा असर पड़ता है। पीपीआई ड्रग्स जैसे ओमेप्राजोल, लांसोप्राजोल, पैंटोप्राजोल, रेबेप्राजोल आदि का इस्तेमाल 6-8 हफ्तों से ज्यादा समय तक करने से क्रॉनिक किडनी डिजीज का खतरा बढ़ जाता है। जो लोग इन दवाओं का सेवन करते हैं, उन्हें इसके जोखिम की जानकारी भी होनी चाहिए। इसलिए यह ध्यान रखें कि आपके डॉक्टर आपको जितने दिनों के लिए दवाओं के सेवन की सलाह दे रहें, उसे उसी टाइम पीरियड तक सेवन करें। अगर आप डोज से ज्यादा दवाओं का सेवन कर रहें हैं, तो इसका अर्थ है आप सेल्फ मेडिकेशन से किडनी प्रॉब्लम को इन्वाइट कर रहें हैं।
हाल ही में डीसीजी आई (ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया) ने इसे लेकर कदम उठाते हुए, ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (DCGI) ने सभी प्रोटॉन पंप इनहिबिटर यानी पीपीआई दवाओं जैसे कि ओमेप्राजोल, लांसोप्राजोल, पैंटोप्राजोल, रेबेप्राजोल आदि के लेबल पर ‘एक्यूट किडनी डैमेज’ की चेतावनी को शामिल करने के निर्देश जारी किए हैं।
ये सभी दवाएं एक्यूट और क्रॉनिक किडनी डिजीज का कारण बन सकती हैं। खासकर तब, जब आप लंबे समय तक गैस की दवा के रूप में इसका सेवन कर रहे हैं।
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हेल्थ एक्सपर्ट्स एवं डीसीजीआई के अनुसार प्रोटॉन पंप इन्हिबिटर्स (पीपीआई) का सेवन केवल डॉक्टर के परामर्श के बाद ही किया जाना चाहिए। इसके अलावा, जो रोगी पीपीआई थेरिपी पर हैं। अंतर्राष्ट्रीय संगठन सुझाव देते हैं कि इसके दीर्घकालिक गंभीर परिणामों को कम करने के लिए समय के साथ धीरे-धीरे इसकी खुराक को कम करने का प्रयास किया जाना चाहिए। इसकी अधिक जानकारी के लिए अपने डॉक्टर से इसके बारे में बात करें।
किडनी से संबंधित बीमारी (Kidney disease) कौन-कौन सी है?
एक्यूट किडनी डिजीज- किडनी में अचानक से हुई खराबी एक्यूट किडनी डिजीज (Kidney disease) या एक्यूट किडनी इंजूरी के अंतर्गत आती है। हेल्थ एक्सपर्ट्स के अनुसार इनफेक्शन या किसी दवा के साइड इफेक्ट्स की वजह से किडनी टिशू डैमेज होने की स्थिति में एक्यूट किडनी डिजीज की समस्या शुरू हो जाती है। कई बार किडनी स्टोन की वजह से एक्यूट किडनी डिजीज का खतरा बढ़ जाता है।
क्रॉनिक किडनी डिजीज– उम्र बढ़ने के साथ-साथ किडनी कमजोर होने लगती है और धीरे-धीरे किडनी फेल होने का खतरा बढ़ जाता है। क्रॉनिक किडनी डिजीज से पीड़ि पेशेंट्स को डायलिसिस या किडनी ट्रांसप्लांट (Kidney transplant) की जरूरत पड़ती है।
किडनी स्टोन- नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इन्फॉर्मेशन (NCBI) के साल 2018 के रिपोर्ट अनुसार 12 प्रतिशत लोग किडनी स्टोन (Kidney stone) की समस्या से पीड़ित हैं। किडनी स्टोन शरीर में प्रोटीन बढ़ने के कारण या खान-पान की वजह से होने वाली समस्या है।
किडनी इंफेक्शन- किडनी इंफेक्शन यूरिनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन का ही एक कारण है। यूटीआई (UTI) के कई कारण हो सकते हैं।
इन परेशानियों के साथ-साथ निम्नलिखित किडनी की बीमारी हो सकती है। जैसे किडनी पेन या यूरिन से ब्लड आने की समस्या।
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सेल्फ मेडिकेशन से किडनी प्रॉब्लम (Self medication cause kidney problem) से बचने के लिए क्या करें?