रोहन की उम्र अभी महज छह साल है। एक दिन उसने अपने पेरेंट्स को अपने बारे में बात करते हुए सुना। उसके बाद से रोहन बहुत गुमसुम रहने लगा। रोहन के पापा उसकी मम्मी से कह रहे थे कि “हमारे बेटे के मार्क्स शर्मा जी के बेटे से कम आते हैं। उनका बेटा पढ़ने में कितना अच्छा है। हमने सोचा था कि रोहन भी पढ़ने-लिखने में अच्छा होगा। लेकिन, हमारा बेटा हमारी उम्मीदों (Expectations) पर खरा नहीं उतर रहा है।“ क्या आप भी अपने बच्चों से ज्यादा की उम्मीद (Expectation from child) करते हैं। जरा सोचें, कहीं आप गलत तो नहीं कर रहे हैं! पेरेंट्स अपने बच्चों से ज्यादा की उम्मीद (Expectation from child) लगा लेते हैं। फिर जब बच्चा उम्मीदों पर खरा नहीं उतरता है तो उन्हें तकलीफ होती है। दूसरी ओर बच्चे का कॉन्फिडेंस भी कम होता है। “हैलो स्वास्थ्य” के इस आर्टिकल में पेरेंट्स के लिए कुछ टिप्स दिए गए हैं, जिससे वे अपने बच्चों को और बेहतर समझ सकते हैं।
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क्या कहते हैं एक्सपर्ट?
चिल्ड्रेन फर्स्ट की हेड और मनोवैज्ञानिक अंकिता खन्ना ने हैलो स्वास्थ्य से बात करते हुए बताया कि “उम्मीद करना इंसान की एक आम फितरत है। लेकिन, बतौर पेरेंट्स (Parents) अगर आप अपने बच्चों से ज्यादा की उम्मीद (Expectation from child) करते हैं, तो ये गलत है। बच्चे से उम्मीद करने के बजाए हमें बच्चे की हौसला अफजाई करनी चाहिए। उसके फैसलों की सराहना करनी चाहिए। माता-पिता को सोचना चाहिए कि हमारा बच्चा अपनी क्षमता के हिसाब से 100 प्रतिशत परफॉर्मेंस दे रहा है।”
बच्चों से ज्यादा की उम्मीद (Expectation from child) लगाने वाले पेरेंट्स के लिए कुछ टिप्स हैं, जो उन्हें अपनी ये आदत बदलने के लिए प्रेरित करेगा। जैसे-
अपने पेरेंट्स का नियम बच्चे पर न लागू करें :
अक्सर पेरेंट्स सोचते हैं कि हमारे पैरेंट्स ने भी तो हमसे उम्मीदें की थी। तो हम भी अपने बच्चे के साथ ऐसा ही करेंगे। जरा रूकिए, क्या आपके समय और बच्चे के समय में बदलाव नहीं हुआ है? हां, वक्त और पद्धति दोनों में बदलाव हुआ है। अगर आपके पैरेंट्स ने आपसे उम्मीदें की थी तो आपको कैसा महसूस हुआ था। क्या आप उनकी उम्मीदों पर पूरी तरह से खरे उतरे थे। अगर नहीं, तो आपको बुरा जरूर लगा होगा। इसलिए अपने बच्चे के साथ वैसा ना होने दें, जैसा आपके साथ हुआ था।
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आपकी उम्मीदों को बच्चे ऐसे देखते हैं :
अगर आप बच्चों से ज्यादा की उम्मीद (Expectation from child) करते हैं तो सोचिए कि आपका बच्चा अपकी उम्मीदों को किस तरह से देखता है। हो सकता है, आपके बच्चे को ऐसा लगता हो कि उसे आपने उम्मीदों के पिंजरे में कैद कर दिया हो या फिर उसके ऊपर उम्मीदों का बोझ लाद दिया हो। इसलिए ‘उम्मीद’ शब्द की जगह ‘देखरेख’ जैसे सिद्धांतों का इस्तेमाल होना जरूरी है। उदाहरण के तौर पर बच्चे को ये बोलें कि तुम ये काम करो, हम तुम्हारे साथ है। ऐसा करने से बच्चे पर मानसिक दबाव (Mental pressure) कम पड़ता है। साथ ही वह अच्छा परफॉर्म करता है।
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बच्चे से की गई उम्मीदों (Expectation from child) पर खुद को आंकें :
बच्चों से ज्यादा की उम्मीद (Expectation from child) करने से पहले खुद को उस जगह पर रख कर देख लें। सोचें कि क्या आपसे अगर कोई ऐसी उम्मीद करे तो आप उसे पूरा कर पाएंगे। ऐसे सवाल-जवाब खुद से करने से आप समझ पाएंगे कि आपकी उम्मीद बच्चे के हिसाब से कितनी ऊंची है।
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आपकी उम्मीद से बच्चे को तनाव हो सकता है :
पारंपरिक पैरेंट्स न बनें। जो अपने बच्चे की क्षमता से बच्चों से ज्यादा की उम्मीद (Expectation from child) कर लेते हैं। जब बच्चे की क्षमता कम होती है और वह अपने पैरेंट्स की उम्मीद के हिसाब से परिणाम नहीं दे पाता है तो उसे चिंता (Anxiety) और तनाव (Stress) हो जाता है। इसके बाद बच्चा अवसाद (depression) में भी चला जाता है। कभी-कभी बच्चा इतना ज्यादा अवसादग्रस्त हो जाता है कि वह आत्महत्या (Suicide) के बारे में भी सोचने लगता है। इसलिए ऐसी स्थिति को जन्म न लेने दें। बच्चे से खुल कर बात करें और उसे समझें।
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एक प्रयास से उम्मीद पूरी नहीं होती :
बहुत से पेरेंट्स को लगता है कि बच्चों पर दबाव या जिम्मेदारी डालकर ही उन्हें सफल बनाया जा सकता है। अक्सर पैरेंट्स आपने बच्चे को जादूगर समझने लगते हैं। उन्हें लगता है कि उनके बच्चे के एक प्रयास में सफलता मिल जाएगी। अगर ऐसा नहीं होता है तो वे बच्चे पर चिल्लाने लगते हैं। पेरेंट्स को इस सोच को बदलनी चाहिए। बच्चे को समझें और उसे समझाएं बार-बार प्रयास करने से एक दिन जरूर सफलता मिलेगी। बच्चों को समझाएं कि हार हो या जीत आप उनके साथ हैं। उसका हर हाल में साथ दें।
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पेरेंट्स भी रहें मेंटली स्ट्रॉन्ग :
कुछ पेरेंट्स अपने बच्चों से ज्यादा की उम्मीद (Expectation from child) इतनी ज्यादा रखते हैं कि जब एक्सपेक्टेशन पूरी नहीं होती हैं तो उन्हें काफी आहत पहुंचती है। इसलिए, ऐसी सिचुएशन में माता-पिता का मानसिक तौर पर मजबूत होना बेहद जरूरी होता है। मानसिक रूप से मजबूत पेरेंट्स बच्चों को गलतियां करने से नहीं रोकते हैं। बच्चों को उन्हीं गलतियों से सिखाते हैं।
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बच्चों से ज्यादा की उम्मीद (Expectation from child) करने से ज्यादा नहीं मिलता :
लोग कहते हैं कि ज्यादा की उम्मीद करो, ज्यादा मिलेगा। लेकिन, ऐसा क्या वास्तव में होता है? शायद नहीं। इसलिए ऐसा सोचे कि ज्यादा की उम्मीद करो, थोड़ा तो मिलेगा। खुद के दिमाग (Brain) को इस तरह से सेट कर के रखें कि आपके बच्चे ने जो भी किया है, वो बहुत है। ऐसा सोचने से बच्चे पर दबाव भी नहीं पड़ेगा और आपकी उम्मीद को भी नहीं ठेस पहुंचेगी। यकीन मानिए, ऐसे में बच्चे अपनी लाइफ में ज्यादा अच्छा करते हैं।
हर माता-पिता की ख्वाहिश होती है कि उनका बच्चा जीवन में हर ओर सफलता की सीढ़ी चढ़ें। इसलिए, पेरेंट्स बच्चों से ज्यादा की उम्मीद (Expectation from child) करने लगते हैं। बच्चों से एक्सपेक्टेशन करनी ठीक हैं लेकिन, उनकी क्षमताओं से ज्यादा आशा करना ठीक नहीं है। आपकी उम्मीदें आपके बच्चे से बढ़ कर नहीं है। इसलिए बच्चे से प्यार करें और उनको समझें। उम्मीद करना गलत नहीं है। लेकिन, उन उम्मीदों को लगातार थोपते रहना गलत है। ऐसा करने से न तो आप खुश रहेंगे और न ही बच्चा। इसलिए बच्चे का हर कदम पर साथ दें। बच्चों से ज्यादा की उम्मीद (Expectation from child) न करें। बच्चों के फैसलों को सराहें, सपोर्ट करें।
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