शायद ही ऐसा कोई होगा, जो आजकल स्ट्रेस से ना गुजरा हो। स्ट्रेस हमारी भगदौड़ भरी जिंदगी का हिस्सा बन गया है। ये लोगों के संपर्क में कम आने से और अपनी बातें ना शेयर कर पाने के कारण होता है। वहीं, ये तब और ज्यादा खतरनाक हो जाता है, जब स्ट्रेस किसी गर्भवती महिला को हो। क्योंकि इसका असर सीधा बच्चे पर होता है। डिलिवरी के बाद भी स्ट्रेस के कारण ही महिला के स्तनों में दूध पर्याप्त मात्रा में नहीं बन पाता है। स्ट्रेस ही आगे चल कर डिप्रेशन, एंग्जायटी आदि मानसिक समस्याओं में बदल जाता है।
हॉर्मोन के असंतुलन के कारण
जैसा कि डॉ. शिप्रा ने पहले ही बताया कि हॉर्मोन के असंतुलन के कारण भी ब्रेस्ट मिल्क नहीं बन पाता है। कई बार थायरॉइड के असंतुलन के कारण भी ब्रेस्ट मिल्क नहीं बन पाता है। थायरॉइड हॉर्मोन, थायरॉइड ग्लैंड से निकलता है। थायरॉइड ग्लैंड तितली के आकार की गले में पाई जाने वाली एक ग्रंथि है। वहीं, प्रोजेस्ट्रॉन हॉर्मोन की कमी के कारण भी स्तनों में दूध नहीं बन पाता है। वहीं, कई बार प्रोलैक्टिन और ऑक्सीटोसिन नामक हॉर्मोन बच्चे से लगाव पैदा करता है, जिस कारण से स्तनों में दूध बनता है। इस हॉर्मोन की कमी से भी ब्रेस्ट मिल्क नहीं बन पाता है।
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डिलिवरी में होने वाली परेशानियों के कारण
कई बार डिलिवरी को दौरान होने वाली समस्याएं भी ब्रेस्ट मिल्क ना होने के लिए जिम्मेदार हैं। कई बार डिलिवरी के वक्त ज्यादा ब्लीडिंग होने से ट्रॉमैटिक डिलिवरी होने का खतरा रहता है। ट्रॉमैटिक डिलिवरी के लिए कई बार स्ट्रेस जिम्मेदार होता है। डिलिवरी के बाद ज्यादा ब्लीडिंग होने से ब्रेस्ट मिल्क बनाने वाले हॉर्मोन में कमी आती है, जिससे ब्रेस्ट मिल्क नहीं बन पाता है। इसे शिहांस सिंड्रोम (Sheehan’s Syndrome) भी कहते हैं।
डिलिवरी के बाद प्लेसेंटा के अंश गर्भाशय में रह जाने के कारण
बच्चे की डिलिवरी के बाद प्लेसेंटा को पूरी तरह से मां के गर्भाशय से निकाल दिया जाता है। लेकिन जब प्लेसेंटा का थोड़ा अंश गर्भाशय में रह जाता है तो इसके कारण मां के शरीर में हॉर्मोनल बदलाव होते हैं। जिसके कारण मां को डिलिवरी के बाद ब्रेस्ट मिल्क नहीं हो पाता है। क्योंकि ये हॉर्मोनल बदलाव मिल्क प्रोडक्शन में बाधा बनते हैं। इसके लिए आपको अपने डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। एक बार जब डॉक्टर प्लेसेंटा का बचा हुआ अंश निकाल देगा तो फिर से हॉर्मोन ठीक हो जाएगा और मिल्क प्रोडक्शन करने लगेगा।
बच्चे द्वारा स्तनों को सही से ना पकड़ पाने के कारण
कई बार बच्चों में लैचिंग की दिक्कत होती है। इस कारण भी मां से स्किन टू स्किन कॉन्टेक्ट कम बन पाने के कारण भी डिलिवरी के बाद ब्रेस्ट मिल्क नहीं हो पाता है। कई बार नवजात बच्चों में टंग टाई की प्रॉब्लम होती है। टंग टाई में बच्चे की जीभ मुंह निचले हिस्से से जुड़े होने के कारण बच्चा सही से लैच नहीं कर पाता है। इसके अलावा ऐसा भी देखा गया कि मां के निप्पल बहुत छोटे होने या बहुत बड़े होने के कारण भी बच्चा उन्हें सही से लैच नहीं कर पाता है। जिससे ब्रेस्टफीडिंग कराने में ही समस्या आती है।
प्रीमेच्योर बर्थ भी है डिलिवरी के बाद ब्रेस्ट मिल्क ना होने का कारण
यूं तो दूसरी तिमाही के अंत तक महिला के स्तनों में दूध बनने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। लेकिन अगर इसी दौरान प्रीमेच्योर बर्थ हो जाती है तो भी ब्रेस्ट मिल्क निर्माण की प्रक्रिया पूरी नहीं हो पाती है। ऐसे में कुछ वक्त गुजरने के बाद ही मां के स्तनों से दूध निकल पाता है। इसके लिए आप ब्रेस्ट मिल्क पंप कैा इस्तेमाल कर सकती हैं। ब्रेस्ट मिल्क पंप से दूध निकलने में मदद मिलती है।