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जेनेटिक आई डिसऑर्डर क्या हैं? जानिए अर्ली डायग्नोसिस कैसे किया जाता है

के द्वारा मेडिकली रिव्यूड डॉ. हेमाक्षी जत्तानी · डेंटिस्ट्री · Consultant Orthodontist


Nidhi Sinha द्वारा लिखित · अपडेटेड 06/12/2021

    जेनेटिक आई डिसऑर्डर क्या हैं? जानिए अर्ली डायग्नोसिस कैसे किया जाता है

    रिसर्चगेट (ResearchGate) में पब्लिश्ड रिपोर्ट के अनुसार भारत में 12 मिलियन लोग ब्लाइंडनेस के शिकार हैं। वहीं क्लीवलैंड क्लिनिक (Cleveland Clinic) में पब्लिश्ड एक रिपोर्ट के अनुसार जन्म लेने वाले बच्चों में तकरीबन 60 प्रतिशत बच्चे के ब्लाइंडनेस (Blindness) या गंभीर दृष्टि दोष (Severe vision loss) के पीछे जेनटिक कारणों को बताया गया है। जेनेटिक कारणों से कई बीमारियां अपना ठिकाना आसानी से ढूंढ लेती हैं और आंखों से संबंधित कई बीमारियों का भी यही कारण है। इसलिए आज इस आर्टिकल में जेनेटिक आई डिसऑर्डर (Genetic Eye Disorders) से जुड़ी कई महत्वपूर्ण जानकारी आपके लिए लेकर आएं हैं। क्योंकि जेनेटिक आई डिसऑर्डर को समझकर आप आंखों की सेहत का ज्यादा ध्यान रख पाएंगे और इस खूबसूरत दुनिया का दीदार भी ताउम्र कर पाएंगे। 

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    • जेनेटिक आई डिसऑर्डर क्या है?
    • जेनेटिक आई डिसऑर्डर के कारण क्या हैं?
    • क्या है जेनेटिक आई डिसऑर्डर के लिए अर्ली डायग्नोसिस?
    • स्पेशलाइज्ड इवेल्यूशन से क्या उम्मीद रखी जा सकती है?
    • बच्चों में आंखो की समस्या होने पर क्या लक्षण देखे जा सकते हैं?

     चलिए अब एक-एक कर इन सवालों का जवाब जानते हैं।     

    जेनेटिक आई डिसऑर्डर (Genetic Eye Disorders) क्या है?

    ग्लॉकोमा (Glaucoma) कॉनजेनाइटल (Congenital) ऑप्टिक एट्रॉफी (Optic atrophy) जैसी आंखों की समस्या जेनेटिक आई डिसऑर्डर कह लाती है। रिसर्च रिपोर्ट्स के अनुसार जेनेटिक आई डिसऑर्डर की समस्या ही धीरे-धीरे ब्लाइंडनेस की ओर बढ़ने लगते हैं। आंखों की समस्या इनहेरिटेड होती है। अगर इसे सामान्य शब्दों में समझें, तो परिवार में किसी को आंखों से जुड़ी ऐसी परेशानी रहती है, तो बच्चो को जेनेटिक आई डिसऑर्डर की समस्या हो सकती है। जेनेटिक आई डिसऑर्डर के कारणों को विस्तार से आगे समझेंगे।

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    जेनेटिक आई डिसऑर्डर के कारण क्या हैं? (Cause of Genetic Eye Disorders)

    जेनेटिक आई डिसऑर्डर (Genetic Eye Disorders)

    जेनेटिक आई डिसऑर्डर के मुख्य कारण जेनेटिक्स होते हैं, लेकिन जेनेटिक आई डिसऑर्डर के निम्नलिखित कारणों को इग्नोर नहीं किया जा सकता है। जैसे:

    इन ऊपर कारणों की वजह से भी जेनेटिक आई डिसऑर्डर की समस्या हो सकती है। हालांकि ऐसा नहीं है कि इसका इलाज संभव नहीं है।

    जेनेटिक आई डिसऑर्डर (Genetic Eye Disorders) की समस्या होने पर शुरुआती दिनों से ही डॉक्टर के कंसल्ट में रहने की आवश्यकता होती है।

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    क्या है जेनेटिक आई डिसऑर्डर के लिए अर्ली डायग्नोसिस? (Early diagnosis of Genetic Eye Disorders)

    सेंटर फॉर जेनेटिक आई डिज़ीज़ेज़  (Center for Genetic Eye Diseases) द्वारा किये जा रहे रिसर्च रिपोर्ट्स के अनुसार फिजिशियन डॉक्टर्स की टीम इसपर लगातार रिसर्च कर रही है। वहीं क्लीवलैंड क्लिनिक (Cleveland Clinic) द्वारा पब्लिश्ड रिपोर्ट के अनुसार जेनेटिक आई डिसऑर्डर के लिए अर्ली डायग्नोसिस एफेक्टीव है। बच्चों में जेनेटिक आई डिसऑर्डर की समस्या होने पर बच्चे को विशेष मूल्यांकन केंद्र (Center for specialized evaluation) भेजा जाता है। क्लीवलैंड क्लिनिक (Cleveland Clinic) के रिसर्च सेंटर में 750 फिजिशियन डॉक्टर्स की टीम जेनेटिक आई डिसऑर्डर की समस्या से कैसे बचा जाए या इस परेशानी को दूर करने के लिए पेशेंट के इलाज में जुटी है।

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    स्पेशलाइज्ड इवेल्यूशन से क्या उम्मीद रखी जा सकती है? (What can I expect during an evaluation?)

    जेनेटिक आई डिसऑर्डर (Genetic Eye Disorders) की समस्या होने पर डॉक्टर्स बच्चों को या बड़ों को सेंटर फॉर स्पेशलाइज्ड इवेल्यूशन (Center for specialized evaluation) भेजने का निर्णय लेती है। य निर्णय आपके फैमली डॉक्टर, पडियाट्रिशियन या आंखों के डॉक्टर लेते हैं या आपको सेंटर फॉर स्पेशलाइज्ड इवेल्यूशन जाने की सलाह देते हैं। सेंटर फॉर स्पेशलाइज्ड इवेल्यूशन में डॉक्टर्स सबसे पहले जेनेटिक आई डिसऑर्डर की समस्या से पीड़ित बच्चों के फिजिकल हेल्थ की जानकारी लेते हैं और उसके बाद पेशेंट एवं परिवार से जुड़े मेडिकल हिस्ट्री (Medical history) जानने की कोशिश करते हैं।

    नोट: स्पेशलाइज्ड इवेल्यूशन के दौरान डॉक्टर आपसे आंखों से जुड़ी बीमारियों की पूरी जानकारी लेना चाहेंगे, जिससे यह पता चल सकते की परिवार में पहले कभी जेनेटिक आई डिसऑर्डर (Genetic Eye Disorders) की समस्या हुई है या नहीं।

    आई इवेल्यूशन के दौरान डॉक्टर विजन (Vision) एवं आई मूवमेंट (Eye movement) की जानकारी के लिए आंखों में एक ड्रॉप डालते हैं, जिससे लेंस (Lens), ऑप्टिक नर्व (Optic nerve) एवं रेटिना (Retina) में हुए एब्नॉर्मलटिस की जांच कर सकें।

    रिसर्च टू प्रिवेंट ब्लाइंडनेस (Research to Prevent Blindness) में पब्लिश्ड रिपोर्ट के अनुसार 350 से भी ज्यादा हेरिडिटरी आई डिजीज (Hereditary Eye Diseases) हैं और ऐसी स्थिति में मेडिकल एडवाइस की आवश्यकता सबसे ज्यादा होती है।

    सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन में पब्लिश्ड रिपोर्ट के अनुसार जेनेटिक आई डिसऑर्डर (Genetic Eye Disorders) के अलावा कॉमन आई डिसऑर्डर एवं डिजीज (Common Eye Disorders and Diseases) की भी तकलीफ देखी जाती है। अमेरिका में 40 की उम्र से ज्यादा वाले 4.2 मिलियन लोगों में कॉमन आई डिसऑर्डर एवं डिजीज की समस्या डायग्नोस हुई है। इसलिए आंखों की सेहत का ध्यान जन्म के बाद से ही रखना विशेष लाभकारी माना जाता है। हालांकि छोटे बच्चों में आंखों से जुड़ी बीमरी को जानना कठिन होता है, लेकिन इसे समझा जा सकता है।

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    बच्चों में आंखो की समस्या होने पर क्या लक्षण देखे जा सकते हैं? (Symptoms of eye problem in kids)

    छोटे बच्चों में आंखों से जुड़ी समस्या होने पर निम्नलिखित लक्षण देखे जा सकते हैं। जैसे:

    • बच्चे का बार-बार आंखों को रगड़ना।
    • आंखें सिकोड़कर देखना।
    • सामान्य से ज्यादा पलके झपकाना।
    • किताबों को करीब लाकर पढ़ना।
    • आंख दर्द (Eye pain) होना।
    • सिरदर्द (Headache) होना।
    • आंखें क्रॉस्ड (Crossed eye) दिखना।
    • प्यूपिल (Pupil) का रंग सफेद या भूरा होना।
    • लम्बे वक्त से आंखें लाल (Redness) रहना।
    • आंखों से पस (Pus) या क्रस्ट (Crust) निकलना।

    अगर आप बच्चों में ऊपर बताये लक्षणों में से किसी लक्षण को देख रहें हैं, तो इसे इग्नोर ना करें और जल्द से जल्द डॉक्टर से कंसल्ट करें। नवजात शिशु अपनी तकलीफों को नहीं बोल पाते हैं इसलिए पेरेंट्स को इस ओर ध्यान देना जरूरी होता है।

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    बच्चों के लिए मां का दूध सर्वोत्तम माना जाता है। नीचे दिए वीडियो लिंक पर क्लिक करें और हेल्थ एक्सपर्ट से जानिए ब्रेस्टमिल्क एवं फॉर्मूला मिल्क (Breast milk and formula milk) से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी।

    बच्चों की आंखों की देखभाल कैसे करें? (Baby eye care)

    जेनेटिक आई डिसऑर्डर हो या आंखों से जुड़ी अन्य परेशानी ऐसे में बच्चों की आंखों की देखभाल निम्नलिखित तरह से की जा सकती है। जैसे:

    • नवजात शिशुओं को तेज रोशनी में ना रखें।
    • बच्चों को गैजेट्स जैसे मोबाइल, टैब या स्क्रीन से दूरी बनाकर रहने के लिए प्रेरित करें।
    • पौष्टिक खाने (Healthy food) की आदत डालें।
    • बच्चे को पानी पीने की आदत डालें।
    • ऑनलाइन क्लास के इस वक्त में बच्चे को बीच-बीच में ब्रेक दें।
    • आंखों और पढ़ने की दूरी मेंटेन करें।
    • बच्चो को नैचुरल लाइट में रहने के लिए कुछ समय कहें।
    • आंखों के लिए योग (Eye yoga) करने कहें।
    • आई एक्सरसाइज (Eye exercise) करवाएं।

    इन छोटी-छोटी बातों को ध्यान रखने से बच्चों की आंखों को हेल्दी रखा जा सकता है, लेकिन इसे साथ-साथ आई चेकअप (Eye checkup) भी करवाते रहें। अगर आपका बच्चा आंखों से जुड़ी परेशानी (Eye problem) आप से शेयर करता है या सिरदर्द (Headache) की शिकायत करता है, तो डॉक्टर से कंसल्टेशन में डिले ना करें।

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    नोट: शिशु के जन्‍म के बाद हॉस्पिटल से डिस्‍चार्ज होने से पहले ही शिशु के आंखों की जांच नेत्र विशेषज्ञों से करवानी चाहिए। ऐसा करने से जेनेटिक आई डिसऑर्डर (Genetic Eye Disorders) की जानकारी शुरुआती उम्र से जानकारी मिल जाती है, जिससे ट्रीटमेंट और कंसल्टेशन से कम करने में मदद मिल सकती है।

    नवजात शिशु (New born) के जन्म के बाद डॉक्टर पेरेंट्स को समय-समय पर कंसल्टेशन की सलाह दी जाती है। वहीं छोटे बच्चों में आंखों से जुड़ी समस्या होने पर उसे आसानी से समझना कठिन हो जाता है और बच्चे में जेनेटिक आई डिसऑर्डर (Genetic Eye Disorders) को भी जानना पेरेंट्स के लिए कठिन ही है। इसलिए डॉक्टर बच्चे में जेनेटिक आई डिसऑर्डर की समस्या चेकअप के बाद आपसे शेयर कर सकते हैं। डॉक्टर द्वारा दिए गए एडवाइस को फॉलो करें। ध्यान रखें नवजात बच्चों को समय-समय कंसल्टेशन और मेडिकेशन की आवश्यकता पड़ती है, जिससे भविष्य में होने वाली शारीरिक परेशानी से लड़ने और उससे बचने में मददगार होते हैं। अगर आप जेनेटिक आई डिसऑर्डर (Genetic Eye Disorders) या बच्चों के हेल्थ कंडिशन से जुड़े किसी तरह का कोई सवाल का जवाब जानना चाहते हैं, तो हमें कमेंट बॉक्स में पूछ सकते हैं। हमारे हेल्थ एक्सपर्ट आपके सवालों का जवाब देने की पूरी कोशिश करेंगे।

    शिशु की देखभाल (Babies care) करने का क्या है बेस्ट तरीका जानिए नीचे दिए इस क्विज में।

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