backup og meta

Preeclampsia: गर्भवती महिला में इन कारणों से बढ़ सकता है प्रीक्लेमप्सिया का खतरा

Preeclampsia: गर्भवती महिला में इन कारणों से बढ़ सकता है प्रीक्लेमप्सिया का खतरा

प्रेग्नेंसी के दौरान होने वाली स्वास्थ्य समस्याओं को गर्भवती महिलाएं यह सोचकर इग्नोर कर देती हैं कि गर्भावस्था में यह तो आम बात है लेकिन, कुछ हेल्थ कंडिशंस ऐसी भी होती हैं जिन पर समय रहते न ध्यान दिया जाए तो वे घातक बन सकती हैं। प्रीक्लेमप्सिया (Preeclampsia) ऐसी ही एक स्थिति है जो केवल गर्भावस्था के दौरान होती है। 20 सप्ताह की प्रेग्नेंसी के बाद हाय ब्लड प्रेशर और यूरिन में अधिक मात्रा में प्रोटीन का शामिल होना, प्रीक्लेम्पसिया के कुछ मुख्य लक्षणों में से हैं। प्रीक्लेमप्सिया कम से कम पांच से आठ प्रतिशत गर्भवती महिलाओं को प्रभावित करता है।

“हैलो स्वास्थ्य” की डॉ. श्रुति श्रीधर (एमडी. होम्योपैथिक, एमएससी. डीएफएसएम.) का कहना है कि प्रेग्नेंसी के दौरान समय रहते इलाज न किया जाए तो क्लेमप्सिया हो सकता है जो शिशु के साथ-साथ गर्भवती महिला के लिए जानलेवा साबित हो सकता है। इसलिए गर्भावस्था के दौरान डायट (विशेषकर कम नमक खाना) और लाइफस्टाइल पर ध्यान देना जरूरी है। खाने में नमक की संतुलित मात्रा न होने पर ब्लड प्रेशर 200/110 (सामान्यतौर पर 120/80 रहता है) तक जा सकता है जिससे गर्भ में ही शिशु की जान तक जा सकती है।”

और पढ़ें : Astragalus: एस्ट्रागैलस क्या है?

प्रीक्लेमप्सिया के कारण क्या हैं? (Cause of Preeclampsia)

यह कोई आम समस्या नहीं है। गर्भावस्था के दौरान प्रीक्लेम्पसिया होना कुछ कारणों की वजह से हो सकता है जैसे-

प्रीक्लेमप्सिया के क्या लक्षण हैं? (Symptoms of Preeclampsia)

आमतौर महिलाओं को प्रीक्लेम्पसिया के बारे में पता ही नहीं चलता है। डॉक्टरी जांच के बाद ही इस समस्या के बारे में जानकारी मिलती है। इसलिए प्रीक्लेम्पसिया के लक्षणों को जानना जरूरी है, जिससे समय रहते ही इलाज किया जा सके-

  • रक्तचाप में वृद्धि होना (140/90 या उससे अधिक)।   
  • यूरिन में अतिरिक्त प्रोटीन।  
  • तेज सिरदर्द।  
  • धुंधला दिखना।  
  • पेट के ऊपरी हिस्से में दर्द, आमतौर पर दाईं ओर पसलियों के नीचे।  
  • उल्टी या मितली होना।  
  • यूरिन की मात्रा में कमी आना।  
  • ब्लड में प्लेटलेट्स के स्तर में कमी (थ्रोम्बोसाइटोपेनिया)।  
  • सांस लेने में तकलीफ होना।  
  • अचानक वजन बढ़ना और सूजन आना (विशेष रूप से चेहरे और हाथों पर)।  

ये लक्षण दिखते ही अपने डॉक्टर से तुरंत संपर्क करें क्योंकि प्रीक्लेम्पसिया गर्भ में पल रहे शिशु को नुकसान पहुंचा सकता है।  

और पढ़ें : योगासन जो महिलाओं की फर्टिलिटी को बढ़ा सकते हैं 

प्रीक्लेमप्सिया होना कितना आम है?

विश्व में लगभग 10 प्रतिशत महिलाओं को प्रेग्नेंसी में हाय ब्लड प्रेशर यानी उच्च रक्तचाप की समस्या से दो चार होना पड़ता है। इनमें तीन से पांच प्रतिशत मामले प्रीक्लेमप्सिया के होते हैं। एक रिसर्च के अनुसार, भारत में 7.8 प्रतिशत गर्भवती महिलाओं में हाइपरटेंशन (hypertension) के मामले दर्ज किए गए हैं, जिनमें से 5.4 प्रतिशत प्रीक्लेमप्सिया के थे।

प्रीक्लेम्पसिया (Preeclampsia) होने की संभावना किसे ज्यादा रहती है?

निम्नलिखित परिस्थितियों में प्रीक्लेम्पसिया होने की संभावना बढ़ सकती है- 

  • पहली गर्भावस्था के दौरान प्रीक्लेम्पसिया विकसित होने की संभावना सबसे अधिक होती है।
  • अगर गर्भवती महिला को पहले से ही हाय ब्लड प्रेशर हो।
  • प्रेग्नेंट महिला की मां या बहन को प्रीक्लेम्पसिया पहले हुआ हो।
  • जो महिलाएं मोटापे से ग्रस्त हैं या जिनका बीएमआई 30 या उससे अधिक है।
  • जिन महिलाओं को गर्भावस्था से पहले किडनी की कोई समस्या रही हो।
  • 20 वर्ष से कम और 40 वर्ष से अधिक उम्र की प्रेग्नेंट महिलाओं में प्रीक्लेम्पसिया का खतरा सबसे अधिक रहता है।
  • इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) के जरिए गर्भधारण किया है, तो प्रीक्लेमप्सिया का खतरा बढ़ जाता है।

और पढ़ें : आईवीएफ (IVF) के साइड इफेक्ट्स: जान लें इनके बारे में भी

प्रीक्लेमप्सिया के रिस्क

गर्भावस्था के दौरान प्रीक्लेम्पसिया एक गंभीर समस्या है। इसकी वजह से प्रेग्नेंट लेडी को कई अन्य जटिलताओं का सामना करना पड़ सकता है।

महिलाओं को हो सकती हैं ये समस्याएं

  • निर्धारित समय से पहले सी-सेक्शन डिलिवरी (प्रीटर्म सिजेरियन डिलिवरी)।
  • हेल्प सिंड्रोम (HELLP) : इस तरह के सिंड्रोम में रेड ब्लड सेल्स टूटने लगती हैं और प्लेटलेट्स कम होने लगते हैं। इससे लिवर एंजाइम बढ़ने लगते हैं।
  • प्लेसेंटा में समस्या: प्रीक्लेम्पसिया में प्लेसेंटा गर्भाशय की अंदर की दीवार से अलग हो जाता है। ऐसा होने से प्रेग्नेंट महिला के गर्भाशय में भारी ब्लीडिंग हो सकती है, जो जच्चा हुए बच्चा दोनों के लिए ही जानलेवा हो सकता है।
  • स्ट्रोक: हाय ब्लड प्रेशर से मस्तिष्क में रक्त संचार (Blood circulation) बिगड़ सकता है, जिससे स्ट्रोक (Stroke) या ब्रेन हेमरेज हो सकता है।
  • जान का खतरा बढ़ जाना।
  • किडनी और लिवर फेलियर (Liver failure)।
  • फेंफड़ो में पानी भर जाना।

और पढ़ें : गर्भधारण से पहले डायबिटीज होने पर क्या करें?

गर्भस्थ शिशु को होने वाली समस्याएं

प्रीक्लेमप्सिया सिर्फ गर्भवती महिला के लिए नहीं, बल्कि गर्भस्थ शिशु के लिए भी खतरे से खाली नहीं है। गर्भ में पल रहे शिशु को प्रीक्लेम्पसिया की वजह से ये कुछ समस्याएं हो सकती हैं जैसे-

  • प्रसव के निर्धारित समय से पहले जन्म।
  • प्रेग्नेंसी के 28वें सप्ताह या उसके बाद हुए प्रसव से जन्मे शिशु की मृत्यु।
  • भ्रूण के विकास दर में कमी।
  • डिलिवरी के समय प्रीक्लेम्पसिया से ग्रस्त प्रेग्नेंट महिला के शिशु को आगे भी कोरोनरी आर्टरी डिजीज, उच्च रक्तचाप, मधुमेह जैसी कई स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।

और पढ़ें : 38 साल की महिला 20वीं बार हुई प्रेग्नेंट, जानिए अधिक उम्र में प्रेग्नेंट होने पर किन बातों का रखें ख्याल

प्रीक्लेमप्सिया का क्या उपचार है? (Treatment for Preeclampsia)

अगर गर्भवती महिला में शुरुआत में ही प्रीक्लेमप्सिया का पता लग जाता है और शिशु पूरी तरह से विकसित नहीं हुआ है, तो डॉक्टर निम्नलिखित सलाह दे सकते हैं:

  • ज्यादातर बाईं करवट करके लेटें या आराम करें।
  • ब्लड प्रेशर (Blood Pressure) नियंत्रित करने के लिए डॉक्टर की सलाह से दवाएं लें।
  • जल्दी-जल्दी डॉक्टरी जांच करवाएं।
  • नमक (Salt) का सेवन कम करें।
  • डॉक्टर की सलाह से ज्यादा प्रोटीन वाली डायट लें।

और पढ़ें : गर्भाधारण के बारे में गलत धारणाएं: क्या आप भी मानती हैं इन बातों को?

प्रीक्लेमप्सिया (Preeclampsia) की रोकथाम कैसे की जा सकती है?   

सबसे पहले प्रत्येक गर्भवती महिला को डॉक्टरी जांच जरूर करवानी चाहिए। डॉक्टर की सलाह से प्रीक्लेमप्सिया का उपचार किया जा सकता है और साथ ही साथ कुछ घरेलू उपाय अपनाकर इसकी रोकथाम भी की जा सकती है। जैसे-

  • दिन में कम से कम सात से आठ गिलास पानी पिएं।
  • आहार में कैल्शियम (Calcium) की मात्रा बढ़ाएं।
  • प्रेग्नेंसी के दौरान नशीले पदार्थ जैसे-शराब, बीड़ी, तंबाकू आदि का इस्तेमाल न करें।
  • ज्यादा तेल और मसाले वाले खाने से परहेज करें।
  • नियमित रूप से व्यायाम (Workout) करें।

प्रीक्लेमप्सिया गर्भ में पल रहे शिशु और गर्भवती महिला के लिए खतरनाक साबित हो सकता है इसलिए समय रहते इसका उपचार आवश्यक है। इसके किसी भी तरह के लक्षण दिखने पर डॉक्टर से संपर्क करें, ताकि इसका पता जल्द से जल्द लगाया जा सके और उपचार शुरू किया जा सके। 

[embed-health-tool-pregnancy-weight-gain]

डिस्क्लेमर

हैलो हेल्थ ग्रुप हेल्थ सलाह, निदान और इलाज इत्यादि सेवाएं नहीं देता।

Preeclampsia. https://www.nhp.gov.in/disease/gynaecology-and-obstetrics/preeclampsia. Accessed on 27 Aug 2019

Hypertensive Disorders of Pregnancy. https://www.ncbi.nlm.nih.gov/pmc/articles/PMC3279097/ Accessed on 27 Aug 2019

What are the treatments for preeclampsia, eclampsia, & HELLP syndrome?. https://www.nichd.nih.gov/health/topics/preeclampsia/conditioninfo/treatments Accessed on 27 Aug 2019

Preeclampsia – self-care. https://medlineplus.gov/ency/patientinstructions/000606.htm Accessed on 27 Aug 2019

Preeclampsia. https://ghr.nlm.nih.gov/condition/preeclampsia#genes Accessed on 27 Aug 2019

Preeclampsia/https://www.preeclampsia.org/Aceesed on 31/08/2021

Preeclampsia and Pregnancy/https://www.acog.org/womens-health/infographics/preeclampsia-and-pregnancy/Aceesed on 31/08/2021

 

Current Version

31/08/2021

Shikha Patel द्वारा लिखित

Updated by: Nidhi Sinha


संबंधित पोस्ट

गर्भावस्था के लिए आवश्यक हैं गोनाडोट्रॉपिन्स, जानिए इनके प्रकार के बारे में

बच्चे की डिलिवरी पेरेंट्स के लिए खुशियों के साथ ला सकती है डिप्रेशन भी



Shikha Patel द्वारा लिखित · अपडेटेड 31/08/2021

ad iconadvertisement

Was this article helpful?

ad iconadvertisement
ad iconadvertisement