हर महिला चाहती है कि उसकी गर्भावस्था का समय सुखद रहे और बिना किसी परेशानी के बीते। सभी महिलाओं के लिए गर्भावस्था के दिन सबसे महत्वपूर्ण होते हैं। महिलाओं को इस दौर में कई प्रकार की समस्याओं जैसे कि मानसिक और शारीरिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ सकता है। जिसके कारण गर्भपात, समय से पहले प्रसव और जन्म के बाद शिशु में कोई विकार का खतरा बढ़ सकता है। ऐसे में महिलाओं कि सुरक्षा के लिए भारत सरकार द्वारा मैटरनिटी लीव एक्ट को सभी गर्भवती महिलाओं के लिए अनिवार्य रखा गया है। इस एक्ट का समर्थन खुद विश्व की सबसे बड़ी स्वास्थ्य संगठन डब्ल्यूएचओ (WHO) करती है। इस आर्टिकल में हम जानेंगे कि मातृत्व अवकाश नियम क्या हैं, मैटरनिटी लीव एक्ट का लाभ कौन ले सकता है?
मैटरनिटी लीव या मातृत्व अवकाश क्या है?
महिला कर्मचारियों को गर्भावस्था के दौरान और प्रसव के बाद भारत सरकार द्वारा मैटरनिटी लीव या मातृत्व अवकाश लेने का अधिकार है। जिन्हें सभी संस्थाओं के लिए अनिवार्य रखा गया है। भारत में मातृत्व अवकाश के फायदे मातृत्व अवकाश अधीनियम 1961 के तहत 10 या उससे अधिक कर्मचारियों वाली सभी दुकानों और संस्थाओं के लिए नियमों से युक्त है। जो महिलाएं 10 या उससे अधिक कर्मचारियों वाली संस्थाओं में काम करती हैं उनके लिए कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम (Employees State Insurance Act), 1948 के अंतगर्त मातृत्व अवकाश अधिनियम के फायदों को प्राप्त कर सकती हैं।
महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान या प्रसव के बाद ऑफिस में अक्सर पक्षपात का सामना करना पड़ता है। इसके कारण उन्हें पिछड़ा हुआ महसूस हो सकता है। महिलाओं के लिए मातृत्व अवकाश अधीनियम के फायदों के बारे में जानना बेहद आवश्यक है। इससे उन्हें पता चलता है कि उनके पास कानून के तहत क्या-क्या अधिकार मौजूद हैं। आज हम आपको मैटरनिटी लीव से जुड़े सभी फायदों और सवालों के बारे में बताएंगे। जिनके बारे में आपको गर्भावस्था के दौरान व पहले से पता होना बेहद जरूरी है। मातृत्व अवकाश अधिनियम के कानूनी अधिकारों की मदद से आपको गर्भावस्था की अवधि में लाभ मिलेंगे।
मैटरनिटी लीव एक्ट क्या है?
भारत में मैटरनिटी लीव एक्ट के तहत महिलाएं डिलिवरी के बाद अपने नवजात शिशु की देखभाल के लिए वैतनिक अवकाश (paid leave) प्राप्त कर सकती हैं और साथ ही बिना किसी परेशानी के अपनी जॉब फिर से जॉइन कर सकती हैं। यानी की मातृत्व अवकाश की अवधि के दौरान आपकी कंपनी आपको छुट्टियों के पुरे पैसे देंगी और साथ ही आपकी नौकरी भी सुरक्षित रहेगी।
भारत एक विकाशशील देश है जिसका पहला मैटरनिटी लीव एक्ट साल 1961 में स्थापित किया गया था। उस समय इसका नाम मैटरनिटी लीव बेनिफिट एक्ट 1961 रखा गया था। इस एक्ट के तहत महिलाओं को प्रसव के बाद अपने शिशु की देखभाल के लिए 12 हफ्तों का वैतनिक अवकाश प्राप्त होता है। यह एक्ट 10 या उससे अधिक कर्मचारियों वाली संस्थाओं पर लागू होता है। मैटरनिटी लीव एक्ट का लाभ वही महिला कर्मचारी उठा सकती है जो किसी कॉन्ट्रैक्ट, परमानेंट या किसी एजेंसी में नौकरी करती हों।
पिछले कुछ वर्षों में रोजगार में एक बहुत बड़ा बदलाव देखा आया है जिसके अनुसार देशभर कि सभी संस्थाओं में कई महिला कर्मचारियों का इजाफा हुआ है। पहले के मुकाबले भारत में 10 गुना महिला कर्मचारी हैं। इन्हीं सामजिक और आर्थिक बदलावों के कारण मैटरनिटी लीव एक्ट भी बदलाव के अधीन था। साल 2017 में मैटरनिटी लीव एक्ट में कई बदलाव और सुधार लाए गए। जिसके बाद इसे मैटरनिटी लीव (अमेंडमेंट) बिल 2017 का नाम दिया गया।
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मैटरनिटी (अमेंडमेंट) बिल 2017 में किए गए बदलाव
मैटरनिटी लीव एक्ट, 1961 में कई प्रकार के बदलाव और सुधार किए गए हैं। इन अधिकारों के तहत महिलाओं को कामकाज को लेकर अधिक समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ेगा।
मातृत्व अवकाश कौन ले सकता है
नाम से ही जाहिर है कि मातृत्व अवकाश ‘मां’ यानी कि महिलाओं के लिए होता है। नए मातृत्व अवकाश नियम (New Maternity Leave Rules) 2017 के अनुसार मातृत्व अवकाश उन महिलाओं को मिल सकता है, जिनकी कंपनी में 10 से अधिक लोग काम करते हो और महिला कर्मचारी ने उस कंपनी में एक साल में कम से कम 80 दिन किया हो। इसके साथ ही मातृत्व अवकाश के दौरान महिला को पूरा वेतन देने का भी प्रावधान है। मैटरनिटी लीव एक्ट फैक्ट्री, कॉर्पोरेट, खानों (माइन), खेती, दुकानों, संस्थाओं और सरकारी नौकरी करने वाली महिलाएं ले सकती हैं।
मैटरनिटी लीव कितने दिन की होता है?
मैटरनिटी (अमेंडमेंट) बिल 2017 का बड़ा बदलाव मैटरनिटी लीव एक्ट, 1961 के तहत महिलाएं केवल 12 हफ्तों की छुट्टियां ले सकती थी। जबकि मातृत्व लाभ संशोधन अधिनियम 2017 के अनुसार इस अवधि को बढ़ा कर 26 सप्ताह कर दिया गया है। महिला कर्मचारी चाहे तो अपनी इन मैटरनिटी लीव को दो भागों (डिलीवरी से पहले और डिलीवरी के बाद) में भी बांट सकती हैं। महिला प्रसव से पहले 8 हफ्तों की छुट्टी ले सकती हैं और प्रसव के बाद अन्य 16 हफ्तों की छुट्टियों का लाभ उठा सकती हैं। तीसरी बार गर्भवती होने पर महिलाओं के लिए मातृत्व अवकाश की अवधि सिर्फ 12 हफ्ते ही है।
तकनीक की मदद से गर्भधारण करने पर
टेक्नोलॉजी इस दौर में इतनी आगे बढ़ चुकी है कि इसकी मदद से बांझपन का भी इलाज ढूंढ लिया गया है। ऐसे कई परिवार हैं जिन्हें प्राकृतिक रूप से बच्चों का सुख प्राप्त नहीं हो पाता है। ऐसे में बांझपन से ग्रस्त महिलाओं की मां बनने में तकनीक से मदद की जाती है। इस स्थिति में भी महिलाएं अब मातृत्व अवकाश अधिनियम का लाभ उठा सकती हैं। नए मैटरनिटी कानून के तहत जो बायोलॉजिकल मां अपने अंडे को भ्रूण बनाने के लिए दूसरी महिला में प्लांट करने के लिए डोनेट करती हैं, उन्हें 12 हफ्तों के लिए मातृत्व अवकाश लेने का अधिकार होता है।
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गर्भावस्था के दौरान ट्यूबेक्टॉमी या
ट्यूबेक्टॉमी के मामले में, निर्धारित कागजात के साथ महिला कर्मचारी दो सप्ताह का मातृत्व अवकाश का विकल्प चुन सकती है। इसकी अवधि ट्यूबेक्टॉमी ऑपरेशन के तुरंत बाद शुरू होती है।
मैटरनिटी लीव एक्ट के तहत वेतन
मैटरनिटी (अमेंडमेंट) बिल 2017 के तहत सभी महिला कर्मचारियों के लिए यह लीव वैतनिक अवकाश के अधीन होती हैं। यानी हर महिला कर्मचारी को उसके दैनिक या मासिक मजदूरी के आधार पर वेतन मिलता है। कर्मचारी को इस पूरी अवधि के दौरान पेड छुट्टियां प्राप्त होती हैं। हालांकि, अगर कर्मचारी अवधि समाप्त होने के बाद भी छुट्टियों पर रहता है तो दैनिक मजदूरी के आधार पर उसका वेतन काटा जा सकता है।
गर्भावस्था के बाद बीमार पड़ने पर
गर्भावस्था एक जटिल प्रकिया होती है जिसके कारण महिलाओं कि जान भी जा सकती है। अगर कोई भी महिला गर्भावस्था के कारण किसी गंभीर स्थिति से गुजर रही है तो वह मातृत्व लाभ संशोधन अधिनियम 2017 के तहत एक महीने कि छुट्टी ले सकती हैं।
सरकारी कर्मचारियों के लिए मातृत्व अवकाश की अवधि
सिविल नौकरी करने वाली महिला कर्मचारी मैटरनिटी लीव एक्ट के तहत 180 दिन के अवकाश का लाभ उठा सकती हैं। यह केवल शुरुआती दो बच्चों पर लागू होता है।
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बच्चा गोद लेने पर मैटरनिटी लीव एक्ट की अवधि
बच्चे को गोद लेने वाली महिला 12 हफ्तों की मैटरनिटी लीव ले सकती हैं। इस स्थिति में शिशु की उम्र तीन महीने से कम होनी चाहिए और अवकाश की अवधि गोद लेने के दिन से ही शुरू हो जाती है।
प्राइवेट सेक्टर में मातृत्व अवकाश की आवधि
प्राइवेट सेक्टर में काम करने वाली महिलाओं को अपनी मैटरनिटी लीव कि जानकारी के बारे में जानने करने के लिए एचआर (HR) टीम से संपर्क करने की आवश्यकता होती है। प्राइवेट सेक्टर में भुगतान और अवकाश की अवधि विभिन्न होती हैं। ध्यान रहे की मैटरनिटी लीव एक्ट के फायदों और नियमों बारे में प्राइवेट संस्थाएं लिखत में कर्मचारी को जोइनिंग के समय ही बता देती हैं।
मातृत्व अवकाश के लिए आवेदन या प्रार्थना पत्र कैसे भरें?
मैटरनिटी लीव के लिए अप्लाई करने के लिए आपको कुछ बातों को फॉलो करना होगा:
- सबसे पहले महिला को यह तय करना होगा कि उन्हें मातृत्व अवकाश कब से लेना है।
- इसके बाद अपने संबंधित विभाग के प्रमुख या मैनेजर से अपने मातृत्व अवकाश के लिए बात करें।
- इसके बाद विभाग के प्रमुख या मैनेजर आपको कंपनी के एचआर (Human Resource) से बात करने की सलाह देंगे। क्योंकि एचआर को मैटरनिटी लीव के बारे में सभी बातें जानते हैं, ऐसे में वह आपको अच्छे से मातृत्व अवकाश के नियमों को समझा देंगे।
- इसके बाद एचआर आपको मैटरनिटी लीव फॉर्म भरने के लिए देंगे।
- मैटरनिटी लीव फॉर्म ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरीके से मौजूद होता है। इससे संबंधित सभी बातों का ध्यान रखते हुए फॉर्म को भर कर अपने विभाग के एचआर के पास जमा कर दें। इसके बाद आपकी मैटरनिटी लीव मंजूर हो जाएगी।
नोट: उपरोक्त बताई गई प्रोसेस सरकारी और गैर सरकारी दोनों प्रकार की संस्थाओं में लागू होती है। लेकिन फिर भी आप अपने संबंधित विभाग में मातृत्व अवकाश के लिए आवेदन करने की प्रक्रिया के बारे में जरूर पूछ लें।
अक्सर पूछे जानें वाले सवाल (Maternity Leave FAQ)
मैटरनिटी लीव खत्म होने के बाद के फायदे?
मातृत्व अवकाश समाप्त होने पर अक्सर महिलाओं को ऑफिस फिर से जॉइन करना पड़ता है। हालांकि, कभी-कभी मैटरनिटी लीव खत्म होने के बाद भी महिलाएं कुछ लाभ उठा सकती हैं। जैसे की घर से काम करना। अगर आपके मातृत्व अवकाश की अवधि खत्म हो चुकी है तो आप मैटरनिटी लीव एक्ट के तहत वर्क फ्रॉम होम लेना का अधिकार रखती हैं। इस प्रावधान के अनुसार आप ऑफिस जाए बिना ही घर से काम कर सकती हैं।
क्या मैटरनिटी लीव एक्ट के तहत कंपनी शिशु के लिए डे केयर सुविधा देती है?
जी हां, मैटरनिटी लीव एक्ट के अनुसार 50 या उससे अधिक कर्मचारियों वाली संस्थानों को बच्चों की देखभाल के लिए डे केयर की सुविधा देना अनिवार्य है। इसके साथ ही मां अपने बच्चे से मिलने के लिए दिन में चार बार डे केयर जा सकती है।
अगर मैं छुट्टियों के बाद भी दफ्तर नहीं जाती हूं, तो क्या होगा?
कही महिलाओं के मन में यह सवाल आता है कि अगर वह मैटरनिटी लीव खत्म होने के बाद ऑफिस नहीं जाएंगी तो क्या होगा? दरअसल मैटरनिटी लीव एक्ट के अनुसार अगर आप किसी कारण ऑफिस नहीं जा सकती हैं तो आप घर से काम करने का विकल्प चुन सकती हैं। हालांकि, इस विषय में आपको अपनी एचआर टीम से बात करने की जरूरत पड़ सकती है। मैटरनिटी लीव एक्ट 2017 के अनुसार 26 हफ्तों की मातृत्व अवकाश की अवधि खत्म होने पर आप कंपनी से अतिरिक्त छुट्टियों का आवेदन कर सकती हैं। लेकिन यह पूरी तरह से आपकी संस्था पर निर्भर करता है कि वह इस अवकाश का वेतन देंगी या नहीं देंगी।
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क्या मातृत्व अवकाश के दौरान मेरी जॉब को खतरा हो सकता है?
कोई भी कंपनी और संस्था किसी भी महिला कर्मचारी को गर्भावस्था के कारण नौकरी से नहीं निकाल सकती है। अगर वह ऐसा करती हैं तो मैटरनिटी लीव एक्ट के तहत आप संस्था पर कानूनन कार्रवाई कर सकती हैं।
मैटरनिटी लीव के लिए कब अप्लाई करना चाहिए?
मातृत्व अवकाश अधिनियम के अनुसार आप प्रसव से 8 हफ्ते पहले या उसके बाद मैटरनिटी लीव के लिए अप्लाई कर सकती हैं। ज्यादातर महिलाएं मैटरनिटी लीव के लिए डिलीवरी के बाद अप्लाई करती हैं।
कंपनी पर मातृत्व अवकाश अधिनियम का क्या प्रभाव पड़ता है?
भारत में मैटरनिटी लीव एक्ट अन्य देशों के मुकाबले बेहद कमजोर है। अन्य देशों में सरकार और कंपनी दोनों मिलकर महिला कर्मचारी के वेतन का भुगतान करते हैं। जबकि भारत में संस्था को अकेले ही भुगतान करना होता है। महिला कर्मचारी के जाने पर संस्था को कुछ समय के लिए किसी अन्य कर्मचारी को नौकरी पर रखना पड़ता है। इसमें कंपनी पर खर्च का भोज बढ़ जाता है। इसके साथ ही कंपनी के अन्य प्रमुख कर्मचारी को अस्थायी कर्मचारी को ट्रैन करने के लिए समय निकालना पड़ता है। महिला कर्मचारी की मातृत्व की अवधि खत्म होने पर अस्थायी कर्मचारी को जाना पड़ता है। जिससे कंपनी का समय बर्बाद हो सकता है।
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मैटरनिटी लीव पर क्या कहती है रिसर्च
एक अध्ययन के मुताबिक भारत में महिला कर्मचारियों के मुकाबले पुरुष कर्मचारियों की आबादी ज्यादा है। इसका मुख्य कारण कंपनियों का पुरुष कर्मचारियों के प्रति प्राथमिकता होना है। कंपनियों के अनुसार महिला कर्मचारी का खर्च पुरुष कर्मचारी के मुकाबले अधिक होता है।
सरकार द्वारा मैटरनिटी लीव एक्ट को कानून बनाने के बावजूद भी देशभर में कई ऐसी महिलाएं हैं जो इसका लाभ नहीं उठा पाती हैं। कई नियोक्ता अपनी जेब से कर्मचारी को मातृत्व अवकाश का वेतन देने से मना कर देते हैं। भारत सरकार को मातृत्व अवकाश अधिनियम को अधिक मजबूत बनाने की आवश्यकता है। इसके लिए उन्हें ऐसे प्रावधान निकालने चाहिए जिससे नियोक्ता महिला कर्मचारी को नौकरी देने में न हिचकिचाएं।
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छोटी संस्थाएं और स्टार्ट-अप कंपनी का बजट कम होता है। इसके साथ ही मातृत्व अवकाश के वेतन भुगतान में सरकार कंपनियों की कोई मदद नहीं करती जिसके कारण वह महिला कर्मचारियों को कम भर्ती करते हैं। अब आप ये तो समझ ही गए होंगे कि क्यों कुछ कंपनियां महिलाओं को भर्ती करने से हिचकिचाती हैं। वहीं कुछ कंपनिया सिंगल वुमन की भर्ती को प्राथमिकता देती हैं।
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गर्भावस्था एक कुदरती प्रक्रिया है। जिसका महिलाओं की नौकरी करने की क्षमता और वृद्धि पर प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए। एक विकासशील देश होने के नाते जहां हम लड़कियों की पढ़ाई को बढ़ावा देते हैं वहीं हमें मैटरनिटी लीव के फायदों को भी गंभीरता से लेना चाहिए और साथ ही सरकार के सहयोग के साथ सभी संस्थाओं में मैटरनिटी लीव एक्ट को अनिवार्य करना चाहिए।
मैटरनिटी लीव एक्ट के तहत यह एक सामान्य प्रक्रिया है जो सभी सरकारी और गैर-सरकारी संस्थानों में लागू होती है। इसकी सही जानकारी के लिए अपनी एचआर टीम या मैनेजर से संपर्क करें। आप स्वास्थ्य संबंधि अधिक जानकारी के लिए हैलो स्वास्थ्य की वेबसाइट विजिट कर सकते हैं। अगर आपके मन में कोई प्रश्न है तो हैलो स्वास्थ्य के फेसबुक पेज में आप कमेंट बॉक्स में प्रश्न पूछ सकते हैं।
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