कम्पेरिजन करना एक स्वाभाविक इंसानी प्रवृत्ति (Human Nature) है। ज्यादातर पेरेंट्स अपने बच्चे का कम्पेरिजन (Comparing) दूसरों के बच्चों से करते रहते हैं। यह एक बहुत बुरी आदत है। अगर आप कहीं जाते हैं तो अपने बच्चे का कम्पेरिजन अपने दोस्त के बच्चे के साथ करने लग जाते है। पढ़ाई, खेलकूद आदि मामलों में आप अपने बच्चे का कम्पेरिजन करना शुरू कर देते हैं। आपका कम्पेरिजन आपके बच्चे के मन पर नकारात्मक असर (Negative Effect) पड़ता है। चिल्ड्रेन फर्स्ट की हेड और मनोवैज्ञानिक अंकिता खन्ना ने हैलो स्वास्थ्य को बच्चे का कम्पेरिजन से मानसिक और भावनात्मक तौर पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में बताया।
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बच्चे का कम्पेरिजन करना ला सकता है आत्मविश्वास में कमी
जब हमसे कोई यह कहता है कि सामने वाला हमसे किसी मामले में बेहतर है तो हमें बुरा लगता है। कुछ ऐसा ही होता है बच्चों के साथ भी। अगर हम किसी से बच्चे का कम्पेरिजन करते हैं तो उसे अपनी क्षमता (Ability) पर शक होने लगता है। जिससे उसके आत्मविश्वास में कमी आने लगती है। बच्चा धीरे-धीरे खुद को नाकाबिल समझने लगता है। जिसका असर उसकी एक्टिविटी से लेकर उसके पढ़ाई तक पर पड़ता है। बच्चा खुद बखुद पिछड़ने लगता है।
बच्चे का कम्पेरिजन करना पैदा कर सकता है जलन की भावना
अगर आप बच्चे का कम्पेरिजन अपने पड़ोसी के बच्चे या उसके स्कूल फ्रेंड से करेंगे तो बच्चे के मन में जलन पैदा होगी। आगे चलकर यह जलन बच्चे में गुस्से का कारण बनेगी। ऐसा भी हो सकता है कि बच्चा आगे जा कर उस बच्चे से नफरत करने लगे। ऐसा भी हो सकता है कि बच्चे के मन में आपराधिक ख्याल आए।
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बच्चे का कम्पेरिजन करना बच्चे के मन में डर पैदा करता है
बच्चे का कम्पेरिजन करने से बच्चों की सकारात्मक ऊर्जा तो नष्ट होती ही है, साथ ही बच्चे के मन में गलत सीखने का भाव भी आता है। वे नई चीजों को सीखने में डरने लगते हैं। क्योंकि बच्चे के मन में हारने का डर घर कर जाता है। जिससे वे धीरे-धीरे दब्बू किस्म के होते जाते हैं। खुद को लोगों के सामने प्रस्तुत करने से घबराने लगते हैं।
बच्चे का कम्पेरिजन करना बनता है दुख का कारण
बच्चे की कम्पेरिजन दूसरे से करके आप उसे प्रेरणा नहीं देते हैं, बल्कि उसे दुख देते हैं। साथ ही उसे मानसिक रूप से कमजोर भी कर देते हैं। बच्चा इस बोझ तले दबा जाता है कि वह अपने पैरेंट्स की उम्मीदों पर खरा नहीं उतर पाता है तो क्या होगा। जिससे वह दुखी होता है और उसके मन में आत्महत्या जैसे भी ख्याल आ सकते हैं।
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बच्चे का कम्पेरिजन करने से पैरेंट्स के साथ रिश्तों में आती है खटास
बच्चे का कम्पेरिजन करने से आपके और बच्चे के रिश्ते में खटास आती है। जिसका असर आप पर भी पड़ सकता है। पैरेंट्स को समझना होगा कि हर बच्चे की अपनी क्षमताएं होती है। बच्चा हमेशा अपना सौ फीसदी देने की कोशिश करता है। लेकिन, हमेशा कम्पेरिजन करने से वह माता-पिता की बातों को सुनना और मानना छोड़ देता है।
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बच्चे का कम्पेरिजन करने से पहले इन बातों का रखें ध्यान
- मनोवैज्ञानिक अंकिता खन्ना के अनुसार सबसे पहले तो पैरेंट्स को समझना चाहिए कि हर बच्चे की अपनी सीमाएं और क्षमताएं होती है। इसलिए पैरेंट्स उसकी क्षमता पर भरोसा करना सीखें।
- बच्चे की कम्पेरिजन उसके खुद के भाई-बहन से भी ना करें। उसे कहें कि “तुम कर सकते हो और हमें तुम पर पूरा विश्वास है।”
- बच्चे को भावनात्मक तौर पर मजबूत करें और उसका विश्वास जीतने का प्रयास करें।
- बच्चे पर दबाव ना डालें, बल्कि उसे स्वतंत्र छोड़ें ताकि वह अपने दायरे में खुल कर काम कर सके। ऐसा करने से बच्चा अपना सौ फीसदी दे पाएगा।
- अगर कभी गलती से आपने कम्पेरिजन कर भी दी तो बच्चे की सफाई को जरूर सुनें। फिर उसे समझाएं कि उसे क्या करना चाहिए और क्या नहीं।
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बच्चे का कम्पेरिजन करने के बजाए पेरेंट्स खुद में लाएं ये बदलाव
- अक्सर पेरेंट्स को यह लगता है कि बच्चों की मुंह पर तारीफ करना गलत है। इसके लिए वे बच्चे के मुंह पर तारीफ करने से बचते हैं। अभी भी ज्यादातर पेरेंट्स इसी पुराने तरीके को अपनाते हैं। पेरेंट्स को लगता है कि सराहना करने से बच्चा कहीं अधिक कॉन्फिडेंस में ना आ जाए। लेकिन, बच्चों की तारीफ करना जरूरी भी है। ऐसा इसलिए है कि आपका बच्चा हर दिन कुछ नया सीखता है। सराहना ना करने से बच्चे के आत्मविश्वास में कमी आती है। एक रिसर्च के मुताबिक बच्चे की तारीफ करने से उसे प्रेरणा मिलेगी और वह खुद को ज्यादा आत्मविश्वासी महसूस करेगा। बच्चों की परवरिश बेहतर तरीके से हो इसके लिए यह टिप्स पेरेंट्स जरूर फॉलो करें।
- अक्सर पेरेंट्स बच्चाें की परवरिश के दौरान समझते हैं कि अपने बच्चों को प्यार करने का मतलब है उनकी हर डिमांड को पूरा करना। जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए। अगर आप अपने बच्चे से प्यार करते हैं तो उसे वह सब चीजें लाकर दें जो उसके लिए जरूरी है। बेवजह की मांगों को पूरा करने से बच्चा जिद्दी और डिमांडिंग हो सकता है। फिर आपको लगेगा कि बच्चाें की परवरिश में आपने तो कमी नहीं छोड़ी।
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- अक्सर हम भूल जाते हैं कि प्यार के बदले प्यार और इज्जत के बदले इज्जत मिलती है। इज्जत देना उम्र की नहीं बल्कि आपसी सामंज्य का मामला है। कभी-कभी बड़े बच्चे से दुर्व्यवहार करते हैं तो उनमें एक तरह की चिढ़ पैदा होती है। जिससे बच्चा नकारात्मक होता चला जाता है। फिर वह जब बड़ों की इज्जत करना छोड़ देता है तो हमें लगता है कि बच्चा बिगड़ रहा है, बच्चाें की परवरिश खराब है। जबकि उसकी वजह हम खुद होते हैं। पहले आप बच्चे का सम्मान करें फिर वह खुद ब खुद सम्मान करना सीख जाएगा। बच्चाें की परवरिश यह तरीका अभिभावकों को बदलने की जरुरत है
हैलो स्वास्थ्य किसी भी तरह की मेडिकल सलाह नहीं दे रहा है। अगर आपको किसी भी तरह की समस्या हो तो आप अपने चाइल्ड काउंसलर से जरूर पूछ लें।
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