डब्लूएचओ की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 13 से 15 साल की उम्र के हर चार किशोरों में से एक डिप्रेशन का शिकार होता है। वहीं, 10 दक्षिण पूर्व एशियाई देशों में भारत में आत्महत्या दर सबसे अधिक है। यह रिपोर्ट आगे कहती है कि 2012 में भारत में 15-29 उम्र वर्ग के प्रति एक लाख व्यक्ति पर आत्महत्या दर 35.5 थी। संगठन का यह भी कहना है कि 2020 तक प्री-मैच्योर डेथ (pre-mature death) का सबसे बड़ा कारण डिप्रेशन होगा। हालांकि, बच्चों में डिप्रेशन के लक्षण को जल्द से जल्द पकड़कर उसका इलाज किया जा सकता है।
बच्चों में डिप्रेशन पर क्या कहते हैं एक्सपर्ट?
नई दिल्ली के फोर्टिस हेल्थ-केयर में मेंटल हेल्थ केयर ऐंड बिहेवियरल साइंसेस के डायरेक्टर डॉ. समीर पारेख कहते हैं, ‘आत्महत्या करने वाले सौ लोगों में से 90 लोग सुसाइड के समय किसी-न-किसी मानसिक विकार से पीड़ित होते हैं। इनमें से 75 लोगों में अवसाद की वजह सामान्य होती है।’ ऐसे में इस समस्या को गंभीरता से लेने की जरूरत है। किशोरावस्था में होने वाले डिप्रेशन (depression in adolescence) को पेरेंट्स कैसे पहचानें और अपने बच्चों में डिप्रेशन के लक्षण को कम करने में कैसे मदद करें? यह जानना जरूरी है।
किशोरों में अवसाद के क्या लक्षण हैं? (Symptoms of depression in adolescents)
- ज्यादातर समय बच्चे का उदास या चिड़चिड़ा रहना
- दुखी या क्रोधित महसूस करना
- उन चीजों से खुशी न मिलना, जिससे पहले वे खुश हो जाते थे
- वजन या खाने में बदलाव आना (बहुत ज्यादा या बहुत कम)
- रात को बहुत कम सोना या दिन में बहुत ज्यादा सोना
- परिवार या दोस्तों से अलग-थलग रहना
- ऊर्जा की कमी
- आसान से काम को भी करने में असमर्थ महसूस करना
- आत्म-सम्मान में गिरावट आना
- ध्यान केंद्रित करने में परेशानी
- मौत या आत्महत्या (suicide) के लगातार विचार आना।
ये सभी लक्षण अगर दो सप्ताह तक बने रहते हैं, तो खतरे की घंटी हो सकते हैं। अवसाद के निदान और उपचार के लिए डॉक्टर से जल्द से जल्द संपर्क करना जरूरी रहता है।
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किशोरावस्था में अवसाद के मुख्य कारण हैं? (Causes of depression)
खुद को बेहतर साबित करना
खुद को दूसरों से अच्छा साबित करने की होड़, युवाओं में तनाव की सबसे बड़ी वजहों में से एक है। यह कॉम्पिटीशन स्कूल, काॅलेज, कोचिंग, प्ले ग्राउंड, दोस्त यहां तक कि परिवार में अपने भाई-बहन के साथ भी जारी रहता है। बच्चों पर मां-बाप की उम्मीदों पर खरा उतरने और पढ़ाई, खेलकूद में हमेशा अच्छा करने का दबाब होता है और कब यह तनाव में बदल जाता है, पता ही नहीं चलता है।
खानपान और बच्चों में डिप्रेशन के लक्षण
जैसा खाओगे अन्न, वैसा होए मन। सबने यह कहावत तो सुनी ही होगी। आजकल जंक फूड, प्रोसेस्ड फूड्स, हाई फैट डेयरी प्रोडक्ट्स आदि का सेवन बच्चों के बीच में इतना ज्यादा बढ़ गया है कि वे पौष्टिक भोजन के प्रति बेपरवाह होते जा रहे हैं। कई रिसर्च से पता चलता है कि जो लोग मीट और डेयरी उत्पादों को कम लेते हैं – उनमें अवसाद और अन्य बीमारियों जैसे अल्जाइमर रोग, मधुमेह और हृदय रोग की दर कम होती है।
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मोबाइल का ज्यादा उपयोग
मोबाइल के प्रति बढ़ता आकर्षण भी मानसिक तनाव का कारण है। आज के वक्त में देखा गया है कि किशोर और युवा वयस्क व्यक्तिगत रूप से अपने दोस्तों/परिवार के साथ जुड़ने से ज्यादा समय सोशल मीडिया से जुड़े रहते हैं। नेट पर देर रात तक व्यस्त रहना नींद को प्रभावित करता है। नींद की समस्या के चलते कई तरह के मानसिक रोग (mental diseases) होने की संभावना बढ़ जाती है।
पारिवारिक माहौल
पारिवारिक वातावरण का अच्छा/बुरा प्रभाव बच्चों पर पड़ता है। यदि घर में लड़ाई-झगड़े का माहौल है तो उसका असर बच्चे के मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ता है। ऐसी स्थितियां भी बच्चों के लिए प्रतिकूल हो जाती हैं। इससे बच्चे को डिप्रेशन होने की शंका रहती है।
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रिलेशनशिप में असफलता
बच्चों में डिप्रेशन के लक्षण दिखने का एक बड़ा कारण, रिलेशनशिप में असफलता भी है। वहीं, गर्लफ्रेंड या बॉयफ्रेंड न बन पाना या ब्रेकअप जैसी चीजें बच्चों के दिमाग पर बार असर करती हैं। रिलेशनशिप के मामलों में बच्चे अक्सर किसी से अपनी बात शेयर नहीं कर पाते हैं। जिसकी वजह से मानसिक तनाव बढ़ता है। नतीजन, डिप्रेशन के लक्षण देखने को मिलते हैं।
बच्चों में डिप्रेशन या मेंटल डिसऑर्डर आनुवांशिक (Genetic), किसी घटना या बचपन का आघात (childhood trauma) के कारण भी हो सकता है। अगर किसी बच्चे के पेरेंट्स इस समस्या से गुजर चुके हों तो वे अवसाद के शिकार जल्दी हो सकते हैं।
बच्चों में डिप्रेशन के लक्षण दिखने पर पेरेंट्स क्या करें?
अगर आपका बच्चा इन सारी चीजों से जूझ रहा है तो ऐसे में उसपर ध्यान देने की जरूरत है। किशोरावस्था में होने वाले स्ट्रेस से निपटने में असफल होने पर बहुत से युवा धूम्रपान, चोरी और नशीली दवाओं का सेवन करने लगते हैं। कभी-कभी अवसाद इतना ज्यादा बढ़ जाता है कि बच्चा आत्महत्या करने की भी कोशिश करता है। ऐसे में पेरेंट्स ये कुछ टिप्स फॉलो करें-
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बच्चे को व्यस्त रखें
बच्चे को उसकी हॉबी के लिए प्रेरित करें जैसे डांस, म्यूजिक या उसका पसंदीदा खेल। ऐसा करने से वह खुश रहेगा। इससे बच्चे को रोजमर्रा होने वाले छोटे-मोटे तनाव से लड़ने की शक्ति मिलती है।
दोस्ताना बर्ताव करें
माता-पिता को बच्चों से मजबूत इमोशनल बॉन्डिंग बनाए रखने के लिए अपने टीनएजर बच्चों से दोस्त जैसा व्यवहार करें। उन्हें भरपूर समय दें और उनकी बातें हमेशा सुनें। ऐसा होने पर उन्हे आपसे बात करने में कोई हिचक नहीं होगी और अगर उन्हें कोई समस्या होगी तो वे आपसे खुलकर बात कर सकेंगे। जिससे उनकी परेशानी और तनाव की वजह पता लगाना आसान हो जाएगा।
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तुलना न करें
पेरेंट्स कभी भी दूसरे बच्चों की तुलना अपने बच्चों से न करें। हर एक बच्चे में अलग-अलग तरह की विशेषता होती है। माता-पिता को अपने बच्चों की उसी विशेषता को पहचानना है।
उनका सम्मान करें
बच्चे की परेशानी को बहाना न समझें, उसकी बात सुनें और उसका सम्मान करें। बच्चों की छोटी-छोटी उपलब्धियों की दिल से प्रशंसा करें जिससे उनका आत्मविश्वास बढ़ेगा।
पौष्टिक व संतुलित आहार दें
बच्चे को ऐसा खाना दें जो पौष्टिक और प्रोटीन से भरपूर हो। खाना बच्चे की पसंद के मुताबिक होना चाहिए जिससे वह इसे खा सके क्योंकि तनावग्रस्त होने पर खाने की इच्छा बहुत कम या बहुत ज्यादा हो जाती है।
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हेल्दी लाइफस्टाइल बनाएं
अच्छे मानसिक स्वास्थ्य के लिए बच्चों को एक स्वस्थ जीवनशैली अपनाने के लिए कहें। पर्याप्त नींद और व्यायाम को मुख्य रूप से शामिल करें। स्क्रीन टाइम को सीमित करें। दूसरों के साथ उसका संबंध सकारात्मक हो, इसके लिए उसे दोस्तों या परिवार के साथ फन एक्टिविटीज करने के लिए प्रोत्साहित करें।
इसके बाद भी अगर आपको लगता है कि बच्चा पूरी तरह से सामान्य नहीं है तो डॉक्टर से जरूर सलाह लें। आत्महत्या के लिए जोखिम कारकों पर ध्यान दें। बच्चा अगर किसी से या इंटरनेट पर सुसाइड से जुड़ी बातें करता है या नशीले पदार्थों का सेवन करना शुरू कर देता है, तो सतर्क होने की आवश्यकता है। ऐसी स्थिति में बच्चों में डिप्रेशन के लक्षण से निजात पाने के लिए साइकोथेरेपी, म्यूजिक थेरेपी या लाइट थेरेपी के लिए डॉक्टर से सलाह ली जा सकती है।
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