अगर शरीर में कहीं भी सूजन लगे, तो डॉक्टर को दिखाएं। दर्द होने पर तो जाना ही पड़ेगा, लेकिन दर्द आमतौर पर बाद की स्टेज में होता है और तब तक स्थिति खराब होने लगती है।
नोट- यह जानकारी किसी भी स्वास्थ्य परामर्श का विकल्प नहीं हैं। हमेशा अपने डॉक्टर की सलाह जरूर लें।
हर्निया का इलाज
- इसमें दवाएं काम नहीं करतीं। आमतौर पर, दर्द होने पर डॉक्टर की सलाह से पेनकिलर के तौर पर पैरासिटामोल (Paracetamaol) ले सकते हैं। लेकिन बेहतर है कि पेनकिलर का इस्तेमाल कम-से-कम करें।
- दर्द से राहत के लिए हॉट वॉटर बैग से सिकाई कर सकते हैं। इससे मसल्स रिलैक्स होती हैं और दर्द कम होता है।
- चूंकि, यह फिजिकल डिफेक्ट है, इसलिए सर्जरी जरूरी हो जाती है। हर्निया का इलाज जितनी जल्दी हो सके करा लेना चाहिए, वरना बाद में सर्जरी में दिक्क्त होती है।
हर्निया की सर्जरी
सर्जरी में आमतौर पर मेश (जाली) डालते हैं, ताकि कमजोर मसल्स को सपोर्ट किया जा सके। अगर बिना जाली डाले सिर्फ टांके लगाकर बंद कर देंगे, तो वह हिस्सा फिर बाहर निकल आएगा। जाली में बारीक छेद होते हैं, जिनमें से टिशू ग्रो करके उसे जकड़ लेते हैं। जाली की उम्र करीब 10 साल होती है। लेकिन, फिर टिशू उसे मजबूती देते हैं और वह हमेशा बनी रहती है। इस पकड़ को बनाने में करीब छह महीने लगते हैं। 18 साल से कम उम्र के मरीजों यानी बच्चों में जाली नहीं डाली जाती, क्योंकि उनकी मसल्स बढ़ रही होती हैं।
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हर्निया का इलाज दो तरीके से होते हैं
ओपन और टेलिस्कोप यानी दूरबीन वाली। ओपन में दो मसल्स के बीच जाली लगाते हैं। पहले मसल्स की लेयर होती है, फिर जाली और फिर मसल्स की लेयर। इस प्रक्रिया में जाली आंत में टच नहीं करती। सरकारी अस्पतालों में सिर्फ जाली की कीमत देनी होती है। दूरबीन वाली सर्जरी में दो लेयरों में जाली डाली जाती है। जाली की अब्जॉर्बल यानी घुलने वाली लेयर इंटेस्टाइन की तरफ होती है।
हर्निया का इलाज कराने के बाद ये लक्षण नजर आए तो तुरंत डॉक्टर से कंसल्ट करें
- पेशाब करने में दिक्कत होना
- घाव की जगह से खून बहना
- बहुत अधिक बुखार होना
- सर्जरी के 6 – 7 दिनों के बाद भी राहत न मिलना
- ऑपरेटेड जगह पर अत्याधिक दर्द होना
- ऑपरेटेड जगह से पस बहना
- ऑपरेशन की जगह पर से खून आना
- कमजोरी होना
- उल्टियां होना और जी मचलाना