बच्चा हो, वयस्क हो या कोई बुजुर्ग हर कोई जीवन में कभी न कभी किस शारीरिक समस्या का अनुभव करता ही है। ऐसे में, डॉक्टर सही मेडिसिन्स, वैक्सीनेशन और जीवनशैली में बदलाव आदि की सलाह देते हैं। कई रोगों से बचाव के लिए वैक्सीनेशन और इम्यूनाइजेशन को बेहद प्रभावी माना जाता है। हर व्यक्ति को इसके बारे में जानकारी होना बेहद आवश्यक है ताकि वो खुद को इन रोगों से बचा सकें। आज हम आपको वैक्सीनेशन्स (Vaccinations) के बारे में पूरी जानकारी देने वाले हैं। वैक्सीनेशन्स (Vaccinations) के बारे में पूरी जानकारी से पहले जानते हैं वैक्सीनेशन और इम्यूनाइजेशन किसे कहा जाता है?
वैक्सीनेशन्स (Vaccinations) और इम्यूनाइजेशन क्या है?
वैक्सीनेशन और इम्यूनाइजेशन दोनों टर्म्स का इस्तेमाल एक दूसरे के स्थान पर किया जाता है, लेकिन इनका मतलब अलग-अलग हो सकता है। हालांकि, इनके बीच का अंतर बहुत ही माइनर होता है। वैक्सीनेशन यानी इंफेक्शन या बीमारी से बचने के लिए इम्यून सिस्टम को स्टिमुलेट करने के लिए टीकों का उपयोग करना। अन्य शब्दों में, यह किसी खास बीमारी में इम्यूनिटी प्रदान करने के लिए वैक्सीन का इस्तेमाल करना है। जबकि, इम्यूनाइजेशन अर्थात वैक्सीनेशन के माध्यम से खुद को किसी संक्रामक रोग से इम्यून या रेजिस्टेंस बनाने की प्रक्रिया को कहा जाता है। यानी, वो प्रोसेस जिससे वैक्सीनेशन हमें डिजीज से बचाती है। उम्मीद है कि वैक्सीनेशन्स (Vaccinations) और इम्यूनाइजेशन के बारे में आप समझ ही गए होंगे। वैक्सीनेशन्स (Vaccinations) के साथ ही आपका हर्ड इम्यूनिटी के बारे में जानना बेहद जरूरी है। कोविड-19 वैक्सीनेशन के दौरान आपने इस टर्म को अवश्य सुना होगा।
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हर्ड इम्यूनिटी (Herd Immunity) के बारे में जानें
हर्ड इम्यूनिटी यानी जब कम्युनिटी का बड़ा हिस्सा या अधिक लोग किसी डिजीज के प्रति इम्यून हो जाते हैं तो इससे रोग के अन्य लोगों तक फैलने का जोखिम कम होता है। इसका फायदा यह होता है कि संपूर्ण कम्युनिटी इससे सुरक्षित हो जाती है। कोई रोग तब फैलता है, जब जनसंख्या का कुछ प्रोपोरशन रोग के प्रति संवेदनशील होता है। जबकि, हर्ड इम्यूनिटी तब होती है जब आबादी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा संक्रामक रोग से इम्यून हो जाता है और एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलने का जोखिम कम हो जाता है। ऐसे में, जो लोग इम्यून नहीं हैं वे इनडायरेक्टली सुरक्षित हो जाते हैं, क्योंकि ऑनगोइंग स्प्रेड बहुत कम होता है।
यह इम्यूनिटी प्राप्त करने के लिए इम्यून होने वाली जनसंख्या का प्रोपोरशन, रोग के अनुसार भिन्न होता है। उदाहरण के लिए, एक बीमारी जो बहुत संक्रामक है, जैसे कि खसरा, तो इसके सस्टेंड डिजीज ट्रांसमिशन को रोकने और हर्ड इम्यूनिटी प्राप्त करने के लिए 95% से अधिक पॉपुलेशन को इम्यूनिटी की आवश्यकता होती है। कोविड-19 के मामले में हर्ड इम्यूनिटी बेहद महत्वपूर्ण है। क्योंकि, जैसे-जैसे हमारी कम्युनिटी का बड़ा हिस्सा वैक्सीनेशन से इस बीमारी से इम्यून हो रहा है, इसके फैलने का जोखिम कम होता जा रहा है।
वैक्सीनेशन्स (Vaccinations) के बारे में पूरी जानकारी में अब जानते हैं कि बच्चों और वयस्कों में ऐसी कौन सी बीमारियां हैं, जिनमें वैक्सीनेशन्स (Vaccinations) का इस्तेमाल करना जरूरी और प्रभावी माना जाता है?
बच्चों और वयस्कों के लिए वैक्सीनेशन्स (Vaccinations)
वैक्सीनेशन या इम्यूनाइजेशन में बच्चों और वयस्कों के हेल्थ स्टैटिक्स में बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है। यही नहीं, वैक्सीनेशन्स (Vaccinations) नवजात शिशु, बच्चों और टीन्स को कई गंभीर बीमारियों से बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। आइए, जानते हैं कि वो कौन सी बीमारियां हैं जिनमें वैक्सीनेशन कराना बेहद जरूरी है।
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बच्चों के लिए वैक्सीनेशन्स (Vaccinations)
यह तो आप जानते ही होंगे कि वैक्सीन्स, रोगों के प्रति इम्यूनिटी को सुरक्षित रूप से विकसित करने में मदद करने के लिए शरीर की नेचुरल डिफेंस के साथ काम करके संक्रमण के जोखिम को कम करती हैं। बच्चों को इन वैक्सीन्स की सलाह दी जाती है ताकि वो गंभीर समस्याओं से बच सकें:
पोलियो (Polio)
पोलियो एक संक्रामक रोग है। यह समस्या दूषित व्यक्ति के स्टूल, छींक या खांसी के ड्रॉप्लेट्स से फैल सकती है। शिशु के जन्म के बाद उसे ओरल पोलियो डोज दी जाती है। उसके बाद उसे 6-8 सप्ताह, 14-24 सप्ताह और 16 -18 महीने के होने पर इंजेक्टेबल पोलियो वैक्सीन यानी IPV दी जाती है।
वैक्सीनेशन्स में टिटनस (Tetanus)
टिटनस संक्रामक रोग नहीं है। लेकिन, बैक्टीरिया से बने टॉक्सिन के कारण होने वाला यह एक गंभीर रोग है। यह पेनफुल मसल स्टिफनेस का कारण बनता है और घातक हो सकता है। बच्चों को इसकी पहली डोज दो महीने की उम्र में दी जाती है। इसके बाद चौथे, छठे और 15-18 महीने के होने पर उन्हें दूसरी, तीसरी और चौथी डोज दी जाती है। इसके बाद बच्चे को 4-6 साल की उम्र में पांचवी डोज दी जाती है और इसकी बूस्टर डोज बच्चे के 11-12 साल के होने पर दी जाती है।
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इन्फ्लुएंजा (Influenza)
इस रोग को फ्लू भी कहा जाता है और यह इन्फ्लुएंजा नाम के वायरस से होता है। यह फ्लू बहुत जल्दी फैलता है और गंभीर प्रॉब्लम्स का कारण बन सकता है। फ्लू के वैक्सीनेशन्स (Vaccinations) की सलाह डॉक्टर बच्चों को हर देते हैं। आप इसकी शुरुआत अब कर सकते हैं जब आपका बच्चा छह महीने का हो। इसके बारे में अधिक जानकारी के लिए अपने डॉक्टर से बात करें।
हेपेटाइटिस बी (Hepatitis B)
हेपेटाइटिस बी एक संक्रामक लिवर डिजीज है, जो हेपेटाइटिस बी वायरस से होती है। जन्म के तुरंत बाद बच्चे को इसकी पहली डोज दी जाती है। इसके अलावा इसकी दूसरी डोज तब दी जाती है जब बच्चा एक से दो महीने का हो और तीसरी डोज शिशु के एक से डेढ़ साल की उम्र में दी जाती है
मीजल्स, मम्प्स, और रूबेला (MMR)
MMR का अर्थ है मीजल्स, मम्प्स, और रूबेला। मीजल्स एक संक्रामक रोग है, जो रेस्पिरेटरी सिस्टम को प्रभावित करता है। मम्प्स भी संक्रामक बीमारी है, जो रोगी की छींक या खांसी से फैल सकती है। रूबेला को जर्मन मिजल कहा जाता है और यह बीमारी वायरस के द्वारा होती है। यह इंफेक्शन आमतौर पर माइल्ड होता है। लेकिन, अगर यह समस्या गर्भवती महिला को होती है, तो यह गंभीर साबित हो सकता है। हर बच्चे को MMR वैक्सीनेशन की दो डोज लेने की सलाह दी जाती है। इसकी फर्स्ट डोज तब लगाई जाती है जब बच्चा 12 से 15 महीने का हो। जबकि, दूसरी डोज 4 से 6 साल की उम्र में लगाने की सलाह दी जाती है।
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डिप्थीरिया (Diphtheria)
डिप्थीरिया (Diphtheria) एक गंभीर बैक्टीरियल इंफेक्शन (Bacterial infection) से होने वाली समस्या है, जिसे गलाघोंटू के नाम से जाना जाता है। सामान्य तौर पर, यह रोग 2 साल से लेकर 10 साल तक की आयु के बच्चों को अधिक प्रभावित कर सकता है। इस वैक्सीनेशन्स (Vaccinations) की पहली डोज तब लगाई जाती है, जब बच्चा पांच महीने का होता है। उसके बाद उसके चार, छह, 15 से 18 महीने और चार से छह महीने के होने पर दूसरी, तीसरी, चौथ और पांचवी डोज दी जाती है। बच्चे के 11 से 12 साल के होने पर उसे इसकी बूस्टर डोज लगाई जाती है। वैक्सीनेशन्स (Vaccinations) के बारे इनकी सही डोज की जानकारी होना आवश्यक है।
हीमोफिलस इन्फ्लुएंजा टाइप बी (Haemophilus influenzae type b)
हीमोफिलस इन्फ्लुएंजा टाइप बी एक तरह का बैक्टीरिया है, जिसकी वजह से Hib डिजीज बच्चों को हो सकती है। 5 साल या इससे कम उम्र के बच्चों में इस समस्या का जोखिम ज्यादा रहता है। इस वैक्सीन की पहली डोज दो महीने के बच्चे को दी जाती है। जबकि इसकी दूसरी, तीसरी और चौथी डोज बच्चे के 4 माह, 6 माह और 12 से 15 महीने के होने पर लगाई जाती है।
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चिकन पॉक्स (Chicken pox)
चिकनपॉक्स को वेरिसेला भी कहा जाता है। इस रोग में पूरे शरीर और चेहरे पर दाने हो जाते हैं। यह रोग वायरस के कारण होता है। इसकी वैक्सीनेशन्स (Vaccinations) न कराने से भी यह समस्या हो सकती है। इसकी फर्स्ट डोज बच्चे को 12-15 महीने के होने पर और सेकंड डोज 4 -6 साल के होने पर लगाई जाती है।
न्यूमोकोकल डिजीज (Pneumococcal Disease)
यह डिजीज न्यूमोकोकस बैक्टीरिया के कारण होती है यह अक्सर माइल्ड होती है। लेकिन, इसके कारण कई गंभीर लक्षण नजर आ सकते हैं। खासतौर, पर दो साल से कम उम्र के बच्चों में इसके गंभीर लक्षण दिखाई दे सकते हैं। इसकी चार डोज बच्चों को दी जाती है। पहली डोज बच्चे के दो महीने, दूसरी चार महीने, तीसरी छह महीने और चौथी डोज उसके 12 -15 महीने के होने पर लगाई जाती है।
यह तो थी बच्चों के लिए वैक्सीनेशन्स के बारे में पूरी जानकारी। अब जानते हैं वयस्कों के लिए वैक्सीनेशन्स (Vaccinations) के बार में
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वयस्कों के लिए वैक्सीनेशन्स (Vaccinations): पाएं पूरी जानकारी
वयस्कों को उनकी उम्र, पहले हुई वैक्सीनेशन, हेल्थ, लाइफस्टाइल, ट्रेवल डेस्टिनेशंस आदि के अनुसार वेक्सीनेशन्स की सलाह दी जा सकती है। आइए जानें वयस्कों के लिए वैक्सीनेशन्स (Vaccinations) के बारे में:
इन्फ्लुएंजा (Influenza)
फ्लू से बचने के लिए वयस्कों को भी हर साल फ्लू वैक्सीनेशन्स (Vaccinations) की सलाह दी जाती है। क्योंकि, बुजुर्गों में यह समस्या जानलेवा हो सकती है। इसे आप कभी भी लगवा सकते हैं। अधिक जानकारी के लिए डॉक्टर से बात करें।
न्यूमोकोकल डिजीज (Pneumococcal vaccine)
न्यूमोकोकल डिजीज कई इंफेक्शंस का कारण बन सकती है। ऐसे में इसकी दो वैक्सीन्स की सलाह दी जाती है। एक 65 तक के वयस्कों के लिए और दूसरे इससे अधिक उम्र के लोगों के लिए।
टिटनेस (Tetanus)
टिटनेस टॉक्सॉयड यानी Tdap वैक्सीन की पहली डोज 11-12 साल के बच्चों को दी जाती है। लेकिन, अगर आपने इस उम्र में इसे नहीं लगाया है, तो बाद में भी इसे लगाया जा सकता है। इसकी एक डोज प्रेग्नेंसी में भी लेने के लिए कहा जा सकता है, आमतौर पर प्रेग्नेंसी के 27 या 36 वें हफ्ते में। यही नहीं, इनके बूस्टर को हर दस साल में लिया जाता है।
शिंगल्स रोग (Shingles Disease)
शिंगल्स एक तरह की त्वचा संबंधी बीमारी है, जो दाद जैसी लगती है। कमजोर इम्यून सिस्टम वाले लोग और बुजुर्गों में इसका खतरा अधिक होता है। इससे बचाव के लिए वैक्सीनेशन्स ही एक उपाय है। इससे बचने के लिए इसकी वैक्सीन को पचास साल या उससे अधिक उम्र के हेल्दी बुजुर्गों को लगाने के लिए कहा जाता है। यह तो थी बच्चों और वयस्कों में वैक्सीनेशन्स (Vaccinations) के बारे में पूरी जानकारी। अब जानते हैं कि क्या वैक्सीनेशन्स पूरी तरह से सुरक्षित होती हैं?
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क्या वैक्सीनेशन्स (Vaccinations) पूरी तरह से सुरक्षित है
चाहे बच्चे हों या बड़े सबके लिए वैक्सीनेशन्स (Vaccinations) को पूरी तरह से सुरक्षित और प्रभावी माना जाता है। इन्हें इस तरह से बनाया और उसके बाद टेस्ट किया जाता है कि यह आपको या आपके बच्चों को कोई नुकसान न पहुंचाएं। एक वैक्सीन को बनाने में कई साल लगते हैं और इस दौरान उसे कई ट्रायल्स और टेस्ट्स से गुजरना पड़ता है। इन्हें लेने के बाद आप और आपका बच्चा उस बीमारी के प्रति काफी हद तक सुरक्षित हो जाता है। लेकिन, कुछ लोगों को वैक्सीन्स नहीं लेने की सलाह भी दी जा सकती है। निम्नलिखित लोगों को वैक्सीन्स लेने से बचना चाहिए या बिना डॉक्टर की सलाह के इन्हें नहीं लेना चाहिए:
- लोग, जिन्हें गंभीर पहले वैक्सीन से एलर्जिक रिएक्शन हो चुका हो।
- लोग, जिन्हें वैक्सीन के इंग्रीडिएंट्स से गंभीर एलर्जिक रिएक्शन हो ।
- जिन लोगों का इम्यून सिस्टम कमजोर हो।
अगर आप यह बात को लेकर श्योर नहीं हैं कि आपको या आपके बच्चे को वैक्सीनेशन्स करवानी चाहिए या नहीं, तो डॉक्टर से बात आवश्यक करें। अब जानते हैं वैक्सीनेशन के साइड इफेक्ट्स के बारे में।
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वैक्सीनेशन्स (Vaccinations) के साइड इफेक्ट्स क्या हैं?
अधिकतर वैक्सीन के बहुत माइल्ड साइड इफेक्ट्स होते हैं और यह अधिक समय तक नहीं रहते। इनमें मेडिकल हेल्प लेने की भी जरूरत नहीं होती। यह सामान्य साइड इफेक्ट्स इस प्रकार हैं:
- जिस जगह पर वैक्सीनेशन हुई है, उस जगह का दो से तीन दिन तक का लाल होना, सूजन आना आदि।
- बच्चों या नवजात शिशुओं का एक से दो दिन तक बीमारी या हाय टेम्प्रेचर का अनुभव करना।
- कुछ बच्चे इसके बाद बेचैनी महसूस कर सकते हैं और रो सकते हैं। यह सामान्य है और वो थोड़ी देर तक ठीक हो जाते हैं।
- वैक्सीनेशन्स (Vaccinations) के बाद एलर्जिक रिएक्शंस होना दुर्लभ है। लेकिन, अगर ऐसा होता भी है, तो कुछ ही देर में यह समस्या स्वयं ठीक हो जाती है। अगर ऐसा न हो तो तुरंत मेडिकल हेल्प लेनी चाहिए। अब जानिए वैक्सीनेशन्स की प्रभावकारिता के बारे में।
वैक्सीनेशन की प्रभावकारिता के बारे में भी जानें
जैसा कि पहले ही कहा गया है कि वैक्सीन्स को प्रभावी, सुरक्षित और लाइफ सेविंग माना जाता है। लेकिन, किसी भी वैक्सीन की इफेक्टिवनेस सौ प्रतिशत नहीं होती है। जैसे कोविड-19 वैक्सीन्स उन सभी लोगों को पूरी तरह से प्रोटेक्ट नहीं करती है, जो वेक्सीनेटेड होते हैं। हम अभी तक नहीं जानते हैं कि यह वैक्सीन्स वायरस को दूसरों लोगों तक ट्रांसमिट होने कितनी अच्छी तरह रोक सकती हैं। सभी वैक्सीन्स को कई क्लीनिकल ट्रायल्स से गुजरना पड़ता है ताकि उनकी क्वालिटी, सेफ्टी और प्रभावकारिता को टेस्ट किया जा सके।
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अप्रूव होने के लिए उनका हाय एफिशिएंसी रेट पचास प्रतिशत या उससे अधिक होना चाहिए। अप्रूवल के बाद भी इनकी सेफ्टी और इफेक्टिवनेस को लगातार मॉनिटर किया जाता है। वैक्सीन की प्रभावकारिता एक सिंगल नंबर नहीं है बल्कि यह इंफेक्शन से बचाव करती है, जिससे वायरस एक व्यक्ति से अन्य व्यक्ति तक ट्रांसमिट नहीं होता। एक एक्सपोज्ड व्यक्ति वायरस को कॉन्ट्रैक्ट नहीं करेगा और इससे लक्षण या बीमारी भी विकसित नहीं होंगे। वैक्सीन गंभीर बीमारियों से बचाती है। एक एक्सपोज्ड व्यक्ति को गंभीर लक्षण विकसित करने से रोकने में एक वैक्सीन की प्रभावकारिता होना भी जरूरी है। यह तो थी वैक्सीनेशन्स (Vaccinations) के बारे में पूरी जानकारी। उम्मीद है कि यह जानकारी आपको पसंद आई होगी। अगर इसके बारे में आपके मन में कोई भी सवाल है, तो अपने डॉक्टर से बात करना न भूलें।
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